Thursday 23 February 2017

विलक्षण प्रतिभा के 'लोकल' धनी


विलक्षण प्रतिभा के 'लोकल' धनी

यूँ तो राष्ट्रीय अंतर-राष्ट्रीय प्रतिभाएं अनेकों विद्यमान हैं ।
अपने- अपने फील्ड के महारथियों ने अपने-अपने इलाके में धूम-धडाका भी जबरदस्त किया होगा, परन्तु जिन लोगों ने किसी फील्ड में ‘जुगाड़’ की इजाद की उन्हें  भूलना, उनके प्रति असहिष्णुता है ।हम इतने गये-बीते नहीं की उनको याद न करें ।
सबसे पहले मुहल्ले के नुक्कड़ में दस बाई दस के कमरे में अस्त-व्यस्त कबाड़-बिखरे सामान के साथ दिमागे-दुरुस्त में जो कौधता है, वो है ‘अर्जुन सोनी’ ....।इन्हें पिछले ४० सालों से इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रानिक्स की दुनिया में व्यस्त देखा हूँ ।दिल्ली मेड रेडियो ,टेप ,रिकार्ड प्लेयर और बाद में टी वी ,वी. सी .आर. के किसी भी माडल और मेक को सुधारने का जबर्दस्त दम और हुनर  उसके पास है ।मुहल्ले  का ऐसा कोई एंटीना नहीं था , जिसे बिना उसकी जानकारी के किसी ने फिट करवाया हो | उसे रिपेयरिंग के काम में परफेक्शन, जरुरी की हद तक, पसंद होने के चक्कर में, ग्राहकों को महीनों घुमा देता ।
जहाँ  लोग टरकाऊ छाप कम करके लाखों पीट लिए,अफसोस  वहां ये आर्कमिडीज 'यूरेका' की खोज में समय  से पहले बुढापा बुला बैठा  ।

दूसरा , एक समय था जब अपने शहर में जुए-सट्टे का जबरदस्त चलन था ।इसी लत में आकंठ व्यस्त रहने वाले जिस इंसान का जिक्र कर रहा हूँ ,वो है सुनील 'चोरहा'।उस्का नाम सुनील श्रीवास्तव था ,'चोरहा' खिताब उसकी उठाईगिरी प्रवित्ति के खुलासा होने के कारण खुद ब खुद बाद में लोगो ने जोड़ दिया ।उन दिनों सायकिलों को किराया में दे कर चलवाने का धंधा जोरों पर होता  था | नये-नये सायकल स्टोर खुलते थे ।पचीस-पचास नई सायकलें किराए से दे दी जाती थी ।
सुनील की  'माडस-ओपेरेंडी' यूँ थी, कि आपने जिस स्टोर से सायकल उठायी ,वो भी किराए पर वहीं से  सायकल ले लेता ।वो  आपके गंतव्य का पीछा करता | आपका जहाँ सायकल लाक करके किसी होटल या दूकान में घुसना होता , वो अपनी सायकल आसपास रखकर 'मास्टर की' से खोल के ,  आपकी सायकल पार कर देता । पकड़े जाने पर सफाई के लिए ,  एक ही स्टोर की हुबहू सायकल में, शिनाख्ती भूल  का हवाला देकर बचने की भरपूर एल्बी या गुजाइश होती थी ।घर आकर इत्मीनान से   सिर्फ सायकल के मडगार्ड को जिसमे सायकल स्टोर का नाम नम्बर होता , बदल कर औने पौने  कीमत में  बेच देता ।बदले मडगार्ड को नदी तालाब के हवाले कर देता |सायकल की धडाधड होती चोरियों ने, लोगों को चौकन्ना कर  दिया।तमाम सायकल स्टोर के किराया-रजिस्टर में वारदात के दिनों की एंट्री की जाँच हुई |सूत्र सिवाय एक श्रीवास्तव सरनेम कामन मिलने के, अतिरिक्त कुछ हाथ न लगा  ।पुलिस ने स्टोर मालिको को चौकन्ना कर  दिया कि किराए पर सायकल उठाने वालों के नाम को गौर से चेहरा देख  लिखा जावे ।इसी के बूते अपने श्रीवास्तव जी ,जो मोहल्ले से  दूर के किसी  सायकल स्टोर में, जहाँ कभी  रोहन- सोहन नाम के साथ श्रीवास्तव उठा लेता  था , किसी दिन रोहन की जगह श्रीवास्तव सरनेम के साथ  सोहन लिखवा बैठा| उसकी चोरी की दुनिया की अक्लमंदी में मंदी शुरू हो गई ।सबूत के अभाव में वह छोट तो गया मगर लोग उसे इलाके में देख भर ले अपनी-अपनी सौकल से चिपक जाने लगे |

तीसरा चरित्र उन दिनों के ख्यातनाम कवि और अदब से ताल्लुक रखने वालों से बावस्ता है |इनमे से कुछ अब दिवंगत हैं|,उन सब की रूह जन्नत में आराम नशीं हो |आमीन |
कवी महोदय , नई पौध के लेखन को प्रोत्साहन के नाम पर नुक्कड़ के किसी चाय के टपरे में मजमा लगाए रहते थे |खाली समय व्यतीत करने के लिए, उनकी जन्दगी में, ताश और जुआ, शगल आदत और मजबूरी का मिला-जुला, दखल रखता था |यूँ कहें जब ताश नहीं तो बस शायरी, गजब का विरोधाभास लिए उस इंसान को हम लोगों ने जीते हुए  देखा है |
उनकी शायरी का जबरदस्त लोहा मानने वालों में दो तीन नाम याद हैं| एक नत्थू साहू व्यंगकार  ,दूसरा कौशल कुमार उभरता गीतकार ,तीसरा राम चरण कहानी कार ....|आगे चल के ये लोग कुछ बने या नहीं पता नहीं चला |
नत्थू उन दिनों सेवादार की भूमिका होता |’गुरुजी’,इस आदरणीय संबोधन से बात शुरू करता |  इस गणेश उत्सव ,और नव-रात्री की जबरदस्त तैय्यारी करवा दीजिये बस |दस बीस कवी- सम्मेल्लन निपटाने लायक तगादा मसाला हो अपने पास |मजा आ जाएगा |आपने शायद किसी कवी के मुह से ये बात न सुनी हो तो अटपटा लग सकता है|जाने भी दो |
 गुरुजी घर में ख़ास आपके लिए चिकन बनवाया  है ,कहते हुए पुराने अखबार रखकर टिफिन सजाने लगता |मुर्गे की टांग के साथ, शेर कहते हुए गुरुजी को देखके, नत्थू धन्य  हो जाता |उसी टांग खिचाई में गुरुजी अपनी किसी पुरानी रचना को यूँ सुनाते जैसे मुर्गे की प्रेरणा से  इस रचना का सद्य निसरण हुआ है |मुर्गा-प्रेरित रचना को नत्थू नोट करके अपनी डायरी को धन्य कर लेता |दस-पन्द्रह मुर्गों की बलि से नत्थू का कवि-सम्मलेन भारी वाहवाही की उचाई को छू लेता |अखिल भारतीय स्तर के एक कवी-स्म्मेल्लन का जिक्र कई बार उनके मुह से सुना है |गुरुजी क्या भीड़ थी ,खचाखच ,अपन ने ”इतने हम बदनाम हो गए”  वाली रचना सुनाई| क्या दाद मिला गुरूजी कह नहीं सकते |’माया रानी’ जो ख्याति लब्ध मानती थी सन्न रह गई |यहाँ तक कि लोगों ने हूट करके अगले दौर में  बिठा तक दिया |
उन दिनों , लाइव टेलीकास्ट और सेल्फी युग नहीं था वरना नथ्थू के छा  जाने वाली बात की तस्दीक हो जाती|
खैर यूँ  गुरु-चेले की निभती रही| नत्थू की दुकानदारी को देख के कई नौसिखिये इस मौसम के उपयोग हेतु आने लगे |गुरुजी बाकायदा दस-दस रुपयों की बोली में रचनाएँ बाँटते| जिसे नव-लेखक उत्साह से दूर दराज के गाँव में जाकर पढ़ते |चूँकि गुरुजी शहर से बाहर कभी निकल के कभी  कविता पाठ नहीं किये थे अत: उनकी सख्त मनाही थी, कि दुर्ग-शहरी क्षेत्र में कोई रचना न पढ़ी जावे |मूल लेखक के उजागर हो जाने का खतरा है |अगर इस इलाके में पढना है तो बाकायदा ताजी रचना लिखवाना | लोग ख़ास मौको पर ताजी रचना भी गुरुजी का मूड बना-बना कर  हलाल करने लगे |

एक दिन हमने गुरुजी से यूँ ही पूछ लिया आप जानते हैं ,आप साहित्य को बदनाम करने लगे हैं |वो कहते जब पेट की आग धधकती है तो ये मान के चलो ,कोई नज्म ,गजल या कविता आग बुझाने नहीं आयेगी |केवल रोटी से ही ये आग बुझेगी |नौकरी पेशा तो हम हैं नहीं कैसे चल-चला पाते हैं,हमी को पता है |वैसे भी  आजकल, मानो साहित्य मर सा गया है ,इसका स्तर कितना गिरने लगा है |मुझे मालुम है ये जिस सम्मेलन में जाते हैं मुश्किल से इन्हें सुना जाता होगा| लतीफे-बाज, चुटकुले-बाज मंच छोड़ते नहीं|चिपके रहते हैं |उनका अपना ग्रुप होता है |तू मुझे बुला मै तुझे बुलाउंगा | जब ये चुटकुले-बाज  पी के धुत्त होकर  पढने लायक नहीं होते तब हमारे साहित्यिक रचना की बारी आती है |
कुछ विद्रोही  रचनाओं को अखबार में .पत्रिका में छापने वाले भी, सरकारी विज्ञापन कट जाने के भय  से दरकिनार कर देते हैं |सर पटक लो वे नहीं छापते |
ऐसे में साहित्य का कहाँ  से सर उठाये और साहित्यकार किस बूते  जिए.....? बताओ ......?
ये लोग जो हमारा लिखा पढ़ रहे हैं, उसे  किसी समय हमने उत्साह से लिखा था| चलो , किसी बहाने लोगो तक अपनी रचना पहुच तो रही है ....यही संतोष है ......|उनकी बेचारगी मुझे झझकोर कर रख दी| उनकी आत्मा को प्रभु  शांति दे .....

उनका गमगीन चेहरा, इन  शब्दों के साथ जब भी मुझे याद आता है ,मुझे साहित्य से यक-ब-यक अरुचि और विरक्ति सी होने लगती है |
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com  ०९४०८८०७४२०  //१०.०२.१६

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