इधर कुछ सालो से अपने देश में ‘कन्फ्यूज करो-राज करो’ का फार्मूला जोरो पर है |पहले की ‘डिवाइड एंड रुल’ की थ्योरी इसके आगे फीकी सी हो गई है|
डिवाइड एंड रुल की थ्योरी में मेहनत और प्लानिग की बहुत जरूरत होती थी |
आपको घर में, मोहल्ले में, गाव में, या शहर में, जहां भी राज कायम करना होता तो, ‘घर के भेदी’ का ढूढा जाना अहम हिस्सा होता था|
रावण जैसे बलशाली को, उसके ही घर में, ‘घर के भेदी’ की बदौलत ही पटकनी देने में जो भगवान राम सफल हुए वो रामायण में मिसाल बतौर दर्ज है |महाराज विभीषन के असंतुष्ट होने को भांप लेने भर से प्रभु का बहुत सारा काम हल्का हो गया ,वरना परदेश में जो गत बनती उसकी कल्पना करना ही झुरझुरी पैदा कर देता है |
वैसे आजकल के लोकल भेदी मिल जायें , तो उसके खाना –खुराक पर ध्यान देना पडता है |
पहलवान नुमा मिल जाए तो उसे चराते-चराते,फिर उसके भेजे से, उअसके अल्पज्ञान से कुछ भेजा हुआ निकालने में, दम निकल जाता है |
भेदी लोगों के रेट चार्ट अलग-अलग होने से,अलग-अलग परिणाम निकलते हैं|सुस्त भेदी ,फास्ट भेदी , कम सस्ते रेट वाले भेदी,महंगे रेट वाले भेदीयों के काम करने के स्टाइल अलग होते हैं |
महानगरों में सुस्त लोगों की जगह नहीं होती |वहन के पुलिसिये इनपे भरोसा कर चलें तो सस्पेंड हो जाएँ |वहां तो यूँ चलता है,कोठी के अन्दर घपला ,कतल ,रेप,किडनेप हुआ तो पुलिसिये भेदियों की बदौलत दसों चश्मदीद खड़े कर देते हैं |
को पकडने के दुष्परिणामों के बारे में जानकारी रखना जरूरी होता था |कम रेट वाले भेदी कब धोखा दे जाएँ कहा नहीं जा सकता |वे आपसे ज्यादा देने वालों की तरफ कब खिसक जाएँ कोई भरोसा नहीं |
डिवाइड एंड रुल की थ्योरी में एक पार्टी दुसरे की पक्के तौर में दुश्मन हो जाती थी|’ठाकुर नुमा’ पक्की दुश्मनी के मिसाल में कई चित्रपट कथाये सामने से गुजर गई हैं |एक मुंशी की मुखबिरी, या एक भाई का भाई से अनबन कराने का फार्मूला जनानी ड्योढ़ी से शुरू होकर मैदाने जंग तक पहुचती थी |मुखबिर या मुंशी का हित सधता था उसे एक न एक पार्टी से लबालब पैसे मिल जात्ते थे |
अंग्रेज भी एस मुल्क में इतने दिनों तक इसी दम पर कायम रहे |जाते–जाते हिन्दू–मुस्लिम,जात-पांत,अमीर-गरीब नुमा दाग-धब्बे छोड़ गए |अब बैठ के रगड-रगड के धोते रहो|
आजादी के बाद हमारे कुछ कर्मठ देश-भक्त,देश निर्माण में जी जान से जूटे|यूनिटी सी दिखने लगी ,डिवाइड एंड रुल की थ्योरी गायब सी होने लगी,तभी कुछ चालाक,बदमाश,बनिये किस्म के लोग जिन्हें हर बात में पैसा सूझता है ,घुसने लगे| कन्फ्यूजन की राजनीति चालू हो गई |
देश की जनता में यह ठूस ठूस कर भरा जाने लगा कि वो निरीह है ,बेबस है ,लाचार है,बिलो पावर्टी लाइन है गरीब है |उनका अगर कोई उद्धार करने वाला है तो वो है सरकार |सरकार स्वयंभू माई-बाप होने का ढिढोरा पीटने लगी |जनता बेचारी को कंफ्य्ज करने लगी ली तुम्हारे पास अनाज नहीं ये लो रुपय्या किलो,तुम्हारे पास टी वि नहीं ये लो मुफ्त |लेपटाप नहीं ,सायकल नहीं भैस नहीं ,बकरी नहीं सब मुफ्त ले जाओ |जनता हकबका के देखने लगी ये कौन दाता है, जिसे बदले में कुछ नहीं चाहिए ,बस दिए जा रहा है |वो कन्फ्यूज हो के रह जाती है|
सरकार के कन्फ्यूजन चाल के बाद,शकुनी का पासा फेकना शुरू होता है |कहीं वो दलितो को बटोरती है,उन्हें डराती है,खौफ पैदा किया जाता है कि वो सम्हाल जाए वरना ‘उचे लोग- ऊँची पसंद’ वाले उन्हें जीने नहीं देंगे |वे कन्फुज हो के एक जुट हो जाते हैं |आनन –फानन उनकी सरकार चल निकलती है |मुखिया-कन्फ्युजक ,की चांदी हो चुकी होती है |
कोई धर्म के नाम पे बताता है तुम्हारा राम टेंट में कब तक रहेगा?जिसने जिस राम का छत छीना ,वही दावा करते है कि वो राम को भव्य मंदिर देंगे ?जनता कन्फ्यूज ? चौरासी योनी में भ्रमण करने वाला जीव ,चौरासी कोस की यात्रा करके, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए चौरासी-व्यंजन का इन्तिजाम किए दे रहे है |(पिछले छप्पन-व्यंजनी मेन्यू में पिजा-बर्गर वगैरह जुड गए हैं)जनता कन्फ्यूज क्या खाएं क्या छोड़ें ?
बाबा लोग भी जनता को धोखे में रखते हैं |एक बाबा सभा में किसी को खडा करके पूछते हैं, पिछले दिन योग करके जिनका, दो किलो वजन कम हुआ वे हाथ ऊँचा करें ,कई हाथ उठ जाते हैं |हमारे देश में विज्ञान की तरक्की के क्या कहने ?पिछले घंटे योग करने पर जिसका दमा शांत हुआ वे हाथ ऊँचा करे ?हाथ उठवा-उठवा कर वे गोले पे गोले दागते रहते हैं ,मिसाइल जिस तेजी से नहीं जा पहुचता उससे ज्यादा तेज, इनका मेसेज मीडिया के मार्फत चला जाता है |चेनल की टी आर पी बढती है ,बाबा का नुस्खा ,तेल,दवाई बिकता है|जनता कन्फ्यूज होके भस्मासुर आसन में लगे रहती है|
एक दस परसेंटिया बाबा, जिस किसी को भी अनाप-शनाप सलाह दिए फिरता है ,कल गाय के घी की चुपडी, खाई आज भैस के घी की खा कर देखो |और हाँ गाय को चारा जरूर दे देना तुम्हारा काम हो जाएगा|वो भैस का घी सजेस्ट करेगा गाय को चारा फिकवायेगा,ऐसी तुकबंदी साहित्य की , नई कविता विधा में भी नहीं चली ?वैसे उनके दरबार में ऐरा –गैरा तो कोई आता नहीं|सब सरप्लस मनी वाले,फुरसतिया-तफरी करने वाले लोग होते हैं| इन्हें कन्फ्यूज करो, ये दाम दे के जायेगे|भले लोग चंगी सोच |
एक बाबा ,जिस ‘काम’ से निर्लिप्त रहने की लोगों को उपदेश देते हैं उसी ‘काम’ में वे आकंठ डूबे प्रचारित होते हैं | इंदियों को बस में करने का प्रवचन सुबह से शाम तक चलता है, मगर इनकी छठी इन्द्रिय इन्हें नहीं बता पाती कि जो काम ये रात में करने जा रहे हैं, उसमे अग्रिम जमानत भी नही हो सकती|उनके समागम में ,इसके बावजूद भक्तो की भीड़ देखकर लगता है कि, समूची भीड़ कहीं न कहीं कन्फ्यूज्ड है |
जनता को कन्फ्यूज करने का विज्ञापन आए दिनों की आम बात हो गई है |मैल में छीपे कीटाणु ,टूथपेस्ट में साल्ट ,अपना लक पहन के चलो|सुबह से शाम तक टी वी के सामने रहो, तो यूँ लगता है, हमारे बुजुर्गों ने बिना हाथ धोए कीटाणुओ को खा लिए ,बिना लक के वे बनियान पहने रहे |कुछ एक ने तो बनियान देखा भी नहीं |
काश वे अपना ‘लक’ पहन के चले होते, तो आज हमको ये दिन देखने की नौबत नहीं आती ?
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर,Zone 1 street 3 , दुर्ग (छ ग)’
mobile 08866502244 :::,8109949540::::09526764552
susyadav7@gmail.com , sushil.yadav151@gmail.com
डिवाइड एंड रुल की थ्योरी में मेहनत और प्लानिग की बहुत जरूरत होती थी |
आपको घर में, मोहल्ले में, गाव में, या शहर में, जहां भी राज कायम करना होता तो, ‘घर के भेदी’ का ढूढा जाना अहम हिस्सा होता था|
रावण जैसे बलशाली को, उसके ही घर में, ‘घर के भेदी’ की बदौलत ही पटकनी देने में जो भगवान राम सफल हुए वो रामायण में मिसाल बतौर दर्ज है |महाराज विभीषन के असंतुष्ट होने को भांप लेने भर से प्रभु का बहुत सारा काम हल्का हो गया ,वरना परदेश में जो गत बनती उसकी कल्पना करना ही झुरझुरी पैदा कर देता है |
वैसे आजकल के लोकल भेदी मिल जायें , तो उसके खाना –खुराक पर ध्यान देना पडता है |
पहलवान नुमा मिल जाए तो उसे चराते-चराते,फिर उसके भेजे से, उअसके अल्पज्ञान से कुछ भेजा हुआ निकालने में, दम निकल जाता है |
भेदी लोगों के रेट चार्ट अलग-अलग होने से,अलग-अलग परिणाम निकलते हैं|सुस्त भेदी ,फास्ट भेदी , कम सस्ते रेट वाले भेदी,महंगे रेट वाले भेदीयों के काम करने के स्टाइल अलग होते हैं |
महानगरों में सुस्त लोगों की जगह नहीं होती |वहन के पुलिसिये इनपे भरोसा कर चलें तो सस्पेंड हो जाएँ |वहां तो यूँ चलता है,कोठी के अन्दर घपला ,कतल ,रेप,किडनेप हुआ तो पुलिसिये भेदियों की बदौलत दसों चश्मदीद खड़े कर देते हैं |
को पकडने के दुष्परिणामों के बारे में जानकारी रखना जरूरी होता था |कम रेट वाले भेदी कब धोखा दे जाएँ कहा नहीं जा सकता |वे आपसे ज्यादा देने वालों की तरफ कब खिसक जाएँ कोई भरोसा नहीं |
डिवाइड एंड रुल की थ्योरी में एक पार्टी दुसरे की पक्के तौर में दुश्मन हो जाती थी|’ठाकुर नुमा’ पक्की दुश्मनी के मिसाल में कई चित्रपट कथाये सामने से गुजर गई हैं |एक मुंशी की मुखबिरी, या एक भाई का भाई से अनबन कराने का फार्मूला जनानी ड्योढ़ी से शुरू होकर मैदाने जंग तक पहुचती थी |मुखबिर या मुंशी का हित सधता था उसे एक न एक पार्टी से लबालब पैसे मिल जात्ते थे |
अंग्रेज भी एस मुल्क में इतने दिनों तक इसी दम पर कायम रहे |जाते–जाते हिन्दू–मुस्लिम,जात-पांत,अमीर-गरीब नुमा दाग-धब्बे छोड़ गए |अब बैठ के रगड-रगड के धोते रहो|
आजादी के बाद हमारे कुछ कर्मठ देश-भक्त,देश निर्माण में जी जान से जूटे|यूनिटी सी दिखने लगी ,डिवाइड एंड रुल की थ्योरी गायब सी होने लगी,तभी कुछ चालाक,बदमाश,बनिये किस्म के लोग जिन्हें हर बात में पैसा सूझता है ,घुसने लगे| कन्फ्यूजन की राजनीति चालू हो गई |
देश की जनता में यह ठूस ठूस कर भरा जाने लगा कि वो निरीह है ,बेबस है ,लाचार है,बिलो पावर्टी लाइन है गरीब है |उनका अगर कोई उद्धार करने वाला है तो वो है सरकार |सरकार स्वयंभू माई-बाप होने का ढिढोरा पीटने लगी |जनता बेचारी को कंफ्य्ज करने लगी ली तुम्हारे पास अनाज नहीं ये लो रुपय्या किलो,तुम्हारे पास टी वि नहीं ये लो मुफ्त |लेपटाप नहीं ,सायकल नहीं भैस नहीं ,बकरी नहीं सब मुफ्त ले जाओ |जनता हकबका के देखने लगी ये कौन दाता है, जिसे बदले में कुछ नहीं चाहिए ,बस दिए जा रहा है |वो कन्फ्यूज हो के रह जाती है|
सरकार के कन्फ्यूजन चाल के बाद,शकुनी का पासा फेकना शुरू होता है |कहीं वो दलितो को बटोरती है,उन्हें डराती है,खौफ पैदा किया जाता है कि वो सम्हाल जाए वरना ‘उचे लोग- ऊँची पसंद’ वाले उन्हें जीने नहीं देंगे |वे कन्फुज हो के एक जुट हो जाते हैं |आनन –फानन उनकी सरकार चल निकलती है |मुखिया-कन्फ्युजक ,की चांदी हो चुकी होती है |
कोई धर्म के नाम पे बताता है तुम्हारा राम टेंट में कब तक रहेगा?जिसने जिस राम का छत छीना ,वही दावा करते है कि वो राम को भव्य मंदिर देंगे ?जनता कन्फ्यूज ? चौरासी योनी में भ्रमण करने वाला जीव ,चौरासी कोस की यात्रा करके, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए चौरासी-व्यंजन का इन्तिजाम किए दे रहे है |(पिछले छप्पन-व्यंजनी मेन्यू में पिजा-बर्गर वगैरह जुड गए हैं)जनता कन्फ्यूज क्या खाएं क्या छोड़ें ?
बाबा लोग भी जनता को धोखे में रखते हैं |एक बाबा सभा में किसी को खडा करके पूछते हैं, पिछले दिन योग करके जिनका, दो किलो वजन कम हुआ वे हाथ ऊँचा करें ,कई हाथ उठ जाते हैं |हमारे देश में विज्ञान की तरक्की के क्या कहने ?पिछले घंटे योग करने पर जिसका दमा शांत हुआ वे हाथ ऊँचा करे ?हाथ उठवा-उठवा कर वे गोले पे गोले दागते रहते हैं ,मिसाइल जिस तेजी से नहीं जा पहुचता उससे ज्यादा तेज, इनका मेसेज मीडिया के मार्फत चला जाता है |चेनल की टी आर पी बढती है ,बाबा का नुस्खा ,तेल,दवाई बिकता है|जनता कन्फ्यूज होके भस्मासुर आसन में लगे रहती है|
एक दस परसेंटिया बाबा, जिस किसी को भी अनाप-शनाप सलाह दिए फिरता है ,कल गाय के घी की चुपडी, खाई आज भैस के घी की खा कर देखो |और हाँ गाय को चारा जरूर दे देना तुम्हारा काम हो जाएगा|वो भैस का घी सजेस्ट करेगा गाय को चारा फिकवायेगा,ऐसी तुकबंदी साहित्य की , नई कविता विधा में भी नहीं चली ?वैसे उनके दरबार में ऐरा –गैरा तो कोई आता नहीं|सब सरप्लस मनी वाले,फुरसतिया-तफरी करने वाले लोग होते हैं| इन्हें कन्फ्यूज करो, ये दाम दे के जायेगे|भले लोग चंगी सोच |
एक बाबा ,जिस ‘काम’ से निर्लिप्त रहने की लोगों को उपदेश देते हैं उसी ‘काम’ में वे आकंठ डूबे प्रचारित होते हैं | इंदियों को बस में करने का प्रवचन सुबह से शाम तक चलता है, मगर इनकी छठी इन्द्रिय इन्हें नहीं बता पाती कि जो काम ये रात में करने जा रहे हैं, उसमे अग्रिम जमानत भी नही हो सकती|उनके समागम में ,इसके बावजूद भक्तो की भीड़ देखकर लगता है कि, समूची भीड़ कहीं न कहीं कन्फ्यूज्ड है |
जनता को कन्फ्यूज करने का विज्ञापन आए दिनों की आम बात हो गई है |मैल में छीपे कीटाणु ,टूथपेस्ट में साल्ट ,अपना लक पहन के चलो|सुबह से शाम तक टी वी के सामने रहो, तो यूँ लगता है, हमारे बुजुर्गों ने बिना हाथ धोए कीटाणुओ को खा लिए ,बिना लक के वे बनियान पहने रहे |कुछ एक ने तो बनियान देखा भी नहीं |
काश वे अपना ‘लक’ पहन के चले होते, तो आज हमको ये दिन देखने की नौबत नहीं आती ?
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर,Zone 1 street 3 , दुर्ग (छ ग)’
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