Thursday 23 February 2017

अपोजीशन की होली ....

अपोजीशन की होली ....

नत्थू,! इस देश में गलाकाट प्रतिस्पर्धा वाले चुनाव के बाद गहन सन्नाटा पसर गया है। होली जैसे हुडदंग वाले त्यौहार में रंग-भेद ,मन-भेद ,मतभेद की काली छाया कैसे आ गई? ज़रा विस्तार से बता।
सेक्युलर इंडिया के ढोल-नगाड़े किधर बिलम गए ?
घनश्याम ,ब्रज ,गोपी ,गोरियां जो होली के हप्ते भर पहले से रंग-अबीर से सराबोर हुआ करती थी,उनका क्या हुआ ?
अद्धी ,पव्वा,भंग की गोलियां ,भांग घोटने वाले सिद्ध पुरुष कहाँ लुढ़क गए ज़रा खोज खबर तो ले।
नत्थू उवाच ......।
महराज ,कलियुग आई गवा है ?का बताई ....?
जउन इलेक्शन की आप कही रहे हो ,हम इशारा समझत हैं ......।
तनिक लड़ियाने के बाद नत्थू ने हुलियारा-स्वांग को छोड़ कर सीधे-सीधे कहना यूँ आरंभ किया ;
इसी पिछले दो-तीन इलेक्शन ने गुड गोबर किया है।जनता ने गद्दी वालों को अपोजीशन और अपोजीशन वालो को गद्दी दे के कह दिया है , लो इस होली में पकवान की जगा गुड खाओ ,गोबर लगाव-लीपो बहुत कर लिए राज-काज ।
इनकी पार्टी आजादी के बाद से जो दुर्गति न कराई थी, सो हो गई।
हस्तिनापुर-कुरुक्षेत्र के पराजित योद्धा, मुह लटकाए खेमे में लौट गए हैं।
कहाँ तो वे लकदक लाव-लस्कर के साथ चलते थे ,सफेद वस्त्रों पर सिवाय होली के दिन के, कभी दाग न लगते थे।
इनकी पार्टी के कुछ लोग, वेलेंटाइन,न्यू इयर के दिन के,शुरू से दाग-दाग कपड़ों में धूमते नजर आने के आदी होते गए।
कुछ के कपड़ों में, दाग कहीं मलाई चाट के हाथ पोछने के थे ,कहीं वेळ इन टाइम काम करने के चक्कर में, किसी की पंचर हुई गाड़ी को धक्के लगाने के थे।
किसी-किसी के दामन ,इक्जाम पास कराने में, स्याही के बाटल खुद पर लुढकाऐ दिखे।सब अपने-अपने स्टाइल की होली साल भर अपनी मस्ती में मनाते रहे।
महाराज !सच्ची कहूँ ! जनता बड़ी चालाक हो गई है ,वे किसे कब कहाँ निपटाना है,लुढकाना है ,लतियाना है, बिलकुल उस ऊपर वाले की तरह जानती है ,जो हर किसी के सांस की डोरी या नथ अपने हाथ में लिए रहता है।
महराज ,हम जानते हैं आप उन दिनों की याद को मरते दम तक बिसरा नहीं पायेंगे, जब आप होली के हो-हुड़दंग से पहले,गाँव के बड़े-बुजुर्गों के पाँव छूने ,चंदन-अबीर का टीका लगाने निकल पड़ते थे।
हर घर से तर घी के मालपुए ,पुरी-कचौरीकी खुशबू उड़ा करती थी। बड़े मनुहार से परोसे-खिलाए जाते थे।
फिर दोस्तों के संग, भांग छानना-पीना,मस्ती की उमंगों में बहक-बहक जाना अलग मजा देता था। नगाड़े पीट-पीट कर जो फाग की स्वर लहरियां गुजती थी जो राह चलती कन्याओं पर फब्तियां की जाती थी .....”.पहिरे हरा रंग के सारी, वो लोटा वाली दोनों बहनी” सरा रा रा ररर .......
काय महाराज ! जवानी की छोटी लाइन वाली ट्रेन पकड़ लिए का ......?सुन रहे हैं ......?
नहीं नाथू ,तुम सुनाव अच्छा लग रहा है। ऐसा लग रहा है हम मनी-मन होलिका की लकडिया लूटने के लिए निकल पड़े हों।
नत्थू याद है, कैसे पंचू भाऊ को तंगाए थे, .होली चंदा देने में जो आना- कानी की थी ....। बेचारा अधबने मकान के सेंट्रिंग की लकड़ी की रखवाली में खाट लगाए सोया था,हम लोगो ने , खाट सहित उसे उठा लिया। ‘राम नाम सत’ बोलते जो उसे होलिका तक उठा लाए, बेचारा हडबडा के गिडगिडाते हुए दौड़ लगा दिया था।
महाराज जी! पंचू भाऊ की आत्मा को शान्ति मिले।
अब के बच्चे, ये जो स्कूलों में ‘मिड-डे मील’ खाने वाले हैं ,ऐसे हुडदंग करने करने की सोच भी नहीं सकते ?ऐसा ‘किक’ थ्रिल जो ‘होली’ बिना मांगे दे जाता था वो आज के किसी तीन-चार सौ करोड़ कमाने वाली मूवी न दे सकेगी।
हाँ नत्थू , ये अपोजीशन वाले होली-सोली मान मना रहे हैं या ठंडे पड गए,?पहले , इनके मोहल्ले से निकल भर जाओ रंग की हौदी-टंकी में डुबो कर हालत खराब कर देते थे। नाच गानों में, हिजड़े अपना रंग अलग जामाए रहते। सिर्फ इकलौते, अपने नेता जी बैंड-बाक्स ड्राईक्लीनर्स से धुली कलफ-दार झकास सफेद पैजाम-कुरता पहने टीका लगवा के पैर छूने वाले वोट बेंको को मजे से निहारा करते थे। किसी में हिम्मत न होती थी की सिवाय माथे के किसी और बाजू रंग-गुलाल लीपे-पोते।
महाराज,अपने तरफ की कहावत माफिक कि “तइहा के दिन बईहा लेगे’ (यानी पुराने अतीत को कोई पागल ले के चला गया) नेता जी के यहाँ, इस साल न तंबू गडा है,न डी जे वालो को कोई आर्डर गया है और न ही लंच डिनर मीठाई बनाने वाले बुलवाए गए हैं। उनके घर की कामवाली बाई कह रही थी,भूले-भटके मिलने-जुलने के नाम. आने वालों के लिए आधा किलो अबीर और दो तीन किली मिठाई मंगवा ली गई है बस।
और महाराज जी, ये भी खबर उड़ के आई है की नेता जी होली पर यहाँ रहे ही नहीं ,बहुत दिनों से काम से छुट्टी न मिली सो वे कहीं बाहर छुट्टियाँ बिता कर त्यौहार बाद लौटें ?
आप बताएं. होली शुभकामना वाले कार्ड पोस्ट कर दें या उनके वापस आने पर आप खुद मिलने जायंगे ?
सुशील यादव



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