अधर्मी लोगों का धर्म-संकट
व्यंग,....... सुशील यादव ......
धर्म-संकट की घड़ी बहुत ही सात्विक, धार्मिक,अहिसावादी और कभी-कभी समाजवादी लोगों को आये-दिन आते रहती है |धर्म-संकट में घिरते हुए मैंने बहुतों को करीब से देखा है |
यूँ तो मैंने अपने घर में केवल बोर्ड भर नहीं लगवा रखा है कि, यहाँ धर्म-संकट में फंसे लोगों को उनके संकट से छुटकारा दिलवाया जाता है,पर काम मै यही करने की कोशश करता हूँ |’
बिना-हवन , पूजा-पाठ,दान-दक्षिणा के, संकट का निवारण-कर्ता इस शहर में ही नही वरन पूरे राज्य में अकेला हूँ,ये दावा करने की कभी हिम्मत नहीं हुई | अगर दावा करते हुए , ये बोर्ड लगवा देता तो शहर के करीब ९० प्रतिशत धूर्त, ढ़ोगेबाज, साधू, महात्माओं की दूकान सिमट गई होती |
मेरे जानकार लोग आ कर राय-मशवरा कर लेते हैं |
शर्मा जी ने कुत्ता पाला ,प्यार से उस दबंग का नाम ‘सल्लू’ रखा |दबंगई से उसका वास्ता जरुर था , मगर कोई कहे कि सलमान से भी तुलना किये जाने के काबिल था तो शर्मा जी बगल झांकते हुए सरमा जाते |
रोजाना उसे तंदरुस्ती और सेहत के नाम पर अंडा, दूध, मांस, मटन मुहय्या करवाते |उपरी आमदनी का दसवां, सत्कर्म में लगाने की सीख,टी व्ही देख देख के स्वत: हो गया था ,इस मजबूरी के चलते किसी ने उसे सलाह डी कि एरे गैरों पर लुटाने में बाद में वे लोग ज्यादा की इच्छा रखते हैं और खून –मर्डर तक करने से नहीं चूकते |बेहतर हो कि आप कोई मूक बेजुबान मगर गुराने भौकने वाल जीव कुत्ता पाल लो |इमानदारी- वफादारी के गुणों से ये लबरेज पाए जाते हैं |बी पी टेंशन को रिलीज करने के ये कारक भी होते हैं यी दावा विदेशों के खोजकर्ताओं ने अपनी रिपूर्त में दिए हैं |इतनी समझाइश के बाद शर्मा जी की मजबूरी बन गई, वे पालने की नीयत से सल्लू को खरीद लाये |कुत्ता ,डागी फिर सल्लू बनते बनते आज फेमली मेम्बर के ओहदे पर सेवारत है |
एक वे बाम्हन उपर से सल्लू की डाईट, उनके सामने धर्म-संकट ...?
ये तो इस संकट की महज शुरुआत थी,उनकी पत्नी का कुत्ता-नस्ल से परहेज डबल मार करता था |
शुरू- शुरू में निर्णय हुआ कि डागी के तफरी का दायरा अपने आँगन और लान तक सीमित रहेगा | मगर दागी कह देने मात्र से कुत्ते-लोग नस्ल विरासत को त्यागते नहीं| सूघने के माहिर होते हैं| उसे पता चल गया कि, मालिक उपरी-कमाई वाले हैं, सो वो पूरे दस कमरों के मकान की तलाशी एंटी-करप्शन स्क्वाड भाति कर लेता |शर्मा जी को तसल्ली इस बात की थी कि हाथ-बिचारने वाले महराज ने आसन्न-संकट की जो रूपरेखा खीची थी, उसमे यह बताया था कि जल्द ही छापा दल की कार्यवाही होगी| वे सल्लू की सुन्घियाने की प्रवित्ति को उसी से जोड़ के देखते थे |वो जिस कमरे में जाकर भौकने या मुह बिद्काने का भाव जागृत करता,फेमली मेंबर तत्क्षण , उस कमरे से नगद या ज्वेलरी को बिना देरी किये हटा लेते |शर्मा जी, शाम को आफिस से लौटते हुए,फेमली गुरु-महाराज से कुत्ता–फलित-ज्योतिष की व्याख्या, सल्लू की एक-एक गतिविधियों का उल्लेख कर, पा लेते |महाराज के बताये तोड़ के अनुसार दान-दक्षिणा ,मंदिर-देवालय, आने-जाने का कार्यक्रम फिक्स होता |पत्नी का इस काम में भरपूर सहयोग पाकर वे धन्य हो जाते| वे अपने क्लाइंट को महाराज के बताये शुभ-क्षणों में ही मेल-मुलाक़ात करने और लेन-देन का आग्रह करते|
शर्मा जी आवास के थोड़े से आगे की मोड़ पर उनके मातहत श्रीवास्तव जी का मकान है |शर्मा जी नौकर के हाथो दिशा-मैदान या सुलभ-सुविधा के तहत सल्लू को भेजते |नौकर अपनी कामचोरी की वजह से अक्सर श्रीवास्तव जी की लाइन में सल्लू को, सड़क किनारे निपटवा देते|श्रीवास्तव जी बहुत कोफ्ताते ,वे दबी जुबान नौकर को कभी-कभार आगे की गली जाने की सलाह देते| वह मुहफट तपाक से कह देता कि सल्लू को गन्दी और केवल गंदी जगह में निपटने की आदत है| इस कालोनी में इससे अच्छी गन्दी जगह कहीं नहीं है |सल्लू भी इस बात की हामी में गुर्रा देता |श्रीवास्तव जी भीतर हो लेते |किसी-किसी दिन नौकर के मार्फत बात, बॉस के कानो तक पहुचती तो वे आफिस में अलग गुर्राते |बाद में कंसोल भी करते कि,देखिये श्रीवास्तव जी आप तो जानवर नहीं हैं ना .....मुनिस्पल वालों को सफाई के लिए इनवाईट क्यों नहीं करते |श्रीवास्तव जी का ‘सल्लू’ को लेकर धर्म-संकट में होना दबी-जुबान, स्टाफ में चर्चा का अतिरिक्त विषय था |
“सल्लू साला बाहर की चीज खाता भी तो नहीं”,ये श्रीवास्तव जी के लिए, जले पे नमक बरोबर था ....?
सल्लू की वजह से शर्मा जी,दूर-दराज शहर की, रिश्तेदारी,शादी-ब्याह,मरनी-हरनी में जा नहीं पाते |कहते कि सल्लू अकेले बोर हो जाएगा |
सबेरे के वाक् में सल्लू और शर्मा जी की जोडी, चेन-पट्टे में एक-दूसरे को बराबर ताकत से खीचते, नजर आती थी|
पता नहीं चलता था, कौन किसके कमाड में है ?
जब किसी पर ‘सल्लू’ गुर्राता, तो लोगों को शर्मा जी बाकायदा आश्वस्त करते, घबराइये मत ये काटता नहीं है |
वही शर्मा जी, एक दिन अचानक मायूस शक्ल लिए मिल गए ,मैंने पूछा क्या शर्मा जी क्या बला आन पड़ी, चहरे से रौनक-शौनक नदारद है ....?
वे दुविधा यानी धर्म-संकट में दिखे. ..|बोलूं या ना बोलूं जैसे भाव आ-जारहे थे | मुझे बात ताड़ते देर नहीं हुई....यार खुल के कहो प्राब्लम क्या है ....?
वे कहने लगे बुढापा प्राब्लम है ...|मैंने कहा अभी तो आपके रिटायरमेंट के तीन साल बचे हैं |किस बुढापे की बात कह रहे हो ? हम रिटायर्ड लोग कहें तो बात भी जंचती है| तुमको पांच साल पहले, कुर्सी सौप के सेवा से निवृत हुए थे |
सर बुढापा मेरा नहीं, हमारे डागी का आया है |हमारा सल्लू १४-१५ साल का हो गया| सन २००२ में नवम्बर में उसको लाये थे, तब तीन महीने का था |हमारे परिवार का तब से अहम् हिस्सा बन गया है |अब बीमार सा रहता है |कुछ खाने-पीने का होश नहीं रहता |पैर में फाजिल हो गया है चलने-फिरने में तकलीफ सी रहती है |शहर के तमाम वेटनरी डाक्टर को दिखा आये |जिसने जैसा सुझाया, सब इलाज करा के देख लिए ,पैसा पानी की तरह बहाया |फ़ायदा नहीं दिखा |
मुझे उसके कथन से यूँ लग रहा था जैसे ,किसी सगे को केंसर हो गया हो| बस दिन गिनने की देर है |उन्होंने अपना धर्म-संकट एक साँस में कह दिया | सल्लू के खाए बिन हमारे घर के लोग खाना नहीं खाते |आजकल वो नानवेज छूता नहीं |उसी की वजह से हम लोग धीरे-धीरे नान वेज खाने लग गए थे| अब हालत ये है कि मुर्गा-मटन हप्तो से नहीं बना |
एक तरह से,वेज खाते-खाते सभी फेमिली मेंबर, ‘वेट-लास’ के शिकार हो रहे हैं |पता नहीं कितने दिन जियेगा .बेचारा ....?मेरे सामने वफादारी का नया नमूना शर्मा जी के रूप में विद्यमान था |
वे थोड़ा गीता-ज्ञान की तरफ मुड़ने को हो रहे थे| मगर संक्षेप में रुधे-गले से इतना कहा “ अपनों के, जिन्दगी की उलटी-गिनती जब शुरू हो जाती है तब जमाने की किसी चीज में जी नहीं रमता ....?”
“आप बताइये क्या करें” वाली स्तिथी, जो धर्म संकट के दौरान पैदा हो जाती है उनके माथे में पोस्टर माफिक चिपकी हुई लग रही थी .....?
ऐसे मौको पर किसी कुत्ते को लेकर ,सांत्वना देने का मुझे तजुर्बा तो नहीं था, मगर लोगो के ‘कष्ट-हरता’ बनने की राह में मैंने कहा ,शर्मा जी ,कहना तो नहीं चाहिए ,”गीता की सार्थक बातें जो कदाचित मानव-जीव को लक्ष्य कर कही गई हो”, उनको सोच के, परमात्मा से ‘सल्लू’ के लिए बस दुआ ही माग सकते हैं |
मैंने शर्मा जी को उनके स्वत: के गिरते-स्वास्थ के प्रति चेताया | पत्नी को आवाज देकर ,शर्मा जी के लिए ,कुछ हेवी-नाश्ता सामने रखने को कहा |नाश्ता रखे जाने पर शर्मा जी से आग्रह किया, कुछ खा लें | वे दो-एक टुकड़ा उठा कर चल दिए |
महीने भर बाद , शापिग माल में ‘वेट-गेन’ किये, शर्मा जी को सपत्नीक देखना सुखद आश्चर्य था|वे फ्रोजन चिकन खरीद रहे थे| मुझे लगा वे धर्म-संकट से मुक्त हो गए हैं, शायद ‘सल्लू’ की तेरहीं भी कर डाली हो |
मै बिना उनको पता लगे,खुद को मातमपुर्सी वाले धर्म-संकट से निजात दिलाने की नीयत से .शापिंग माल से बिना कुछ खरीददारी किये,
बाहर निकल आया |
सुशील यादव
व्यंग,....... सुशील यादव ......
धर्म-संकट की घड़ी बहुत ही सात्विक, धार्मिक,अहिसावादी और कभी-कभी समाजवादी लोगों को आये-दिन आते रहती है |धर्म-संकट में घिरते हुए मैंने बहुतों को करीब से देखा है |
यूँ तो मैंने अपने घर में केवल बोर्ड भर नहीं लगवा रखा है कि, यहाँ धर्म-संकट में फंसे लोगों को उनके संकट से छुटकारा दिलवाया जाता है,पर काम मै यही करने की कोशश करता हूँ |’
बिना-हवन , पूजा-पाठ,दान-दक्षिणा के, संकट का निवारण-कर्ता इस शहर में ही नही वरन पूरे राज्य में अकेला हूँ,ये दावा करने की कभी हिम्मत नहीं हुई | अगर दावा करते हुए , ये बोर्ड लगवा देता तो शहर के करीब ९० प्रतिशत धूर्त, ढ़ोगेबाज, साधू, महात्माओं की दूकान सिमट गई होती |
मेरे जानकार लोग आ कर राय-मशवरा कर लेते हैं |
शर्मा जी ने कुत्ता पाला ,प्यार से उस दबंग का नाम ‘सल्लू’ रखा |दबंगई से उसका वास्ता जरुर था , मगर कोई कहे कि सलमान से भी तुलना किये जाने के काबिल था तो शर्मा जी बगल झांकते हुए सरमा जाते |
रोजाना उसे तंदरुस्ती और सेहत के नाम पर अंडा, दूध, मांस, मटन मुहय्या करवाते |उपरी आमदनी का दसवां, सत्कर्म में लगाने की सीख,टी व्ही देख देख के स्वत: हो गया था ,इस मजबूरी के चलते किसी ने उसे सलाह डी कि एरे गैरों पर लुटाने में बाद में वे लोग ज्यादा की इच्छा रखते हैं और खून –मर्डर तक करने से नहीं चूकते |बेहतर हो कि आप कोई मूक बेजुबान मगर गुराने भौकने वाल जीव कुत्ता पाल लो |इमानदारी- वफादारी के गुणों से ये लबरेज पाए जाते हैं |बी पी टेंशन को रिलीज करने के ये कारक भी होते हैं यी दावा विदेशों के खोजकर्ताओं ने अपनी रिपूर्त में दिए हैं |इतनी समझाइश के बाद शर्मा जी की मजबूरी बन गई, वे पालने की नीयत से सल्लू को खरीद लाये |कुत्ता ,डागी फिर सल्लू बनते बनते आज फेमली मेम्बर के ओहदे पर सेवारत है |
एक वे बाम्हन उपर से सल्लू की डाईट, उनके सामने धर्म-संकट ...?
ये तो इस संकट की महज शुरुआत थी,उनकी पत्नी का कुत्ता-नस्ल से परहेज डबल मार करता था |
शुरू- शुरू में निर्णय हुआ कि डागी के तफरी का दायरा अपने आँगन और लान तक सीमित रहेगा | मगर दागी कह देने मात्र से कुत्ते-लोग नस्ल विरासत को त्यागते नहीं| सूघने के माहिर होते हैं| उसे पता चल गया कि, मालिक उपरी-कमाई वाले हैं, सो वो पूरे दस कमरों के मकान की तलाशी एंटी-करप्शन स्क्वाड भाति कर लेता |शर्मा जी को तसल्ली इस बात की थी कि हाथ-बिचारने वाले महराज ने आसन्न-संकट की जो रूपरेखा खीची थी, उसमे यह बताया था कि जल्द ही छापा दल की कार्यवाही होगी| वे सल्लू की सुन्घियाने की प्रवित्ति को उसी से जोड़ के देखते थे |वो जिस कमरे में जाकर भौकने या मुह बिद्काने का भाव जागृत करता,फेमली मेंबर तत्क्षण , उस कमरे से नगद या ज्वेलरी को बिना देरी किये हटा लेते |शर्मा जी, शाम को आफिस से लौटते हुए,फेमली गुरु-महाराज से कुत्ता–फलित-ज्योतिष की व्याख्या, सल्लू की एक-एक गतिविधियों का उल्लेख कर, पा लेते |महाराज के बताये तोड़ के अनुसार दान-दक्षिणा ,मंदिर-देवालय, आने-जाने का कार्यक्रम फिक्स होता |पत्नी का इस काम में भरपूर सहयोग पाकर वे धन्य हो जाते| वे अपने क्लाइंट को महाराज के बताये शुभ-क्षणों में ही मेल-मुलाक़ात करने और लेन-देन का आग्रह करते|
शर्मा जी आवास के थोड़े से आगे की मोड़ पर उनके मातहत श्रीवास्तव जी का मकान है |शर्मा जी नौकर के हाथो दिशा-मैदान या सुलभ-सुविधा के तहत सल्लू को भेजते |नौकर अपनी कामचोरी की वजह से अक्सर श्रीवास्तव जी की लाइन में सल्लू को, सड़क किनारे निपटवा देते|श्रीवास्तव जी बहुत कोफ्ताते ,वे दबी जुबान नौकर को कभी-कभार आगे की गली जाने की सलाह देते| वह मुहफट तपाक से कह देता कि सल्लू को गन्दी और केवल गंदी जगह में निपटने की आदत है| इस कालोनी में इससे अच्छी गन्दी जगह कहीं नहीं है |सल्लू भी इस बात की हामी में गुर्रा देता |श्रीवास्तव जी भीतर हो लेते |किसी-किसी दिन नौकर के मार्फत बात, बॉस के कानो तक पहुचती तो वे आफिस में अलग गुर्राते |बाद में कंसोल भी करते कि,देखिये श्रीवास्तव जी आप तो जानवर नहीं हैं ना .....मुनिस्पल वालों को सफाई के लिए इनवाईट क्यों नहीं करते |श्रीवास्तव जी का ‘सल्लू’ को लेकर धर्म-संकट में होना दबी-जुबान, स्टाफ में चर्चा का अतिरिक्त विषय था |
“सल्लू साला बाहर की चीज खाता भी तो नहीं”,ये श्रीवास्तव जी के लिए, जले पे नमक बरोबर था ....?
सल्लू की वजह से शर्मा जी,दूर-दराज शहर की, रिश्तेदारी,शादी-ब्याह,मरनी-हरनी में जा नहीं पाते |कहते कि सल्लू अकेले बोर हो जाएगा |
सबेरे के वाक् में सल्लू और शर्मा जी की जोडी, चेन-पट्टे में एक-दूसरे को बराबर ताकत से खीचते, नजर आती थी|
पता नहीं चलता था, कौन किसके कमाड में है ?
जब किसी पर ‘सल्लू’ गुर्राता, तो लोगों को शर्मा जी बाकायदा आश्वस्त करते, घबराइये मत ये काटता नहीं है |
वही शर्मा जी, एक दिन अचानक मायूस शक्ल लिए मिल गए ,मैंने पूछा क्या शर्मा जी क्या बला आन पड़ी, चहरे से रौनक-शौनक नदारद है ....?
वे दुविधा यानी धर्म-संकट में दिखे. ..|बोलूं या ना बोलूं जैसे भाव आ-जारहे थे | मुझे बात ताड़ते देर नहीं हुई....यार खुल के कहो प्राब्लम क्या है ....?
वे कहने लगे बुढापा प्राब्लम है ...|मैंने कहा अभी तो आपके रिटायरमेंट के तीन साल बचे हैं |किस बुढापे की बात कह रहे हो ? हम रिटायर्ड लोग कहें तो बात भी जंचती है| तुमको पांच साल पहले, कुर्सी सौप के सेवा से निवृत हुए थे |
सर बुढापा मेरा नहीं, हमारे डागी का आया है |हमारा सल्लू १४-१५ साल का हो गया| सन २००२ में नवम्बर में उसको लाये थे, तब तीन महीने का था |हमारे परिवार का तब से अहम् हिस्सा बन गया है |अब बीमार सा रहता है |कुछ खाने-पीने का होश नहीं रहता |पैर में फाजिल हो गया है चलने-फिरने में तकलीफ सी रहती है |शहर के तमाम वेटनरी डाक्टर को दिखा आये |जिसने जैसा सुझाया, सब इलाज करा के देख लिए ,पैसा पानी की तरह बहाया |फ़ायदा नहीं दिखा |
मुझे उसके कथन से यूँ लग रहा था जैसे ,किसी सगे को केंसर हो गया हो| बस दिन गिनने की देर है |उन्होंने अपना धर्म-संकट एक साँस में कह दिया | सल्लू के खाए बिन हमारे घर के लोग खाना नहीं खाते |आजकल वो नानवेज छूता नहीं |उसी की वजह से हम लोग धीरे-धीरे नान वेज खाने लग गए थे| अब हालत ये है कि मुर्गा-मटन हप्तो से नहीं बना |
एक तरह से,वेज खाते-खाते सभी फेमिली मेंबर, ‘वेट-लास’ के शिकार हो रहे हैं |पता नहीं कितने दिन जियेगा .बेचारा ....?मेरे सामने वफादारी का नया नमूना शर्मा जी के रूप में विद्यमान था |
वे थोड़ा गीता-ज्ञान की तरफ मुड़ने को हो रहे थे| मगर संक्षेप में रुधे-गले से इतना कहा “ अपनों के, जिन्दगी की उलटी-गिनती जब शुरू हो जाती है तब जमाने की किसी चीज में जी नहीं रमता ....?”
“आप बताइये क्या करें” वाली स्तिथी, जो धर्म संकट के दौरान पैदा हो जाती है उनके माथे में पोस्टर माफिक चिपकी हुई लग रही थी .....?
ऐसे मौको पर किसी कुत्ते को लेकर ,सांत्वना देने का मुझे तजुर्बा तो नहीं था, मगर लोगो के ‘कष्ट-हरता’ बनने की राह में मैंने कहा ,शर्मा जी ,कहना तो नहीं चाहिए ,”गीता की सार्थक बातें जो कदाचित मानव-जीव को लक्ष्य कर कही गई हो”, उनको सोच के, परमात्मा से ‘सल्लू’ के लिए बस दुआ ही माग सकते हैं |
मैंने शर्मा जी को उनके स्वत: के गिरते-स्वास्थ के प्रति चेताया | पत्नी को आवाज देकर ,शर्मा जी के लिए ,कुछ हेवी-नाश्ता सामने रखने को कहा |नाश्ता रखे जाने पर शर्मा जी से आग्रह किया, कुछ खा लें | वे दो-एक टुकड़ा उठा कर चल दिए |
महीने भर बाद , शापिग माल में ‘वेट-गेन’ किये, शर्मा जी को सपत्नीक देखना सुखद आश्चर्य था|वे फ्रोजन चिकन खरीद रहे थे| मुझे लगा वे धर्म-संकट से मुक्त हो गए हैं, शायद ‘सल्लू’ की तेरहीं भी कर डाली हो |
मै बिना उनको पता लगे,खुद को मातमपुर्सी वाले धर्म-संकट से निजात दिलाने की नीयत से .शापिंग माल से बिना कुछ खरीददारी किये,
बाहर निकल आया |
सुशील यादव
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