ज़रा मन की किवडिया खोल ......
आप फेल तो हुए होंगे ,रायचन्दों का तांता लग जाता है |गलतियां गिनाने वाले हर गली मोहल्ले में रोक रोक के अपनी राय जाहिर करते हैं | पीठ पीछे वाले भी होते हैं, जो आपको छोड़ते नहीं |वे जनमत में यह फैलाते हैं की काश वे आपकी माने होते तो ये दुर्दिन देखने की नौबत उन्हें आई नहीं होती |
क्या कहूँ !
इन्हीं रायचन्दों में से मै भी एक हूँ |
बन्दा हाड माँस का जीव है और खुदा के रहमो करम ने, इसे दिल दिमाग से भी नवाज दिया है |ये दैनिक अखबार और मीडिया में चकल्लस रूपी बकवास प्रसारण में, चार लोगों की चौपाल वाली किच किच भी सुन लेता है ,अत: इसे चुनाव का व्यवहारिक ज्ञान हो गया है |
यूँ कहे, जनता की नब्ज टटोलने की चुनावी बीमारी सी लग गई है |
वैसे तो रिजल्ट आने के बाद हर कोई एक्सपर्ट ओपिनियन के तहत यह बताने से नहीं चुकता की हमने तो पहले ही कहा था.............,वे माने ही नहीं ,वरना परिणाम दूसरा होता |
खैर ! बीत गई सो बात गई ,यानी बीती ताहि बिसार दे,आगे की सुधि लेय.....|एक ट्रेन छूटने का गम न कर यहाँ हर घंटे में तेरे ‘मकसद गाव’ की ओर एक ट्रेन जाने को है |बस तू टिकट कटाए रख ,लपक के अगली में घुसने की कोशिश कर |बच्चा ,कामयाबी जरुर मिलेगी |
इतना जान ,अगली ट्रेन जो लगने वाली है ,वो धार्मिक यात्रा वालों की सात्विक ट्रेन है|
मुसाफिर भोले भाले हैं |
इनसे किसी भी प्रकार से असात्विक बातें न कर |मांस मटन से ये कोसों दूर रहते हैं |इन्हें लौटती ट्रेन का आरक्षण जरुर मिले,यह व्यवस्था कर , ये भगवान से तेरे लिए दुआ मांगेंगे |किसी स्टेशन में इनको चाय पिला के देख, भूखी जनता ,और परेशान पेसेंजर ज्यादा न मिले तो थोड़े से संतोष कर लेने के आदी पाए जाते हैं |
इस ट्रेन में मागने वाले गवईए,फेरी वाले,डुप्लीकेट माल बेचने वाले जगह जगह से चढ़ेंगे |इनकी सच्ची पहचान मुसाफिरों से करवा के, वाहवाही लूट |ये उघते हुए मुसाफिर, जिस जगह जाग गए ,तुझे शुभकामनाओं से साराबोर कर देंगे |
तुम इस डिब्बे में खिडकी के पास बैठे , उन्तालिस्वे नम्बर के बर्थ वाले, “तत्व ग्यानी” महाराज से नहीं टकराए, वरना वो ललाट देख कर ही बता दिए होते कि तुम आगामी चुनाव में अपनी पार्टी के प्रचारक की हैसियत से जगह जगह सैकड़ों भाषण सभाएं करोगे |तुम्हारी वाणी से एक ओर करोड़ों के दान की घोषणाएं होंगी तो दूसरी तरफ तुम्हारी जिव्हा से, मजहबी दंगा फसाद में मारे गए व्यक्ति के विषय में एक भी शब्द कई दिनों तक नहीं निकलेगा|
तुम गौ माता के सेवक बतौर अच्छे हो मगर इसे “फायदे की माता” समझना भूल होगी |तुम्हारी ‘महंगी दाल’ गलाने वाला आदमी तुमको ढूढने से भी नहीं मिलेगा |तुम कितना भी प्रेशर लगाओ ,कुकर की सीटी तो बोलेगी मगर अच्छा व्यंजन परोस नहीं पाओगे|
तुममे अहंकार की जो चिगारी थी, वो अब ज्वाला बन गई है |उसे ज्वालामुखी बनने से पेश्तर, तुरंत रोको |
अपने ढहते घर को सम्हालो, फिर दूसरों के रंग रोगन दीवाली को देखने बाहर निकालो|ग़रीबों के पैसों को बाहर लुटाने की बजाये, मरते किसानों को ढूढ़ निकालने वालों पर इनाम की घोषणा करो |
आर्थिक उपलब्धियां गिनाने की बजाय,उपजाऊ जमीन में आ रही गिरावट की समीक्षा हो |मेक इन इंडिया की जगह ग्रो इन इंडिया के लिए विदेशी मजदूर बुलवाओ, क्योकि एक रुपये में अनाज बाँट कर, आपने सभी मजदूरों को काम के लिए अपंग निक्कम्मा कर दिया है |
प्रचारक भाई ! खोल सको तो “मन की किवडिया” खोलो ,देर अभी भी नहीं हुई है |
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com ०९४०८८०७४२०
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