Thursday, 23 February 2017

रिश्वत लेने की तकनीक ....


रिश्वत लेने की तकनीक ....
इस लेख को पढ़ने वालो को ये वैधानिक चेतावनी ध्यान में रखना जरूरी है |
ये लेख किसी मर्द ,औरत , औरतनुमा मर्द या मर्द नुमाँ औरत को रिश्वत लेना कतई नहीं सिखाता |
इसमें दिए नुस्खे को यदि कोई आजमाता है या आजमाने का प्रयास करता है तो उसके अंजाम का वह खुद  जिम्मेदार होगा |
 यूं तो रिश्वत लेने –देने को सिखाने के लिए कोई कोचिंग क्लास मेरी जानकारी में अभी तक चालू नहीं हुई है |जहाँ तकनीकी ज्ञान प्राप्त हो सके |
आदमी भला सीखे कहाँ से ?
अनाप –शनाप ले लेते हैं |
जहाँ चार इंच मु खुलना चाहिए चालीस इंच खोल देते हैं |
चलो,गलती से खुल भी गया  तो खपाने का,गुटकने का  तरीका आना चाहिए |
ये क्या कम्पौडरी करते हैं और दो सौ करोड को टच कर लें ?भाई बुरा मानने का दूसरों का हक जायज है कि नहीं ?
विरोधियों को शांत रखने का गुर सीखना जरुरी है | घर में,घर के भेदी होते हैं ,पडौस वाले कुढते हैं ,मुहल्ले वाले जलते हैं, उनको पटाए रखने का तजुर्बा तो ये है कि ट्रांसफर लेते रहो एक जगह टिक के न बैठो |
मैंने टुटपुंजिया रिश्वत खाने वाले बहुत देखे हैं |सुबह मंजन घिसने से लेकर शाम गुड नाईट को हाथ हिलाते तक इनके बीच ही घिरा रहता हूँ |
सुबह –सुबह दो –दो किलो के दूध का केन लटकाए चार –छ: किलो दूध  लाते श्रीवास्तव जी, बुलंद आवाज से ,जैसिया राम बोलते हैं |
बोलने के वजन से पता चलता है की दो किलो वे खुद पी जाते होंगे |
मैंने यूं ही पूछ लिया ,आप कुल जमा तीन प्राणी हैं इतना कहाँ खप जाता है?
वे बड़े गर्व से बताते हैं ,डेढ़-एक किलो तो सीसन (शेरू) पी जाता है |
मै मंजन की पीक जोर से थूकते हुए ,सोचता हूँ स्साला दो कौडी का बाबू कल तक छाता –बरसाती मांग कर ले जाता था ,आज किलो भर दूध शेरू के वास्ते लिए जाता है |
जम के दुह रहा है|
उससे रोज सामना न हो जाए इसलिए  मै अपने मंजन का टाइम –टेबल बदल लेता हूँ या उसे दूर से आते हुए देख के मै घर के भीतर चला जाता हूँ |
उस दिन साहू जी पेपर लिए ,पेट्रोल के बढे दाम पर, चिंता और मातमपुर्सी के तर्ज पर तर्क कर रहे थे तभी श्रीवास्तव का गुजरना हुआ |
बहस में हल्के –फुल्के से हिस्सा लेकर यूं कहते आगे बढ़ गए ,कि ज्यादा इजाफा कहाँ है ?
सब चीजों के दाम तो बढ़ रहे हैं ,पेट्रोल भी बढ़ गया तो क्या ?
उसके जाने के बाद साहू जी फट पड़े ,इनको क्या.....? सब फोकट का मिल जाता है |
आफिस की गाडी से ड्राइवर जो पेट्रोल  मारता है, उसे आधी कीमत में खरीद लेता है साला.... |
 दाम  बढ़ने से क्या फरक  ?
आप को पता है , हर अर्जी पे दस –बीस का चढावा ,चढवा लेता है तब अपनी कलम घिसता है |दिन-भर में चार-पांच सौ कहीं नहीं गए |
मैंने कहा कोई अकडू नहीं टकराता क्या ?
साहू ने मेरी ओर इस नजरिए से देखा जैसे मुझे दुनियादारी का ज़रा भी इल्म नही हो |
अब भला इतने कम अमाउन्ट पे कौन को पडी है जो अपना काम बिगाड़े ?
इसी तर्ज अपना रामदीन  सिपाही भी तो है |सबसे दो-दो,पांच –पांच  ले के पूरे क्वाटर-अध्धी का इन्तिजाम कर लेता है और मस्ती में झूमते-झामते लुढका हुआ मिलता है |
मेरी बहुत इच्छा थी कि मेरे नाम के सामने डाक्टर जुड़े ,पी .एच.डी. करूँ |
सब्जेक्ट ढूढते-ढूढते साठ पार कर गया |
भला हो मेरी याददाश्त का,जिसने बताया कि एक डी.वाई .एस .पी ने बाकायदा पाकेटमार पर रिसर्च करने के लिए पाकेटमारो के संगत में कई दिन बिताए ,पाकेटमारी भी की |
मुझे लगा कि रिश्वतखोरो के साथ ये काम कर के देख लिया जाए |जहां  चपरासी से लेकर मंत्री तक सब भ्रष्ट हों ,जहाँ कुछ अखबार ,कुछ टी.वी चेनल आड  में इन्ही खबरों की कमाई कर रहे हैं वहाँ आकडे जुटाना कोई मशक्कत वाला काम नहीं है|बैठे-बिठाए पी एच डी हो जाएगी |
कहते हैं इश्क-मुश्क छुपाए नहीं छुपते|उस जमाने में रिश्वत का बोलबाला नहीं रहा होगा ,वरना इश्क-मुश्क के साथ इसका नाम भी जुडा होता |
रिश्वत में खुशबू अच्छी होती है |मेरे घर के पीछे रामनाथ रहता है |है तो वो  मामूली सा नजूल आफिस में चपरासी मगर उसके घर से बासमती चावल ,हैदराबादी बिरयानी की खुशबू वक्त-बेवक्त उठते  रहती है |कोई हिम्मत वाला वेजेटेरियन बाम्हन ही उसके पडौस में टिक पाता है |
रिश्वत में रोब-दाब खूब होता है| ट्रांसफर पोस्टिंग का भाव करोडो में हो गया है |”दबदबे- दार मामू” हो तो अगला विश्वास क्यों न करेगा भला?
वे मरियल से खाने वालो पर हसते होगे ?
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बात तब की है जब हिनुस्तान में रिश्वत नहीं होता था |
आजादी का  जुनून होता था |जेल जाने वाले लोग , जमानत की गरज नहीं करते थे |अरेस्ट के नाम पर उनका दम फूलते किसी ने नहीं  देखा, वे अटेक और हाई  बी पी के बहाने हास्पिटिलाइज्ड भी न हुए |

    ले दे कर छूटने –छुटाने की उनने कभी  सोचा भी नहीं|जमाना लद गया |
लोकतंत्र ,पंचायत ,और आखिरी आदमी तक हक व् न्याय की बड़ी-बडी  बातें कही जाने लगी |इन बडी बातो के  चक्कर में, या यूं कहे कि दलदल में देश धंसते चला गया |
हर जगह मखौलबाजी ,मुखौटेबाज ,मसखरे बाज लोगो ने अपनी जड़ें जमा ली |
लोग हर काम में ,हिसाब –किताब और फायदा देखने लगे |जिसे जब जितना चूना लगाने का मौक़ा मिला, वे उसी दम तैय्यार दिखे  |
मेरे बाप-दादे डरते थे ,बिना टिकट, कभी पास के स्टेशन तक भी कहीं गए  नहीं |बिना टिकट चुनाव भी नहीं लड़े |कभी निर्दलीय नहीं बने|दल और पार्टी के लिए हमेशा निष्ठावान बने रहे , सो उनका मोल-भाव नहीं हुआ |वे एक पार्टी को जिताते रहे |
बेखौफ जीतते रहने के कारण,निष्ठावान पार्टी के लोग सत्ता को बपौती मानने लगे |वे अपनी टोपियां सहेज के रख दिए ,कि फिलहाल जरूरत तो नहीं ,कभी हुई तो निकाल पहन लेंगे |
टोपियां जब सर पे बोझ सी लगाने लगे ,जब टोपी बदलने के दाम मिलने लगे तो समझो राजनीतिक सुनामी कभी भी आ सकती है ?
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