Thursday, 23 February 2017

चुनरी में दाग ....




हमारे उस्ताद जी को दाग –धब्बों से बहुत चिढ सी थी |वे कतई बर्दाश्त नहीं करते थे कि उनका शागिर्द किसी किस्म के उलट –फेर में पड़ा रहे |उनमे खुद कोई बुरी आदत, सिवाय एक भांग खाने के नही थी |इसे भी वो शिव –भोले के प्रसाद के निमित्त मानते थे |आयुर्वेद में हाजमा दुरुस्त रखने के अनेकानेक उपायों में से एक जानकर अपना बैठे थे |
उस्ताद जी को अखाड़े से बाहर ,हमेशा साफ –सफेद वस्त्रों में लिपटे हुए देखा |कई साबुन-डिटर्जेंट वाले विज्ञापन देने-दिलाने के नाम पे चक्कर काट गए पर उस्ताद जी को ‘झागदार’ बनाने में सफल नहीं हुए |
उस्ताद जी का कहना था कि, लोग आपको ‘झागदार’ बनाते –बनाते कब ‘दागदार’ बना देंगे कह नहीं सकते ,यानी लालच से बचो |
कम खाओ ,’बनारस’ में रहो, इस सिद्धांत को पालते –पोसते  वे कब ‘बनारसी’ हो गए पता नहीं ?
 उस्ताद जी को गुजरे अरसा हो गए ,तब से आज तक हमने किसी हार-जीत पर दांव नहीं लगाया |
फुटबाल ,हाकी ,कैरम ,क्रिकेट हमने भी कई खेल खेले पर हमें खरीदने वाला कोई माई का लाल तब पैदा नहीं हुआ|हमें फक्र इस बात का भी है हमारी बोली नही लगी |
हम तक, झांकने को नीम-बबूल दातूनो का स्टाकिस्ट तक नहीं फटका कि आओ  हमारे प्रोडक्ट के ब्रांड एम्बेसडर बन जाओ |
मजे की लाइफ थी ,खेलो और भूल जाओ |कोई रिकार्ड-विकार्ड का चक्कर नहीं |
करीब-करीब ,कबीरी जिंदगी जीने वालो का एक ज़माना था,..... गुजर गया |
’जस की तस धर दीन्ही चदरिया’...... वाले लोग अपनी-अपनी ,चादर को समेट के बेदाग़ बढ़ लिए|
जिसने ज्यादा यूज किया, वे ‘तार-तार’ होने तक भी चादर नहीं बदले |
कभी स्याही –चाय गिर गई तो बड़े-बूढों के डर से  थोड़ी बहुत धो लिए|
एक परंपरा थी कि ज्यादा ‘दाग’ लगने नही देना है |’चरित्र’ के नाम पर राम-चरित मानस की तरह जगह –जगह प्रवचन चलता था |
मास्टर जी की क्लास में कूट-कूट कर बतलाया जाता था ,ये गया तो कुछ गया ,वो गया तो ‘कुछ और...;  गया मगर ‘चरित्र’  गया.... तो समझो सब चला गया |
मास्टर जी की पकड़ से छूटते ही, दादा-बाबूजी की पकड़ में फिर वही सीख ,’चरित्र’  गया.... तो सब गया |
इन सीखो की वजह से गृहस्थाश्रम से आज तक किसी बलात्कार के कभी ब्रेकिंग न्यूज ही नहीं बने |
हमारी खानदानी ‘चादर’ बेदाग़ रह गई |हमारी खुद की भी बेदाग़ रह गई |
हमने ‘दाग अच्छे हैं’जब से सुना, हमारे होश गुम हो गए|माना कि तुम्हारे पास अच्छे डिटर्जेंट हैं, इसका ये मतलब नहीं कि तुम इतराओ ,‘दाग’ में सूअरों की तरह लोट जाओ |
धोने वालो का तो ख्याल रखो उनके पास और भी तो काम हैं तुम्हारे दाग छुडाने के |
ड्राई -क्लीन के जमाने में मिस्टर क्लीन कहलाना या  हो जाना अलग मायने रखता है |हमारे जमाने में किसी गलती से, चरित्र पर शंका उत्पन्न हो जाती थी तो अग्नि परीक्षा ,सामाजिक बहिस्कार,तिरस्कार ,गंगा स्नान और न जाने क्या –क्या उपाए किए-सुझाए जाते थे|
लोग स्वस्फूर्त साधू बन के गायब हो जाया करते थे ,वे तब बाहर आते थे जब ज्ञान का अकूत भंडार उनके पास हो जाता था |प्रवचन वे तब भी ‘चरित्र’ के मुद्दे पर ही किया करते थे |
      ढीले-करेक्टर वालों के आंकड़े सुनते–सुनते अब तो मानो कान पक जाते हैं |दो-चार साल के बच्चो पर रेप,मनमाना घूस ,पुलसिया इन्काउंटर ,नेताओं के बहके –बहके बयान, खेल के भीतर खेल |
इमान्दारी से देखा जाए तो आज जितने जेल हैं ,उतने की ही और जरूरत है |
इन ढीले-करेक्टर वालो को, हम लोगो ने बहुत सहा है |मूक दर्शक बन के करोडो लोग अपना धन और समय की बर्बादी कर रहे हैं |बहिस्कार –तिरस्कार की भाषा में निपटने की बजाय चेनल वाले अपनी रोटी सेक रहे हैं ?अखबार वाले जगह दे रहे हैं ?
यों नहीं होना चाहिए कि इनकी ‘चादर’ इनसे छिन ली जाए ?बिना दाग- धब्बे की इनकी केवल नंगी पहचान बनी रह जाए?......
सुशील यादव
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