Thursday, 23 February 2017

खुलती हुई कलई



खुलती हुई कलई
बात उन दिनों की है जब बर्तन ताम्बे या पीतल के हुआ करते थे |इन बर्तनों को धोने –सम्हालने या रख –रखाव में परेशानियों के कारण अक्सर इनमें कलई करवा लिया जाता था |
कलाई करने वाला मोहल्ले-मोहल्ले जा कर अपनी सेवायें देने के लिए आवाज लगाता ‘बर्तन कलई  करा लो’”…….| गृहणियां घर से बर्तन निकाल लाती |कलई करने वाला बिना नगद लिए  पीपे –भर कोयला के  बदले , बर्तन चमका देता |हम बच्चे घेर कर कलई करने वाले का चमकदार  जादू देखते रहते |
अब वो कारीगर लुप्त हो गए |कलइ करने-कराने का ज़माना लद गया |स्टील के चमकीले बर्तनों ने वो पुराना ज़माना पीछे छोड़ दिया |
पाठक जी को जब भी कोई  पुराना इतिहास बताओ, तो वे इसमे कुछ न कुछ जोड़ देते हैं |उनकी बातो से लगता है कि ,उन्हें पूरे शहर के इतिहास की एवं शहर के तमाम भूले –बिसरे लोगों  की  मौखिक जानकारी है|
पाठक जी की ,शनीचरी बाजार में हार्डवेयर लाइन में एक  छोटी सी हार्डवेयर की  दूकान है| वे बताते हैं कि कल्लू-कलई उनकी दूकान से ही जस्ता –सीसा या कलई करने का दीगर सामान ले जाता था | कलइ किए जाने का धंधा जब से मंद हुआ कल्लू का लोप होने लगा, मगर दुआ-सलाम बनी रही |
पाठक जी बताते हैं कि  कल्लू जब भी किसी बहाने संपर्क में आता, अपना प्रोगेस रिपोर्ट जरुर बताता|
कल्लू अपनी कलई पाठक के सामने बेखौफ खोलता कि कैसे कलाई करते –करते जमाँ हुए कोयले को,शुरू –शुरू में  इस्त्री करने वालों को बेचता रहा|कोयले के काम में ज्यादा रम जाने की वजह से ,धीरे-धीरे  हुए जमे-जमाए ग्राहको के सुझाव दिए जाने पर कब  कोयला-टाल का मालिक और कब कोल-माइनिग के ट्रांसपोर्ट धंधे में लग गया , पता नहीं चला ?
शुरू-शुरू में ट्रांसपोर्ट धंधे में बहुत परेशानी आई ,ट्रक का परिमट लेना ,उसे कोयला माफिया –यूनियन से पास करवाना,जंगल-माइनिग  इलाके से ट्रक निकालना कोई आसान काम नहीं था |जगह –जगह रोडे ,जगह –जगह चढावा |
कल्लू –कलई , चढाने की कला में माहिर उस्ताद था ,पर एक दिन जब उसके ट्रक की बिना-वजह जब्ती बन गई  तो वह फनफना गया |आफिसों-अफसरों के चक्कर लगाते-लगाते इतना घिस गया  कि उसे लगा अब इन अधिकारियों पर  कलइ चढाने की नौबत आ गई है |

कलई चढाने से पहले जैसे बर्तन को गरम  करने की जरूरत होती है वैसे ही कल्लू ने गर्मागर्म बहस कर अफसरों को तपा दिया |
किसी दफ्तर का नाम भर ले दो,कल्लू  वहाँ के पूरे बाबू  से अफसर की  कुंडली बखान कर देने में माहिर होते गया |
उसे अब कलई उतारने  के खेल में मजा आने लगा |


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