Thursday 23 February 2017

हमारा (भी) मुह मत खुलवाओ


हमारा (भी) मुह मत खुलवाओ
उनको मुह बंद रखने का दाम मिलता है |कमाई का अच्छा रोजगार इन्ही दिनों इजाद हुआ है|
सुबह ठीक समय पर वे दफ्तर चले जाते हैं |खास मातहतों को केबिन में बुलवाते हैं ,प्यून को चाय लाने भेजते हैं |
गपशप का सिलसिला चलता है|
केदारनाथ के जलविप्लव,लोगों की त्रासदी ,बाढ के खतरे ,सरकार की व्यवस्था-अव्यवस्था ,देश में हेलीकाफ्टर की कम संख्या ,सब पर चर्चा करते लंच का समय नजदीक आने पर, एक-एक कर मातहत खिसकने लगते हैं|
अंत में शर्मा जी बच पाते हैं ,वे उनसे पिछले सप्ताह भर की जानकारी  शाम की बैठक का दावत देकर ,मिनटों में उगलवा लेते हैं |
शर्मा जी की दी गई जानकारी, उनके लिए,एक मुखबिर द्वारा ‘ठोले’ को दी गई जानकारी के तुल्य होती है |
वे इसे पाकर अपनी पीठ थपथपाना नहीं भूलते |
वाहः रे मै ? वाले अंदाज में वे साहब के केबिन की ओर बढ़कर, ‘नाक’ करते हैं | वे ‘में आई कम इन सर’ की घोषणा इस अंदाज में करते है जैसे केवल औपचारिकता का निर्वाह मात्र कर रहे हों वरना  साधिकार अंदर घुस कर कुर्सी हथिया लेना उनका हक है | और ये हक उंनको, साहब को ‘वैतरणी’ पार कराने का,  नुस्खा देने के एवज में सहज मिला हुआ है |
साहब आपत्ति लेने का अपना अधिकार मानो  खोए बैठे हैं,वे पूछ लेते हैं ,कैसा चल रहा है ?
उनके पूछने मात्र से, वे शर्मा जी वाला टेप स्लो साउंड में चला देते हैं|साहब जी क्या कहें ,सारा स्टाफ करप्ट है|
वे स्टाफ के साथ –साथ ,साहब को भी जगह-जगह लपेटने से बाज नहीं आते |
साहब, पेंट की जेब से रुमाल निकाल कर ,पसीना पोछ-पोछ कर ,घंटी बजाते हैं ,प्यून  के घुसते ही कहते हैं –थोड़ा ए .सी .बढाओ |
ए.सी. से राहत पाकर वे पूछते हैं ,कोई खतरा तो नहीं है ?
सी.बी.आई. वालों से तुम्हारी कोई पहचान नहीं निकल सकती क्या ?
यों करो इस हप्ते इसी अभियान में लगे रहो ,देखो किसी से कुछ कहना मत ,बिलकुल चुप रहना |
तुम्हारा पहुच जाएगा |
वे इत्मिनान से आफिस की गाडी ले के अपनी फेमली ट्रिप में दूर निकल जाते |शर्मा जी को खास हिदायत दे के रखते कि मोबाइल स्विच आफ न रखे |
उनका तर्क है कि कौन कितना खाता है ,कब खाता है ,किससे खाता है ,इतनी जानकारी आपके पास हो, तो आप अच्छे-अच्छो को हिला सकते हैं |
वे इसे समाज सेवा के बरोबर मानते हैं |
आपके नजर रखने मात्र से कोई अगर इस राह का राही नहीं बनाता तो हुई न देश की सेवा ?
वे वापस आकार दिल्ली ट्रिप का, जुबानी खर्चा-बिल साहब को बता जाते हैं|
वे साहब  पर भारी पडने वाले अंदाज में कहते हैं ,फिलहाल सर आप फाइल-वायल  को ठीक–ठाक कर लें|
दो-चार ठेकों को बिना लिए निपटा दें|आपकी छवि बनेगी |घर में नगदी वगैरा न रखें तो बेहतर होगा |बेनामी के कागज़-पत्तर को ठिकाने लगा ले|पता नहीं वे कब आ धमकें ?
साहब जी प्यून को बुला के ए.सी. बढ़वा लेते हैं |
वे साहब जी पर एहसान किए टाइप ,अपनी कुर्सी पर आकार ,स्वस्फूर्त फुसफुसाते हैं,बहुत अंधेरगर्दी मची  है पूरे दफ्तर  में |
सुशील  यादव








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