Wednesday 24 July 2013

गंगू तेली की दहाड़

गंगू तेली की दहाड़

       गंगू तेली को उसके कुछ साथियों ने ये मुगालता दे दिया कि उसमे ‘राजा’ बनने  का पूरा ‘मटेरियल’ है|
कुछ एक साथी विरोध और मुखालफत भी करते रहे |एक तरफ खामियां ढूढने वाले उसके विरोधी गुट के लोगों ने खामियों का इतिहास खंगालना जोर-शोर से चालू कर दिया | तो दूसरी तरफ खूबियां भी ढूढ़ी जाने लगी |
उसके जमाने के गुरुजनों की तलाश हुई जिससे उसका ‘पास्ट’ लोगों को परोसा जा सके |
बहुत मुशक्कत के बाद एक जर्जर हालत में, प्रायमरी स्कूल का मास्टर जी मिला |
       मास्टर जी को, फ्लेश-बेक  में ले जाने का प्रयास किया गया |वो अपना सर धुनता |गंगू तेली ....गंगू तेली .......?ऊ हूँ....... याद नहीं आ रहा है |
       कोई बताता ,गुरुजी ..... वो समझू तेली का बेटा |
समझू तेली ...समझू..... ?मास्टर  जी सर को धुनते ......नई भइ नई .......याद नहीं आ रहा है |
       मीडिया वालों को ये धुन सवार हो गया कि मास्टर जी को गंगू तेली की हिस्ट्री याद करा के  दम लेंगे |
वे बकायदा न्यज बुलेटिन में ब्रेकिंग न्यूज देते रहे |
-“मास्टर जी को गंगू तेली के  बारे में कोई जानकारी नहीं या वे जानबूझ कर जानकारी नहीं देना चाहते ?
-बकायदा चार-पांच गपोड़ियों को चेनल वाले पकड लाते और चेनल पर बहस करवाते |
मीडिया के इस  ब्रेकिंग न्यूज से नित नए  चेनल वाले प्रभावित होते रहे|
उनमे होड होने लगी ,हमारे  चेनल ने सबसे पहले मास्टर जी को पकड़ा है |
लोग मास्टर जी के घर के सामने सुबह से इक्कठे होने लगते  |खोमचे वाले ,चाय की गुमटियां खुल गई |हर शख्श ,गुरुजी के बयान का प्रत्यक्ष गवाह बनाना चाहता था |
कृशकाय मास्टर जी ने, कभी जिंदगी में, इतने बड़े हुजूम की कल्पना, सपने में नहीं की थी |
वे सोचने लगे ,सावित्री अगर आज ज़िंदा होती, तो देख के दंग रह जाती |जिंदगी भर ‘मास्टरनी’ होने के अपने भाग को कोसते रही बेचारी | उसकी याद में मास्टर जी ,उसकी फोटो के सामने पुलकित से होते  |आँख  के एक कोर में  अपनी उगली रख के,जमा, लुढकने वाले आंसुओ को रोककर, एक ठंडी आह भर के,मास्टर जी  सोचते , इस भीड़ को गंगू तेली का क्या इतिहास बताऊँ ?
आज अगर इतिहास बता देता हूँ तो कल ये फुर्र हो जायेंगे |मगर बताना तो कुछ न कुछ तो पडेगा ही |
गंगू तेली ,वल्द समझू तेली ,इस नाम का एक लड़का पढता तो था |
वे गणित पढाते थे ,बच्चो का मनोविज्ञान जानते थे ,अखबार ,टी व्ही,पढ़-सुन के सामाजिक सारोकार वाले भी हो गए थे, इसलिए मनन –चिंतन करके गंगू तेली का पच्चास साल पुराना, अपना स्टूडेंट –नुमा स्केच बनाने में लग गए |
स्केच बनाते वक्त वे आज के गंगू तेली को ध्यान में रखना नहीं भूले|
गंगू तेली ,एक दुबला –पतला ,इंट्रोवर्ट किस्म का लड़का था |पढ़ने में तेज ,कुशाग्र बुध्धि थी |जो भी एक बार सिखा दो ,अच्छे से सीख जाता था |उसे गलत बाते बर्दास्त नहीं होती थी |वो अपने हक के लिए किसी से भी अकेले भिड जाता था |उसमे नेतृत्व की अदम्य क्षमता थी |अपना होमवर्क अच्छी तरह से करके आता था ,यही उसकी खासियत थी |उसे दीगर बच्चो को चैलेन्ज देते कई बार देखा गया था |उसकी चेलेंज देने की आदत के चलते एक बार उसके पिता समझू को स्कुल आना पड़ा |वे वचन दिए कि अगली बार उनका बेटा कोई शैतानी नहीं करेगा |प्रधान पाठक उनके आश्वाशन पर बमुश्किल विश्वास कर सके थे |
गंगू तेली को ‘माडल’ बनाने का शौक था वो अपने धुन का पक्का था |बाद में पता चला कि वो अपने बनाए माडल पर फक्र करता था |
तात्कालिक भाषण में , एक बार ‘मेरे सपनों का ‘राज’ ’ में ,गंगू तेली ने राजा जी की बखिया ही उधेड़ दी थी |
उसके बाल-मन में शायद ,जो बाते रही, वही, आज दहाड़  बन के सुनी जाती है ,वे चैलेन्ज दे के कहते हैं ;
सुनो राजाजी ,आपके राज में ,खजाना  लूटा जा रहा है ?कुछ खबर है आपको ?
आपके राज में ,गरीबों को सपना दिखाया जाता हैं|वोट पाने के लिए लेपटाप बांटे  जाते हैं |
आप अपने ‘पूर्वजों की शिकार-गाथा’ बताते नहीं अघाते| मगर आप एक पडौसी की धमकी से दुम दबा के बैठ जाते हैं ?पडौसियों को हड़काते क्यों  नहीं ?
आपके राज में आपके मंत्री ,फूल  रहे हैं,आप इंनका ईलाज क्यों नहीं करवाते ? आपने मर्ज को जानने की कभी इच्छा जाहिर की है ?क्या ये मंत्री ‘ओव्हर-डाइटिंग’ के शिकार हैं |आपने ऐसे  मंत्री को कभी डाक्टर के पास भेजने का कष्ट किया है ?
आपके राज में ,लोग प्याज को तरस रहे हैं |आप उन्हें बिना प्याज आंसू दिए जा रहे हैं |आपके किसान नरेगा ,और कम कीमतों में मिले अनाज से आलसी हो गए कि उन्हें फसल उगाने की सुध नहीं ,या आप अपने राज का माल दूसरे राज में भेज पैसा कमा रहे हैं?
राजा जी सुनो |जनता हिसाब मागती है |पिच्छले दस सालो से आपने किया क्या है ?राजमहल कि सडक के मरम्मत के अलावा आपने कोई सडक पर ध्यान  दिया है ?
राजा जी ,एक ही परिवार के गुण गाने के दिन लद गए |जनता पुराने घिसे रिकार्ड को सुनना पसंद नहीं करती |
ऊ... ला.... ला.... के जमाने में आप केवल ला ला करते रहेगे, ये अच्छी बात नइ है ........
सुशील यादव








रचनाकार: सुशील यादव का व्यंग्य - झाड़ू लगाने की योग्यता

रचनाकार: सुशील यादव का व्यंग्य - झाड़ू लगाने की योग्यता

7 जुलाई 2013


सुशील यादव का व्यंग्य - झाड़ू लगाने की योग्यता

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झाड़ू लगाने की योग्यता.....

आ बैल मुझे मार। वे रोज एक बयान देकर बैल
किस्म के विरोधियों को न्योता दिए रहते हैं।
हिन्दुस्तान में सांडसे लड़ने का माद्दा होता नहीं।
न ही, यहाँ कोई लाल कपड़ा लेके सांड के आगे फहराता है और न ही कोई बिगडैल सांड उछल-उछल के दौडाने वाले के पीछे भागता है।
हमारे यहाँ लाल झंडी का प्रयोग-उपयोग भी अब इलेक्टानिक युग आने पर खत्म होने के कगार पर है रेलवे वाले कभी कभार मेंटनेंस के नाम पर ट्रेक के बीचों-बीच लाल कपड़ा दो लकडी के खूटों में बाँध देते हैं बस।
लाल गमछे वाले छूट-भइये नेता भी विलुप्त होने के जैसे हैं।
आज से हजार साल बाद फासिलमें इनका गमछादेख के केवल अनुमान लगाया जाता रहेगा कि कभी छुटभैइयों का ड्रेसकोड भी होता था।
छुटभैइयों का चोला पार्टी के थीम कलर पर यानी भगुआ ,तिरंगा ,नीला ,पीला या आसमानी सा हो गया है। वे कहते हैं,चंदा जमा करने या शहर बंद कराने के दौरान ये चोला बहुत मारक क्षमता रखता है।
पार्टी वाले भड़काऊ किस्म के वचन-प्रवचनकरने वाले प्रवक्ताओं को आगे किए रहते है।
जैसे ही आ बैलवाला संवाद कहीं से आया नहीं कि ये लठ्ठ लेकर पीछे दौड पडते हैं, और तब तक दौडाते हैं कि अगला कहीं नदी-नाले में गिर कर हाफ्ने न लगे। (यहाँ नदीको सिर्फ प्रतीकात्मक प्रचलन समझ कर पढे तो अच्छा लगेगा। )
नीचा दिखाने के नाम पर वे कहते हैं ,उन्हें तो पी एम के दफ्तर में झाड़ू लगाने की नौकरी भी नहीं मिल सकती।
अब एक कार्यकर्ता जो इसी स्तर से उठते हुए ऊपर पहुंचा है, उसकी काबलियत पर शक करना बेकार की बात है कि नहीं ? वैसे अपने घर में ,ऐसा कोई शख्श नहीं जो दावे के साथ कहे कि उसने कभी झाड़ू लगाई ही नहीं ?
वे इस बात का खुलासा भी नहीं करते कि झाड़ू किस स्तर का लगवाना है।
सी.बी आई वाला झाड़ू या इनकम टैक्स टाइप झाड़ू। सीबी आई ,समूचा दफ्तर साफ कर के कचरा हटाने का दावा करती है। इंकम टेक्स वाले यूँ झाड़ू फेरते हैं कि सब खाया पीया एक-बारगी निकल जाता है।
वे तिनका भी नहीं छोड़ते।
इस प्रकार के झाड़ू-कर्ताओकी बकायदा नियुक्ति होती है ,वे पढाकू किस्म के लोग होते हैं ज्ञान का भण्डार उनमें कूट-कूट कर भरा होता है।
उनके काम को असभ्य लोग बोलचाल में भले झाड़ू लगाना या किए कराए पर झाड़ू फेरना कहें , मगर वे छापे को छापे की पूरी प्रक्रिया से निबाहते हुए एक वैधानिक स्थिति से न्यायालय को अवगत कराते हैं।
उनकी सफाई रास्ते के रोडे-पत्थर और काटों को हटाने की नेक-नीयति में होती है।
बड़बोले बाबू, कभी यूँ प्रचारित करके कि मैंने फलां इलेक्शन में आठ करोड़ लगाए हैं, अपना पैर कुल्हाडी पर दे मारते हैं।
सीधा सा गणित ये कहता है कि, पांच साल के कार्यकाल में कोई तनखा इतनी रकम दे नहीं सकती और ये हैं कि इतनी बड़ी रकम इलेक्शन में झोंक देते हैं। अगर हार गए तो घर का मुद्दल ही साफ।
ये चुनाव आयोग की पक्की दीवारों में सेध लगाने जैसी बात हुई कि नहीं ?
हमारे बुजुर्ग ने ये हिदायत दे रखी है कि कल जिनका तलुआ चाटना है, आज तो कम से कम उंनके विरुध्द न बोलो।
हम लोग इस नसीहत की अनदेखी का परिणाम आज तक भुगत रहे हैं।
हमारे क्लास में दब्बू किस्म का एक दुबला-पतला ,मरियल सा लड़का था। अपने -आप में सिमटा सा। उसे हम किसी खेल में नहीं रखते थे अगर वो टीचर के कहने पर रख भी लिया जाता तो उस टीम के लिए पानौती साबित होता।
टीम की हार सुनिश्चित हो जाती। सभी उसे पनौती-पनौती चिढाते।
जाने क्या चमत्कार हुआ कि पनौतीआज मिनिस्टर है। आज वो जिस काम को भी हाथ लगाता है वहीं तरक्की दिखाई देती है।
उसे सताने वाले हम सभी दोस्त आज उनसे एक सादा सा, अपना ट्रांसफर वाला काम भी नहीं करवा सकते। हमे अपने-आप से शर्म सी आती है।
हम लोगों ने अनजाने में एक बैल को, आने वाले भविष्य में हमे मारने का न्यौता दे दिया था।
हमारा अपराध क्षम्य हो प्रभु।
(मोराल आफ द स्टोरी : १.झाड़ू लगाने की क्षमता हर छोटे बड़ों, सब में होती है किसी को इतना मत छेड़ो कि तुम्हें पूरे का पूरा साफ कर दे। २. इतना मत फेंको कि यमराज तुम्हें बिना वक्त बुलाने के लिए टेंशन ले और दे ३. किसी बैल को इतना मत सताओ कि उसमे सांड सा बल आ जाए ,कि तुमसे सम्हालते न बने )

सुशील यादव
श्रिम सृष्टि
सन फार्मा रोड अटलादरा
वडोदरा (गुजरात)३९००१२
मोबाइल 09426764552

रचनाकार: सुशील यादव का व्यंग्य - आसन बत्तीसी

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रचनाकार: सुशील यादव का व्यंग्य - वे पीट रहे हैं

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