Thursday, 23 February 2017

सठियाये हुओ का बसंत .....





सठियाये हुओ का बसंत .....

            सठियाने की एक उम्र होती है।
बुढढा सठिया गया है कहने मात्र से किसी पुल्लिंग के साठ क्रास किये जाने की जानकारी ही नहीं मिलती, वरन कुछ हद तक उसके सनकी हो जाने,या दिमाग के 'वन बी. एच. के छाप ' हो जाने  का अंदाजा भी होने लगता   है ।
मै आम आदमी के तजुर्बे की बात कह रहा हूँ ।'राजनीती के धुरंधरों' को इस रचना-परिधि से दूर रखता हूँ क्यों कि इने-गिनो  को छोड़ , वे आजीवन नहीं सठियाते ।

        अपनी कालोनी में रिटायर्ड लोगो का ठलुआ-क्लब है।बसंत में उनकी खिली-बाछों को देखने का लुफ्त आसानी से पार्क में सुबहो-शाम उठाया जा सकता है |आठ -दस को मै बहुत करीब से जानता हूँ । शर्मा ,चक्रवर्ती, राणा ,सक्सेना ,दुबे ,असगर अली ,भिड़े,सुब्बाराव,  ये लोग जब मिलते हैं तो करेंट-टापिक पर इनकी  तपसरा या टिप्पणी से , बसंत में खिले हुए सैकड़ों फूलो का एहसास होता है।

        राणा की बल्ले-बल्ले में दिल्ली ,चक्रवर्ती बंगाल ,शर्मा हरियाणा असगर अली यू पी दुबे बिहार ,भिड़े महाराष्ट्र,सुब्बाराव जी साउथ सम्हालते हैं ।रात को देखे हुए  न्यज या सुबह  की अखबारों  की कतरन ही उनके बीच आपस में  तू -तू, मै-मै करने का इन्तिजाम करवा देता है ।

            दिल्ली वाले ने छेड़ दिया कि ये 'मफलर-बाबा' को किसी ने समझाइश दे दी है कि  दिल्ली की बेशुमार गाड़ियों में हवा ही हवा है ,इसी को लेकर ,आगे वे दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने की मुहीम में योजनारत  हैं। सप्ताह में एक दिन सब गाड़ियों की हवा निकाल दी जावे तो इससे वातावरण को हवा  मिल जायेगी ।यदि कहीं लोगों के बीच  से  अल्टरनेट आड- इवन के  फार्मूला का सुझाव आता है तो उस पर भी गौर किया जा सकता है ।

राणा जी के उदघोष पर पार्क  के बुजुर्गों की   सामूहिक हो- हो से पार्क गुजायमान हो गया ।कुछ आदतन छीछालेदर करने वाले , धीरे- धीरे इसके अंदरुनी पहलू की काट-छांट में, अपनी पुश्तैनी  आदत के अनुसार लग गये ।
        अपने  इधर एक परंपरा है,तथ्य और  तर्क के पेंदे को उल्ट के देखना हम जरुरी समझते हैं  ।
इस पुनीत परंपरा के निर्वाह में  लोग घुसते रहे । जानते नइ ! आड-इवन के फार्मूले में जनता को कितनी तकलीफ हुई थी। जिनके घरों में दो आड या दो इवन की गाड़ियाँ थी, वे बेचारे  बेबस हो गए थे।इमरजेंसी में किसी को हास्पिटल ले जाने की नौबत आई तो पडौसियो  ने कह दिया,भाई साहब हमारे मिस्टर  खुद कार  शेयर करके गये हैं ।हम लोग जिनसे शेयर-बंध हैं उनसे शेयर-धर्म तो निभाना पड़ता है ।आप हमारे पूल में होते तो आफिस टाइम में एडजस्ट कर लेते ।यही जवाब आम है ।

        आदनी को इन दिनों 'पूल' में होना जरुरी हो गया है ।
राज्ञीतिक लोग इसे 'गुट' सामाजिक लोग 'पार' और गुंडे मवाली 'गेंग' कहते है।साहित्यिक बिरादरी में भी यह आम है ,तू मेरी फिकर कर मै तेरी सुध लेता हूँ ।
 इस पूल, गुट, पार, गेग में होने के अलग-अलग फायदे हैं।आपकी नैया सहज  पार लगती है ,इलेक्शन टिकट की गैरंटी होती है ,ब्याह-मंगनी में सामाजिक प्रतिष्ठा के अनुसार घर-वर मिलते हैं और गेंग के रुतबे के क्या कहने ‘भाई’ का नाम लेते ही सब काम,  हुकुम मेरे आका की तर्ज पर तुरंत हो जाते हैं ।
चलो बुढाऊ लोगों के दुसरे सत्र की बात देखे ...
भाई साब ये गलत बात है ,आप वोट अलग तर्ज पर मांगते हो और वाहवाही बटोरने के लिए अलग फार्मूला ले आते हो ,कहाँ  की शराफत है .....? अरे दूबे जी आप वहीँ अटक गए वो टापिक तो सुबह ख़त्म हो गया था |

बुढउ लोगों के दिमाग की केतली से,दफ्तर के प्यून से लेकर बराक ओबामा तक सबकुछ गर्मागर्म  बाहर निकलता  है ।
एक न्यूज की कतरन दिखाता है ,देखो साला है तो महज चपरासी मगर एक करोड़ की नगदी ,गहना ,बेनामी संपत्ति ,कार और जमीन के कागज मिले हैं ।
पीछे से , हामी देने वाला कहता है,ये हाल चपरासी का है तो साहब की पूछोइ मत।  साहब लोगों की कोई खबर ले तो इनसे सौ गुना ज्यादा की रेकव्हरी की जा सकती है ।
वे लोग जब तक ,भारतीय अर्थ व्यवस्था पर अपने आक्रोश जी खोल के व्यक्त करते तब तक ,बिरादरी के कुछ लोग बहाने से खिसकने लगे | खिसके हुओं के,  जाने के बाद बातों का गेयर व्यक्तिगत आक्षेप पर चलने लगता है ।जनाब क्या खा के फेस करेंगे ,अपने जमाने में नंबर-दो का इनने कम नहीं कमाया है ।चुपचाप खिसक लिए ।कुछ विरोध दर्ज कराते हुए  कहते हैं ,हमे अपनों के बीच ये सब नहीं कहना चाहिए।सब अपनी अपनी तकदीर का खाते हैं ।पीछे जो हुआ सो हुआ आगे की बात करे.|ये कभी पकडे ही नहीं गए तो हम आप बेकार ल्कीअर क्यों पीत रहे हैं |
   आप तो हमेशा उनका पक्ष लेते हैं ,और लें भी क्यों नही .....?
.देखिये शर्मा जी ,हम कुछ बोल नहीं रहे इसके माने ये नहीं की हमे कुछ मालुम नहीं ।अगर शुरू हो गये तो .....?
बीच -बचाव बाद, करीब-करीब हुडदंगी हडकंप में तब्दील हो जाने वाली  सभा समाप्त हो जाती है ।
ऐसे मौको में ,दो-चार दिन कुछ लोग खिचे-खिचे देखेगे| ये अघोषित तथ्य है |
शर्मा जी , जिनका बचाव कर रहे थे वो शख्श , भनक लगते ही आगबबुला हो गए |वे उस दिन के प्रखर वक्ता के तत्कालिक विरोध में उनके घर की ओर रुख किये  ।उस नाचीज पर अपने राजनीतिक प्रभाव यानी गुट का वास्ता देने लगे ।हम आपसी  बिरादरी होने की वजह से,तुम्हारे  सामाजिक पहलुओं को पंचर करना भी खूब जानते हैं | उन्हें सामाजिल तौर पर तिरस्कृत करने का संकल्प गाली गलौज की मुद्रा में उठा लेते हैं ।अगर इससे भी आइन्दा बाज न आयें तो चेतावनी है ,मवाली- कुत्ते से कटवाया नहीं तो कहान्ना |उस दिन इस सरे-आम चेलेंज ने बुधु पार्टी से एक मेंबर खो दिया |
बरसों तक पार्क में मिल जुल के रहने वाले बुढढो की, जाते समय की मिल- जुल कर की जाने वाली योग की खोखली हंसी  आजकल नदारद  है ।
शायद अब पतझड़ के बाद मौसम के मिजाज में तब्दीली आये ......?
   सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com  2. ०९४०८८०७४२०  //11.16





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