Thursday 23 February 2017

मन तडपत .....हरी दर्शन को ....


जब भी मै अपनी आस्था के दिए में,जी भर के  तेल –घी डाल के बस जलाने ही वाला होता हूँ कि कहीं न कहीं बवाल हो जाता है |
स्वनाम धन्य महाराज,अघोरी, एकटक बाबा ,पेट्रोल वाले बाबा,बुलेट बाबा,पायलट बाबा और ऐसे ही स्वयं घोषित बाबाओं -भगवानो को मै, अपनी श्रधा-सुमन पेश करने की नीयत से तैयार करता हूँ या ज्यादातर कहूँ कि अर्धागनी द्वारा एक्सपेल किया जाता हूँ कि “मानो .....नहीं मानोगे तो सद्गगति नहीं मिलती” ,तो यकायक कोई न कोई चमत्कार हो जाता है और मै ढोगी लोगो के चक्कर में आते-आते रह जाता हूँ |
पत्नी  द्वारा मुझे, सदगति को समझाते-समझाते  तकरीबन पच्चीस साल हो गए |इतना लंबा प्रवचन अनास्था को आस्था में बदलने का अपने आप में मिसाल है |शायद कहीं न मिले |
जितनी जीवटता से उनने अपने प्रयास किये हैं उतनी शिद्दत से मै भी अपनी अकड में कायम रहा हूँ |नइ मुझे इन ढकोसलेबाज साधू-महात्माओं के बीच मत घसीटो |मै किसी दिन उनसे उलझ पडुंगा |ये लोग अजवाइन,मुग- मुलेठी,हरड,बहर,त्रिफला और किचन में शामिल चीजों के उपयोग  और फायदे बता-बता के अपना प्रवचन टी आर पी बनाए रखते हैं |बीमारी के कारण और निदान के लिए क्या  खाना है,-केला,करेला नीबू आंवला की जानकारी प्रवचन , बीच-बीच में देते रहते हैं |इनका मकसद होता है ज्यादा से ज्यादा लोगे घेरे में आयें |चढावा मिलता रहे |
अमेरिका में ये क्या चल पायेंगे ?वहाँ  वैज्ञानिक प्रमाण के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता |इन बाबाओ की दाल पच्चास सीटी भी दे दो तो उधर  के कुकर में नहीं गलेगी |
हमने साइंस पढ़ा है |साइंस में ऐसी कोई  चमत्कारिक चीज नहीं जिसके तह में उसके होने या न होने का कारण न छुपा हो |ये बाबा लोग सिर्फ और सिर्फ कुछ प्रयोग ,कुछ हाथ की सफाई ,नजरो का धोखा और सम्मोहन के उथले जानकार होते हैं |सिद्धियाँ किसी को  नहीं मिली होती |
हस्त रेखा बाबाओं  को किसी मुर्दे के हाथ की छाप  दिखा के देखो |उसके लंबी जीवन की गाथा पढ़ देंगे |इलेक्शन जीता देने की ग्यारंटी दे देंगे,राजयोग के हकदार बता देगे |किसी बीमार मरणासन्न की कुंडली में, उनको बच्चे के  यशस्वी होने का पूरा भविष्य दिख जाएगा,बता देगे बहनजी ये एक दिन  ऐसा सिक्सर लगाएगा कि दुनिया देखती रह जायेगी ! बशर्ते कुंडली बिच्ररवाने, किसी कुलीन घर की धनी महिला पहुची हो |
मेरे तर्को को खारिज करना,और  किसी बहाने मुझको देव दर्शन के लिए प्रति माह-दो माह में  राजी कर लेना पत्नी का  हक बनता है इससे मुझे आज भी इनकार नहीं है |
सबकुछ ,जानकार ,मै चुपचाप बिना बहस के उनके द्वारा ले जाए जाने वाले हर जगह, हर तीर्थ में सर नवा लेता हूँ |वैवाहिक जीवन की नय्या को पार लगाने के लिए ,इतनी आस्था की वो हकदार भी है ?
  अपने तर्कों से, उनकी भक्ति भाव को क्षीण करने में मेरी उक्तियाँ , भले कोई असर न छोडी हो मगर बाबाओं के प्रपंच से उनको सचेत जरुर कर रखा है |
पहले, ‘बाबा दर्शन मात्र’ से पुलकित हो उठाती थी |चेहरा दमकने लगता था |ये  भी लगता था कि, किसी जन्म के पुन्य थे, जो बाबा  घर पधारे |
 बाबाओं का सत्कार करने, उनको ड्राइंग रूम में बिठाके मेवा-मिष्ठान का अंबार लगा देने ,छप्पन भोज परोसने में वो ये जतलाती थी कि मोहल्ले के किसी घर में है इतना दम ? ,दान-दक्षिणा में, सोने-चांदी,कपडे पैसे, यथा बाबा तथा चढावा का जी खोल अनुशरण करती |
अब ,मेरे समझाइश को तव्वजो दे के , फक्त, पांच सौ से नीचे की राशि ही, इस मद में किसी –किसी बाबा को आवंटित कर पाती है |
  मैंने काश्मीर से कन्या-कुमारी तक के भक्ति-मार्ग,भक्तों और देवगणों  की व्याख्या अपने त्त्रीके से  की है |
उनके भगवान से पूछा है, जब इतने सारे भक्त-गण काल-कलवित हुए केदारनाथ में घटी त्रासदी में भगवान कहाँ गए थे ?मोक्ष को पाने का यही सुगम रास्ता है तो हर साल ये सुनामी क्यों नहीं आती ?
पत्नी से अब ,जब आग्रह करता हूँ कि इस बार केदार बाबा के पास चलें, वो बहाने से टाल देती है,मंजू अभी पेट से है उसकी देखभाल जरूरी है ?
कभी गंगा –हरिद्वार जाने की सोचा तो, मीडिया वालों ने इतना हल्ला मचाया कि गंगा मैली हो गई है?
सरकारी  सफाई अभियान में अनुमानित है ,अस्सी करोड लगेगे|
हमने सोचा लगा लो भाई , अस्सी करोड, तब चले जायेगे,कौन जल्दी है ?
 कम से कम बदली हुई गंगा को , देख के ये तसली हो सकेगी कि भगीरथ ने जिस गंगा के लिए इतना तप किया उस गंगा को हम सवा करोड लोग, क्या कारण थे कि अस्सी करोड वाली भेट नहीं दे सके  थे आजतक ?
गंगा दर्शन बाद, फक्र से मैय्या  से  कहेंगे माँ गंगे हमने अस्सी करोड आपमें समर्पित किये हैं |अब तो अपने चाहने वालो का उद्धार करो माँ |
’माते’ हमारे कहे, इस आंकड़े में फेर हो तो,  हमें क्षमा करना|
 इनमे से कुछ करोड अगर , भारत की भूखी जनता ,नेता .ठेकेदार ,इंजीनीयर के उदर में समा गए हो तो हमारे आकडे को माँ आप स्वयं सुधार लेना |माँ सब आपके बेटे हैं ,इनके अपराध क्षमा करना |कल वे सब ‘अस्थिया’ बन के आप के पास आयेंगे |तब के लिए ,आप अपना ‘सलूक’ इन गैर-इरादतन भ्रष्टाचारियों के प्रति अभी से सुरक्षित रख लें माँ |
अगले पडाव में हम साईं को रखे हुए थे |अब कुछ संत लोग ये समझाइश दिए जा  रहे हैं  कि साईं जी को  भगवान की श्रेणी  में, लोगों ने,  पैसा कमाने की नीयत से रख दिया था |वे कभी अपने आप को भगवान  बोले ही नहीं ?
तस्सल्ली है तो इस बात की कि इस  मामले में कोई जांच आयोग बैठेगा नहीं|कोई सी बी आई, पुलिस वाले किसी को हडकायेगे नहीं कि बताओ किसके कहने पे ये भगवान का दर्जा दिया ?बेचारा फकीर तुझसे बोलने तो नहीं आया था कि मुझे सम्मान दो ?बेकार दूसरो के कटोरे की आमदनी खराब कर दी ?
लोग आस्था रखते हैं नेक आचरण पर ?
अपने को भगवान कहलाये जाने वाले एक संत ने अमेरिका में जाके प्रवचन दिया |
जिस किसी ने  उन प्रवचनों में अपने आप को बहा लिया वे  उन सब के लिए  भगवान हो गए |
बिल्कुल ऐसे ही ,लोगो ने अपना अभीष्ट साईं में देखा ,साईं उनके भगवान हो गए |
किसी के हाथ –पैर तो बाँधना नहीं है कि नहीं .....इन्हें मत मानो .....
जहाँ हम अपने तर्क को घुसेड देते हैं, भगवान वहाँ  से प्राय: लुप्त हो जाते हैं |
या यूँ कहे, भगवान वहीं निवास करते हैं जो बिना राग-द्वेष-इर्ष्या-लालच के उनमे लींन हो जाए |फायदे की कोई बात न हो |सब प्रभु की इच्छा है ,यही सोच उत्तम रखे  |
अगर कहीं सचमुच प्रभु हैं, तो ‘प्रभु दर्शन की अवहेलना’ का पाप, मुझको कदम-कदम लगते जा रहा है ?
इस ‘सहारे’ को ‘बुढापे की लाठी’ लोग यूँ ही नहीं कहते ?
किसी दिन पूरी अनास्था छोड़ के, मैं अगर माथा टेके किसी दर पे मिल जाऊ, तो कतई आश्चर्य मत कीजियेगा |
इतना जरुर है ,भगोड़े बाबाओं को, अगर वे मुझे ‘पारस’ देने का भी लालच दें, तो उनको अपनी गाँठ की चवन्नी भी न दूँ |
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग {छ.ग.}

मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग ...........
गनपत शाम को आया |आज उसकी खोजी निगाहें शांत थी |वो ड्राईग रूम में इधर-उधर कुछ नहीं देख रहा था |इलेकशन निपटाए हुए नेता की माफिक शांत चेहरा था |परिणाम आने में हप्ते भर का समय हो और काटे न कटे जैसा भाव दिख रहे थे  |उसकी बैचैनी को ताड़ के हमने पूछा क्या बात है गनपत ,कुछ उखड़े हुए से हो ...?
उसने अगल –बगल निगाह फेरी ,मै समझ गया कोई राज-नुमा बात है जिसके खुलासे से पहले वो इत्मीनान चाहता है |मैंने ग्यारंटी देते हुए कहा ,भाई खुल के बताओ |अपनों से क्या पर्दा ?
वो झिझकते हुए खुलने को राजी हुआ |सुशील भाई वो आपकी भाभी है न .....?
हाँ ..हाँ ...अपनी बेगम ....यानी आपकी अर्धांगनी ....?खैरियत तो है ....?
-अरे ऐसी खैरियत-वैरियत वाला मामला नहीं है वो एकदम तंदरुस्त हैं |मगर मामला उन्ही से जुडा है.....|
मैंने कहा भाई गनपत ,साफ-साफ कहो  ,पहेलियाँ मत बुझाओ |वैसे पिछले महीने भर से इलेक्शन वाली  पहेलियाँ  बुझा-बुझा के, आपने हमारा दिमाग खाली कर लिया है |सीधे-सीधे बताओ तो सही बात क्या है जिसमे आप हमारी दखल चाहते हैं ?झगडा फसाद हुआ क्या ,ये तो प्राय: मिया-बीबी के बीच रोज का मामला है, |घर-घर होते रहता है| ये बिना किसी बाहरी  दखल के  दो-चार दिनों में अपने-आप  शांत हो जाता है |
अगर गायनिक मसला है तो हमारी श्रीमती चली जायेगी साथ| किसी डाक्टर को दिखा लाएगी ...|
सुशील भाई आप तो समझ नहीं रहे हो ....ये सब बात नहीं है ....?
मैंने कहा तुम समझाते भी नहीं.... और चाहते हो मै समझ जाऊ..?.मै कोई उपर वाला हूँ क्या ...?अगर शर्म-लाज से लिपटी हुई बात है तो ये समझ लो डाक्टर के पास मर्ज जितना खुल के कहोगे ईलाज उतना बेहतर मिलेगा ...समझे ....?
वो बिना रुके ,एक सांस में बेझिझक कह गया ,तुम्हारी भाभी “मुझसे पहली  सी मुहब्बत मागती है” |
मेरे होठो में जोर की हसी आई |हसी दबाते हुए मैं, गनपत के गंभीर टाइप  ‘मनोवैज्ञानिक वाकिये’ से पल भर में अपडेट हो गया |
अब गनपत को छेडने और खीचने की गरज से कहा ,तो पहली सी मुहब्बत देने में कोई हर्ज है क्या .....?घी –दूध बादाम –शादाम खाओ तंदरुस्ती बनी रहेगी |चव्यनप्राश तो आजकल आम बात है ,उमर के साथ शर्माने वाली बात ही नहीं है |लोग कहते हैं,तीतर,बटेर,मुर्गे ,अंडे में अच्छा दम रहता है |भाई गनपत वो क्या  कहते हैं शिलाजीत -वियाग्रा वगैरा जिसका एड जहां –तहां आते रहता है ,कभी  ले के देखो,वैसे हम इस की सलाह नहीं देते |हमने बिना सांस खीचे मिनटों में ‘पहली सी मुहब्बत’ का ट्रेलर फेक दिया |
इस ट्रेलर का असर गनपत के सोच  की टिकट खिड़की पर औंधे मुह ऐसे  गिर गया जैसे करोडो खर्च करके फ़िल्म प्रोड्यूस की हो, और पहले दिन हाल खाली मिले |    
-उसने कहा, सुशील भाई ,हम उनको मुहब्बत के नाम पे, चार-चार ‘इशु’ टाइम-टाइम पे पहले पकड़ा  चुके हैं|  ....वे सब भी अब खुद काबिल ,बड़े, और  समझदार हो गए हैं |उन सब के बच्चे ,यानी नाती –पोते घर में धमा-चौकडी मचाये रहते हैं |अब इन सबों के बीच  ये सब शोभा देता है भला ?
अब ऐसे में, उनकी ‘पहले  सी  मुहब्बत’ वाली मिन्नत  पल्ले नहीं  पडती |
और आपको बता दें, हम झंडू च्वयनप्राश वाले नहीं हैं. कभी इस्तेमाल ही नहीं किया|वियाग्रा –शिलाजीत वालों से कोसो दूर भागते हैं |हमारे बाप – दादों ने जो नहीं किया वो करके  क्या नरक के दरवाजे में कपडे फाड़ेंगे ....?
रोटी –दाल,खिचडी में निपट रहे हैं|
देखो तो ससुरी ,अब जाके अपना और हमारा मुह ......अब क्या कहें .?
फजीहत कराने में तुली हैं .....खैर ...जाने भी दो ....?
मैंने गनपत से कहा गनपत भाई अगर मामला ‘इधर’ का नहीं है तो सचमुच  ,तुम कहीं कन्फ्यूज्ड हो ...|
मुझे आराम से सोच लेने  दो|
जरुर तुम, दूसरी-तीसरी गली में घुस गए हो ?
भाभी जी के भले संस्कार हैं |नित भजन –कीर्तन में जाते मैंने स्वयं देखा है |आपको गलत फहमी हो रही है ....?
यूँ करो आप मामला मुझे फ्रेम-बाई –फ्रेम आराम से  पूरे संदर्भ के साथ बताओ |
किस तरह ,कब-कब उनने ये उलाहने दिए , “आप मुझसे पहली सी मुहब्बत नहीं करते’.....
-मेरा अंदाजा है, भाभी जी को ,किसी शापिंग माल में कोई चीज, यानी साडी या ज्वेलरी पसंद आ गई होगी |इसे खरीदने कि भूमिका बांधी जा रही होगी |या मायके से ‘काल’,मेसेज  आया होगा|उधर से कोई आने को होगा ,जिसे स्टेशन लेने जाने,घुमाने –फिराने का मामला आपके जिम्मे गिरना है ....|
तुम जो सोच रहे हो,जवानी के दिनों जैसा,  प्यार-मोहब्बत वाला मामला है, वैसा मै अपने तजुर्बे के साथ कहे देता हूँ ,कुछ नहीं है समझे ?
घर  जाओ ,किसी शुभ मुहूर्त में उनसे प्रणय निवेदन करो ,देखो कैसे झिडक के छिटक जायेगी |छी आपको शर्म नहीं आती .....?
कल आके बतलाना जरूर ....जोर का झटका धीरे से लगा कि नहीं .......?
अगले सप्ताह भर गनपत नदारद रहा |
आठवे दिन शापिंग माल में फौज के साथ  मिला |परिचय कराने लगा ये मेरे साले ,उनकी पत्नी,बच्चे सब छुट्टियाँ मनाने आये हैं |
पीछे उनकी पत्नी यानी भाभी हाथ जोड़ के नमस्ते कर रही थी |
उनके जुड़े हुए हाथों में,  गनपत के प्रति मुझे, एक अनुनय, एक आग्रह,एक उलाहना दिख रहा था| इन सब के साथ ही  एक जुमला भी ख्याल करके हंसी सी आ रही थी ,बमुशील रोक पा रहा था,मानो बड़े इशरार से गनपत से कह रही हो   “आप मुझसे पहली सी मुहब्बत नहीं करते”
गनपत ,अपनी शर्मिदगी लिए बहुत से थैलों के झुरमुट में,मुझसे जल्दी बाय-बाय करने के मुड में दिख रहा  था ......|
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग)










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