Thursday, 23 February 2017

बोलती बंद है.......


बोलती बंद है.......
हमारी ‘बोलती-बंद’ करने के अनेक प्रयास हुए,मगर जब हम भिड जाते हैं तो किसी की नहीं सुनते |
शुरू –शुरू में गाव के सरपंच जी ने ये प्रयास किया |हम नए –नए गुरुजी बने थे , गाव में पोस्टिंग हुई |मन में फिल्मी-स्टाइल सपना बाँध बैठे थे कि गाव के सब बच्चो को अच्छी शिक्षा दे कर अच्छे नागरिक बनाने का प्रयास करेंगे |हमारे प्रयास को सरकार सराहेगी |हमारे स्कूल को आदर्श मानकर माडल की तरह पूरे राज्य में अपनाने पर जोर देगी |
हमारे सपनों का शीश –महल ज़रा सा तब हिला जब हम गाव के दो कमरे वाले जर्जर स्कूल में पहुंचे |
छत टपक रही थी ,बच्चे नदारद ,बड़े गुरुजी पन्द्रह दिन बासी, पुराने अखबार को बीसवीं बार पढ़ रहे थे |
हमें देखते ही बड़े गुरु जी खुद खड़े हो गए ,दुआ सलाम की |शहर से गाव तक आने में हुई तकलीफ का सदभावना के साथ जायजा-बयान लिया |
ज्वाइनिंग रिपोर्ट को तीन –चार बार पढ़ के दबे स्वर में पूछा आर्डर तो गए हप्ते का है ,चार-पांच दिनों का नुकसान क्यों कर रहे हैं ,आप कहें तो पिछली तारीख में रिपोर्ट ले लेते हैं |उनके सुझाव पर मैंने कहा अगर आपको कोई विभागीय  दिक्कत नहीं है तो मुझे कोई इंकार नही|
 बड़े गुरुजी को लगा मै आसानी से पटाने वालों में से हूँ |पिछले डेट पर ज्वाइनिंग हो गई |मुझे भी सिगनल मिल गया कि चलो आजादी खूब रहेगी |
बड़े गुरु जी से, बच्चो के बारे में दरियाफ्त करने पर पता चला कि कुल जमा पाचवी कक्षा तक 90 बच्चे हैं |यहाँ बारिश के चलते आज तो कोई आया ही नहीं ,अमूनन बीस–पच्चीस बच्चे स्कुल आ पाते हैं |
सब के माँ-बाप बच्चो को खेत खलिहानों में ले जाना ज्यादा पसंद करते हैं |ये बीस –पच्चीस भी मिड डे मील लेने में, पढ़ाई से ज्यादा रूचि रखते हैं |अभी तक तो हम अकेले सम्हालते रहे अब आप आ गए हैं तो हमारा काम हल्का होगा |
मैंने बड़े गुरुजी से पूछा .इस छोटे  से स्कूल में क्या बड़ा काम है ?
उन्होंने बताया कि स्कुल की देख-रेख पंचायत के जिम्मे है |हमारे सरपंच जी बड़े टेढ़े किसम के हैं |उन्होंने पहले ही कह रखा है कि नए गुरुजी के आने पर फौरन उनसे मिलने को कहा जावे |सो आपको पहले वहीं जा कर मिला लाता हूँ |
मैंने मन ही मन कहा देखे किस खेत की मूली हैं सरपंच जी ?
मै खेत और मूली देखने की गरज से बड़े गुरुजी के संग चल दिया |दस पन्द्रह  बचे हुए बच्चो को हिदायत दी  गई, कि जाते समय वे दरवाजे  को भिडाते जाएँ |कहीं गाय-बछरू न समा जाए |
बच्चो ने एक स्वर में हल्ला किया ,मानो उन्हें छूट्टी मिल गई हो |
      रस्ते में बड़े गुरुजी, सरपंच के लोकल (मेरे हिसाब से लो-अक्कल ) धमाको का बखान करते रहे| बीच –बीच में उनके खेत-खलिहान दिखाते रहे अंत में हम  एक बाडे में घुसे |गोबर से लिपे हुए बड़े से बरामदे में जहां एक ओर अनाज के कट्टे-बोरी दूसरी ओर किसानी औजार ,ट्रेक्टर के पार्ट ,डीजल के केन रखे हुए थे |तीन तरफ लकडी के बेंच डले थे और सामने सरपंच जी का आसान था |
उनको खबर दी गई, वे आए, हमारा मुआयना किया ,बैठने के इशारे पर हम बैठ गए |
सरपंच जी ने कहा  ,तो गुरुजी  नए मास्टर को सब बता दिए कि नहीं ?
हमे हमारा ‘मास्टर’ नामकरण अजब सा लगा ,एकाएक लगा  कि बहुत बुजुर्ग से हो गए हैं  |
बहरहाल उनने जो कहा ,उसका सार ये कि ;
मास्टर जी आपको स्कूल के समय में से हमारे काम के लिए समय निकालना होगा |हमारी सरपंची की लिखा-पढ़ी करनी होगी ,और हाँ स्कूल में पढाने –लिखाने का चक्कर तो बड़े गुरुजी देख लेंगे ,तुम तो हमारे घर में जो चार बच्चे हैं उनको देख लिया करो .समझे कि नइ?
हमने लौटते वक्त बड़े गुरुजी की तरफ, बहुत दूर की लंबी खामोशी के बाद देखा, वे नजर फिराते हुए बोले देख लीजिए ये गाव है ,सरपंच जी के कहे में रहोगे  तो कहीं कुछ जवाब माँगने वाला नहीं है |
मर्जी से अप-डाउन करो |
बड़े गुरुजी की बात, हमारे हित में थी सो अच्छी लगी|आदमी को हर ऐसी बात जो उसका हित –साधती हो अच्छी ही लगती है |
बड़े गुरुजी से इतनी देर के परिचय में ही,बेतक्कलुफी
आ गई थी इसलिए पूछ लिया ,गुरुजी यहाँ ‘ऐ डी आई एस’ साहब नहीं आते ,जांच वगैरह नहीं होती क्या ?
अरे जांच –वाच सब होता है |ऐसे ही थोड़े स्कुल चला रहे हैं |
हर क्लास की पंजी देख लो,सब बच्चे  सेंट-परसेंट अटेंडेंस वाले हैं|मिड डे मील का हिसाब देना पडता है न ?
गाव में साहब-लोग  तीज-त्यौहार वाले दिन आते हैं |
कम उपस्थिति का हवाला तीज-त्यौहार के मत्थे चल देता है या सरपंच जी सम्हाल लेते हैं |
एक –आघ बोरी चावल देकर पीछा छूट जता है |
करार के मुताबिक़ मेरा सरपंच जी को रिपोर्ट करना जारी हो गया |
सरपंच जी का काम मेरे लेपटाप की वजह से घंटे भर में निपट जाता| वे काम की प्रिंटेड क्वालिटी देख के गदगद हो जाते|अक्सर पूछते कितना खर्चा हुआ ? मै मौखिक हिसाब देकर चुप हो जाता |उनका हिसाब मेरे चोपडे में फिट होने लगा था |
सरपंच जी का हर जगह गोलमाल |रोड ,सड़क ,नाली सब में ठेकेदारों से मेलजोल |मंनरेगा में उनकी ऊपर तक पहुच ,मिड डे मील में उनकी हिस्सेदारी| हर विभाग में उंनके पसंद के अधिकारी |
मुझे काम देखते –देखते ख़याल आता कि ये क्या हो रहा है ?
सरपंच जी, हमारे अतिरिक्त काम का भरपूर मुआवजा देते ,हमारी तनखाह डबल सी हो गई थी |
हमारे  चुप रहने का,या उनके गदहे जैसे बच्चो को मुफ्त  ट्युशन  पढाने की भरपाई हो रही थी |दिन मजे में अच्छे कट रहे थे |
उन्ही दिनों एक पत्रकार अपनी जुगाड में गाव के चक्कर लगाया करता |
गाव के लोगों से  सरपंची  करनी-करतूत के किस्से लेकर छोटे-मोटे लेख लिख देता |
सरपंच जी बौखलाते ,मुझसे पूछते ये तुम्हारे शहर का है न ?
उन्हें धीरे-धीरे मुझ पर शक होने लगा |मैंने समझाने की कोशिशे की मगर काम बिगडते रहा |मैंने किसी तरह अपना अटैचमेंट शहर के शिक्षण विभाग में करवा लिया |
मुझे सरपंच जी की नासमझी पर गुस्सा बहुत आया लगा कि भलमनसाहत का ज़माना ही न रहा |
मुझे यार-दोस्तों ने उचकाया ,तू उसे सबक क्यों नहीं सिखाता ?जब तक ऐसे  लोगों को उखाडा नहीं जाएगा देश की तरक्की कहाँ हो सकेगी?
 मुझ पर एकाएक देशप्रेम का भूत सवार हुआ |
एक शिक्षक ही देश को सच्ची राह ,सही दिशा दे सकता है, जैसे फितरो  ने मेरी सोच पर  आक्रमण कर दिया |
मेरी बेचैनी तब तक बढते रही जब ता कि मैं ढूढ कर पत्रकार को नहीं पकड़ा| उससे  पक्का करवा लिया  कि वो खबर का कहीं किसी से सौदा नहीं करेगा और सारी बात बता दी |
उसने उन बातों में कितना नमक –मिर्च लगाया वही जाने? मगर हाँ, सरपंच पन्द्रह दिनों में रिश्वत लेते रंगे हाथ धर लिया गया, तब से आज तक उसकी बोलती बंद है.......
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर,Zone 1 street 3 ,  दुर्ग (छ ग)’
मुझे भी तो मनाओ....
मुझे रूठे या खपा हुए एक ज़माना लद गया |वो बहुत अच्छे दिन ठे जब हम रूठा करते थे और वो मनाने  का जिद ठान के बैठी होती थी|
कालिज नही जाते थे तो खबर पे खबर भिजवाए रहती थी |
खबरची भरी दोपहरी में या भीगते –भागते बारिश में आ-आ के जाने क्या –क्या बयान करता कि मन कभी या तो खबरची के हालत पे या उसके बया किए हालात पे तरस खा जाता ,और उसे पसीजने का सॉलिड बहाना मिल जाता |
अपने रूठने से अगर वो खपा हो जाती तो, स्तिथी ‘समझौते’ के लिए ‘मध्यस्थो’ की मुहताज हो जाती |
एक-दो अपनी तरफ से एक- दो उनकी तरफ से भिड पड़ते |
दोनों पक्षों के मध्य ,गिले –शिकवों की गिनती कराई जाती | तू ने ये नहीं किया ,वो नहीं किया |
मेरी क्या बताती है ,वो  अपनी कहे  मेरी एक बात कभी मानी ?कहा था क्लास छोड़ दो ,बैठ गई पीरियड अटेंड करने |एक पीरियड ‘गोल’ कर देने से कोई ‘मार्क्स’ नहीं घट जाता |
‘मध्यस्थ’,इन तू-तू,मै-मै के तोड़ निकाल लेते | ‘
युद्ध –विराम’ की घोषणा हो जाती |
बहुत अच्छे दिन थे |हंसते -हंसाते गुजर गए |
बचपन में रूठ कर ,जिद करके , अपनी बात मनवा लेने का ख्याल करके, अब बाप बनने के बाद पता चल पाया कि हम दो बच्चो की जिद से परेशान रहते है ,वे बच्चो की फौज को कैसे सम्हालते रहे होंगे ?
हमारे पडौस के मिश्रा जी को दब्बू –पति का ‘खिताब’ हर होली में हर कोई दे डालता है |वे काबिल-तौर पे हक़दार  भी हैं |पिछली होली के कपड़ों में होली मना लेते हैं |पत्नी को तिनका भर गुलाल ज्यादा  लगा दें तो उनकी भंव तन जाती है | आखे दिख गई तो हाथ में ली हुई कचौरी छोड़ देते हैं | वाजिब बात पर भी उनके रूठने का हक बनते कभी नहीं देखा |
उनको मिसाल देके ,पत्नी ताने जरूर देती है| देखो मिश्रा जी को देखो ,कैसे सर झुकाए आफिस से घर और घर से  आफिस आते –जाते हैं |एक आप हैं ,कोई अता-पता नहीं न रहता ?
मुझे पत्नी को हाबी होते देख ,खपा होने का भूत सवार हो जता है |
तुम लोगों के लिए जितना करो कम है |रोज-रोज दफ्तर में घिस-घिस के काम करो ,घडी भर सांस लेने का टाइम नही और यहाँ तुम्हारी बकवास |मुझसे उम्मीद न रखो कि मै ‘मिश्रा-जी’  हो जाऊ?
पत्नी इतनी सी बात पर काम रोको आंदोलन पर उतर कर ,बिस्तर में घुस जाती |मुझे मनाने का घडी –भर ख्याल नहीं आता |
उल्टे मुझे ‘मिश्रा-जी’ के रोल में पानए के बाद ही   अपनी गाडी, पटरी पर ला  खड़ा करती |
उनको  ‘रूठे पति को मनाने के हजार तरीके’ वाली किताब शुरू-शुरू में जब लाकर दी थी, तो उनने उसे पढ़ने की ये शर्त रखी, कि जब मै ‘रूठी पत्नी को मनाने के लाख तरीके’ वाली किताब ला कर दूंगा तो वह पढना शुरू करेगी |
मुझे आज तक वो  किताब मिली नहीं ,सो मेरे खपा हो के रूठने का हक मिल नहीं पाया |ऐसे रूठने का मकसद ही क्या जिसके मनाने वाले का आता-पता न हो |
मुझे उन रूठने वालो पर फक्र होता है जिसके लिए सरकार के मुहकमे बंदोबस्त में लग जाएँ |मंत्री-संतरी एयरपोर्ट में तैनात रहें |एक गिलास ज्यूस पिलाने के लिए मीडिया आठ-दस दिनों तक गुहार लगाती फिरे |
जूस के एक घूट भरते ही ऐसा लगे कि जनता की , महीनों की प्यास बुझ गई हो |जय-जयकार के नारों के बीच यूँ लगे कि किसी ‘जिद’ ने फतह पाई हो |
मुझे उन रूठने वालो पर भी फक्र होता है, जो खिचडी खा के कहते हैं ,बीमार हैं |
उडती ‘पतंग’ को और ढील देना गवारा नहीं समझते |
बिना मांजे के पतंग को उडाए रखने को बाध्य किए होते हैं |
‘चकरी’ लगभग इनके  हाथ में होने का गुमान पार्टी  को थोड़ा –थोड़ा होता है ,जिसकी वजह ,वो चिरौरी करते से लगते हैं |
“नीचे उतारो मेरे भइय्या तुम्हे मिठाई दूंगी ,
नए खिलौने ,माखन-मिश्री ,दूध मलाई दूंगी”
सुश्री सुभद्रा कुमारी चौहान की उक्त पंक्तियों की तर्ज पर रूठने वाले  ‘कन्हैय्या’ को उतारने के लिए अब  ‘चार्टेड-प्लेन’  की व्यवस्था है, वे मीडिया के मार्फत बात उन  तक पहुचाते हैं |क्या गजब का अंदाज है ?रूठे तो यूँ ...,खपा हों तो ऐसे.... |
हमे तो हमारी बारात में भी, “खाना है तो खाओ” के हाल पे छोड़ दिया गया था |
 काश जीवन में एक बार , हमे भी कोई यूं मनाता  ...?      
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर,Zone 1 street 3 ,  दुर्ग (छ ग)’
mobile 08866502244 :::,8109949540::::09526764552
susyadav7@gmail.com , sushil.yadav151@gmail.com
८-६-१३

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