Thursday 23 February 2017

,,,,एक चिता अचानक ......



कहानी ........    सुशील यादव    

,,,,एक चिता अचानक ......

पता नहीं किस टेलीपेथी से, बरसों बाद मै अपने पुराने पुश्तैनी मकान की तरफ चला गया, जिसे बरसों पहले बेचकर, हम भाई लोग अलग-अलग शहर में  अपनी सुविधानुसार बस गए थे|
पुराने इलाके के, टपोरी होटल में चाय पीने की तलब  और पुराने लोगों से कुछ  मेल-मुलाक़ात हो जाए, इस मकसद से गया | खपरैल के छप्पर वाले होटल की जगह,कंक्रीट  छत के नीचे , दो कमरे का कस्बा-नुमा बिना प्लास्टर का , गोडपारा का मराखन होटल आज भी उसी नाम से जाना जाता है|
तकरीबन सब नए नये चहरे दिखे, जो बीस-पच्चीस साल पहले पैदा हुए, नई पीढी के पौध लग रहे थे | इन सब को शायद मै पहली बार देख रहा था | वे लोग मुझे अजनबी जैसी निगाह में कनखियों से देख रहे थे| मेरी निगाह किसी पर ठहरती इससे पहले ,किसी कोने में बैठे , थोड़े से बुजुर्ग जैसे शख्स ने मेरे बचपन के नाम से पुकारा ,कैसे अनिल ,बहुत दिन बाद दिखे ....?बस मुझे बैठने का ठिकाना मिल गया |उससे बतियाने का ,पुराने मोहल्ले की भूली-बिसरी यादों को ताजा करने का मुझे मौक़ा मिल गया |एक-एक लोगों के घर-परिवार की लंबी तहकीकात मैंने शुरू कर दी| उस होटल में ताजा बने समोसे ,भजिये के दो-दो प्लेट  आर्डर कर बैसाखू के सामने परसवा दिया |वो मुझे आश्चर्य मिश्रित झिझकती नजर से  देखने लगा|उसकी झिझक को शांत करते हुए मैंने कहा सब तुम्हारे लिए है ,मै तो एक आध  खा पाउँगा |हाँ यहाँ की चाय तब  गजब की होती थी वही पीने रुक गया था |पता नहीं ये नए लोग अब वैसा बना पाते हैं या नहीं ?
दो स्पेशल चाय बनाने को बोला,चाय के काउंटर में बैठे नौजवान से मुखातिब होकर बताया तुम लोग मुझे नहीं पहचानते होगे |ये पीछे  ठेठवार गली में हम लोगों का पुश्तैनी मकान होता था |समझ लो इस होटल में मेट्रिक-कालेज पढ़ते तक घंटों चाय पीने का मजमा दोस्तों के साथ लगाए रहते थे|तुम्हारे बाबूजी हम लोगो को बहुत उधारी देते थे |
                मैंने बैसाखू से पूछा क्या बात है ,इस मोहल्ले में अब पहले जैसी रौनक नहीं रही ?कहाँ तो...... इस चबूतरे पर, पासा खेलते लोग ,उस पर दर्शकों की भीड़ ,हल्लागुल्ला,किसी कोने में सटोरियों की अलग चौपाल ,शाम को टुन्न होकर गरियाते लोगों के,मा- बहनों वाले  अंतहीन संवाद  |सब अभी जी रहे हैं या.......?
बैसाखू ने कहा ,किया बताएं बाबू सा ,पहले जैसी मस्ती तो, आजकल के ये लड़के कहाँ पायेंगे ? लोग,.... उस जमाने में  कम कमाते थे, मगर जीते शान से थे ?
किसी भी तीज त्यौहार में जिस गली से गुजर लो, अच्छे-अच्छे पकवानों की देशी खुशबु आती थी |
‘पुलिस-सक्ती’ करने लायक अपराध होते नहीं थे......., तो पुलिस भी झाकती न थी|
देर रात के  बारह-एक बजे तक बड़े धूम से होटल चालु रहता था |सट्टे के ‘क्लोसिंग नम्बर’ जो बाढ़ बजे खुलते थे , सुनने वाले उताव्लियों से मोहल्ला गुलजार होता था |
‘मुण्डा-मुछड’,जानते हैं न आप ....? हाँ हाँ ...टकलू को अच्छे से जानता था ,क्या बेदम पीता था बाप रे ......|वही, क्लोस का नबर, फर्राटे से साइकिल में चिल्लाते निकलता था दो सौ चालीस .....छक्का.......उस स्टाइल की नकल आज तक कोई नहीं कर पाया | संयोग देखिये जिस दिन उसका  हजार रूपये का आकडा फंसा, उसी दिन जगह-जगह, ज्यादा पी के मर गया|
वैसे बाबू सा......!,अच्छा हुआ आप लोग इस मुहल्ले से निकल लिए |ये मुहल्ला आज भी किसी  घर के बच्चों पर, अच्छे संस्कार पड़ने नहीं देता |चपरासी की नौकरी से आगे कोई निकल ही नहीं पाता |पता नही क्या अभिशाप है इधर.........? सुना है आपके बच्चे विदेश में हैं ....?  हाँ बैसाखू ,तुमने सही सुना है ,बच्चो को विदेश  में नौकरी मिल गई,वे लोग निकल गए   |बाबू आप लोग बच्चों को, इतनी दूर भेजने की हिम्मत कैसे कर लेते हो |हम लोग तो बच्चे के ससुराल से वापिस आने तक में उपर-नीचे होते रहते हैं|
मैंने कहा, आजकल मोबाइल-कम्प्यूटर का जमाना है ,रोज हालचाल जान लेते हैं,और क्या चाहिए ?उन लोगो को खुश जानकार तसल्ली हो जाती है |  मैंने कहा और सुनाओ .....?
मैंने गौर किया कि, उसकी निगाह होटल के दीवार-घड़ी की ओर कनखियों से गई ,मैंने पूछा ,कहीं जल्दी है क्या ....?
वो झेपते हुए बोला ,अभी मंगली भैया....खैर .....आप नहीं जानते होंगे शायद ,पंचानबे साल की उम्र में, कल रात ख़तम हो गए |इस मोहल्ले के सबसे बुजुर्ग में से थे |उनकी ‘काठी’(अंत्येष्टि) में जाना था .....|
मेरा मुह खुला का खुला रह गया ....!
मंगली दादा...... , जिसे वो सोचता था मै नहीं जानता,इनको पता नहीं मै कितने करीब से जानता था उन्हें |मैंने होटल में बिल देकर बैसाखू से कहा चलो मै भी श्मशान चलता हूँ |उसे अपनी कार ने बिठा के, श्मशान की तरफ निकल चला |पांच किलो मीटर के फासले को, अनगिनत यादों के साथ बैसाखू के साथ शेयर करते रहा |
बैसाखू ,मैंने मंगली दादा को हमेशा खाकी हाफ-पेंट और बुश्शर्ट में देखा है |हम लोग यहाँ से जब दूसरे शहर शिफ्ट हुए , तब तक वे मुनिस्पेलटी की चौथे दर्जे की नौकरी से रिटायर हो गए थे |अभी जिस होटल में बैठे थे, उसी  के करीब उनका खपरैल वाला कच्चा मगर साफ सुथरा लिपा पुता घर होता था |उसकी ड्यूटी, सन साठ के दशक में, जब इस शहर में बिजली की लाइन नहीं खिची थी ,जगह- जगह, सात-आठ फीट के लेम्प-पोस्ट पर, लेम्प को जला कर रखने की होती थी |
इस काम में मगर,  उसे  दोपहर से मशगूल हो जाना पड़ता  था |उसके जिम्मे पच्चीस लेम्प पोस्ट होते थे ,हम लोगो  की उम्र सात-आठ साल की रही होगी, हमें उसे काम करते देखें में आनन्द आता था |स्कूल से छूटते ही हम कुछ बच्चे उसके घर पहुच जाते |उसे बीती रात ,लेम्प के काच में लगे कालिख को बड़े सावधानी से साफ करते देखते |वे इस नफासत से एक-एक दाग धब्बों को रगड़ कर साफ करते कि, लेम्प जलाने के बाद, काच लग जाए तो रोशनी दस-गुनी अधिक लगती थी |वे बार- बार हम लोगो को लेम्प के कांच, और मिटटी तेल की कुप्पी से दूर रहने की हिदायत देते रहते |
वो हममे से किसी एक  को ,  एक लेम्प के जल जाने के बाद,बहुत हिदायत से ,दो फीट की   लकड़ी के डंडे के एक सिरे में, मिटटी तेल में भिगोये कपड़े को जलाकर छोटा मशाल  पकड़ा देते |हमे  बारी-बारी से  सभी लेम्प्स को जलाने की कहते |
इस श्रेय को लेने की, हम सब बच्चो में होड़ रहती |वे दर्याफ्त कर लेते, कि कल किसने ,परसों किसने जलाया था ,फिर अगले  नये को मौक़ा देते |
उस जमाने में, पन्द्रह-वाट के बल्ब जितनी रौशनी के  लेम्प का  , बीस-पच्चीस के समूह में एक साथ देखना,नजारा ही  कुछ और होता था..... और  अपना मजा अलग ही देता था |
शाम के छ या गरमी के दिनों में सात बजे तक उनको हरेक लेम्प पोस्ट में लेम्प रखना होता था |
वे एक कंधे में छोटी हलकी  सीढ़ी, और दूसरे कंधे में कांवर जिसके दोनों पासंग,  बांस की बनी बड़े परातनुमा टोकरी होती थी,जगमगाते लेम्प को लिए चलते देखना तो मानो लोगों को अचंभित कर देता था |आने-जाने वाले रूककर या कहे कि उस ख़ास नजारे को देखने की कवायद में गली-गली  जमा हुए रहते थे |हम बच्चों का भी शगल था, कि उसके  पांच-दस लेम्प पोस्ट तक उनका साथ दें |
हम लोग चलते-चलते तरह-तरह के सवाल करते, मसलन कि ये कब तक जलता है ?सुबह बुझाने कौन आता है ?इसे इकठ्ठा कौन वापस ले कर जाता है ?
वो किस्से-कहानी मिलाकर, हम लोगों को बताता कि,  कैसे पिछली रात उस नुक्कड़ पर भूत- प्रेत से पाला पड गया था |बमुश्किल जान बचा कर भागा |एक लेम्प का कांच तभी टूट पड़ी |प्रमाण में वो टूटा कांच दिखा देता |हम लोगों की अन्धेरा घिरते देख  हिम्मत नहीं होती कि उसके पूरे लेम्प – पोस्ट में लेम्प रखने में आगे साथ दें | हम झुण्ड में घरों की तरफ दौड़ लगा के, भाग निकलते|
परीक्षा के दिनों में, हमने अपने बड़े भाइयों को इन्ही लेम्प पोस्ट से लेम्प को उतारकर फट्टी बिछा के पढ़ते देखा है |या कहे कि ‘मगली दादा’ की सद्भावना के चलते बड़े भाइयों ने मेट्रिक बड़े आराम से निकाल लिया |वे पढने वाले लड़कों को कुछ न कह के एक तरह से अपनी ‘सहमति’ के सर हिलाये रहते |
बैसाखू ! मेरी बातों को किस्से-कहानी की तरह मंत्रमुग्ध होकर सुन रहा था |मंगली दादा के इस गुण का बखान उसने आज से पहिले कभी से नहीं सूना था, कारण कि बैसाखू ने पाचवी से आगे की पढ़ाई की नहीं थी,और न ही उसे लेम्प-पोस्ट से लेम्प उतारने की जरूरत पड़ी थी |
श्मशान पहुचते ही, रास्ते में ली हुई माला और पीताम्बरी जमीन में रखी उसकी अर्थी पर श्रद्धा से अर्पित किया |
परिवार जन, मोहल्ले के जमा लोग मुझे हैरत से देख रहे थे| श्मशान के एक कोने में, उसकी वर्दी, वही खाकी हाफ-पेंट और बुश्शर्ट फिकी पड़ी थी | लाश को चिता पर रख दिया गया था |
उसका कोई नजदीकी, आग को हाथ में लिए परिक्रमा कर रहा था तभी न जाने मुझे क्यों लगा ‘मंगली दादा’ मुझसे कह रहे हो, अनिल ,आज तेरी बारी है चल झटपट सब लेम्प को मशाल ले के जला तो दे......?
मै फूट-फूट कर रो पडा .....                                     सुशील यादव  २५/९/१५












नन्द लाल छेड़ गयो रे

नन्द लाल छेड़ गयो रे

उस जमाने में नंदलालों को छेड़ने के सिवा कोई काम नहीं था |सरकारी दफ्तर ही नहीं होते थे, जहाँ बेगारी कर ली जाए |अगर ये दफ्तर भी होते तो चैन की बंसी बजईय्या टाईप लोग, कुछ देर काम करते और ‘एक नम्बर’ के बहाने साहब को अर्जेंसी का वास्ता देकर, तालाब पोखर की तरफ खिसक लेते |उस ‘खुले शौच’ के जमाने में इतनी छूट तो मिल ही जाती थी |वे पनघट-ब्रांड लड़कियों को इशारे-विशारे करना खूब जानते थे | उन दिनों इत्मीनान इस बात का होता कि; किसी प्रकार के एक्ट का चलन नहीं था; सो खतरा भी बिलकुल नहीं होता था |एफ आई आर,, नाम की कोई चिड़िया खुले आकाश में दूर-दूर तक उड़ा नहीं करती थी |खाखी,-खद्दर वाले लोग भी किसी बात को ‘इशु’ बनानें के नाम पर ,गली-गली ‘मुद्दे’ सुघियाते नहीं फिरते थे| क्या मजे का जमाना था ......?
बाद के दिनों में ,खाखी, खद्दर, टोपी, झंडे ने देश की ‘वाट’ लगा दी....!
आपने इस ‘वाट’ को ‘जेम्स वाट’ की तरह, दिमागी रेल इंजन दौडाने के फिराक में, अब पकड़ ही लिया, तो तफसील भी जानिये |
ये आपका बुनियादी ,प्रजातंत्रीय हक़ भी है, कि जिसने ‘वाट’ कहा है उसे वह एक्सप्लेन भी करे|
‘वाट’ को इधर मै छोटे-मोटे उठाईगिरी टाईप के लफड़ों में इस्तेमाल कर रहा हूँ, जो राजनीति के दैनिक क्रियाकलापों का हिस्सा बन गया है मसलन ,|नेता वादा करके वादाखिलाफी न करे ,’खाखी’ अगर माँ बहनों वाली डिक्शनरी न खोले ,’टोपी’ अगर झांसा न दे ,’झंडे’ को कोई लाठी के बतौर, उसे उठाने वाला, चलाना न जाने तो आजकल प्रजातंत्र के पाए डगमगाए से लगते हैं |’बड़े वाट’ पर बात करने का जमाना ,दिन-बादर हैं नहीं |मुफ्लिसिये पर दस करोड़ की मानहानि वाली बिजली गिर गई तो, अपना कुनबा ही साफ हो जाएगा... ?
नब्बू एक दिन मायूस सा आया |भइय्या जी मजा नहीं आ रहा है .....|उसके इस कथन के पीछे मुझे किसी नए किस्म की खुराफात के पर्दाफाश होने का आभास, छटी इन्द्रिय के मार्फत , तुरन्त हुआ सा लगा |मैंने खीचने के अंदाज में कहा, जिन्दगी के ‘तिरसठ -पूस’ ठंडाये रहे, तुम्हे भुर्री तापते कभी न देखा आज कौन सी आफत आ गई जो कंडा सकेलने निकल गए .... बोलो .....?
भइय्या जी, बात ये है कि आजकल की राजनीति में दम नहीं है | हम रोज अखबार पढ़ते हैं ,आप भी देखे होंगे ....न छीन झपट,न जूतम पैजार .... न किसी के अन्गदिया पैर उखाड़े जाते ,न एक दूसरों की सरे आम वस्त्र उतारने की बात होती |सब सन्नाटे में बीत जाता है |अपने मुनिस्पेलटी इलेक्शन में ही देखो लोग खड़े हुए, न झगड़े न सर-गला कटा|कोई पेटी उठाने का दम भरते नहीं दिख पाता |किसी जमाने का वो सीन भी याद है जब मवाली, कोठे में नोट लुटाने की तर्ज और स्टाइल में, बेलेट को धडाधड छापता और कह देता, बता देना ‘छेनू’ आया था|छेनू नाम का सिक्का चला के जीत-हार हो जाती थी |मतदाता को दस-बीस जो मिल जाता ,उसे वह पाच सालाना बोनस बतौर स्वीकार कर लेता |कोई शिकायत या उलाहना देने की नौबत कब आती थी ? वैसे भी उन दिनों पानी लोग कम इस्तेमाल करते थे ,शौच-नहाना-धोना तालाब किनारे हो जाता था इस वजह घरों में पानी बहने बहाने या नाली की समस्या न थी |बच्चों को स्कूल में इतना पढ़ा दिया जाता कि रात को उनको सबक-होमवर्क करने की जरुरत न पड़ती थी, इसलिए बिजली की भी दरकार नहीं थी| नेता की चरण-पूजाई का स्कोप कम या नहीं के लगभग था |उन्हें कोई हारे या जीते से सारोकार नहीं होता था |
नब्बू ने आगे बताया ,भइय्या खबर है, अपने धासु बेनर्जी जो बड़े डाइरेक्टरों में गिना जाता है, अपने मिस्टर आजीवन कुआरे कन्हईया को लेकर पुरानी और नई तहजीब पर फ़िल्म बना रहे हैं |पांच हजार साल पहले की याददाश्त अपने हीरो को दिला बैठे हैं |उसका दिल नदी नालों पोखरों के आसपास मंडराते रहता है|हर नदी में फ्लेश्बेक है|रईस बाप हर कीमत पर अपने बेटे को इस फ्लेश्बेकिया बीमारी से निजात दिलाने के लिए उसके मुरादों वाली सीन एक्ट्रेस लंगोटिया कामेडियन सेट बनवा के रखता है, किसी ने उसे सुझाया यूँ तो आप पैसा पानी की तरह बहा ही रहे हैं तो क्यों न इसे शूट करके साउथ डब वाली फ़िल्म की शकल दे दी जाए |रईस को सुझाव उम्दा लगा सो पहले उसके बीमार लड़के के शौक का रिह्ल्सल होता है फिर उसी सेट में आजीवन कुआरा फिट हो जाते |
“कंकरिया मार के जगाया’ इस गाने के बोल फिल्माने के लिए बुलडोजर से कई किलोमीटर कांक्रीट रास्ते को उखाड़ कर, बजरी-पत्थर-कंकर डाले गए|हीरो ने एक कंकर उठा के मटकी फोडी सब निशाने की वाह-वाह में लग गए |हिरोइन इसी पलो की याद में, फूटे-मटके पर सर रख के अपने सोये(प्रेम में अज्ञानी) होने का प्रलाप कर रही है |
इंटर तक, पाच हजार पुराने मटका फोडू को तत्व-ज्ञान मिल जाता है |अक्सर ये अचानक बिना साइंटिफिक रीजन के तत्व-ज्ञान मिलाने वाला अक्षम्य-अपराध अनेकों फिल्मी-स्क्रिप्ट की जान है और बाक्स आफिस में हजार करोड़ कमाने का नुस्खा भी है अत: किसी के पापी पेट को लात न मारते हुए आगे बढ़ते हैं|
मटका फोडू हीरो, पहले मटका-किंग फिर बाद में, बाप की अंडर वर्ड वाली रियासत को सम्हालता है | उसे घेरे रहने वाले उसे किग-मेकर बा जाने की सलाह दे डालते हैं, जिसे पूरी तन्मयता के साथ वो निभाता है |डाइरेक्टर उसे ग़रीबों के साथ हंसना-खेलना सिखलाने के लिए विदेश ले जाता है |किसी के घर मातम में कौन सा मुखौटा होना चाहिये, इसकी बाकायदा तालीम दिलवाता है |भाषण के बीच लोगों से प्रश्न क्या पूछे कि, जवाब ‘हाँ’ में निकले,कब बाह चढा कर भाषण में अपनी भुजा दिखाना है, इन छोटी-छोटी हरकतों पर गौर करने को कहता है |
‘नन्दलाल’ जिसे आधुनिक हीरो बनाया अपनी पुरानी यादों को अचानक संसद में ताजी कर लेता है |बड़े-बड़े सांसदों मंत्री-मंत्राणी, किसी को नहीं छोड़ता |सबकी मटकी में उसे माखन होने का संदेह रहता है |मलाई खाते हुए वे लोग जो अब तालाब पोखर की ओर आना भूल गए उनके लिए वो खुद इन्साफ का कंकर लिए छेदने-छेड़ने के लिए तैयार दिखता है |
इति फ़िल्म पटकथा समाप्त |डाइरेक्टर, राइटर, हीरो हजार करोड़ की उम्मीद में |कुछ अति उत्साही आस्कर में ले जाने के लिए फार्म भी खरीदे लाये है |भगवान जाने आगे क्या हो ....?
नब्बू की बेसिरपैर की कथा का विस्तार, अगले एपीसोड में फिर कभी ...तब तक आप सेफ रहें ......
सुशील यादव









अपोजीशन की होली ....

अपोजीशन की होली ....

नत्थू,! इस देश में गलाकाट प्रतिस्पर्धा वाले चुनाव के बाद गहन सन्नाटा पसर गया है। होली जैसे हुडदंग वाले त्यौहार में रंग-भेद ,मन-भेद ,मतभेद की काली छाया कैसे आ गई? ज़रा विस्तार से बता।
सेक्युलर इंडिया के ढोल-नगाड़े किधर बिलम गए ?
घनश्याम ,ब्रज ,गोपी ,गोरियां जो होली के हप्ते भर पहले से रंग-अबीर से सराबोर हुआ करती थी,उनका क्या हुआ ?
अद्धी ,पव्वा,भंग की गोलियां ,भांग घोटने वाले सिद्ध पुरुष कहाँ लुढ़क गए ज़रा खोज खबर तो ले।
नत्थू उवाच ......।
महराज ,कलियुग आई गवा है ?का बताई ....?
जउन इलेक्शन की आप कही रहे हो ,हम इशारा समझत हैं ......।
तनिक लड़ियाने के बाद नत्थू ने हुलियारा-स्वांग को छोड़ कर सीधे-सीधे कहना यूँ आरंभ किया ;
इसी पिछले दो-तीन इलेक्शन ने गुड गोबर किया है।जनता ने गद्दी वालों को अपोजीशन और अपोजीशन वालो को गद्दी दे के कह दिया है , लो इस होली में पकवान की जगा गुड खाओ ,गोबर लगाव-लीपो बहुत कर लिए राज-काज ।
इनकी पार्टी आजादी के बाद से जो दुर्गति न कराई थी, सो हो गई।
हस्तिनापुर-कुरुक्षेत्र के पराजित योद्धा, मुह लटकाए खेमे में लौट गए हैं।
कहाँ तो वे लकदक लाव-लस्कर के साथ चलते थे ,सफेद वस्त्रों पर सिवाय होली के दिन के, कभी दाग न लगते थे।
इनकी पार्टी के कुछ लोग, वेलेंटाइन,न्यू इयर के दिन के,शुरू से दाग-दाग कपड़ों में धूमते नजर आने के आदी होते गए।
कुछ के कपड़ों में, दाग कहीं मलाई चाट के हाथ पोछने के थे ,कहीं वेळ इन टाइम काम करने के चक्कर में, किसी की पंचर हुई गाड़ी को धक्के लगाने के थे।
किसी-किसी के दामन ,इक्जाम पास कराने में, स्याही के बाटल खुद पर लुढकाऐ दिखे।सब अपने-अपने स्टाइल की होली साल भर अपनी मस्ती में मनाते रहे।
महाराज !सच्ची कहूँ ! जनता बड़ी चालाक हो गई है ,वे किसे कब कहाँ निपटाना है,लुढकाना है ,लतियाना है, बिलकुल उस ऊपर वाले की तरह जानती है ,जो हर किसी के सांस की डोरी या नथ अपने हाथ में लिए रहता है।
महराज ,हम जानते हैं आप उन दिनों की याद को मरते दम तक बिसरा नहीं पायेंगे, जब आप होली के हो-हुड़दंग से पहले,गाँव के बड़े-बुजुर्गों के पाँव छूने ,चंदन-अबीर का टीका लगाने निकल पड़ते थे।
हर घर से तर घी के मालपुए ,पुरी-कचौरीकी खुशबू उड़ा करती थी। बड़े मनुहार से परोसे-खिलाए जाते थे।
फिर दोस्तों के संग, भांग छानना-पीना,मस्ती की उमंगों में बहक-बहक जाना अलग मजा देता था। नगाड़े पीट-पीट कर जो फाग की स्वर लहरियां गुजती थी जो राह चलती कन्याओं पर फब्तियां की जाती थी .....”.पहिरे हरा रंग के सारी, वो लोटा वाली दोनों बहनी” सरा रा रा ररर .......
काय महाराज ! जवानी की छोटी लाइन वाली ट्रेन पकड़ लिए का ......?सुन रहे हैं ......?
नहीं नाथू ,तुम सुनाव अच्छा लग रहा है। ऐसा लग रहा है हम मनी-मन होलिका की लकडिया लूटने के लिए निकल पड़े हों।
नत्थू याद है, कैसे पंचू भाऊ को तंगाए थे, .होली चंदा देने में जो आना- कानी की थी ....। बेचारा अधबने मकान के सेंट्रिंग की लकड़ी की रखवाली में खाट लगाए सोया था,हम लोगो ने , खाट सहित उसे उठा लिया। ‘राम नाम सत’ बोलते जो उसे होलिका तक उठा लाए, बेचारा हडबडा के गिडगिडाते हुए दौड़ लगा दिया था।
महाराज जी! पंचू भाऊ की आत्मा को शान्ति मिले।
अब के बच्चे, ये जो स्कूलों में ‘मिड-डे मील’ खाने वाले हैं ,ऐसे हुडदंग करने करने की सोच भी नहीं सकते ?ऐसा ‘किक’ थ्रिल जो ‘होली’ बिना मांगे दे जाता था वो आज के किसी तीन-चार सौ करोड़ कमाने वाली मूवी न दे सकेगी।
हाँ नत्थू , ये अपोजीशन वाले होली-सोली मान मना रहे हैं या ठंडे पड गए,?पहले , इनके मोहल्ले से निकल भर जाओ रंग की हौदी-टंकी में डुबो कर हालत खराब कर देते थे। नाच गानों में, हिजड़े अपना रंग अलग जामाए रहते। सिर्फ इकलौते, अपने नेता जी बैंड-बाक्स ड्राईक्लीनर्स से धुली कलफ-दार झकास सफेद पैजाम-कुरता पहने टीका लगवा के पैर छूने वाले वोट बेंको को मजे से निहारा करते थे। किसी में हिम्मत न होती थी की सिवाय माथे के किसी और बाजू रंग-गुलाल लीपे-पोते।
महाराज,अपने तरफ की कहावत माफिक कि “तइहा के दिन बईहा लेगे’ (यानी पुराने अतीत को कोई पागल ले के चला गया) नेता जी के यहाँ, इस साल न तंबू गडा है,न डी जे वालो को कोई आर्डर गया है और न ही लंच डिनर मीठाई बनाने वाले बुलवाए गए हैं। उनके घर की कामवाली बाई कह रही थी,भूले-भटके मिलने-जुलने के नाम. आने वालों के लिए आधा किलो अबीर और दो तीन किली मिठाई मंगवा ली गई है बस।
और महाराज जी, ये भी खबर उड़ के आई है की नेता जी होली पर यहाँ रहे ही नहीं ,बहुत दिनों से काम से छुट्टी न मिली सो वे कहीं बाहर छुट्टियाँ बिता कर त्यौहार बाद लौटें ?
आप बताएं. होली शुभकामना वाले कार्ड पोस्ट कर दें या उनके वापस आने पर आप खुद मिलने जायंगे ?
सुशील यादव



पुरूस्कार व्यथा


पुरूस्कार व्यथा

धिक्कार है सुशील ! ,लेखक जमात, अपने -अपने पुरूस्कार लौटा रहे है तेरे पास लौटाने के लिए कुछ भी नहीं है ....?
तुमने क्या ख़ाक लिखा..... जो साहित्य-बिरादरी में स्थापित नहीं हुए ?
तेरे लिखे पर पुरुस्स्कार देने वालो की नजर ही नहीं गई ...?कम से कम ,एक अदद छोटे-मोटे पुरूस्कार मिलने की गुंजाइश तो पैदा हुई होती ......?साहित्य-बिरादरी के, घुंघराले-बालों में ‘जूं’ तक नहीं रेंगी ...?लगता है, मिडिल-क्लास वाली वेशभूषा ,रहन-सहन, ने तेरी गति, झोला लटकाए, टपोरी-राइटर से आगे बढ़ने न दिया, वरना ‘तोड़ती-पत्थर’ के टक्कर का साहित्य तू ने भी, मंनरेगा में काम करने वाली अधेड़ औरत पर लिखा था। ’कुकुरमुत्ता’ के काव्य सौन्दर्य बोध ने, तेरे लिखे में भी अपना घर बनाया था। कालिदास माफिक, मेघों को तूने जेठ-बैसाख की तपती दोपहरिया में लाकर, मोहल्ले-पडौस की, सुगढ़-कन्याओं को अपने बारे में सोचने पर मजबूर किया था। पंच-परमेश्वर जैसी धांसू न्याय-प्रियता, तेरे साहित्य के इर्द-गिर्द हुआ करती थी। आलोचक को, कुछ कहते नहीं बनता था। तुमने ‘गोरे लाल आवारा’ के छद्म नाम से सडक -छाप साहित्य लिखने में अपनी जवानी के कुछ साल नहीं बिताये होते तो साहित्य के आकाशदीप बन के छा गए होते। तुझे ऍन गरीबी की मार उस वक्त झेलनी पड़ी जब तेरी कलम से आग उगलने का समय था। तुमने नई-कविता ,नई-कहानी को, पचास सौ बरस पहले लिख कर मानो कूड़े-करकट के बीच फेक दिया ,लोगो की तब, नई-चीजों को समझने की समझ ही पैदा नहीं हुई थी।
पुरूस्कार देने वालों की ‘पलटन’ भी बेचारे बेबस थे। वे तुझे टंच करते और एक कोने, जिसे साहित्य में ‘हाशिया’ कहते हैं डाल देते।
तुझे गर पुरूस्कार मिला होता तो,यही आज आड़े वक्त में सम्मान पाने का एक और मौक़ा दे जाता है.... तू उससे खासा वंचित है ,शर्म कर....।
मुझे अपने आप को धिक्कारने का, ज्यादा मौक़ा नहीं मिला ,नत्थू सामने आ बैठा। मैं बिना वजह खुद को, अखबार समेटते हुए, दिखाने की चेष्टा में ,अखबार सेंटर-टेबल में रखते हुए उसे बैठने का इशारा किया।
नत्थू के आने के बाद, अखबार पढने की जरूरत, वैसे भी नहीं रहती।
वो ‘कालम बाई कालम’,तीन-चार अखबारों का निचोड़ , जिसे नुक्कड़ के ग्रामीण ‘चा- समोसा’ सेंटर में, आधी-चाय की कीमत चुका कर पढ़ा होता है ,मुझे हुबहू , पूरा, किस्से -कहानियों की तरह सुना डालता है।
अगर चश्मे को ‘रिचार्जे’ करवाने की कोई बात रहती, तो नत्थू बदौलत, मेरे काफी पैसे जो अखबार पढने में जाया होते, बचा करते।
नत्थू का खबर वाचन ,स्वत: की त्वरित टिप्पणियों पर, मेरी सविस्तार व्याख्या की अपेक्षा में सदैव रहता।
कभी वो कालिख-कांड में कालिख पोतने वाले ‘कुपात्रजन’ की, व्याख्या करने लेने के बाद ,कालिख पुतने वाले के प्रति, सहानुभूति का प्रदर्शन करने लगाता तो कभी दिल्ली बिहार की सैर बेटिकट घर बैठे करवा देता।
वो पहले कालिख-पोतने की घटना को शर्मनाक,प्रजातंत्र पर प्रहार ,अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कुठाराघात आदि-आदि बोल के, मेरी ओर यूँ देखता, जैसे रंग का डिब्बा मै हाथ में लिए खड़ा हूँ .....। फिर अपनी बात में बेलेंस बनाने के लिए दूसरे पक्ष की ओर मुड़ जाता।
इंन दिनों नत्थू को प्राय: असमंजस की स्थिति में देखता हूँ। उसने कहा ,गुरुजी ये पडौसी मुल्क वाले भी गजब करते हैं ,मूली अपने मुल्क में उगा कर, बेचने इधर आ जाते हैं ,हवा खराब हो जाती है।
उधर हमारे जवान को बन्दूक की नोक में रखते हैं इधर लेखक-गवयै भेज कर सांस्कृतिक -चोचले की मरहम-पट्टी की बात करते हैं। अपना मुल्क ये सब सहेगा भला .....?
बिहार-चुनाव ,में क्या हो रहा है जानिये .....!जिनने महागठ्बन्धन का ठेका लिया था वो सीट बटवारे के फले दौर से ही उखड गया। वहां केम्पेन के दौरान चारा-किंग ,आरक्षण ,नरभक्षी ,विकास, बीमारू-राज,सरकारी-अनुदान, महादान ,जैसे जुमलों के बीच अचानक ‘धार्मिक पवित्र नानवेज’ जैसे मुद्दे उछल गए।
अपने तरफ एक लोकोक्ति है
“बाम्हन बाम्हन जात के, कुकरी पूजे रात के
कुकरी सिरा गे ,बाम्हन रसा गे “
ये नानवेज का मामला बस ऐसे ही दिखता है ,बाम्हन जो रात को मुर्गे को पका लेता है और किसी कारण उसे खाने से वंचित होना पड़ता है तो बाम्हन के ‘रिसा’ जाने से कोई नहीं रोक सकता।
अपना लोकतंत्र बाम्हन है। कब किस बात से रूठ जाए कह नहीं सकते। एक चिंगारी अगर जोरों से सुलग गई तो खतरा परमाणु विस्फोट के बराबर का होगा।
कुछ ने इस ‘नानवेज’ मसले पर बढ़-चढ़ के बोला तो किसी ने एकदम दम-साध लिया, कि अपन को बोलना ही नहीं है। उनके न बोलने के कई मतलब थे ,बड़ा मतलब सामने चुनाव से ताल्लुक रखे था।
जनता कहती है ,वे बड़-बोले हैं मगर लगाम कहाँ लगाना है, बखूबी जानते हैं।
नत्थू,देशव्यापी चर्चा को आगे बढाने के मूड में दिख रहा था।
मुझे बातों का गेयर बदलना अच्छे से आता है सो मैंने कहा ,नत्थू मैं लेखकों के सम्मान बाबत सोच रहा था। आये दिन पढ़ रहे हैं आज इस साहित्यकार ने अपना पुरूस्कार लौटाया कल उसने ...सिलसिला थम नहीं रहा है ?
राजनीतिग्य तबके में इसे आडंबर ,उथली वाह-वाही पाने का नाटक करार दिया जा रहा है। मैं सोचता हूँ उनके साथ नाइंसाफी है। वे किस विरोध में हैं पहले वो तो जानो .....?
सत्ता काबिजों को लगता है कि पिछली सरकार के ये ‘ढिंढोरची’ हैं। मगर एक पहलू ये है कि लेखक कितनी मेहनत के बाद ये सम्मान का हक़ पाता है उसे उसके सिवा कोई नहीं जानता। वह किसी उथले कारणों से अपने सम्मान को त्याग नहीं देगा ....?समझो वे अपनी जीवन भर की पूंजी को तज रहा है। सत्ता काबिजों को ये महज मखौल लगता है। तरह-तरह के तंज किये जा रहे हैं ,मशवरे दिए जा रहे हैं। उनका मानना है ,पानी सर से ऊपर अभी नहीं हुआ जा रहा है ......?
नत्थू ! आज बड़ी इच्छा हो रही है ,मै भी अपना सम्मान-पुरस्कार लौटा दूँ। इस अदने लेखक को, लिखने के शुरुआती दिनों में , किसी गाव के ‘सरपंच’ ने ,उसकी चाटुकारिता में लिखे चार-लाइन की बदौलत शाल-श्रीफल और एक सिक्के से नवाजा था।
नत्थू अब वो बुजुर्ग तो इस जहाँ से कूच कर गए हो .....?,पंचायत में ये जमा करवा देना और हाँ, अपने ‘हरिभूमि’ वाले पत्रकार बाबू को ये खबर जरुर कर देना।



हम आपके ‘डील’ में रहते हैं....


हम आपके ‘डील’ में रहते हैं....

सूर्य-पुत्र कर्ण के बाद, आपने दूसरा दानी देखा है ....?
वे एक लाख पच्चीस हजार करोड़ ,दान में दे आये ....|
बिना योजना के, बिना प्लानिग के, बिना आगा पीछा देखे, दान देने वाले बहुत कम लोग इस धरती पर अवतार लेते हैं |
एक गरीब राज्य की भूमिका बांधी गई, और उस भूमिका में, देने वाले को बहाना मिल गया |
हम लोग स्टेशन में किसी भिखारी को आते देख मुह फिरा लेते हैं| कहीं कुछ देना न पड जाए के भाव हमारे दिल में बरबस उतर आता है, और वे हैं कि, बुला के देते हैं ,बोलो कितना चाहिए ,दस ,बीस ,पचास ,सौ ....फिर  नोट की पूरी गडडी पकड़ा देते हैं ....|लेने वाला एक बार भौचक्क हो के मुह निहारता है .कहीं पगला तो नही गया .....?
अरे भाई  वे पगलाए नहीं हैं, बस खुश हैं .....|बीबी के अनिश्चित काल के लिए मायके जाने को सेलीब्रेट कर रहे हैं |ये उनके खुश होने का स्टाइल है..... भला आप क्या कर लेंगे ....?
किसी को अगर एक सौ पच्चीस लाख करोड़ को डीजीटली लिखने को कहा जाए तो बन्दा  फेल हो जाएगा ,अंदाजन ये रकम १२५,०००,०००००००००० जितनी होगी ....आकडे गलत हो तो पाठक सुधार के पढ़ लें, काहे कि इतनी बड़ी रकम अपनी  नजर से  कभी गुजरी नहीं और न ही कभी गुजरेगी ?
दुबारा इतनी रकम के नहीं दिखने की वजह पूछो तो बताये ......?
वो ये है कि वहां उनके पुराने प्रतिद्वंदी खेमे का राज है जिन्होंने पांच करोड़ के दान को लौटा दिया था |उनके जी में आया ,पांच ठुकराने वाले ,ले एक सौ  पच्चीस लाख करोड़ ले .....?जी भर के कुलाचे मार .....फिर न कहना कि देने वाले ने कजुसी की ...
इस रकम को  आप दिल्ली से बिहार तक  हाथ ठेले से, चुनावी रैली की शक्ल में भिजवायें तो ,इलेक्शन के खत्म होते तक का समय, जरुर लगेगा |याद रहे, यहाँ स्कुल में पढाये जाने वाले काम ,घंटा, समय, मजदूरी को केल्कुलेट करने के लिए इकानामिस्टों और गणितज्ञो की सलाह लेनी पड़ेगी|सेक्युरिटी का जबरदस्त बन्दोबस्त, बिहार होने के नाते करना पड़ेगा | खाली, इस रकम को भिजवाने में ही गरीबों,इकानामिस्टों,गणित ज्ञाताओ,सिक्युरिटी जवानो और चेनल के रिपोर्टर को अच्छा खासा ‘मंनरेगा जाब’ मुहय्या हो जाएगा |
एक अच्छे शासक की तूती, इतने जोरो से बोलेगी कि पार्टी फंड से,इलेक्शन जीतने के बाबत  एक पैसा खर्च करने की नौबत ही न आये|
अपोजीशन को यह एक सीख है, देखो तुम खजाना लुटाना नहीं जानते |सात पुस्तों तक बैठे-बैठे खाएं, इस हिसाब से जोड़े रहते हो, कौन आके खायेगा ....?
इस्तेमाल करो ....का वर्षा जब कृषि सुखानी ......?
उधर मुझे रकम पाने वालो की भी फिक्र है|वे इतनी बड़ी रकम रखेंगे कहाँ ....?
देने वाला एक दिन  हिसाब लेने आयेगा ....बताओ क्या किये ....?
तुम हमे वो  पुल दिखाओगे ,ब्रिज दिखाओगे ,सरकारी इमारत दिखाओ जिसे कहते हो कि भेजे  हुए पैसो से नया बनवाया है......?आप जोड़ घटा के भी खर्च न कर पाए....?रकम ज्यो की त्यों ९० परसेंट बची है ....?
 तुम जनता में बुला बुला के सायकल ,लेपटाप ,लालटेन ,साडी ,घड़ी ,फ्री मोबाइल ,रिचार्ज ,फ्री वाईफाई बाटने का दावा करोगे .....?रकम फिर भी ८० परसेंट बची है .....|इतना किया तो भी ठीक ....जनता का पैसा ,जनता की जेब में गिरे,हमें कोई तकलीफ नहीं ....|
बाकी बचे  पैसों के लिए, अभी मारकाट मचेगी|
हम आपके ‘डील’ में रहते हैं, के दावा करने वाले, सीधे दलाल स्ट्रीट से बोरिया बिस्तर समेट कर, बंटती हुई रेवड़ी हथियाने के चक्कर में दौड़ लगायेंगे |
यूँ लगता है ,वहां के लोग तो रेलवे रिजेवेशंन काउंटर की लाइन में, अब तक लग के धक्का मुक्की कर रहे होगे ?क्या दिल्ली ,क्या मुंबई, चेन्नई कलकात्ता ...सब जगह के बिहारी बन्धु जो  खाने कमाने निकले रहे  वापस बिहार  लौटने की तैयारी में होंगे|
अच्छे दिन बाले भइय्या ने अच्छे दिन की शुरुआत बिहार से कर दी है,ये डुगडुगी ज़रा जोर से पिटवाओ |मगर इस बात की ताकीद जरुर कर लो कि रकम का भुगतान अवश्य होवे, वरना किसी ‘जुमले’ का बहाना लेकर, देने वाले की नीयत देर सबेर कब बदल  जाए कह नहीं सकते |
इस रकम पर माफिया सरगनाओं की नजर भी टिकी रहेगी |
एक सौ पच्चीस करोड़ में पाए जाने वाले आर्यभट्टिय-जीरो को, जब तक वे, पीछे की तरफ से कुतर  न लेवे, उनकी भूख शांत नहीं होने की ..... |
उनके बिजनेस में बहुत मंदी आ गई थी|जिसे किडनेप करो, एक रोना रोता था....... भाई बाप  .सारा नम्बर दो का पैसा तो विदेशों में पडा है, लाने को मिल नहीं रहा तुम्हे क्या दें ...?हाँ ये एकाउंट नम्बर है ,वहां जा के सेफली, कुछ ला सको तो अपनी फिरौती काट  के बाकी नगद हमें पकड़ा दो आपका एहसान रहेगा |उस डूबे पैसों से भागते भूत को लंगोटी और हमें पजामा जैसा , कुछ तो मिलेगा |
माफिया सरगना लोग केवल किडनेपिंग-फिरौती के बल ज़िंदा नहीं रहते |इसके  अलावा, उनके दीगर ब्रांच, मसलन सरकारी ठेका उठाने  या ठेका पाए ठेकेदारों  को उठाने धमकाने का भी होता है |अब इतनी बड़ी रकम आ रही है तो काम के बड़े-बड़े दरवाजे खुलेंगे |छोटी-मोटी खिडकियों की धूल साफ करने के दिन बिदा होते दिख रहे हैं |
बिहार के कुत्ते भी उचक-उचक के एक दूसरे की बधाईयाँ दे रहे हैं|एक ने पूछा आदमी खुश हो रहे हैं ये तो समझ में आता है भाई ,तुम लोग क्यों जश्न मना रहे हो.....?एक मरियल सा कुत्ता, पूछने वाले की नादानी पर कहता है ,साफ है ,बिहार में बिजली की कमी थी ,नए प्रोजेक्ट में बिजली के तार खिचे जायेंगे ,तार खीचने के लिए खंभे गड़ेंगे ...और खंभों से हमारी एक नम्बर वाली सुलभ शौचालय की समस्या  दूर होगी कि नहीं...... ?
सबने अपने-अपने जुगाड़ ढूढने शुरू कर दिए |चलो थोड़ा आम-आदमी से भी  पूछ लें ....
क्यों भाई आम आदमी ......भाषण-वाषण सुने बा .....?
आम-आदमी में आजकल सियासी-खुजली भी पाई जाने लगी  है |छूटते ही कह देता है ,ये सब चुनावी चोचले हैं ....साहब .|अपने दुश्मन नंबर एक को पटखनी देने के सियासी दावपेंच खेले जा रहे हैं बिहार को बीमारू कह-कह के वे चारागर बने फिरते हैं, नब्ज टटोल रहे हैं .......ये हम सब नइ जानते का  .....?वे लाठी इतनी जोर से भांजना सीख गए हैं कि अगले की कमर ही तोड़ के रख दो ,जिन्दगी भर उठने न पाए.....|ये  जनता को बिकाऊ समझने वाले लोग  ,प्रलोभन का मायाजाल बिछा के,हमारा  रेड कारपेट वेलकम करने की, तकनीक विदेशों से सीख-सीख आये हैं |
देक्खते हैं... कब मिलता है...कितना मिलता है ,.कहाँ और कैसे जाता है, इतना पैसा ......?            
     
सुशील यादव






अधर्मी लोगों का धर्म-संकट

अधर्मी लोगों का धर्म-संकट    

                                    व्यंग,.......   सुशील यादव ......
  धर्म-संकट की घड़ी बहुत ही सात्विक, धार्मिक,अहिसावादी और कभी-कभी समाजवादी लोगों को आये-दिन आते रहती है |धर्म-संकट में घिरते हुए मैंने बहुतों को करीब से देखा है |
यूँ तो मैंने अपने घर में केवल बोर्ड भर नहीं लगवा रखा है कि, यहाँ धर्म-संकट में फंसे लोगों को उनके संकट से छुटकारा दिलवाया जाता है,पर काम मै यही करने की कोशश करता हूँ |’
बिना-हवन , पूजा-पाठ,दान-दक्षिणा के, संकट का निवारण-कर्ता इस शहर में ही नही वरन पूरे राज्य में अकेला हूँ,ये दावा करने की कभी हिम्मत नहीं हुई |  अगर दावा करते हुए , ये बोर्ड लगवा देता तो शहर के करीब ९० प्रतिशत धूर्त, ढ़ोगेबाज, साधू, महात्माओं की दूकान सिमट गई होती |
मेरे जानकार लोग आ कर राय-मशवरा कर लेते हैं |
शर्मा जी ने कुत्ता पाला ,प्यार से उस दबंग का नाम ‘सल्लू’ रखा |दबंगई से उसका वास्ता जरुर था , मगर कोई कहे कि सलमान से भी तुलना किये जाने के काबिल था तो शर्मा जी बगल झांकते हुए सरमा जाते |
  रोजाना उसे तंदरुस्ती और सेहत के नाम पर अंडा, दूध, मांस, मटन मुहय्या करवाते |उपरी आमदनी का दसवां, सत्कर्म में लगाने की सीख,टी व्ही देख देख के स्वत: हो गया था ,इस मजबूरी के चलते किसी ने उसे सलाह डी कि एरे गैरों पर लुटाने में बाद में वे लोग ज्यादा की इच्छा रखते हैं और खून –मर्डर तक करने से नहीं चूकते |बेहतर हो कि आप कोई मूक बेजुबान मगर गुराने भौकने वाल जीव कुत्ता पाल लो |इमानदारी- वफादारी के गुणों से ये लबरेज पाए जाते हैं |बी पी टेंशन को रिलीज करने के ये कारक भी होते हैं यी दावा विदेशों के खोजकर्ताओं  ने अपनी रिपूर्त में दिए हैं |इतनी समझाइश के बाद शर्मा जी की मजबूरी बन गई, वे पालने की नीयत से सल्लू को खरीद लाये |कुत्ता ,डागी फिर सल्लू बनते बनते आज फेमली मेम्बर के ओहदे पर सेवारत है |
एक वे बाम्हन उपर से सल्लू की डाईट, उनके सामने धर्म-संकट ...?
ये तो इस संकट की महज शुरुआत थी,उनकी पत्नी का कुत्ता-नस्ल से परहेज डबल मार करता था |
शुरू- शुरू में निर्णय हुआ कि डागी के तफरी का दायरा अपने आँगन और लान तक सीमित रहेगा | मगर दागी कह देने मात्र से  कुत्ते-लोग नस्ल विरासत को त्यागते  नहीं| सूघने के माहिर होते हैं| उसे पता चल गया कि, मालिक उपरी-कमाई वाले हैं, सो वो  पूरे दस कमरों के मकान की तलाशी एंटी-करप्शन स्क्वाड भाति कर लेता |शर्मा जी को तसल्ली इस बात की थी कि हाथ-बिचारने वाले महराज ने आसन्न-संकट की जो रूपरेखा खीची थी, उसमे यह बताया था कि जल्द ही छापा दल की कार्यवाही होगी| वे सल्लू की सुन्घियाने की प्रवित्ति को उसी से जोड़ के देखते थे |वो जिस कमरे में जाकर भौकने या मुह बिद्काने का भाव जागृत करता,फेमली मेंबर तत्क्षण , उस कमरे से नगद या ज्वेलरी को बिना देरी किये   हटा लेते |शर्मा जी, शाम को आफिस से लौटते हुए,फेमली गुरु-महाराज से कुत्ता–फलित-ज्योतिष की व्याख्या, सल्लू की एक-एक गतिविधियों का उल्लेख कर, पा लेते |महाराज के बताये तोड़ के अनुसार दान-दक्षिणा ,मंदिर-देवालय, आने-जाने का कार्यक्रम फिक्स होता |पत्नी का इस काम में भरपूर सहयोग पाकर वे धन्य हो जाते| वे अपने क्लाइंट को महाराज के बताये शुभ-क्षणों में ही मेल-मुलाक़ात करने और लेन-देन  का आग्रह करते|
शर्मा जी आवास के थोड़े से आगे की मोड़ पर उनके मातहत श्रीवास्तव जी का मकान है |शर्मा जी  नौकर के हाथो दिशा-मैदान या सुलभ-सुविधा के तहत सल्लू को भेजते |नौकर अपनी कामचोरी की वजह से अक्सर श्रीवास्तव जी की लाइन में सल्लू को, सड़क किनारे निपटवा देते|श्रीवास्तव जी बहुत  कोफ्ताते ,वे दबी जुबान नौकर को कभी-कभार आगे की गली जाने की सलाह देते| वह मुहफट तपाक से कह देता कि सल्लू को गन्दी और केवल गंदी  जगह में निपटने की आदत है| इस कालोनी में इससे अच्छी गन्दी जगह कहीं  नहीं है |सल्लू भी इस बात की हामी में गुर्रा देता |श्रीवास्तव जी भीतर हो लेते |किसी-किसी दिन नौकर के मार्फत बात, बॉस के कानो तक पहुचती तो वे आफिस में अलग गुर्राते |बाद में कंसोल भी करते कि,देखिये  श्रीवास्तव जी आप तो  जानवर नहीं हैं ना .....मुनिस्पल वालों को सफाई के लिए इनवाईट क्यों नहीं करते |श्रीवास्तव जी का ‘सल्लू’ को लेकर धर्म-संकट में होना दबी-जुबान, स्टाफ में चर्चा का अतिरिक्त विषय था |
“सल्लू साला बाहर की चीज खाता भी तो नहीं”,ये श्रीवास्तव जी के लिए, जले पे नमक बरोबर था ....?
 सल्लू की वजह से शर्मा जी,दूर-दराज शहर की, रिश्तेदारी,शादी-ब्याह,मरनी-हरनी में जा नहीं पाते |कहते कि सल्लू अकेले बोर हो जाएगा |
सबेरे के वाक् में सल्लू और शर्मा जी की जोडी, चेन-पट्टे में एक-दूसरे को बराबर ताकत से  खीचते, नजर आती थी|
पता नहीं चलता था, कौन किसके कमाड में है ?
 जब किसी पर ‘सल्लू’  गुर्राता, तो लोगों को शर्मा जी बाकायदा आश्वस्त करते, घबराइये मत ये काटता नहीं है |
वही शर्मा जी, एक दिन अचानक मायूस शक्ल लिए मिल गए ,मैंने पूछा क्या शर्मा जी क्या बला आन पड़ी, चहरे से रौनक-शौनक नदारद है ....?
वे दुविधा यानी धर्म-संकट में दिखे. ..|बोलूं या ना बोलूं जैसे भाव आ-जारहे थे | मुझे बात ताड़ते देर नहीं हुई....यार खुल के कहो प्राब्लम क्या है ....?
वे कहने लगे बुढापा प्राब्लम है ...|मैंने कहा अभी तो आपके रिटायरमेंट के तीन साल बचे हैं |किस बुढापे की बात कह रहे हो ? हम रिटायर्ड लोग कहें तो बात भी जंचती है| तुमको पांच साल पहले, कुर्सी सौप के सेवा से  निवृत हुए थे |
सर बुढापा मेरा नहीं, हमारे डागी का आया है |हमारा सल्लू १४-१५ साल का हो गया| सन २००२ में नवम्बर में उसको लाये थे, तब तीन महीने का था |हमारे परिवार का तब से अहम् हिस्सा बन गया है  |अब बीमार सा रहता है |कुछ खाने-पीने का होश नहीं रहता |पैर में फाजिल हो गया है चलने-फिरने में तकलीफ सी रहती है |शहर के तमाम वेटनरी डाक्टर को दिखा  आये |जिसने जैसा सुझाया, सब इलाज करा के देख लिए ,पैसा पानी की तरह बहाया |फ़ायदा नहीं दिखा |
मुझे उसके कथन से यूँ लग रहा था जैसे  ,किसी सगे को केंसर हो गया हो| बस दिन गिनने की देर है |उन्होंने अपना धर्म-संकट एक साँस में कह दिया | सल्लू के खाए बिन हमारे घर के लोग खाना नहीं खाते |आजकल वो नानवेज छूता नहीं |उसी की वजह से हम लोग धीरे-धीरे  नान वेज खाने लग गए थे| अब हालत ये है कि मुर्गा-मटन  हप्तो से नहीं बना |
एक तरह से,वेज खाते-खाते  सभी फेमिली मेंबर, ‘वेट-लास’ के शिकार हो रहे हैं |पता नहीं कितने दिन जियेगा .बेचारा ....?मेरे सामने वफादारी का नया नमूना शर्मा जी के रूप में विद्यमान था |
वे थोड़ा गीता-ज्ञान की तरफ मुड़ने को हो रहे थे| मगर संक्षेप में रुधे-गले से इतना कहा  “ अपनों के, जिन्दगी की उलटी-गिनती जब शुरू हो जाती है तब जमाने की किसी चीज में जी नहीं रमता ....?”
“आप बताइये क्या करें” वाली स्तिथी, जो धर्म संकट के दौरान पैदा हो जाती है उनके माथे में पोस्टर माफिक चिपकी हुई लग रही थी  .....?
ऐसे मौको पर किसी कुत्ते को लेकर ,सांत्वना देने का मुझे तजुर्बा तो नहीं था, मगर लोगो के ‘कष्ट-हरता’ बनने की राह में मैंने कहा ,शर्मा जी ,कहना तो नहीं चाहिए ,”गीता की सार्थक बातें जो कदाचित मानव-जीव को लक्ष्य कर कही गई हो”, उनको सोच के, परमात्मा से ‘सल्लू’ के लिए बस दुआ ही  माग सकते हैं |
मैंने शर्मा जी को उनके स्वत: के गिरते-स्वास्थ के प्रति चेताया | पत्नी को आवाज देकर ,शर्मा जी के लिए ,कुछ हेवी-नाश्ता  सामने रखने को कहा |नाश्ता रखे जाने पर शर्मा जी से  आग्रह किया, कुछ खा लें | वे दो-एक टुकड़ा उठा कर चल दिए |
महीने भर बाद , शापिग माल में ‘वेट-गेन’ किये,  शर्मा  जी को सपत्नीक देखना सुखद आश्चर्य था|वे फ्रोजन चिकन खरीद रहे थे| मुझे लगा वे धर्म-संकट से मुक्त हो गए हैं, शायद ‘सल्लू’ की तेरहीं भी कर डाली हो |
मै बिना उनको पता लगे,खुद को मातमपुर्सी वाले धर्म-संकट से निजात दिलाने की नीयत से .शापिंग माल से बिना कुछ खरीददारी किये,
 बाहर निकल आया |
सुशील यादव


साधू न ही सर्वत्र ....



साधू न ही सर्वत्र ....

जैसे हर पहाड़ में माणिक, हरेक गज के मस्तक मोती, हर जंगल में चन्दन का पेड़ नहीं मिलता, वैसे ही हर कहीं साधू मिल जाए, संभव नहीं है |
वे जो साधू होने का स्वांग रचते हैं, विशुद्ध बनिए या याचक के बीच के जीव होते हैं |साधू का अपना घर-बार नहीं होता|घर नहीं होता इसलिए वे कहीं भी, रमता-जोगी के रोल में पाए जाते हैं |’बार’ नहीं होता इसलिए वे पीने की, अपनी खुद की व्यवस्था पर डिपेंड रहते  हैं|
टुच्चे साधू, कभी-कभी ,जजमान की कन्याओं को ‘बार-बाला’ दृष्टि से देहने की हिमाकत कर लेते हैं |अपनी निगाह में उनको  चढाये-बिठाए रखने की  लोलुपता में नहीं करने लायक कृत्य कर बैठते हैं |
साधू का राजनीति-करण हो जाए, तो बल्ले-बल्ले हो जाता है | शराब-माफिया ,ठेका-परमिट के  खेल से पैसा पीटते इन्हें  देर नहीं लगती|रातों-रात आश्रम की जमीन में भव्य-महल खडा हो जाता है |लग्जरी-कारों का काफिला .नेशनल परमिट की बसे. आश्रम के पास की नजूल जमीनों में खड़ी होने लगती हैं |
देने-वाला जब भी देता, पूरा छप्पर फाड़ के देता, वाली कहावत का  पीटने वाला डंका इनके हत्थे  लग जाता है |
सर्वत्र नहीं मिलाने वाले, साधू की तलाश में मै बरसों से हूँ |
जंगलों में ,पहाड़ों पर ,गुफाओं में सैकड़ो लीटर पेट्रोल फुक कर ढूढ़ डाला |जबरदस्ती, कई साधुनुमा चेहरों के सामने हथेली रख कर भविष्य पढवाया| वे लोग आम तौर पर एक कामन वाक्य बोलते रहे, बच्चा तू सबका भला करता है मगर तेरा भला सोचने वाला कोई नहीं है|तेरे मन में ऊपर वाले के प्रति बहुत आस्था है |तू खाते पीते घर का चिराग है |मुझे लगता ,मेरे कपडे व गाडी को देख के वे सहज अनुमान में कह देते रहे होंगे | तेरे पार धन वैभव की कोई कमी नहीं तू हर किसी के मदद के लिए अपने आसपास की जगह में जाना जाता है |मै उनसे कहता ,बाबा मै एक सच्चे साधू की तलाश में भटक रहा हूँ मेरी कोई मदद करो .....?वे कहते अब तू हमारी शरण में आ गया तेरी तलाश पूरी हुई भक्त जन |
मुझे कभी लगता था कि एकाध साधू ,किसी दिन मुझे हातिमताई- नुमा आदमी समझ कर निर्देशित करेगा कि बच्चा यहाँ से हजारों मील दूर, सात समुन्दर पार, एक ‘मुल्क ऐ अदम’ है ,वहां हजारों साल से एक योगी ध्यान लगाए बैठा है जो भी उसके पास फटकता है वह अपनी तीसरी आँख से जान लेता है और या तो उसे भस्म कर देता है या उससे  रीझ कर, खुश हो कर, इस संसार के सभी एशो आराम से नवाज देता है...... |
इस अज्ञात साधू के वचन से एक साथ दो छवियाँ मेरे  सामने हटात  उभरती है ,एक ओसामा दूसरा बगदादी .....|दोनों पहुचे साधू जमात के बिरादरी वाले लगते हैं |इनकी ध्यान मुद्रा में खलल डालने का मतलब है खुद को भस्म हो जाने के लिए पेश कर देना |और इनके कृपापात्र बनने का, भगनान न करे कोई नौबत आये ....चाहे  लाख सुख आराम वाले घर मिले या , एयर-कंडीशन शौचालय में, कल्पना की उड़ान का अपशिष्ट, त्याग करने की व्यापक  सुविधा हो|
वैसे दोनों संत  समुंदर-पार हजारों मील दूर रहते हैं |
मै ‘कल्पना-बाबा’ से देशी-उपाय, बाबत आग्रह करता हूँ |कोई देशी- टाइप साधू जिसकी पहुच,आत्मा-परमात्मा तक भले न हो कम से कम परलोक सुधारने का नुस्खा या टिप ही दे दे |
‘कल्पना बाबा’ ने गूगल स्रोत पर विश्वास किया और आजमाया |बहुत खोज-ढूढ़ के बाद एक, त्रिगुण नाथ शास्त्री नामक गेरुआ वस्त्र धारी का संक्षिप्त परिचय मिला,
वे तीन गुणों के कारक कहे-समझे जाते थे पहला गुण वे निरामिष, निराहार ज्यूस पर टिके होने का दवा करते थे |दूसरा लगातार पांच इलेक्शन लाखों-मत के अंतर से जीतते रहे |वे अनेकों बार मंत्रिपद ठुकरा चुके थे |उनके पास आदमी को पढने की दिव्य शक्ति थी |
ऐसे दिव्य पुरुष के नजदीक फटकने  का कोई सीधा-सरल उपाय सूझते न देख, हमने पत्रकार वाला चोला पहना |इस देश में यही एक सुविधा है कि, जब चाहे आप अपनी सुविधा के अनुसार अपना डील-डौल ,हील-हवाले चुन -बदल सकते हो |
मै एक माइक लिए उनके सामने था |
शास्त्री जी ,आप गृहस्थ-साधू के रूप में जाने जाते हैं ,आपमें आदमी को पढने की दिव्य शक्ति है ,आप इलेक्सन कभी नहीं हारते .....इन सब का कारण क्या है .....?
देखिये श्रीमान ...! आपने बहुत सारे प्रश्नों को एक साथ रख दिया है ,मै एक-एक कर के उत्तर देने का प्रयास करूंगा  ...
जहाँ तक ‘आदमी को पढने’ की बात है, मै ज्यादा तो कुछ दावा नहीं करता बस मीडिया वाले यूँ ही उछाले बैठे हैं ,वैसे आपको सामने पा कर लगता है कि आप बहुत दिनों से किसी ‘ख़ास-आदमी’ की तलाश में भटक रहे हैं |मेरा मनोविज्ञान कहता है की आपको इस मोह-माया वाले संसार से कुछ लेने-देने का मोह भंग हो गया है |जिस व्यक्ति या वस्तु  की आप बरसों से तलाश कर रहे हैं, उसे विलुप्त हुए तो सदियाँ बीत गई |इस मायावी संसार में ,भगवान पर सच्ची आस्था रखने वालों की अचानक कमी हो गई है, बस मजीरा-घंटी पीटने-हिलाने वाले, कुछ लोग बच गए हैं |मेरा इशारा तुम समझ गए होगे .....?
मै चकित हुआ, चकराया ! एकबारगी लगा  क्या घाघ आदमी है, मगर दुसरे ही पल अपने गलत सिचार को विराम दे, उनके प्रति श्रधा के कई  सुमन अपने आप खिल आये |
वे आगे कहने लगे ,जहाँ तक इलेक्शन जीतने का सवाल है ,मै अपने इलेक्शन-सभाओं  में  विरोधियों की जमकर तारीफ करता हूँ ,इनकी एक -एक खूबियों को जनता को गिनवाता हूँ, उनसे आग्रह करता हूँ कि, मुझसे सक्षम उम्मीदवार, वे लोग ही हैं| कृपया आप उनको चुन-कर .जिता लाइए| वे आपका भला करंगे |अकारण सारे वोट मुझ पर आ गिरते हैं |
आज नाली-सडक बनवा देने मात्र से जनता खुश होने वाली नहीं उन्हें मानसिक सुकून की तलाश है, जो गुंडा-मवाली किस्म का कैंडिडेट नहीं दे सकता इसलिए उनका झुकाव मेरी तरफ आप ही आप  हो जाता है|
रही बात, मेरे गृहस्थ-साधु-रूपी छवि की, तो बतला दूं मै सेवागाम में पहले, अपने पिता जी के साथ सेवा-टहल में लगा रहता था |वहां के संस्कारों की अमित छवि है | आचार्य जी का, रहना, उठाना, बैठना पास से देखा है, सो वही दिलो दिमाग में काबिज है |
मुझे लगा मेरी तलाश लगभग ख़त्म हो चुकी है ,एक सच्चा साधू जरूरी नहीं कि वन-कंदराओं  में  भटकता फिरे ....उससे ,वो ज्यादा सच्चा है जो दुनियादारी में फंसकर भी बेदाग़ निष्कलंक रहे |
सुशील यादव

सवाल जो मुझसे नहीं पूछे गए .....

सवाल जो मुझसे नहीं पूछे गए .....

अच्छा हुआ ! मुझे किसी ने कोई पुरूस्कार से नहीं नवाजा ....|पुरूस्कार मिलता तो उस कहावत माफिक चोट लगती ,”बेटा न हो तो एक दुःख ,हो के मर जाए तो सौ दुख,और हो के निक्कमा,नकारा निकल जाए तो दुखों का अंबार नहीं” |
अपन इस आखिरी वाले बेटे की सोचें ,यदि पुरूस्कार मिला होता तो आज की परिस्तितियों में उसे वापस लौटाने की नैतिक या सामाजिक दायित्व के बोध से आत्मा में धिक्कार पैदा होती ....... लौटा ! .....लौटा ....! इस दुनिया में क्या ले के आया था ,नश्वर जहाँ से क्या ले के जाएगा .......जो सम्मान तुझे मिला था, वो तेरे अतीत के अनुभव का निचोड़ था ,आज वर्तमान में चारों ओर धर्म कुचला जा रहा है, विचारवानो की वाणी में ताले-जड़ने का उपक्रम हो रहा है ,समाज के कुलीन चेहरों पर कालिख मली जा रही है और तू है, कि तोले भर के सिक्के-नुमा पदक को  टाँगे फिर रहा है ....जिस दस बाई पन्द्रह के कांच वाले  फ्रेम में तेरे किये के, कशीदे कहे गए हैं उसमे अपनी पत्नी का फोटो जड़ दे |दीवार को साफ सुथरा रख ,आने-जाने वाले को जिस शान से उस फेम को पढवाता था उसके दिन लद गए |
    तकाजा है,जब-तक पुरूस्कार के तमगे को गले से उतार नहीं देता, गले में कुछ फांसी-जैसा चुभता महसूस  करता रहेगा |
अक्सर मुझे ये ख़्वाब आता है कि ‘अमुक जी’ के घर पत्रकार का छापा दल, टी वी वेन के साथ आ धमका  है  |
सी आई डी के खुरापाती ‘दया’ की लात से अमुक जी का कमजोर फाटक  धराशायी हुआ पडा है |अमुक जी दुबके से, सहमे हुए कोने में कंपकपा रहे हैं |अमुक जी के साथ ,सवालों की बौछार का, लाइव टेलीकास्ट किया जाने वाला  है |
“ये हैं अपने शहर के मशहूर साहित्यकार, अमुक जी ,इन्होने साहित्य जमात  में वही  मुकाम हासिल किया है, जो मुकाम शोले के भारी भरकम लेखको ने मिलकर हासिल किया था ,जी हाँ आप सलीम-जावेद का नाम कैसे भूल सकते हैं |उनकी लिखी कई पटकथाएं पुरूस्कार पाने के रिकार्ड तोड़ डाली हैं |हमारे अमुक जी इनसे कुछ मम नहीं ,इनको इतने पुरुस्कारों के बावजूद, आज आप जिस हाल में देख रहे हैं वो इनके पब्लिशर की देन है|वे इनकी रायल्टी नहीं चुकाते |कुछ इनकी रचनाओं के पूरे अधिकार मात्र चंद रुपयों में खरीदकर, भारी मुनाफा कमाए बैठे हैं |देखिये ,....हमारे अमुक जी के कमरे का पूरा ‘टांड’ पुरुस्कारों-ट्राफियों से अटा पड़ा है |मै केमरामेन को कहूंगा ज़रा इस टांड पर ज़ूम करे|
कौतूहलवश अमुक जी के घर में पहुचा ,अमुक जी , मुझे देखकर अपनी घबराहट से निजात पाए हुए दिखे |उनका मेरी तरफ देखना बिलकुल वैसा ही था जैसे पुलिस किसी निरपराध को सीखचों के हवाले कर दे तब कोई परिचित का दिख जाना यूँ लगता है की जमानत का इन्तिजाम हुआ ही समझो ...? एंकर की पैतरेबाजी शुरू हुई
अमुक जी इतने पुरुस्कारों को इकट्ठा करने में आपको कितने साल लगे ......?
मुझे पहले प्रश्न से ही एतराज हुआ मैंने इशारा किया ,वे कैमरा को ‘पाश मोड़’ में रख के घूरे, .... ये बीच में टोकने वाला कहाँ से आया ....?
अमुक जी ने परिचय करवाया ,यादव जी ! ....अपने अभिन्न पडौसी एवं मेरी रचनाओं के पहले पाठक हुआ करते हैं, लिहाजा मेरी पूरी साहित्यिक यात्रा के ये हमसफर हैं, जान लो....?बेहतर है आप  मेरे से पूछे जाने वाले सवालों का जवाब इन्ही से ले लेवे ...|आप इंट्रो में ये खुलासा करके बता दीजिये कि मै देश दुर्दशा  पर  ‘मौन-व्रत’ धारण किये हुए  हूँ |बीच-बीच में मै हामी भरता रहूंगा..... आप मुझ पर फोकस कर सकते हैं |
वे अपनी टी आर पी को तुरंत भांप कर  केल्कुलेट कर लिए और मेरे मौन का एक इंट्रो फटाफट बना डाला ...|.तो ये हैं अमुक जी ,देश की वर्त्तमान व्यवस्था से छुब्ध साहित्यकार  .....अभी मौनव्रत धारे हैं| उन्होंने लिखित में बताया कि उनके सवालों के जवाब उनके पडौसी जो उनकी साहित्यिक यात्रा  के  निकटदृष्टा हैं ,देगे ....
हाँ तो यादव जी ,ये बताइये अमुक जी साहित्य सेवा में कब से आये ....?
मैंने कहा ,यही कोई आठ-दस  बरस की उम्र रही  होगी ....दरअसल जिस पाठशाला में हम लोग पढ़ा करते थे अमुक जी हमसे दो दर्जा आगे थे |तब पाठशालाओं में गणेशोत्स्व होता था |गुरुजी अपनी स्क्रिप्ट पर नाटक खिलवाते थे |अपने अमुक जी उनकी चार लाइनों पर एक दो अपनी घुसेड देते थे |अच्छी होने पर माट सा लोग, कुछ नही बोल पाते थे |प्रोत्सान मिलते गया |दसवीं  क्लास में उनको किसी समाजी संगठन द्वारा,अंतर-स्कूली,  निबन्ध प्रतियोगिता में दूसरा स्थान मिला |तब से वे निरंतर अनवरत साहित्यिक झुकाव वाले हो गए |शहर की काव्य गोष्ठियां ,कविसम्मेलन सब में छाए रहने लगे |
क्या उन्होंने आजीविका के लिए कोई नौकरी वगैरा की .....?
जहाँ तक मेरी जानकारी है, वे एक प्राइवेट  कालेज में लाइब्रेरी में ‘बुक लिफ्टर’ बतौर रख लिए गए |वहां उन्हें एक फ़ायदा यह हुआ कि लाइब्रेरी की तमाम साहित्यिक पुस्तको को पढ़ डाला |प्रमचंद ,मुक्तिबोध,निराला ,प्रसाद ,चतुरसेन शास्त्री ,विमलमित्र आदि नामी लेखको की छाप उनके मानस-पटल पर अंकित होते गई .....|
उनके लिखने के अंदाज में, दिनों-दिन निखार आते गया |तभी कालेज की लाइब्रेरी छात्र हिसा की शिकार हुई, और आग के हवाले कर दी गई|यूँ उनके आर्थिक पहलू का सहारा-समापन हो गया |उनके पास ऊँची कोई डिग्री नहीं थी लिहाजा अन्य काम न मिल पाया ,मगर उनके लिखने में कमी नहीं आई वे लिखते रहे और समान पुरूस्कार पाते रहे |स्तिथी यूँ भी हुई कि कभी कालिज का पढाई के नाम पर  मुह नहीं देखे,पर उनके लिखे को कोर्स बुक में रखा जाने लगा |
एंकर , क्या आज वे अपने सम्मान या मै कहूंगा सम्मानों को लौटाने का कदम ,जैसा की अन्य ख्यातिनाम साहित्यकार उठा रहे हैं,अमुक जी भी  उठाएंगे .....?
देखिये पुरूस्कार के नाम पर जो भी उनको देय राशि मिली थी, एक भी न बची |यहाँ गुजर-बसर के लाले पड़े रहते हैं |कभी-कभी, मै जब दौरे पर चल देता हूँ, तो कहना अच्छा नहीं होगा ,इनके खाने के भी  लाले पड जाते हैं|मैंने अमुक जी से इस बाबत बहुत ही अंतर्मुखी जीव पाया है ,वे खुल के अपने साहित्य के सिवा और कहीं मुखरित नहीं होते |मैंने प्रसंगवश    पिछले हप्ते,इसी बात की  चर्चा की थी| वे बोले थे , ये सब मेरे किस काम के हैं....? रद्दी में बेचूं तो भी हफ्ते भर का राशन नहीं आ पायेगा ,जिसे जहाँ लौटाना हो लौटा दो .मेरे पास  तो इन्हें ले जाकर कहीं देने या लौटाने के लिए ऑटो लायक पैसे भी नहीं ....देख लो ....
इत्तिफाकन आज आप लोग आ गए .....|मै अमुक जी का मुख्त्यार, आपको उन्ही के सामने, ये टांड भर, रखा पुरूस्कार वापस लौटाता हूँ ...अमुक जी ने अपनी सहमती में गर्दन झुला कर हामी कह दी |कैमरा ज़ूम हो के कभी अमुक जी की हामी में झूलती गर्दन दिखाता तो भी पुरुस्कारों से भरे हुए  टांड .की तरफ चल देता ....
मै चाहता था, एंकर मुझसे निजी तौर पर  पूछता ....आपने अमुक जी इतनी सेवा की ....आप अमुक जी की मुफलिसी को, साहित्य बिरादरी में प्रचारित करके, उनकी सहायता के  लिए कुछ किया क्यों नहीं ....?
मै ये कहने वाला होता कि अमुक जी अपने संकोच को, अपनी असुविधा को, अपनी फटेहाली को जीना बर्दाश्त कर लेते हैं वे सहायता के नाम पर असहाय हो के  मागते हुए दिखना नहीं चाहते ....?उनकी खुद्दारी है की अगर उसकी कलम में कभी ताकत रही होगी तो शासन उसे स्वयं आँक के मेरे पास आयेगा ...|
वे अक्सर ,मेरी अकिचंन से भेट या चढावे को , कभी संकोच या कभी उलाहना के साथ ग्रहण करते रहे हैं |
सर्दी में  ठिठुरते,गरमी में झुलसते ,बरसात में, चुहते हुए कोठारी में, इस कोने से उस कोने भीगते हुए उसे करीब से मैंने देखा है |कागज़ का कोई कोरा पुर्जा थमा दो वे अविस्मर्णीय कोई चीज लिख कर रख देते हैं|  
उनके जैसे बुद्दिजीवी का क्षरण,सहनशील आदमी का ह्रास या निरपेक्ष जीव का  तिल-तिल मौत के मुह की ओर  समाज के द्वारा  धकेला जाना,या उपेक्षित किया जाना  मुझसे कतई बर्दाश्त नहीं होता |                      
सुशील यादव


पत्नी की मिडिल क्लास ,’मंगल-परीक्षा’


पत्नी की मिडिल क्लास ,’मंगल-परीक्षा’

आफिस से लौट कर जूते-मोज़े,खोलते हुए बेटर-हाफ को आवाज लगाया ,सुनती हो ......?
ये नासपिटो (नासा के पिटे हुए) ने हमारा सलेक्शन मंगल-ग्रह  जाने के अभियान में कर लिया है |इसरो -बॉस ने हमें खुशखबरी सुनाते हुए मुबारकबाद दिया है ....|
      पहले तो बीबी गर्व से साराबोर हुई ....|फिर आर्ट-विषय से एम. ए. पास के भेजे में, भूगोल और साइंस की मिली-जुली खिचडी, पक कर, कूकर-वाली लंबी सीटी बजी, तो यकायक ख्याल आया ,ये मंगल-गढ़ की बोल रहे हैं क्या .....?
उनने फिर स-अवाक पूछा.... क्या कहा ,,,,,मंगल-ग्रह यानी अन्तरिक्ष वाला ......?  जाना है.....?
ये, अपने टीकमगढ़ से तो, करोडो मील की दूरी पर है, बतावे हैं ....?
हाँ ...करोड़ों मील दूर..... बिलकुल सही सुना है |लाखों की स्पीड वाला शटल भी, साल-भर में पहुचाता है |
तो बताओ आप  ही को, काहे भेज रहे हैं ,आपसे ज्यादा पढ़े-लिखे,होशियार  सक्सेना जी ,श्रीवास्तव जी को कहे नहीं भेज रहे .......?
मैंने कहा, पगली उन लोगों का फील्ड अलग है| वे लोग पर्चेस में हैं ,श्रीवास्तव जी एकाउंट सम्हालते हैं ,वे लोग क्या करेंगे .... क्या कहती  हो वो तुम्हारे  मंगल गढ़ में?
तो आप कौन से खेत में  मूली बोने जा रहे  हैं ....?नासा वालो को ,आप जैसे भुल्लकड की क्या  दरकार पड गई .?
हम वहां ‘एनालिस्ट’ हैं.....|.एनालिस्ट माने..... तुम्हे क्या समझाएं ...?.समझो हम लिक्विड-चीज में क्या- क्या, मिला-घुला है, इसकी जाँच करके बताते  हैं ?
आप क्या जाँच करते होगे.....हमें शक होता है कोई आपकी कहे को मानते भी होंगे ....? हम जो फिछले   दो माह से,दूधवाले को समझने समझाने की कह रहे हिन् उस पर तो जूं  नहीं रेंगती , दूधवाला निपट पानी जैसा दूध  दे के पूरे पैसे गिनवा ले जाता है |उसकी जाँच कभी आफिस में कर आते कि नहीं  .....?
खैर छोड़ो.... मंगल गढ़ में क्या जंचवाना है, नाश पीटो को......
मैंने कहा ,तुम टाइम निकाल के, टी वी में सास बहु सीरियल के अलावा और कुछ भी देख लिया करो| ....कई दिनों से वे  चिल्ला चिल्ला के बखान रहे हैं ....मंगल-ग्रह में पानी की खोज कर ली गई है|ये नासा वाले उसी पानी को,इस धरती में लाकर यहाँ जाँच-वाच करना चाहते हैं |वहां के पानी में, और यहाँ के पानी में क्या क्या समानता और असमानताये  हैं ?    
देखो उधर जा रहे हो तो, अपने घर के लिए भी एक ‘कुप्पी’ रख लेना |एक-एक चम्मच प्रसाद जैसे, मोहल्ले में और किटी वाली जतालाऊ औरतों में  बाट दूंगी....?
क्या मतलब ....?
वैसे ही,जैसे लोग ‘गंगा-जी’ जाते हैं, तो अडौस-पडौस वाले बाटल में अपने लिए गंगाजल की फरमाइश कर देते हैं  ....|
पगली !तुमने  नासा-इसरो वालों को घास छिलने वाले घसियारों की केटेगरी में समझ रखा है ....?बहुत हुआ तो हम चोरी-छिपे, पेन के इंक को, उधर फेक के  थोड़ा-बहुत तुम्हारे प्यार की खातिर ला सकेंगे ज्यादा की मत सोचना |आगे-पीछे सब देखना पड़ता है .... सी सी टी वी की जद में चौबीस घंटे रहना पड़ता है ,समझी .... |
लौकी,सेम-वेम के बीज तो, छोड़ के  आ सकते हो......मंगल में बसने वाली पीढियां अपने बच्चो को कहेगी कि ये लौकी जो देख रहे हो साकू के पापा सालों पहले अपने साथ लाये थे ...?
ना ...... वो भी नहीं....?फिर वहां  पानी मिलाने का क्या फ़ायदा
हमने समझा पानी मिल गया है तो फसलें  भी उगेगी |
आपके दीगर जरूरत की चीजों  का बंदोबस्त भी करना होगा ,आप तो एक चड्डी भी धो निचोड़ नही सकते पता नहीं उधर कैसे मेनेज करेंगे ....?कल से बैगेज तैय्यार करने में भिड़ती हूँ ...?कब जाना है ..आखिर ...?
चार छ: सेट ,कच्छा, बनियान, टाई,मोज़े सब नये लेने पड़ेंगे |घिसे-घिसे को चलाए जा रहे हैं ....?दो तीन जोडी शर्ट-पेंट भी कल माल से ले लेंगे| अभी उधर,  फिफ्टी पर्सेट आफ का आफर चल रहा है |
मैंने कहा आराम से ,.....वे लोग तैय्यारी के लिए हप्ते भर का टाइम देते हैं|
आपको मठरी-खुर्मी बहुत पसंद है ,कल से जितना ले जाना है ,बनाए देती हूँ ...|
मैंने जोर देकर कहा वे लोग ये सब कुछ अलाऊ नहीं करते....|सब दस्त बीन में दाल देंगे ....?और हाँ .... वहा बाहर कहीं किसी को कुछ दिखाने का नहीं, बरमुडा ही काफी रहता है |हाँ ठंडी बहुत रहती है ..मगर .वे लोग उसका भी इन्तिजाम कर रखे होते हैं तुम्हे चिंता करने की जरूरत नहीं |
वैसे डार्लिंग ! ये मेरा पहला टूर होगा जहाँ से तुम अपने लिए कुछ भी नहीं मंगवा  सकती .....?
आप बीबी लोगों को नहीं जानते ....हम कुछ भी मंगवा सकती हैं ...|.कम से कम एकाध पत्थर, एडी घिसने ले लिए तो लेते ही आना|बड़े फक्र से किटी-बहनों को बता सकूंगी की मंगलग्रह  के पत्थर से अपना रूप-रंग निखारती हूँ |
देखो अब, हप्ते  दो हप्ते  का मेहमान हूँ तुम्हारा ...!
.जी भर के खिलाओ-पिलाओ,प्यार-व्यार कर लो ..?
वो सकते में आ गई ...कैसी अशुभ बाते कहते हैं .....?बताओ वापस कब तक आना होगा ....?
शायद साल भर तो जाने का ही लगता है अब सोच लो ....
तो फिर आपको मै जाने नहीं दूगी ....भाड में जाए ऐसी नौकरी .....|पत्नी का भूगोल ज्ञान में अचानक भूकंप सा आने लगा जो धीरे-धीरे, सात-आठ डेसीबल की तरफ बढ़ने लगा |
बड़े साइंटिस्ट बने फिरते हैं नासा वाले, नाश पिटे ! मशीन काहे नहीं बना सकते ....?इतनी बड़ी-बड़ी खोज किया करते हैं ,एक  छोटी सी ‘पानी-जांच मशीन’ बनाने के लिए कंजूसी क्यों कर रहे हैं .....?उनको  हमारा ही मर्द दिखा.... जो आर्डर फार्मा रहे हैं ...?
और मै पूछती हूँ तुम कैसे मर्द हो जी ......?जो कोई भी आदेश पा के खुशी-खुशी चहकते घर में आकर उंची नाक करके अपनी बीबी को बहादुरी के किस्से बखान कर रहे हो ....?
 मै कल सुबह ही, ‘झा अंकल’ से कहके आपके इसरो  आर्डर को केसिल करवाने के लिए पी एम से बात करने को कहूंगी |अपने सांसद आड़े समय में काम न आये तो क्या फ़ायदा .....?मै तुम्हे किसी कीमत में मंगल ग्रह में जाने नहीं दूगी |
 मुझे  अनजाने ही अपनी बेटर हाफ का, बेटर वाला, यानी  सती-सावित्री रूप का साक्षात दर्शन हो गया  |
चुपचाप शर्ट की उपरी जेब से कोई बिल नुमा कागज़ निकाल के ........टुकडे-टुकड़े  कर दिया और कहा लो ,मेरा जाना केंसिल ......|
इसरो बॉस को समझो  मै कल मना लूंगा |हाँ नासा वालों का हर प्रोग्राम बेहद टॉप सीक्रेट होता है अडौस-पडौस में मेरे दौरे की चर्चा नहीं  करना वरना लेने के देने पड सकते हैं ......
वो लजाते हुए बोली मुझे आप एकदम भोली समझे हैं क्या ....इतना दिमाग तो कम से कम है ही ....?
मै मुस्कुरा दिया ....
मुझे लगा इस फर्जी  एहसान तले, मेडम ‘सावित्री’ को लाकर कम से कम कुछ दिनों  के लिए अच्छा खाने- पीने और मस्ती का लाईट इन्तिजाम बखूबी  कर लिया |
सुशील यादव
मन चंगा तो .....
एक बार संत रैदास के पास उसका दुखी मित्र आया,कहने लगा आज गंगा में स्नान करते समय उसका सोने की अंगूठी  गिर गई |लाख ढूढने पर मिल नहीं सकी |संत रैदास ने पास में रखे कठौते  (काष्ट के बड़े भगोने, जिसमे चमड़े को भिगो कर काम किया जाता था ) को उठा लाये , उसमे पानी भरा और अपने आगन्तुक मित्र से बोला ,चलो अपने हाथ को  डुबाओ |मित्र की अंगूठी उस कठौते में थोड़ी देर हाथ घुमाने पर  मिल गई |अब ये चमत्कार संत का था, कठौते का था,या चंगे मन का था, कहा नहीं जा सकता मगर तब से, ये कहावत जारी है “मन चंगा तो कठौते में गंगा”
आदमी के मन में अगर कहीं  खोट नहीं है,असीमित आत्मसंतोष है, तो सीमित साधनों में भी उसे सब कुछ उपलब्ध हो सकता है |पाप धोने के लिए गंगा जाना जरुरी है, ये हिन्दू के अलावा किसी दूसरे मजहब में प्रचारित नहीं दीख पड़ती |
कठौते  से, गंगा में  खोए  सोने  का मिल जाना वास्तविकता के आसपास यूँ भी हो सकता है कि, संत-सखा को  सोने से ज्यादा कीमती, रैदास के उपदेश लगे हों .....?वो उसी पे संतोष कर लौट गया हो .......पता नहीं......?
           कई बार यूँ भी होता है की हम जिस चीज को गंवा बैठते हैं उससे ज्यादा हमें उस पर  बोल-वचन सुनने को मिल जाते हैं |जो चला गया...... वापस कब आता है....?’आत्मा’ या ‘चीज’ के संबंध में सामान रूप से लागू हो जाता है |आदमी अपने धैर्य को मर्यादा में रहने की सीख यहीं से देना शुरू कर देता है |
सब्र की बाँध को टूटने से बचाने के लिए जरुरी है हम किसी संत की शरण में यदा-कदा झांक लें|
शहर के ,’मर्यादा- बार’ में अपने बगल की टेबल से पहले पेग का प्रवचन, एक इकानामिस्ट चतुर्वेदी की  तरफ से जारी था |बगल में तीन चार नव-सिखिया,बिल्डर,वकील,नेता लेखक जमे बैठे थे |अपना उनसे केजुअल हाय-हेलो जैसा था|आमने-सामने पीने- पिलाने में दोनों पार्टी को कोई परहेज नहीं था |
वे दूसरे पेग में देश की सोचने पे उतारू हो गए |यार इस दिल्ली को बचाओ .....?
मफलर भाई क्या चाहता है आखिर ....?
दिल्ली के ‘कठौते’ पर काबिज हो गया है |
पूरी दिल्ली खंगाल लिया ,पता नहीं इनका क्या खोया है जो मिल नहीं रहा .....?
बेचारी जनता ने ६७ रत्नों से  जडित कुर्सी से दी, इतनी इनायत कभी किसी पर नहीं की ....?
जनाब और दिखाओ ....और दिखाओ की रटी  लगाए बैठे हैं.......?बिल्डर ने सिप लेते हुए कहा, .....है खुछ और दिखाने को नेता जी ,क्या कहते हो ....?
नेता ने, ‘बाबा जी का ठुल्लू’ वाला मुह बना कर, अपने ‘चखने’ पर बिजी हो गये |
वकील ने इकानामिस्ट से पूछा ,ये एल जी और केंद्र से काहे टकरा रहे हैं ......?
जनता से जो वादा किये उधर धियान काहे नहीं दे रहे बताव ....?
इकानामिस्ट ने अपनी बुजुर्गियत झाड़ते हुए कहा ,तुम लोगों को पालिटिक्स अभी सीखनी पड़ेगी |जनता से वादे निभाने के अपने दिन अलग से  आते हैं|ये नहीं कि वादों के एजेंडे वाली कापी, शुरू-दिन से खोल बैठें |तुम लोगों ने एक्जाम तो खूब दिए होंगे,जुलाई से कभी पढने बैठ जाते थे क्या ....,?पढाई की तैय्यारी तभी होती है न .... जब एक्जाम के डेट सामने आ जाएँ |ये लोग भी तब कर लेगे|
ये लोग और किस पावर की बात कर रहे हैं .....?ट्रांसफर ,पोस्टिंग ,पुलिस पर कंट्रोल .....?लेखक ने सोचा तीसरी लेने के पहले उसे कुछ कह लेना चाहिए,वो जानता है....,दमदार वार्ता उसी की रहने वाली है ....|वो प्रबुद्ध है .....पिए-बिन पिए हरदम  निचोड़ वाली बात कहता है ....
भाई सा ....देखो ये ‘पावर’ ‘कुत्ती’ चीज है,कुत्ती समझते हैं ना .... अच्छे-अच्छो का दिमाग खराब कर देती है|चुन के आ गए ,रुतबा नहीं है .....क्या ख़ाक कर लेंगे .....?
लेखक द्वारा भाई सा, को ‘भैसा’ बनाने में,दो ढाई पेग की ‘लिमिटेड’ जरूरत होती है|हाँ तो मैं क्या कह रहा था ‘भैसा’.... पावर न हो तो क्या अंडे छिल्वाओगे .....६७ लोगो के लीडर से ?
दो ,इनको भी मौक़ा ,करें ट्रांसफर ,बिठाए अपना आदमी ........’जरिया’ खुलने का ‘नजरिया’ साफ जब तक नहीं दिखेगा  ये खंभा नोच डालेंगे  ....?
ओय ,राइटर महराज ,ये ‘जरिया’ ,’नजरिया’ क्या लगा रखा है ,तू खुल के बोल नहीं पा रहा है आखिर चाहता क्या है बोलना ....,बिल्डर बोतल उसकी गिलास के मुहाने रख देता है .......|अरे यार मरवाओगे क्या ....चढ़ जायेगी .....|
चढती है तो चढ़ जाने दो राइटर जी ,पीने का मजा ही क्या, जब दिल की बात दिल में रह जाए ......?बोल क्या जरिया चाहिए ,ट्रांसफर ,पोस्टिंग ,पोलिस दहशत ....क्या लेगा दिल्ली के लिए ....?वे दिल्ली के मास्टर-प्लान बनाने में जुटे थे ......
मुझे लगा  ,इनकी बातों का कुतुबमीनार अब-तब  कहीं मुझ पर जोरो से न आन गिरे ....|
..मैं वेटर को आवाज देता हूँ ,ऐ सुनो .....बिल ले आओ फटाफट  ......
.न जाने बियर मुझे एकाएक कसैला क्यों लगने लगा ......|              
                सुशील यादव

दृष्टिकोण चांगला पाहिजे .....

दृष्टिकोण चांगला पाहिजे .....

वे प्रबुद्ध हैं |उन्हें देश की चिंता रहती है|
वैसे आजकल प्रबुद्ध कहाने का शार्टकट भी यही है कि, एक स्वस्थ आदमी देश के बारे में  सोचें |
वैसे तो पर्यावरण वाले भी देश के मौसम ,मिजाज ,हरारत ,सर्दी की दिनरात सोचते रहते हैं,अनुमान लगाते रहते हैं , मगर उन्हें प्रबुद्ध की  श्रेणी में इसलिए नहीं रख सकते कि वे ‘पेड़’ इम्प्लाई हैं |इसकी, नजर-खबर रखने की , वे तनखा पाते हैं |
बिना तनखा कमाए, जो देश की सोचे सो प्रबुद्ध .....|
पुराने जमाने में जनहित की सोच रखने वाले विरले मिलते थे |मगर जो मिलते थे वो एकदम सॉलिड .....|आंधी-तूफान से टक्कर लेने वाले......|
वे अधिक माथा-पच्ची नहीं करते थे |उनका ‘सब्जेक्ट- टार्गेट’ आजादी के इर्द-गिर्द घूमता था |उन  महान लोगों को इस लेख परिधि से अलग रखते हुए, श्रधा सुमन अर्पित है |
अब आइये ,आजकल के चिंतन-मनन करने वालों की तरफ रुख करें |
इनकी तादात देखते-देखते इन दिनों करोड़ों से ऊपर की हो गई है|इनकी आबादी  दिनों दिन बढ़ने-बढाने के पीछे, शोध पर पाया गया की ये सब मीडिया की नई उपज हैं |वार्तालाप की मंडी में, जगह-जगह उतर रहे हैं |
मार्निग वाक् वाले बुजुर्ग ,धोबी ,नाइ ,मोची ,ड्राइवर ,भिस्ती ,बावर्ची सभी करंट राजनीति के विश्लेषक बन गए हैं |
 सरकारी मुहकमो में, एक चौथाई समय सरकार के कार्यकलापो और पिछली रात, इडियट बाक्स में दिखाए छम्मक छल्लो माँ ,कथित हत्यारिन  माँ ,और पी एम ,सी एम संवाद में निकल जाता है |
जिसके पास बखान करने का ज्यादा मसाला होता है उसकी दिन भर के चाय-समोसे का इन्तिजाम पक्का हो जाता है |प्रवचन सुनाने वाला,श्रोता जमात और जजमान को देखकर  गदगद रहता है |पूरे स्टाफ में प्रबुद्ध का खिताब धारी होना अलग मायने रखता है |  
कुछ वे लोग भी हैं जो ,देश में गिरती अर्थ व्यवस्था पर मनन कर अपना वजन घटाए रहते हैं  |सेंसेक्स नीचे चला जाता है तो रात भर बेचारे सो नहीं पाते|बच्ची,लड़की या बुजुर्ग महिला पर अमानुष कृत्य हो जाए तो खुद को अपराधी महसूस करते हैं |
झासा देकर कोई राजनीतिक दल मतदाताओं से वोट ऐठ लेता है, तो लुटा हुआ महसूस करते हैं |
भ्रस्टाचार उन्मूलन की मुहीम में उन्हें  सबसे आगे रहने वाले जीव होने का दावा करते देखा जा सकता  हैं |
वे महज निगेटिव सोच पालते तो, मुहाल्ले पडौस से उखड़ गए होते |उन्हें समय सापेक्ष पाला बदलने का भी खासा तजुर्बा रहता है |उनके किसी  क्रियाकलापों से आप कांग्रेसी या संघी की मुहर नहीं लगा सकते |सफाई अभियान की बात हो तो चार झाड़ू के पैसे अपनी जेब से ढीली कर देते हैं |कलफदार कुरते-पैजामे में उनको देक्खकर लगता है, पूरे दिन की सफाई का श्रेय वही लूट ले जायेंगे |’आप’ की सीट दिल्ली में बढती है तो बाछे खिल जाती है |उन्हें प्रजातंत्र का अवतार पुरुष कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी |
उनका मत है कि,कोई प्रबुद्ध हो और देश के प्रति चिंता न रखे, ऐसे प्रबुद्धों को लानत है|वे दिन में ‘अमरवाणी’ बनाने लायक कई सूक्ति वाक्य बोल चुके होते हैं ,उनको मलाल रहता है कि कोई इन्हें नोट करने वाला आसपास नहीं रहता |
उनकी ‘चिंतामणी’ छवि मोहल्ला पड़ोस के स्तर पर भी गौर करने लायक है|किसी की भैस गुम जाए तो बाकायदा पडौस के गाव तक खोजने निकल पड़ते हैं,वहां के पञ्च सरपंच को आगाह करना ,इत्तिला देना पहली फुरसत का काम जानते हैं|बदले में उधर, चाय ,और राजनीतिक घुसपैठ की गुजाइश पैदा हो जाती है |
किसी परिचित की, कम दूध देती गाय का इलाज जब तक किसी वेटनरी डाक्टर से न करवा दे,वे अघोषित, अन्न जल त्यागे की श्रेणी में होते हैं |
वे अखबार में छपी, छोटी-छोटी खबरों से भी चिंता उठा लेते हैं|इसे उनका अखबार प्रेम कहें ,निठल्लापन कहे,काम-काजी बेटे-बहुओं द्वारा उपेक्षित बुढापा कहें या देश के प्रति बुझते दिए की टिमटिमाहट कहे ....?समझ नहीं आता ....बहरहाल वे छोटी-छोटी चिंताओं को लिए मन ही मन तलवार भांजते रहते हैं | कोफ्त में दीखते हैं .....|
मैंने एक दिन उनसे यू ही पूछ लिया ,ताऊ जी ये मोहल्ले भर का झमेला क्यूँ लिए रहते हैं ?
वे बोले ,सुकून मिलता है|दिल से बोझ उतरा हुआ सा महसूस होता है |
अगर मुहल्ले की न सोचूं तो देश हाबी हो जाता है ,और तुम तो जानते हो देश के बारे में इन दिनों सोचना कितना भयंकर सा काम है |अच्छा खासा आदमी अनिद्रा-रोगी  बन जाए ...?
ताऊ जी को नये-नये हाबी बदलते भी देखा गया है|उसे ब्यान करने में लगता है की वे सठियाने लग गये हैं |एक दिन मार्निग वाक् के दौरान देखा कि गय्या की रस्सी पकड़े आ रहे हैं ...?हमने पूछा सुबह सुबह गौ माता को कहा लिए जा रहे हैं ....?वेटनरी अस्पताल तो अभी खुला न होगा |वे संजीदा हो के मेरी तरफ देखे ......तुम लोगों की नजर संकीर्ण क्यों हो गई है,वो जो सामने श्रीवास्तव जी अपने कुत्ते का पट्टा पकड़े हैं उन्हें माडर्न समझोगे ,हम जो अपनी गाय को चराने निकल गये तो आफत आन पड़ी ....?
मुझे बगले झाकने, और जल्दी खिसक लेने में एकबारगी बुद्धिमानी लगी |मेरे कदम वाक् से जागिग केटेगरी के कब हो गए ,पता न चला |  
वे हाई-बी-पी  वाले डिटेक्ट हो गए हैं ,उनके हित में डाक्टरों ने अनर्गल टी वी में  प्रसारित समाचारों और आजकल दिखाए जा रहे बेकार की मुद्दों पर बहस से बचने की सख्त हिदायत दे रखी है |
वे मानने वालो में से हों मुझे नहीं लगता ......?
सुशील यादव

ज़रा मन की किवडिया खोल ......


ज़रा मन की किवडिया खोल ......

आप फेल तो हुए होंगे ,रायचन्दों का तांता लग जाता है |गलतियां गिनाने वाले हर गली मोहल्ले में रोक रोक के अपनी राय जाहिर करते हैं |  पीठ पीछे वाले भी होते हैं, जो आपको छोड़ते नहीं |वे जनमत में यह फैलाते हैं की काश वे आपकी माने होते तो ये दुर्दिन देखने की नौबत उन्हें आई नहीं होती |
क्या कहूँ  !
इन्हीं रायचन्दों में से मै भी एक हूँ |
बन्दा हाड माँस का जीव है और खुदा के रहमो करम  ने,  इसे  दिल दिमाग से भी नवाज दिया  है |ये  दैनिक अखबार और मीडिया में चकल्लस रूपी बकवास प्रसारण में, चार लोगों की  चौपाल वाली किच  किच भी सुन लेता है ,अत: इसे चुनाव का व्यवहारिक ज्ञान हो गया है |
यूँ कहे, जनता की नब्ज टटोलने की चुनावी बीमारी सी लग गई है |
वैसे  तो रिजल्ट आने के बाद हर कोई एक्सपर्ट ओपिनियन के तहत यह बताने से नहीं चुकता की हमने तो पहले  ही  कहा था.............,वे माने ही नहीं ,वरना परिणाम दूसरा होता |
खैर ! बीत गई सो बात गई ,यानी बीती ताहि बिसार दे,आगे की सुधि लेय.....|एक ट्रेन छूटने का गम न कर यहाँ हर घंटे में तेरे ‘मकसद गाव’ की ओर एक ट्रेन जाने को  है |बस तू टिकट कटाए रख ,लपक के अगली में घुसने की कोशिश कर |बच्चा ,कामयाबी जरुर मिलेगी |
    इतना जान ,अगली ट्रेन जो लगने वाली है ,वो धार्मिक यात्रा वालों की सात्विक ट्रेन  है|
मुसाफिर भोले भाले हैं |
इनसे किसी भी प्रकार से असात्विक बातें न कर |मांस मटन से ये कोसों दूर रहते हैं |इन्हें लौटती ट्रेन का आरक्षण जरुर मिले,यह  व्यवस्था  कर  , ये भगवान से तेरे लिए दुआ मांगेंगे |किसी स्टेशन में इनको चाय पिला के देख, भूखी जनता ,और परेशान पेसेंजर ज्यादा न मिले तो थोड़े से संतोष कर लेने के आदी पाए जाते हैं |
इस ट्रेन में मागने वाले गवईए,फेरी वाले,डुप्लीकेट माल  बेचने वाले जगह जगह से चढ़ेंगे |इनकी सच्ची पहचान मुसाफिरों से करवा के, वाहवाही लूट |ये उघते हुए मुसाफिर, जिस जगह जाग गए ,तुझे शुभकामनाओं से साराबोर कर देंगे |
तुम इस डिब्बे में खिडकी के पास बैठे , उन्तालिस्वे नम्बर के बर्थ वाले, “तत्व ग्यानी” महाराज से नहीं टकराए, वरना वो ललाट देख कर ही बता दिए होते कि तुम आगामी चुनाव में अपनी पार्टी के प्रचारक की हैसियत से जगह जगह सैकड़ों   भाषण सभाएं करोगे |तुम्हारी वाणी से एक ओर करोड़ों  के दान की घोषणाएं होंगी तो दूसरी तरफ तुम्हारी जिव्हा से, मजहबी  दंगा फसाद में मारे गए व्यक्ति के विषय में एक भी शब्द कई दिनों तक नहीं निकलेगा|
तुम गौ माता के सेवक बतौर अच्छे हो मगर इसे “फायदे की माता” समझना भूल होगी |तुम्हारी ‘महंगी दाल’ गलाने वाला आदमी तुमको ढूढने से भी नहीं मिलेगा |तुम कितना भी प्रेशर लगाओ ,कुकर की सीटी तो बोलेगी मगर अच्छा व्यंजन परोस नहीं पाओगे|
तुममे अहंकार की जो चिगारी थी, वो अब ज्वाला बन गई है |उसे ज्वालामुखी बनने से पेश्तर, तुरंत रोको |
अपने ढहते घर को सम्हालो, फिर दूसरों के रंग रोगन दीवाली को देखने बाहर निकालो|ग़रीबों के पैसों को बाहर लुटाने की बजाये, मरते किसानों को ढूढ़ निकालने वालों पर इनाम की घोषणा करो  |
आर्थिक उपलब्धियां  गिनाने की बजाय,उपजाऊ जमीन में आ रही गिरावट की समीक्षा हो |मेक इन इंडिया की जगह ग्रो इन इंडिया के लिए विदेशी मजदूर बुलवाओ, क्योकि एक रुपये में अनाज बाँट कर, आपने सभी मजदूरों को काम के लिए  अपंग निक्कम्मा कर दिया है |  
प्रचारक भाई ! खोल सको तो “मन की किवडिया” खोलो ,देर अभी भी नहीं हुई है |
  सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com  ०९४०८८०७४२०

आओ बच्चो तुम्हे दिखायें......


आओ बच्चो तुम्हे दिखायें......

इस धर्मनिरपेक्ष देश के बूढ़े-अधबूढ़े बच्चो,
टी वी के, घटिया न्यूज से सठियाये बुजुर्गो ,
सास-बहू सीरियल से, घबराई माओं,बुआओ ,बहनों.....
कभी तफरी का जी करता होगा ....?
बेटे-बहू आपकी बुजुर्गियत पर पीठ-पीछे तंज कसते होंगे| आपको जानकार, जाने कैसा लगता हो .... |
आपके हलके-फुल्के टाइम-पास का, ‘पाप-कॉर्न’(पाप का कारण ) चलो ढूढ़ते हैं |
सबसे पहले ‘बच्चो’ ,ये बताना मेरा नैतिक धर्म बनता है कि आप अपनी परसी हुई थाली को गौर से देखें |ज्यादा चिकनाई तो नहीं है ....?चिकनाई सेहत के लिए हानिकर होता है |आपकी रोटी में घी मख्खन चुपड़े होने का  सीधा-सीधा मतलब, कहीं आपके पेंशन को दान में मागे जाने की तय्यारी तो नहीं हो रही है |
बेटा या बहु का ड्रामा , आपके पोते-पोतियों के भविष्य’,या उनकी अच्छी शिक्षा का वास्ता देकर ,इस खजाने से आपको वंचित करने का, प्लान तो नहीं बना रहे हैं |या हो सकता है आपके फिक्स्ड डिपाजिट एकाउंट से कोई बड़ा अमाउंट हथियाने के चक्कर या फिराक में वे सेंध लगाने के चक्कर में  हों |  
यूँ, सुनने में बहुत अच्छा लगता है ,बाबूजी ,ये अपना  मकान है न ,जर्जर ,खंडहर सा हो रहा है ,इस इलाके में अभी कीमत अच्छी मिल रही है |हो सकता है कल मेट्रो या सड़क चौडीकरण में अपना मकान फंस जाए , फिर तो इसके औने-पौने दाम ही मिलेंगे क्यूँ न इसे फटाफट निकालकर, सिविल लैंन  की तरफ, फ्लेट ले लिया जाए ,यही आज के समय की  अक्लमंदी  हैं |वे आपको ,’कन्फयुज्ड’ करके रख देंगे |कहाँ आप बाड़े-नुमा, हवेली माफिक मकान के स्वामी, और कहाँ ‘थ्री बी एच के’ का दंदकता, कुंद सा मुर्गी खाना ....? वे अपने सुझाव के पक्ष में ,चार  यार-दोस्तों का हवाला देते हैं कि कैसे सस्ते में सब लोग फ्लेट एप्रोच लगा-लगा के ‘कबाड़’ रहे हैं|अगर अभी चुक गए तो  आने वाले दिनों में जिनके दाम निशित आसमा छूने वाले होगे |और आने वाली सात पीढियां पानी पी-पी के अपन को  कोसेगी .....कहाँ  दादा जी की ‘मति’ मारी गई थी |आपका ‘ब्रेनवाश’ बिना डिटर्जेंट के होने से, अब भगवान रोक्के तो रोके ....|वरना ,इस उम्र में सरेंडर करने का पहाला पाठ यहीं से शुरू हो जाता है |
अगर आपके पास इस कान से सुनो और दूसरी से निकाल दो की ‘प्रेकटीस’ तगड़ी  है, जैसा अपनी पत्नी के साथ अमूमन करते रहे हैं ,तब तो आप उस मकान में बरसो टिके रह सकते हैं वरना लालच और दबाव के आगे आपको अपनी मर्जी के खिलाप घुटने टेकना ही पड़ेगा |
आपने, अपने सरकारी ओहदे में कितने फरमान जारी किये होगे ...कितनो का अनुपालंन होते पाया होगा |जिसने फरमान के माफिक नही किया उसके ‘ऐ सी आर’ ,रंगे होगे ,वे तब के दिन थे |हो सकता है कई मातहत घुटने टेकने को भी बाध्य हुए हों ,मगर वो सब आपका सरकारी रुतबा ,दबदबा था ,अब इन सब की कहीं पूछ नहीं | इन सरकारी ‘ठाठ के दिनों को’ गमछे में लपेट के कहीं बाहर टांग दो,इसी में भलाई है |इससे कम सठियाये तो  दिखोगे..... |
आप दो-तीन बच्चो वाले बुजुर्ग हैं, तो आपके के साथ ,’बागबान’ टाइप का खेल-खेला जा  सकता है |फ़िल्म बागबान के ट्रेलर को याद कर लो, किस्से का खुलासा आप ही आप हो जाएगा कि कैसे बुजुर्ग-दंपत्ति का करवा-चौथ, दिल दहलाने वाला दृश्य उपस्थित करता है |
हम तो कहते हैं ‘दुनिया के बुजुर्गो एक हो’........
कहने को तो ये कह  लिए,मगर तत्काल दिमाग में आता है कि, ये एक हो के...  क्या भाडं झोक सकते हैं ?
‘भाड झोकने’ का डिटेल आपको बताएं |’भाड’ एक मिटटी का बहुत बड़ा, ऊपर चौड़े मुह का तपेला होता है |लकड़ी की जलती भट्टी या तेज आंच की  आग में, रखा जाता है|इसमें रेत को तपा कर गर्म करके ,भीगे,पर  सुखाए  चनो  को फूटने के लिए डाला जाता है |यूँ समझिये पुराने जमाने की तंदूर भट्टी ....|इसे आपरेट करने वालों को भडभुन्जिये कहते हैं | हमे लगता है इतनी उम्र देखते ये काम इनके ‘बस’ का नहीं |वरना सबसे पुराना, कम लागत वाला बिना दिमाग खर्च किये चलाने वाला ,यही सीधा- सादा धंधा था |
चलो ,आपको और काम में लगाते हैं |थैला ले के बाजार जाने का सिस्टम, जिससे आपको चाय -सिगरेट के लिए , दो पैसों की आमदनी हो जाती थी, आजकल बड़े-बड़े शापिंग-माल ने छीन लिया है  |बाकायदा बिल प्रिंट हो के हाथ में दे दिया जाता है,मसलन , घपले का कोई चांस नहीं |
        एक टी वी है जो आपके बुढापे का सहारा है |इंटरनेट ,फेसबुक,मोबाइल  को बहु  के दिए सीमित सेन्क्शंड बजट में चलाना होता है |
तो बच्चो ,यही टी वी आपको,समय समय पर , ‘तिहाड़-दर्शन’  करवाता है ,जहाँ फर्जी-डिग्री वाले अन्दर जाते दिखते हैं |ये आपको सात-समुंदर दूर, ‘लमो’ के पास भी ले जाता है जो  सात सौ करोड़ के घपले-घोटाले की वजह से अपने देश के  ‘इ डी’ तांत्रिकों द्वारा ढूढा जा रहा है,|दुनिया उनसे मिल लेती है मगर ‘न्याय’ की देखरेख करने वालों की, नजर नहीं जाती |ये वही लोग होते हैं, जिसका साथ, आपके वोट पर चुने हुए, आपके जन प्रतिनिधि,देते नजर  आते हैं|
अपने कानों पर कलयुग में विश्वास कर लेना भी संदेहास्पद है |एक राज्य है ,पत्रकार की मौत का मुआवजा दे रही है,उसके मंत्री पर ,मरते हुए  पत्रकार का बयान उसे मौत का जिम्मेदार ठहरा रहां है ,मंत्री को ढूढने में पुलिस मुहकमा अजीब सी सुस्ती में काम कर रहा है ,आम-जन का कानून अलग, मंत्री का कानून मानो  अलग..... |
अब मंत्रियों को शपथ लेते हुए हूँ भी दिखाया जाना चाहिए ,मै इश्वर की शपथ लेता हूँ कि अगर किसी काण्ड में मेरा  लिप्त होना आरोपित हुआ तो ,अविलंब पदत्याग करुगा |यदि ऐसा न कर सका तो भगोड़ा होने की दशा में मेरी सारी संपत्ति जो इलेक्शन लड़ते समय बताई गई है जब्त कर ली जावे |मै शपथ पूर्वक कहता हूँ की मेरी डिग्री के दस्तावेज फर्जी नहीं है |मुझपर बलात्कार ,चोरी ,खून डकैती के कोई आरोप नहीं है और न ही किसी अदालत में मेरी पेशी,इन आरोपी के तौर पर चल रही है |          
आपने, योग-उत्सव का,  तमाशा बतौर  अलग आनन्द लिया होगा |अपने भी हाथ पैर इधर उधर जरुर फेके-फटकाए होंगे|चार बुजुर्ग मिलकर,आप लोगों ने  लानत भी भेजा होगा..... क्या जरूरत थी इतना खर्चा करने की....... |ये लोग जनता के पैसों से, अपना वोट बेंक बढाने की ‘शाजिश’ को नए- नये नाम और लेबल देते रहते हैं |वाह री दुनिया ....इंसान में कितनी चालाकी भर दी है | इनके थिंक-टेंक को इनाम-शिनाम का इन्तिजाम भी हो जाए ,गुजरने से पहले वो भी देख लें |
.....और बुजुर्ग बच्चो .....!, आपने देखा ,अपने पी-एम् सतत लगे हुए हैं ,बाहर देशों के दौरे पर दौरे मार रहे हैं ,अभी जगह-जगह काला-धन ‘सूघने’ का प्रयास जारी है,जरूरत पड़ी तो ,छापा बाद में मारेंगे ,वे अपने प्रयास में सफल हो तो ,थोड़ा अपना जी इधर भी  हल्का हो जाए .....?
सुशील यादव

बातों का आतंकवाद .....



बातों का आतंकवाद .....

हमारे देश में टी वी युग के आरंभ से एक नए आतंकवाद का जन्म हो गया है, वो है ‘बातों का आतंकवाद’ ....|
चेनल वाले बड़-बोलों का, पेनल बना के रोज-रोज नया तमाशा परोसने में लगे हैं |अभिव्यक्ति  की स्वतन्त्रता की आड़ में भड़काऊ वाद-विवाद आये दिन जनतांत्रिक देश में, तांत्रिक रूपी एंकर द्वारा   चीख-चीख कर कहा जाता है कि ‘चैन से सोना है तो जाग जाओ’......?ये कैसी जागृति का ढिढोरा है ....?जो  जनता के कान खाए जा रही है |शायद ही इतना विस्फोटक और विनाशकारी ‘वार्ता-बम’ किसी भी देश के, मीडिया-वालों के हाथ अब तक लग पाया हो जो अपने यहाँ रोज विस्फोटित होते रहता है |
दुश्मनी भाजने में इन चेंल्बाजों का कोई  सानी नहीं|सब एकतरफा एक सुर में हमला बोलते हैं |जिस किसी का ये गुणगान कर दें उन्हें  देश की गद्दी पकड़ा के दम लेते  हैं |एक बार हादी चढाने का तजुर्बा हो गया तो प्रयोग दुहराया जाने लगा |
पर दिल्ली बिहार राज्य के  मामले में,उनकी  हांडी दुबारा चढाने की बस हसरत ही रह गई |उन्होंने अपनी तरफ से , भरपूर कोशिश की मगर जनता को बना-मना नहीं पाये |
पुराने जमाने में , इस  ‘बातूनी आतंकवाद’ का अंडर  करंट, सामन्ती-राजसी  व्यवस्था में देखने को मिलता था |किसी जगह राजा ,कहीं मालगुजार कहीं का सूबेदार तो कहीं  सूदखोर बनिया जमात   की बातें ‘दबंगई’ लिए होती थी |उनका कहा एक मायने में, कानून या  फतवा से कम नहीं आंका  जाता था |
जनता को इनका सामना करने के बाद मुक्ति मिल जाती रही हो, ऐसा भी नहीं था |वे इनके अलावा , दीगर आतताइयों से भी निपटते थे ,निपटते क्या थे अपने आप को पिटवाने  के लिए परस देते थे |वे जाति के नाम, मजहब के नाम खुद को नोचवाने -खसोटवाने के लिए बाध्य होने की श्रेणी में गिने जाते थे |
उनकी डिक्शनरी में,या उनकी सोच में ,इन आकाओं के प्रति कभी कोई असहिष्णुता का   भाव दूर दूर तक पैदा नहीं हुआ | ‘माई-बाप’ के लिए ,विद्रोह या बगावत की कभी सपने में भी सोचा जाना पाप की केटेगरी का हुआ करता था |वे दयनीय से दयनीय किसी  हालात में भी गुजरे  उनकी पत्नियों का मनोबल कभी टूटता सा नहीं दिखा करता |अपने पतियों के सामने कभी मुह नहीं खोलने वाली स्त्रियाँ, घर या गाँव छोड़ के जाने की बात कभी कर या  कह भी नहीं पाती थी ....?
अब हालात बदले हैं |अच्छी बात है कि आज  आप, जी-भर के किसी को भी कोस सकते हैं |किसी को इस मुल्क में रहने या उसका तंबू उखाड़ने की बात क्र सकते हैं |किसी को तमाचा जड़ने के लिए खुलेआम इनाम इकराम की व्यवस्था किया जा सकता है |किसी टार्गेट को उसके बयान और गतिविधियों के इतिहास का बखान करके, कालिख पोतने और पोछने की राजनैतिक कवायद की जा सकती है |एक से एक बोल-बचन,चेनल के माध्यम से हाईलाईट हुआ करते हैं |सुबह अखबार की सुर्ख़ियों में कमजोर दिल वाले पढ़ कर दुआ मनाते हैं कि फिलहाल आंच उन तक नहीं पहुच पाई है |
   मान हानि के दावे , यदि फिफ्टी परसेंट केस में ‘बुक’ होने लगे तो फरियाद में लगने वाले कागज़ की पूर्ती हेतु एक इंडस्ट्री लग सकती है |टाइपिस्ट  की इफरात मांग बढ़ सकती है ,नौकरी  के नये सेक्टर बन सकते हैं |लेपटाप की बिक्री  जोर पकड़ सकती है|  तरफदारी करने वाले हिमायती, या विरोध पक्ष के  वकीलों का अकाल पड सकता है |  
दरअसल ,इस देश में “लघु शंकाओं  का निवारण” ठीक से नहीं हो पा रहा है |सरकार सोचती है की एयर- कंडीशन-शौचालय  बना देने से बात बन जाएगी |वे गलत हैं |ये लघुशंका, किडनी उत्सर्जित ताज्य अवशेषों का नहीं है,वरन , जनता की दिमाग उत्सर्जित विष्ठा है |इसे हटाने के लिए,फकत  चार पेनलिस्टबीच अपना एक प्रवक्ता मात्र , टी वी में बिठा देने से मामला बनने  की जगह बिगड़ता दिखता है |ये लोग ताबड़तोड़ बातों की गोलियां, स्टेनगन माफिक चलाने लग जाते  हैं |इन्हें कोई भी टापिक दे दो, ये सभी  इस  मुस्तैदी से डट जाते हैं कि सालुशन केवल उनकी बात में है  |ये कभी किसी बलात्कारी संत का बचाव करते दीखते हैं तो कभी  मांस के नाम पर मारे गए व्यक्ति के, हत्यारों की पैरवी कर डालते हैं |ये लोग अपने फैब्रिकेटेड-आंकड़ों पर महीनों बहस बेवजह करवा लेते हैं कि, अमुक पार्टी क्लीन स्वीप कर रही है, जबकि परिणाम एकदम विपरीत आता है |यानी जिसका ये दम भरे होते हैं, वही धाराशायी हुआ दिखता है |टी आर पी का खेल गजब का है .....?
जनता बेचारी इडियट बाक्स के एक और  आतंक से रूबरू हो रही है ,वो है इनका बाजार भाव में अपनी टाग घुसेड़ना |
होता ये है कि जो अनाज- सब्जी आपके स्थानीय बाजार में कम कीमतों में मिल रही होती है, एक बार दिल्ली की कीमत सुनते ही अपने-आप उछल जाती है |आप बाजार में टमाटर बीस रुपये किलो में तुलवा रहे हैं, तभी दूकानदार की टी व्ही  में, अस्सी रूपये किलो का एलान होता है ,दूकानदार वापस अपनी तौल खीच लेता है |कभी दालें सत्तर-अस्सी रूपये किलो की हुआ करती थी ,इनकी  बातों ने  कीमतों में जहर घोल दिया |ये लोग ,बकायदा रिपोर्ट दिखा देते हैं, फलाने स्टेट में इस साल कम बारिश के चलते दलहन तिलहन फसल चौपट  होने के आसार हैं,लो बढ़ गए दाम |
कभी-कभी तो यूँ भी लगता है,कि  किसी सटोरिये-लाबी वालों की चल रही है वे इधर स्टाक जमा किये, उधर दाम बढ़ने की बात कह दी  |
सरकार कहाँ होती है या कहाँ  सोती है......पता नहीं चलता ?
 किसी को सुध लेने की जरूरत नहीं महसूस होती |
जनता बेचारी तंग आ के  मन बहलाव्  की  दीगर खबरों में, अपनी (अल्प) बुद्धि खर्च करने में लग जाती  हैं|
पसंद न हो तो, चेनल बदलने का अधिकार अभी सब के पास बरकरार है,यही काफी है .....|  ........  .?        
  सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com  ०९४०८८०७४२०  //२७.११.१५

सठियाये हुओ का बसंत .....





सठियाये हुओ का बसंत .....

            सठियाने की एक उम्र होती है।
बुढढा सठिया गया है कहने मात्र से किसी पुल्लिंग के साठ क्रास किये जाने की जानकारी ही नहीं मिलती, वरन कुछ हद तक उसके सनकी हो जाने,या दिमाग के 'वन बी. एच. के छाप ' हो जाने  का अंदाजा भी होने लगता   है ।
मै आम आदमी के तजुर्बे की बात कह रहा हूँ ।'राजनीती के धुरंधरों' को इस रचना-परिधि से दूर रखता हूँ क्यों कि इने-गिनो  को छोड़ , वे आजीवन नहीं सठियाते ।

        अपनी कालोनी में रिटायर्ड लोगो का ठलुआ-क्लब है।बसंत में उनकी खिली-बाछों को देखने का लुफ्त आसानी से पार्क में सुबहो-शाम उठाया जा सकता है |आठ -दस को मै बहुत करीब से जानता हूँ । शर्मा ,चक्रवर्ती, राणा ,सक्सेना ,दुबे ,असगर अली ,भिड़े,सुब्बाराव,  ये लोग जब मिलते हैं तो करेंट-टापिक पर इनकी  तपसरा या टिप्पणी से , बसंत में खिले हुए सैकड़ों फूलो का एहसास होता है।

        राणा की बल्ले-बल्ले में दिल्ली ,चक्रवर्ती बंगाल ,शर्मा हरियाणा असगर अली यू पी दुबे बिहार ,भिड़े महाराष्ट्र,सुब्बाराव जी साउथ सम्हालते हैं ।रात को देखे हुए  न्यज या सुबह  की अखबारों  की कतरन ही उनके बीच आपस में  तू -तू, मै-मै करने का इन्तिजाम करवा देता है ।

            दिल्ली वाले ने छेड़ दिया कि ये 'मफलर-बाबा' को किसी ने समझाइश दे दी है कि  दिल्ली की बेशुमार गाड़ियों में हवा ही हवा है ,इसी को लेकर ,आगे वे दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने की मुहीम में योजनारत  हैं। सप्ताह में एक दिन सब गाड़ियों की हवा निकाल दी जावे तो इससे वातावरण को हवा  मिल जायेगी ।यदि कहीं लोगों के बीच  से  अल्टरनेट आड- इवन के  फार्मूला का सुझाव आता है तो उस पर भी गौर किया जा सकता है ।

राणा जी के उदघोष पर पार्क  के बुजुर्गों की   सामूहिक हो- हो से पार्क गुजायमान हो गया ।कुछ आदतन छीछालेदर करने वाले , धीरे- धीरे इसके अंदरुनी पहलू की काट-छांट में, अपनी पुश्तैनी  आदत के अनुसार लग गये ।
        अपने  इधर एक परंपरा है,तथ्य और  तर्क के पेंदे को उल्ट के देखना हम जरुरी समझते हैं  ।
इस पुनीत परंपरा के निर्वाह में  लोग घुसते रहे । जानते नइ ! आड-इवन के फार्मूले में जनता को कितनी तकलीफ हुई थी। जिनके घरों में दो आड या दो इवन की गाड़ियाँ थी, वे बेचारे  बेबस हो गए थे।इमरजेंसी में किसी को हास्पिटल ले जाने की नौबत आई तो पडौसियो  ने कह दिया,भाई साहब हमारे मिस्टर  खुद कार  शेयर करके गये हैं ।हम लोग जिनसे शेयर-बंध हैं उनसे शेयर-धर्म तो निभाना पड़ता है ।आप हमारे पूल में होते तो आफिस टाइम में एडजस्ट कर लेते ।यही जवाब आम है ।

        आदनी को इन दिनों 'पूल' में होना जरुरी हो गया है ।
राज्ञीतिक लोग इसे 'गुट' सामाजिक लोग 'पार' और गुंडे मवाली 'गेंग' कहते है।साहित्यिक बिरादरी में भी यह आम है ,तू मेरी फिकर कर मै तेरी सुध लेता हूँ ।
 इस पूल, गुट, पार, गेग में होने के अलग-अलग फायदे हैं।आपकी नैया सहज  पार लगती है ,इलेक्शन टिकट की गैरंटी होती है ,ब्याह-मंगनी में सामाजिक प्रतिष्ठा के अनुसार घर-वर मिलते हैं और गेंग के रुतबे के क्या कहने ‘भाई’ का नाम लेते ही सब काम,  हुकुम मेरे आका की तर्ज पर तुरंत हो जाते हैं ।
चलो बुढाऊ लोगों के दुसरे सत्र की बात देखे ...
भाई साब ये गलत बात है ,आप वोट अलग तर्ज पर मांगते हो और वाहवाही बटोरने के लिए अलग फार्मूला ले आते हो ,कहाँ  की शराफत है .....? अरे दूबे जी आप वहीँ अटक गए वो टापिक तो सुबह ख़त्म हो गया था |

बुढउ लोगों के दिमाग की केतली से,दफ्तर के प्यून से लेकर बराक ओबामा तक सबकुछ गर्मागर्म  बाहर निकलता  है ।
एक न्यूज की कतरन दिखाता है ,देखो साला है तो महज चपरासी मगर एक करोड़ की नगदी ,गहना ,बेनामी संपत्ति ,कार और जमीन के कागज मिले हैं ।
पीछे से , हामी देने वाला कहता है,ये हाल चपरासी का है तो साहब की पूछोइ मत।  साहब लोगों की कोई खबर ले तो इनसे सौ गुना ज्यादा की रेकव्हरी की जा सकती है ।
वे लोग जब तक ,भारतीय अर्थ व्यवस्था पर अपने आक्रोश जी खोल के व्यक्त करते तब तक ,बिरादरी के कुछ लोग बहाने से खिसकने लगे | खिसके हुओं के,  जाने के बाद बातों का गेयर व्यक्तिगत आक्षेप पर चलने लगता है ।जनाब क्या खा के फेस करेंगे ,अपने जमाने में नंबर-दो का इनने कम नहीं कमाया है ।चुपचाप खिसक लिए ।कुछ विरोध दर्ज कराते हुए  कहते हैं ,हमे अपनों के बीच ये सब नहीं कहना चाहिए।सब अपनी अपनी तकदीर का खाते हैं ।पीछे जो हुआ सो हुआ आगे की बात करे.|ये कभी पकडे ही नहीं गए तो हम आप बेकार ल्कीअर क्यों पीत रहे हैं |
   आप तो हमेशा उनका पक्ष लेते हैं ,और लें भी क्यों नही .....?
.देखिये शर्मा जी ,हम कुछ बोल नहीं रहे इसके माने ये नहीं की हमे कुछ मालुम नहीं ।अगर शुरू हो गये तो .....?
बीच -बचाव बाद, करीब-करीब हुडदंगी हडकंप में तब्दील हो जाने वाली  सभा समाप्त हो जाती है ।
ऐसे मौको में ,दो-चार दिन कुछ लोग खिचे-खिचे देखेगे| ये अघोषित तथ्य है |
शर्मा जी , जिनका बचाव कर रहे थे वो शख्श , भनक लगते ही आगबबुला हो गए |वे उस दिन के प्रखर वक्ता के तत्कालिक विरोध में उनके घर की ओर रुख किये  ।उस नाचीज पर अपने राजनीतिक प्रभाव यानी गुट का वास्ता देने लगे ।हम आपसी  बिरादरी होने की वजह से,तुम्हारे  सामाजिक पहलुओं को पंचर करना भी खूब जानते हैं | उन्हें सामाजिल तौर पर तिरस्कृत करने का संकल्प गाली गलौज की मुद्रा में उठा लेते हैं ।अगर इससे भी आइन्दा बाज न आयें तो चेतावनी है ,मवाली- कुत्ते से कटवाया नहीं तो कहान्ना |उस दिन इस सरे-आम चेलेंज ने बुधु पार्टी से एक मेंबर खो दिया |
बरसों तक पार्क में मिल जुल के रहने वाले बुढढो की, जाते समय की मिल- जुल कर की जाने वाली योग की खोखली हंसी  आजकल नदारद  है ।
शायद अब पतझड़ के बाद मौसम के मिजाज में तब्दीली आये ......?
   सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com  2. ०९४०८८०७४२०  //11.16





अधर्मी लोगों का धर्म-संकट


व्यंग,.......   सुशील यादव ......

अधर्मी लोगों का धर्म-संकट
 
धर्म-संकट की घड़ी बहुत ही सात्विक, धार्मिक,अहिसावादी और कभी-कभी समाजवादी लोगों को आये-दिन आते रहती है |धर्म-संकट में घिरते हुए मैंने बहुतों को करीब से देखा है |
यूँ तो मैंने अपने घर में केवल बोर्ड भर नहीं लगवा रखा है कि, यहाँ धर्म-संकट में फंसे लोगों को उनके संकट से छुटकारा दिलवाया जाता है,पर काम मै यही करने की कोशश करता हूँ |’
बिना-हवन , पूजा-पाठ,दान-दक्षिणा के, संकट का निवारण-कर्ता इस शहर में ही नही वरन पूरे राज्य में अकेला हूँ,ये दावा करने की कभी हिम्मत नहीं हुई |  अगर दावा करते हुए , ये बोर्ड लगवा देता तो शहर के करीब ९० प्रतिशत धूर्त, ढ़ोगेबाज, साधू, महात्माओं की दूकान सिमट गई होती |
मेरे जानकार लोग आ कर राय-मशवरा कर लेते हैं |
शर्मा जी ने कुत्ता पाला ,प्यार से उस दबंग का नाम ‘सल्लू’ रखा |दबंगई से उसका वास्ता जरुर था , मगर कोई कहे कि सलमान से भी तुलना किये जाने के काबिल था तो शर्मा जी बगल झांकते हुए सरमा जाते |
  रोजाना उसे तंदरुस्ती और सेहत के नाम पर अंडा, दूध, मांस, मटन मुहय्या करवाते |उपरी आमदनी का दसवां, सत्कर्म में लगाने की सीख,टी व्ही देख देख के स्वत: हो गया था ,इस मजबूरी के चलते किसी ने उसे सलाह डी कि एरे गैरों पर लुटाने में बाद में वे लोग ज्यादा की इच्छा रखते हैं और खून –मर्डर तक करने से नहीं चूकते |बेहतर हो कि आप कोई मूक बेजुबान मगर गुराने भौकने वाल जीव कुत्ता पाल लो |इमानदारी- वफादारी के गुणों से ये लबरेज पाए जाते हैं |बी पी टेंशन को रिलीज करने के ये कारक भी होते हैं यी दावा विदेशों के खोजकर्ताओं  ने अपनी रिपूर्त में दिए हैं |इतनी समझाइश के बाद शर्मा जी की मजबूरी बन गई, वे पालने की नीयत से सल्लू को खरीद लाये |कुत्ता ,डागी फिर सल्लू बनते बनते आज फेमली मेम्बर के ओहदे पर सेवारत है |
एक वे बाम्हन उपर से सल्लू की डाईट, उनके सामने धर्म-संकट ...?
ये तो इस संकट की महज शुरुआत थी,उनकी पत्नी का कुत्ता-नस्ल से परहेज डबल मार करता था |
शुरू- शुरू में निर्णय हुआ कि डागी के तफरी का दायरा अपने आँगन और लान तक सीमित रहेगा | मगर दागी कह देने मात्र से  कुत्ते-लोग नस्ल विरासत को त्यागते  नहीं| सूघने के माहिर होते हैं| उसे पता चल गया कि, मालिक उपरी-कमाई वाले हैं, सो वो  पूरे दस कमरों के मकान की तलाशी एंटी-करप्शन स्क्वाड भाति कर लेता |शर्मा जी को तसल्ली इस बात की थी कि हाथ-बिचारने वाले महराज ने आसन्न-संकट की जो रूपरेखा खीची थी, उसमे यह बताया था कि जल्द ही छापा दल की कार्यवाही होगी| वे सल्लू की सुन्घियाने की प्रवित्ति को उसी से जोड़ के देखते थे |वो जिस कमरे में जाकर भौकने या मुह बिद्काने का भाव जागृत करता,फेमली मेंबर तत्क्षण , उस कमरे से नगद या ज्वेलरी को बिना देरी किये   हटा लेते |शर्मा जी, शाम को आफिस से लौटते हुए,फेमली गुरु-महाराज से कुत्ता–फलित-ज्योतिष की व्याख्या, सल्लू की एक-एक गतिविधियों का उल्लेख कर, पा लेते |महाराज के बताये तोड़ के अनुसार दान-दक्षिणा ,मंदिर-देवालय, आने-जाने का कार्यक्रम फिक्स होता |पत्नी का इस काम में भरपूर सहयोग पाकर वे धन्य हो जाते| वे अपने क्लाइंट को महाराज के बताये शुभ-क्षणों में ही मेल-मुलाक़ात करने और लेन-देन  का आग्रह करते|
शर्मा जी आवास के थोड़े से आगे की मोड़ पर उनके मातहत श्रीवास्तव जी का मकान है |शर्मा जी  नौकर के हाथो दिशा-मैदान या सुलभ-सुविधा के तहत सल्लू को भेजते |नौकर अपनी कामचोरी की वजह से अक्सर श्रीवास्तव जी की लाइन में सल्लू को, सड़क किनारे निपटवा देते|श्रीवास्तव जी बहुत  कोफ्ताते ,वे दबी जुबान नौकर को कभी-कभार आगे की गली जाने की सलाह देते| वह मुहफट तपाक से कह देता कि सल्लू को गन्दी और केवल गंदी  जगह में निपटने की आदत है| इस कालोनी में इससे अच्छी गन्दी जगह कहीं  नहीं है |सल्लू भी इस बात की हामी में गुर्रा देता |श्रीवास्तव जी भीतर हो लेते |किसी-किसी दिन नौकर के मार्फत बात, बॉस के कानो तक पहुचती तो वे आफिस में अलग गुर्राते |बाद में कंसोल भी करते कि,देखिये  श्रीवास्तव जी आप तो  जानवर नहीं हैं ना .....मुनिस्पल वालों को सफाई के लिए इनवाईट क्यों नहीं करते |श्रीवास्तव जी का ‘सल्लू’ को लेकर धर्म-संकट में होना दबी-जुबान, स्टाफ में चर्चा का अतिरिक्त विषय था |
“सल्लू साला बाहर की चीज खाता भी तो नहीं”,ये श्रीवास्तव जी के लिए, जले पे नमक बरोबर था ....?
 सल्लू की वजह से शर्मा जी,दूर-दराज शहर की, रिश्तेदारी,शादी-ब्याह,मरनी-हरनी में जा नहीं पाते |कहते कि सल्लू अकेले बोर हो जाएगा |
सबेरे के वाक् में सल्लू और शर्मा जी की जोडी, चेन-पट्टे में एक-दूसरे को बराबर ताकत से  खीचते, नजर आती थी|
पता नहीं चलता था, कौन किसके कमाड में है ?
 जब किसी पर ‘सल्लू’  गुर्राता, तो लोगों को शर्मा जी बाकायदा आश्वस्त करते, घबराइये मत ये काटता नहीं है |
वही शर्मा जी, एक दिन अचानक मायूस शक्ल लिए मिल गए ,मैंने पूछा क्या शर्मा जी क्या बला आन पड़ी, चहरे से  रौनक-शौनक नदारद है ....?
वे दुविधा यानी धर्म-संकट में दिखे ...|बोलूं या ना बोलूं जैसे भाव आ-जा रहे थे |
मुझे बात ताड़ते देर नहीं हुई....यार खुल के कहो प्राब्लम क्या है ....?
वे कहने लगे बुढापा प्राब्लम है ...|मैंने कहा अभी तो आपके रिटायरमेंट के तीन साल बचे हैं |किस बुढापे की बात कह रहे हो ? हम रिटायर्ड लोग कहें तो बात भी जंचती है| तुमको पांच साल पहले, कुर्सी सौप के सेवा से  निवृत हुए थे |
सर बुढापा मेरा नहीं, हमारे डागी का आया है |हमारा सल्लू १४-१५ साल का हो गया| सन २००२ में नवम्बर में उसको लाये थे, तब तीन महीने का था |हमारे परिवार का तब से अहम् हिस्सा बन गया है  |अब बीमार सा रहता है |कुछ खाने-पीने का होश नहीं रहता |पैर में फाजिल हो गया है चलने-फिरने में तकलीफ सी रहती है |शहर के तमाम वेटनरी डाक्टर को दिखा  आये |जिसने जैसा सुझाया, सब इलाज करा के देख लिए ,पैसा पानी की तरह बहाया |फ़ायदा नहीं दिखा |
मुझे उसके कथन से यूँ लग रहा था जैसे  ,किसी सगे को केंसर हो गया हो| बस दिन गिनने की देर है |उन्होंने अपना धर्म-संकट एक साँस में कह दिया | सल्लू के खाए बिन हमारे घर के लोग खाना नहीं खाते |आजकल वो नानवेज छूता नहीं |उसी की वजह से हम लोग धीरे-धीरे  नान वेज खाने लग गए थे| अब हालत ये है कि मुर्गा-मटन  हप्तो से नहीं बना |
एक तरह से,वेज खाते-खाते  सभी फेमिली मेंबर, ‘वेट-लास’ के शिकार हो रहे हैं |पता नहीं कितने दिन जियेगा .बेचारा ....?मेरे सामने वफादारी का नया नमूना शर्मा जी के रूप में विद्यमान था |
वे थोड़ा गीता-ज्ञान की तरफ मुड़ने को हो रहे थे| मगर संक्षेप में रुधे-गले से इतना कहा  “ अपनों के, जिन्दगी की उलटी-गिनती जब शुरू हो जाती है तब जमाने की किसी चीज में जी नहीं रमता ....?”
“आप बताइये क्या करें” वाली स्तिथी, जो धर्म संकट के दौरान पैदा हो जाती है उनके माथे में पोस्टर माफिक चिपकी हुई लग रही थी  .....?
ऐसे मौको पर किसी कुत्ते को लेकर ,सांत्वना देने का मुझे तजुर्बा तो नहीं था, मगर लोगो के ‘कष्ट-हरता’ बनने की राह में मैंने कहा ,शर्मा जी ,कहना तो नहीं चाहिए ,”गीता की सार्थक बातें जो कदाचित मानव-जीव को लक्ष्य कर कही गई हो”, उनको सोच के, परमात्मा से ‘सल्लू’ के लिए बस दुआ ही  माग सकते हैं |
मैंने शर्मा जी को उनके स्वत: के गिरते-स्वास्थ के प्रति चेताया | पत्नी को आवाज देकर ,शर्मा जी के लिए ,कुछ हेवी-नाश्ता  सामने रखने को कहा |नाश्ता रखे जाने पर शर्मा जी से  आग्रह किया, कुछ खा लें | वे दो-एक टुकड़ा उठा कर चल दिए |
महीने भर बाद , शापिग माल में ‘वेट-गेन’ किये,  शर्मा  जी को सपत्नीक देखना सुखद आश्चर्य था|वे फ्रोजन चिकन खरीद रहे थे| मुझे लगा वे धर्म-संकट से मुक्त हो गए हैं, शायद ‘सल्लू’ की तेरहीं भी कर डाली हो |
मै बिना उनको पता लगे,खुद को मातमपुर्सी वाले धर्म-संकट से निजात दिलाने की नीयत से .शापिंग माल से बिना कुछ खरीददारी किये,
 बाहर निकल आया |
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com  ०९४०८८०७४२०




५.२.१६


विलक्षण प्रतिभा के 'लोकल' धनी


विलक्षण प्रतिभा के 'लोकल' धनी

यूँ तो राष्ट्रीय अंतर-राष्ट्रीय प्रतिभाएं अनेकों विद्यमान हैं ।
अपने- अपने फील्ड के महारथियों ने अपने-अपने इलाके में धूम-धडाका भी जबरदस्त किया होगा, परन्तु जिन लोगों ने किसी फील्ड में ‘जुगाड़’ की इजाद की उन्हें  भूलना, उनके प्रति असहिष्णुता है ।हम इतने गये-बीते नहीं की उनको याद न करें ।
सबसे पहले मुहल्ले के नुक्कड़ में दस बाई दस के कमरे में अस्त-व्यस्त कबाड़-बिखरे सामान के साथ दिमागे-दुरुस्त में जो कौधता है, वो है ‘अर्जुन सोनी’ ....।इन्हें पिछले ४० सालों से इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रानिक्स की दुनिया में व्यस्त देखा हूँ ।दिल्ली मेड रेडियो ,टेप ,रिकार्ड प्लेयर और बाद में टी वी ,वी. सी .आर. के किसी भी माडल और मेक को सुधारने का जबर्दस्त दम और हुनर  उसके पास है ।मुहल्ले  का ऐसा कोई एंटीना नहीं था , जिसे बिना उसकी जानकारी के किसी ने फिट करवाया हो | उसे रिपेयरिंग के काम में परफेक्शन, जरुरी की हद तक, पसंद होने के चक्कर में, ग्राहकों को महीनों घुमा देता ।
जहाँ  लोग टरकाऊ छाप कम करके लाखों पीट लिए,अफसोस  वहां ये आर्कमिडीज 'यूरेका' की खोज में समय  से पहले बुढापा बुला बैठा  ।

दूसरा , एक समय था जब अपने शहर में जुए-सट्टे का जबरदस्त चलन था ।इसी लत में आकंठ व्यस्त रहने वाले जिस इंसान का जिक्र कर रहा हूँ ,वो है सुनील 'चोरहा'।उस्का नाम सुनील श्रीवास्तव था ,'चोरहा' खिताब उसकी उठाईगिरी प्रवित्ति के खुलासा होने के कारण खुद ब खुद बाद में लोगो ने जोड़ दिया ।उन दिनों सायकिलों को किराया में दे कर चलवाने का धंधा जोरों पर होता  था | नये-नये सायकल स्टोर खुलते थे ।पचीस-पचास नई सायकलें किराए से दे दी जाती थी ।
सुनील की  'माडस-ओपेरेंडी' यूँ थी, कि आपने जिस स्टोर से सायकल उठायी ,वो भी किराए पर वहीं से  सायकल ले लेता ।वो  आपके गंतव्य का पीछा करता | आपका जहाँ सायकल लाक करके किसी होटल या दूकान में घुसना होता , वो अपनी सायकल आसपास रखकर 'मास्टर की' से खोल के ,  आपकी सायकल पार कर देता । पकड़े जाने पर सफाई के लिए ,  एक ही स्टोर की हुबहू सायकल में, शिनाख्ती भूल  का हवाला देकर बचने की भरपूर एल्बी या गुजाइश होती थी ।घर आकर इत्मीनान से   सिर्फ सायकल के मडगार्ड को जिसमे सायकल स्टोर का नाम नम्बर होता , बदल कर औने पौने  कीमत में  बेच देता ।बदले मडगार्ड को नदी तालाब के हवाले कर देता |सायकल की धडाधड होती चोरियों ने, लोगों को चौकन्ना कर  दिया।तमाम सायकल स्टोर के किराया-रजिस्टर में वारदात के दिनों की एंट्री की जाँच हुई |सूत्र सिवाय एक श्रीवास्तव सरनेम कामन मिलने के, अतिरिक्त कुछ हाथ न लगा  ।पुलिस ने स्टोर मालिको को चौकन्ना कर  दिया कि किराए पर सायकल उठाने वालों के नाम को गौर से चेहरा देख  लिखा जावे ।इसी के बूते अपने श्रीवास्तव जी ,जो मोहल्ले से  दूर के किसी  सायकल स्टोर में, जहाँ कभी  रोहन- सोहन नाम के साथ श्रीवास्तव उठा लेता  था , किसी दिन रोहन की जगह श्रीवास्तव सरनेम के साथ  सोहन लिखवा बैठा| उसकी चोरी की दुनिया की अक्लमंदी में मंदी शुरू हो गई ।सबूत के अभाव में वह छोट तो गया मगर लोग उसे इलाके में देख भर ले अपनी-अपनी सौकल से चिपक जाने लगे |

तीसरा चरित्र उन दिनों के ख्यातनाम कवि और अदब से ताल्लुक रखने वालों से बावस्ता है |इनमे से कुछ अब दिवंगत हैं|,उन सब की रूह जन्नत में आराम नशीं हो |आमीन |
कवी महोदय , नई पौध के लेखन को प्रोत्साहन के नाम पर नुक्कड़ के किसी चाय के टपरे में मजमा लगाए रहते थे |खाली समय व्यतीत करने के लिए, उनकी जन्दगी में, ताश और जुआ, शगल आदत और मजबूरी का मिला-जुला, दखल रखता था |यूँ कहें जब ताश नहीं तो बस शायरी, गजब का विरोधाभास लिए उस इंसान को हम लोगों ने जीते हुए  देखा है |
उनकी शायरी का जबरदस्त लोहा मानने वालों में दो तीन नाम याद हैं| एक नत्थू साहू व्यंगकार  ,दूसरा कौशल कुमार उभरता गीतकार ,तीसरा राम चरण कहानी कार ....|आगे चल के ये लोग कुछ बने या नहीं पता नहीं चला |
नत्थू उन दिनों सेवादार की भूमिका होता |’गुरुजी’,इस आदरणीय संबोधन से बात शुरू करता |  इस गणेश उत्सव ,और नव-रात्री की जबरदस्त तैय्यारी करवा दीजिये बस |दस बीस कवी- सम्मेल्लन निपटाने लायक तगादा मसाला हो अपने पास |मजा आ जाएगा |आपने शायद किसी कवी के मुह से ये बात न सुनी हो तो अटपटा लग सकता है|जाने भी दो |
 गुरुजी घर में ख़ास आपके लिए चिकन बनवाया  है ,कहते हुए पुराने अखबार रखकर टिफिन सजाने लगता |मुर्गे की टांग के साथ, शेर कहते हुए गुरुजी को देखके, नत्थू धन्य  हो जाता |उसी टांग खिचाई में गुरुजी अपनी किसी पुरानी रचना को यूँ सुनाते जैसे मुर्गे की प्रेरणा से  इस रचना का सद्य निसरण हुआ है |मुर्गा-प्रेरित रचना को नत्थू नोट करके अपनी डायरी को धन्य कर लेता |दस-पन्द्रह मुर्गों की बलि से नत्थू का कवि-सम्मलेन भारी वाहवाही की उचाई को छू लेता |अखिल भारतीय स्तर के एक कवी-स्म्मेल्लन का जिक्र कई बार उनके मुह से सुना है |गुरुजी क्या भीड़ थी ,खचाखच ,अपन ने ”इतने हम बदनाम हो गए”  वाली रचना सुनाई| क्या दाद मिला गुरूजी कह नहीं सकते |’माया रानी’ जो ख्याति लब्ध मानती थी सन्न रह गई |यहाँ तक कि लोगों ने हूट करके अगले दौर में  बिठा तक दिया |
उन दिनों , लाइव टेलीकास्ट और सेल्फी युग नहीं था वरना नथ्थू के छा  जाने वाली बात की तस्दीक हो जाती|
खैर यूँ  गुरु-चेले की निभती रही| नत्थू की दुकानदारी को देख के कई नौसिखिये इस मौसम के उपयोग हेतु आने लगे |गुरुजी बाकायदा दस-दस रुपयों की बोली में रचनाएँ बाँटते| जिसे नव-लेखक उत्साह से दूर दराज के गाँव में जाकर पढ़ते |चूँकि गुरुजी शहर से बाहर कभी निकल के कभी  कविता पाठ नहीं किये थे अत: उनकी सख्त मनाही थी, कि दुर्ग-शहरी क्षेत्र में कोई रचना न पढ़ी जावे |मूल लेखक के उजागर हो जाने का खतरा है |अगर इस इलाके में पढना है तो बाकायदा ताजी रचना लिखवाना | लोग ख़ास मौको पर ताजी रचना भी गुरुजी का मूड बना-बना कर  हलाल करने लगे |

एक दिन हमने गुरुजी से यूँ ही पूछ लिया आप जानते हैं ,आप साहित्य को बदनाम करने लगे हैं |वो कहते जब पेट की आग धधकती है तो ये मान के चलो ,कोई नज्म ,गजल या कविता आग बुझाने नहीं आयेगी |केवल रोटी से ही ये आग बुझेगी |नौकरी पेशा तो हम हैं नहीं कैसे चल-चला पाते हैं,हमी को पता है |वैसे भी  आजकल, मानो साहित्य मर सा गया है ,इसका स्तर कितना गिरने लगा है |मुझे मालुम है ये जिस सम्मेलन में जाते हैं मुश्किल से इन्हें सुना जाता होगा| लतीफे-बाज, चुटकुले-बाज मंच छोड़ते नहीं|चिपके रहते हैं |उनका अपना ग्रुप होता है |तू मुझे बुला मै तुझे बुलाउंगा | जब ये चुटकुले-बाज  पी के धुत्त होकर  पढने लायक नहीं होते तब हमारे साहित्यिक रचना की बारी आती है |
कुछ विद्रोही  रचनाओं को अखबार में .पत्रिका में छापने वाले भी, सरकारी विज्ञापन कट जाने के भय  से दरकिनार कर देते हैं |सर पटक लो वे नहीं छापते |
ऐसे में साहित्य का कहाँ  से सर उठाये और साहित्यकार किस बूते  जिए.....? बताओ ......?
ये लोग जो हमारा लिखा पढ़ रहे हैं, उसे  किसी समय हमने उत्साह से लिखा था| चलो , किसी बहाने लोगो तक अपनी रचना पहुच तो रही है ....यही संतोष है ......|उनकी बेचारगी मुझे झझकोर कर रख दी| उनकी आत्मा को प्रभु  शांति दे .....

उनका गमगीन चेहरा, इन  शब्दों के साथ जब भी मुझे याद आता है ,मुझे साहित्य से यक-ब-यक अरुचि और विरक्ति सी होने लगती है |
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com  ०९४०८८०७४२०  //१०.०२.१६

एक शिष्टाचार सप्ताह ....

एक शिष्टाचार सप्ताह ....

नत्थू ,रोनी सी सूरत लिए मेरे पास आया ,मैंने पूछा, क्या परजाई जी से खटपट हो गई है.....?
 .....वो, .....,आप तो अन्तर्यामी है प्रभु, के भाव लिए ....’सही पकडे हैं’ के अंदाज में मेरे निकट कालीन पर बैठ गया |
मैंने कहा वत्स ....सविस्तार बयान करो ,बेखौफ कहो ....पत्नी की चढ़ी त्योरी को ध्यान में लाओगे तो सब कुछ ‘भीतर धरा’ रह जायगा |
यहाँ मै ‘प्रभु’ की भूमिका में खुद को रखकर टी वी से मिले अधकचरे  धर्म ज्ञान की पोटली में से कुछ निकाल के, उसको देने की प्रक्रिया में लग जाता हूँ |.
यों तो ......”भीतर धरा रह जाएगा” ,केवल इस एक वाक्य के तहत पोथी भर का ज्ञान दिया जा सकता है परन्तु इसके लिए समय और सुपात्र की तलाश करनी पड़ेगी ,हर लाईट सब्जेक्ट पर ज्ञान को लुटाना लिटरेरी ठीक भी नहीं ......?
 मेरी जगह दूसरा भी होवे तो, इस लाभ को दुल्लत्ती मारने की बेवकूफी नहीं कर सकता |
‘पत्नी-प्रताड़ित’ कम लोग ही खुल कर बयान देते देखे गए हैं|मन-मसोस कर रहने वाले घुटते- घुट जायेंगे, मगर जी से पत्नी के खिलाफ बोलने  की हिम्मत जुटा पाने में, एक अघोषित-शर्मिन्दगी से दो-चार होते रहते हैं |
मगर नत्थू के साथ ऐसा नहीं था |उसका अडिग विश्वास मुझ पर था, कि इधर की बात उधर करने वाला ‘वायरस’ मुझमे नहीं है |
बोलो भी,चुप रहना था तो ,मेरा समय खराब करने काहे चले आये .....?
उसने, धरावाहिक ‘सास-बहु सीरियल’ में से , बहु वाला पार्ट रिलीज किया |
आपकी परजाई, पिछले कुछ दिनों से,अखबार में सोने के भाव कम होने की खबर क्या पढ़ रही है ,हाय-तौबा मचाये रहती है .....|
नत्थू जी,सिम्पल सी बात है ,आप अखबार लेना  बंद काहे नहीं करवा देते ....?
आप भी.... सर जी .....? अखबार बंद करवाने से रोग मिटाता तो मिटा लेते ,ये टी वी और उनकी सहेलियों के व्हाट्स ऐप और सोशियल मीडिया का क्या करे.... पल-पल की खबरें ब्रेकिंग-न्यज माफिक चलाते फिरते हैं |
बीस-तीस रूपये दाम भी सोने के , गिरते-बढ़ते हैं, तो आफिस में मोबाइल घनघना दे हैं |बोलो सोने में बीस-तीस मायने रखता है भला .....?
आफिस से थके-हारे जो  वापस आओ, तो चाय काफी के पहले ‘सराफा’ के उठाए चढाव पर तप्सरा चालु हो जाता है |
किस बहनजी के घर कितना ग्राम,.कितना तोला आया ,उन्हें एक-एक माशा-रत्ती का हिसाब मालुम होता है |
वे हमसे मुखातिब कहती हैं , मालुम .....शर्मा जी के यहाँ पुरषोंत्तम मॉस के बाद,किलो के हिसाब से खरीदा जाने वाला है, ऐसा अपनी कालोनी की लेडीज क्लब में चर्चा है .....?
मै साश्चर्य पूछता हूँ .....साले की नम्बर दो की कमाई अब छलकने को आई ....|
मुझे बताना कब खरीदने वाले हैं ......ऐ सी बी .....वालो का रेड डलवा दूंगा .....?शरीफों की बस्ती में,तमीज नहीं है , रहने चले हैं ...नंबर दो वाले .....|
ये ल्लो ...आपको सही बात बताओ तो मिर्ची लग जाती है|जिनके पास है ,भाव गिरे तो हम आप कौन हैं रोकने वाले .....?
 दूसरों के साथ लड़ने-भिड़ने की जुगाड़ चौबीसों घंटे  लगाये रहते  हैं आप |कहे  देती हूँ ऐसे बहाने से मै डिगने वाली नहीं......?शादी के बाद एक रत्ती भर लिवाये हो तो कहो ....आपको जब भी बोलो कान की दिला दो,हाथ की खरीदो ,गला सूना लगता है ....तो अपनी शेरो शायरी में घुस जाते हो .....कहे देती हूँ सब आग में झोक दूंगी .....एक दिन ....बहुत हो गया देखेगे-देखेगे की  सुनते ....|
सर जी ,पानी तो बादल फटने जैसा सर से उप्पर होने को है ...आपके पास ,’सोना नहीं खरीदने के हजार बहाने’; जैसी कोई किताब हो तो बताओ.....
नत्थू जी ,गृहस्थी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए पति का स्वर्ण-दान समारोह भी समय-समय पर होते रहना चहिये....समझदार पति इसे इन्कार करके कभी सुखी नहीं रह सकता ....|खैर ये सब तो सक्षम पति के चोचले हैं|तुम्हारे साथ अभी पत्नी-जिद से निपटने वाली समस्या का निदान होना पहली प्राथमिकता है ....?बोलो ऐसा ही है या ......
ठीक है ,दोनों तरफ देखते हैं .....|
तुमने परजाई से पूछा कितनी रकम है....?
हाँ पूछ देखा.... हमने कहा पैसे  निकालो.... ,तो कहने लगी रकम,पैसा, तनखा कभी हाथ में दिए जो हिसाब मांग रहे हो ....?ठनठन गोपाल रखा है .....?आज तक मेरी हर ख्वाहिश मायके से पूरी होते रही .....होश है आपको .....?
जितने गिनवा के लाए थे, उसका चौथाई भी चढाये होते तो पाँव-आध किलो बदन पर फबते रहता ....|चार लोगो में शान से उठती-बैठती....... |        
सर जी उनके मायका पुराण चालु हो जाने के बाद मेरे पास डिफेंसिव  शाट खेलने के अलावा कोई दूसरा विकल्प बचता नहीं ....?
सर दर्द,आफिस में ज्यादा काम ,थकावट जैसे आम-आदमी वाले बहाने सूझते हैं |
डाईनिग टेबल पर रखी दवाइयों के डिब्बे से एक-आध गोली दिखाने के नाम पर यूँ ही  गटक लेता हूँ |
मेरे तरफ से घोषित मौन पर, युद्ध-विराम पर, रात, दस बजे समझौता-वार्ता की पहल के  तहत खिचडी परसी जाती है मै चुपचाप खा के सो जाता हूँ .....|
नत्थू जी , नारी-हठ का गंभीर मामला  है|
ये सोना जो है ना ,युगों से अपना खेल खेलते आया है |सीता मैय्या भी स्वर्ण मोह से बच नहीं सकी थी ,उनने न केवल अपने लिए, वरन अपने पति के लिए भी विपत्ति को बुलावा भेज दी |
न प्रभु स्वर्ण-मृग के पीछे भागे होते,न रावण सीता-मैय्या को उठा ले गए होते |खैर वे सब तो जैसे-तैसे मार-काट के निपट लिए ...अभी समस्या आपकी है .....?
कितनी रकम है आपके खाते में .....?उधर ख्वाहिश किस चीज की हो रही है ....?कितने तक आ जाएगी  .......?
सर जी, डिमांड पाच-तोले की है ,लगभग डेढ़ लाख तक आ जायेगी ....|मै चाहता हूँ वो अपनी चादर की हैसियत से पांव फैलाना जाने  ......
ऐसा करो, तुम्हारी कार की सेकंड हेंड वेल्यु भी इतनी ही होगी, उसे मेरे गैराज  में डाल दो ,कहना कि हार के लिए बेच दी....|पैसा दो तीन दिनों में मिलेगा ,फिर हार ले लेगे ....|
और हाँ ...कल से शिष्टाचार सप्ताह मनाना शुरू कर दो .....?
मतलब .....?
मतलब ये कि खाने में एक-आध रोटी कम कर दो|रात को आफिस का काम फैला लो |सुबह मार्निग वाक् चले जाओ ,अगर घूमना पसंद नही तो सौ कदम दूर, चाय की दूकान में बैठ के अखबार पढ़ के वापस चल दो ......आफिस मोटर सायकल से आने जाने लगो  .....एक जी तोड़ के चाहने वाले धासु पति की छवि बनेगी जो बीबी की इच्छाओं के पीछे अपने तन-मन-धन को जी जान से लगाये देये जा रहा है .....
सर जी,..... इन सबसे होगा क्या .....?
वो सारी...... कहके आगे-पीछे चक्कर लगाएगी .... जिद करेगी ,कार वापस ले आओ ....बिना कार के नाक कटती है .....जी .....|जब पैसे आ जायेगे, नेकलेस की तब सोच्चेंगे ......|
भाई नत्थू ,,,,मेरे इस सुझाव को अमल में लाने के बाद संकट टल गया की मुद्रा में निश्चिन्त मत हो जाना ....|
वैसे, परजाई जी, का हक़ बनता है ,कहो तो  आज ही किसी ज्वेलरी शाप चलें ,कल सोने का  कहीं भाव न बढ़ जाएँ ....?
कार और ज्वेलरी दोनों पाके,उधर से अगाध प्रेम उमड़ेगा.... ,उसकी साक्षी बनने मै चाय पर जरुर आउंगा ,तब तुम्हारी काबलियत की तारीफ करके, सोने में सुहागा कर दूंगा ....
चमक किस-किस की दुगनी होती है ....देखें .......              

सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com  ०९४०८८०७४२०