Thursday 23 February 2017

साधू न ही सर्वत्र ....



साधू न ही सर्वत्र ....

जैसे हर पहाड़ में माणिक, हरेक गज के मस्तक मोती, हर जंगल में चन्दन का पेड़ नहीं मिलता, वैसे ही हर कहीं साधू मिल जाए, संभव नहीं है |
वे जो साधू होने का स्वांग रचते हैं, विशुद्ध बनिए या याचक के बीच के जीव होते हैं |साधू का अपना घर-बार नहीं होता|घर नहीं होता इसलिए वे कहीं भी, रमता-जोगी के रोल में पाए जाते हैं |’बार’ नहीं होता इसलिए वे पीने की, अपनी खुद की व्यवस्था पर डिपेंड रहते  हैं|
टुच्चे साधू, कभी-कभी ,जजमान की कन्याओं को ‘बार-बाला’ दृष्टि से देहने की हिमाकत कर लेते हैं |अपनी निगाह में उनको  चढाये-बिठाए रखने की  लोलुपता में नहीं करने लायक कृत्य कर बैठते हैं |
साधू का राजनीति-करण हो जाए, तो बल्ले-बल्ले हो जाता है | शराब-माफिया ,ठेका-परमिट के  खेल से पैसा पीटते इन्हें  देर नहीं लगती|रातों-रात आश्रम की जमीन में भव्य-महल खडा हो जाता है |लग्जरी-कारों का काफिला .नेशनल परमिट की बसे. आश्रम के पास की नजूल जमीनों में खड़ी होने लगती हैं |
देने-वाला जब भी देता, पूरा छप्पर फाड़ के देता, वाली कहावत का  पीटने वाला डंका इनके हत्थे  लग जाता है |
सर्वत्र नहीं मिलाने वाले, साधू की तलाश में मै बरसों से हूँ |
जंगलों में ,पहाड़ों पर ,गुफाओं में सैकड़ो लीटर पेट्रोल फुक कर ढूढ़ डाला |जबरदस्ती, कई साधुनुमा चेहरों के सामने हथेली रख कर भविष्य पढवाया| वे लोग आम तौर पर एक कामन वाक्य बोलते रहे, बच्चा तू सबका भला करता है मगर तेरा भला सोचने वाला कोई नहीं है|तेरे मन में ऊपर वाले के प्रति बहुत आस्था है |तू खाते पीते घर का चिराग है |मुझे लगता ,मेरे कपडे व गाडी को देख के वे सहज अनुमान में कह देते रहे होंगे | तेरे पार धन वैभव की कोई कमी नहीं तू हर किसी के मदद के लिए अपने आसपास की जगह में जाना जाता है |मै उनसे कहता ,बाबा मै एक सच्चे साधू की तलाश में भटक रहा हूँ मेरी कोई मदद करो .....?वे कहते अब तू हमारी शरण में आ गया तेरी तलाश पूरी हुई भक्त जन |
मुझे कभी लगता था कि एकाध साधू ,किसी दिन मुझे हातिमताई- नुमा आदमी समझ कर निर्देशित करेगा कि बच्चा यहाँ से हजारों मील दूर, सात समुन्दर पार, एक ‘मुल्क ऐ अदम’ है ,वहां हजारों साल से एक योगी ध्यान लगाए बैठा है जो भी उसके पास फटकता है वह अपनी तीसरी आँख से जान लेता है और या तो उसे भस्म कर देता है या उससे  रीझ कर, खुश हो कर, इस संसार के सभी एशो आराम से नवाज देता है...... |
इस अज्ञात साधू के वचन से एक साथ दो छवियाँ मेरे  सामने हटात  उभरती है ,एक ओसामा दूसरा बगदादी .....|दोनों पहुचे साधू जमात के बिरादरी वाले लगते हैं |इनकी ध्यान मुद्रा में खलल डालने का मतलब है खुद को भस्म हो जाने के लिए पेश कर देना |और इनके कृपापात्र बनने का, भगनान न करे कोई नौबत आये ....चाहे  लाख सुख आराम वाले घर मिले या , एयर-कंडीशन शौचालय में, कल्पना की उड़ान का अपशिष्ट, त्याग करने की व्यापक  सुविधा हो|
वैसे दोनों संत  समुंदर-पार हजारों मील दूर रहते हैं |
मै ‘कल्पना-बाबा’ से देशी-उपाय, बाबत आग्रह करता हूँ |कोई देशी- टाइप साधू जिसकी पहुच,आत्मा-परमात्मा तक भले न हो कम से कम परलोक सुधारने का नुस्खा या टिप ही दे दे |
‘कल्पना बाबा’ ने गूगल स्रोत पर विश्वास किया और आजमाया |बहुत खोज-ढूढ़ के बाद एक, त्रिगुण नाथ शास्त्री नामक गेरुआ वस्त्र धारी का संक्षिप्त परिचय मिला,
वे तीन गुणों के कारक कहे-समझे जाते थे पहला गुण वे निरामिष, निराहार ज्यूस पर टिके होने का दवा करते थे |दूसरा लगातार पांच इलेक्शन लाखों-मत के अंतर से जीतते रहे |वे अनेकों बार मंत्रिपद ठुकरा चुके थे |उनके पास आदमी को पढने की दिव्य शक्ति थी |
ऐसे दिव्य पुरुष के नजदीक फटकने  का कोई सीधा-सरल उपाय सूझते न देख, हमने पत्रकार वाला चोला पहना |इस देश में यही एक सुविधा है कि, जब चाहे आप अपनी सुविधा के अनुसार अपना डील-डौल ,हील-हवाले चुन -बदल सकते हो |
मै एक माइक लिए उनके सामने था |
शास्त्री जी ,आप गृहस्थ-साधू के रूप में जाने जाते हैं ,आपमें आदमी को पढने की दिव्य शक्ति है ,आप इलेक्सन कभी नहीं हारते .....इन सब का कारण क्या है .....?
देखिये श्रीमान ...! आपने बहुत सारे प्रश्नों को एक साथ रख दिया है ,मै एक-एक कर के उत्तर देने का प्रयास करूंगा  ...
जहाँ तक ‘आदमी को पढने’ की बात है, मै ज्यादा तो कुछ दावा नहीं करता बस मीडिया वाले यूँ ही उछाले बैठे हैं ,वैसे आपको सामने पा कर लगता है कि आप बहुत दिनों से किसी ‘ख़ास-आदमी’ की तलाश में भटक रहे हैं |मेरा मनोविज्ञान कहता है की आपको इस मोह-माया वाले संसार से कुछ लेने-देने का मोह भंग हो गया है |जिस व्यक्ति या वस्तु  की आप बरसों से तलाश कर रहे हैं, उसे विलुप्त हुए तो सदियाँ बीत गई |इस मायावी संसार में ,भगवान पर सच्ची आस्था रखने वालों की अचानक कमी हो गई है, बस मजीरा-घंटी पीटने-हिलाने वाले, कुछ लोग बच गए हैं |मेरा इशारा तुम समझ गए होगे .....?
मै चकित हुआ, चकराया ! एकबारगी लगा  क्या घाघ आदमी है, मगर दुसरे ही पल अपने गलत सिचार को विराम दे, उनके प्रति श्रधा के कई  सुमन अपने आप खिल आये |
वे आगे कहने लगे ,जहाँ तक इलेक्शन जीतने का सवाल है ,मै अपने इलेक्शन-सभाओं  में  विरोधियों की जमकर तारीफ करता हूँ ,इनकी एक -एक खूबियों को जनता को गिनवाता हूँ, उनसे आग्रह करता हूँ कि, मुझसे सक्षम उम्मीदवार, वे लोग ही हैं| कृपया आप उनको चुन-कर .जिता लाइए| वे आपका भला करंगे |अकारण सारे वोट मुझ पर आ गिरते हैं |
आज नाली-सडक बनवा देने मात्र से जनता खुश होने वाली नहीं उन्हें मानसिक सुकून की तलाश है, जो गुंडा-मवाली किस्म का कैंडिडेट नहीं दे सकता इसलिए उनका झुकाव मेरी तरफ आप ही आप  हो जाता है|
रही बात, मेरे गृहस्थ-साधु-रूपी छवि की, तो बतला दूं मै सेवागाम में पहले, अपने पिता जी के साथ सेवा-टहल में लगा रहता था |वहां के संस्कारों की अमित छवि है | आचार्य जी का, रहना, उठाना, बैठना पास से देखा है, सो वही दिलो दिमाग में काबिज है |
मुझे लगा मेरी तलाश लगभग ख़त्म हो चुकी है ,एक सच्चा साधू जरूरी नहीं कि वन-कंदराओं  में  भटकता फिरे ....उससे ,वो ज्यादा सच्चा है जो दुनियादारी में फंसकर भी बेदाग़ निष्कलंक रहे |
सुशील यादव

No comments:

Post a Comment