Friday 10 August 2012


जाने  कहाँ गए वो दिन
मै कोई दस –बारह साल का रहा होऊंगा,स्कूलके रास्ते वापस आते कचहरी चौक में एक सांप वाला मजमा लगाए रहता था | तरह तरह के २०-२५ सांपो से भरे डिब्बे रखता था वो | हम लोगो की छुट्टी का  समय उसे बखूबी याद रहता | दस –बारह बच्चो से उसका काम शुरू हो जाता |एक के बाद एक डिब्बे खोलता ,सांप के साथ हरकते करता | हमारे लिए ये हरकतें अजीब हलचल पैदा करने वाली बात होती | सांपो के बारे में उसकी जानकारी किसी इन्सैक्लोपिडीया से कम नहीं लगती थी उन दिनों |उसकी  जानकारी देने की रफ्तार मजमे में  भीड़ बढ़ने के साथ-साथ बढते जाती | वो बाकायदा सिद्ध करने की कोशिश करता कि किस मशक्कत के साथ उस सांप को पाया है |इससे ज्यादा जहरीला सांप किसी के पास  नहीं |वो एक सुंदर से बक्से की तरफ इशारा कर हरदम सस्पेंस बनाए रखता कि उसके पास एक खतरनाक सांप है जो उड़ता है |काट दे तो कोई पानी न मांगे |अपने दुश्मन की फोटो खीच के रखता है | ऐसे बदला लेता है कि दुश्मन का विकेट देखते- देखते उखड़ जाए | मै बहुत उत्सुकता से हर रोज उसके सस्पेंस के अन्त तक पहुचना चाहता ,मगर उसे बच्चो वाले भीड की जरूरत नही होती| वो कमर्शियल होने लगता | उसकी जानकारी अब गाँव –देहात से मुक़दमे –सुनवाई में आए लोगों की तरफ मुड चुकी होती |वो गंडा-ताबीज की बातें करने लगता |किस सांप से  क्या निकाल के कौन सी ताबीज बनाया है ,जो मुकदमें का रुख मोड़ सकता है ,पेट दर्द ,गठिया ,लकवा ,आधा-शीशी ,सर्दी-जुकाम से केंसर तक से निजात दिला सकता है |हम तबभी  बड़ी उम्मीद मे रहते  कि आखिर में वो पिटारा या डिब्बा जरूर खोलेगा जिसमे उड़ने वाला सांप बंद किए रखा है | मजमेबाज, भीड़ को उकसाने के पहले हम बच्चो को भगा देता |कहता अब जो कहना है उसे बच्चे न सुने वरना सांप से फोटो खिचवा देगा |हम मन मसोस कर लौट जाते , तब भूख भी लग आती थी |सांप वाला अपना खेल जरी रखता , वो मर्दानगी की दवा का दावा करता| तेल की नुमाइश करके बताता कि आदमी कितनी देर तक ठहर सकता है |लोग ताबीज से तेल तक खरीद कर ले जाते |वे  अपने मुक़दमे में अपनी जीत का सपना पालते | अपनी मर्दानगी तेल के जरिये  सलामत रखते , हर मर्ज में,  उसकी दवा खाते |उन दिनों वे सब लाइलाज बीमारी में भी  खुश थे | जाने कहाँ गए वो दिन |
हाँ , आजकल मै जंतर –मंतर,रामलीला मैदान, इन दिनों  टाइम पास करने चला जाता हूँ |
सुशील यादव