Tuesday 21 February 2017

सबकी नावें .....
केवल सुख आधार नहीं है
कल्पना में विस्तार नहीं है

सबकी नावें पार उतरती
अपना बेड़ा-पार नहीं है

नगद-नगद ही कसमे खाई
तुमसे कहीं उधार नहीं है

सुलग-सुलग जाती ये बस्ती
सोई कहीं सरकार नहीं है

जात-पात नाम ठगी है
ढाई-आखर दरकार नहीं है

बेच के घोड़े मस्ती में सोए
किस्मत-धनी लाचार नहीं है

अंधविश्वास सबकी बीमारी
ठोस कहीं उपचार नहीं है

लोग नफा-नुकसान सोचें
चाहत अपना व्यापार नहीं है

सुशील यादव
२.११.१६.

तितली ...
ऐसी तितली वैसी तितली
जाने कैसी-कैसी तितली

फूल-फूल का रस लेती
पत्ते आराम से बैठी तितली

कभी-कभी बारिश हो जाती
कुछ बुँदे, पर-पैर भिगाती

गीले फूलों कुछ खींच न पाती
मन-मसोस रहती तितली

कुछ दिन से बाग़ न आती
फूल-रस ना पराग उठाती
बात-बात पर गुस्सा हो जाती
मैंने देखी एक अनमनी तितली

अद्भुत तितली संसार सुहाना
छीट-रंग का बेमोल खजाना
तितली अपना वजन रखे न
हल्की-फुल्की होती तितली

सुशील यादव
६.११.१६

सोचती हूँ तुझे.....
~
सोचती हूँ तुझे सब ध्यान में रखती हूँ
ये शराफत जतन से म्यान में रखती हूँ

कब सजाने दिया तुमने मुझे तस्वीरे
चीज हर फेकने की मकान में रखती हूँ

गुजर जाती, रो-रो के जिन्दगी भी अपनी
दर्द चुपचाप ही मुस्कान में रखती हूँ

तडफ सीने उठा करती है रह -रह शायद
कोई तेज़ाब जहन- जुबान में रखती हूँ

सितम लोगो ने क्या ढाए बताना मुश्किल
रोज दीपक कहो तूफान में रखती हूँ

सुशील यादव

ग़ज़ल ...

.विरासत की जमीनों को ....

मेरे छत को , तुझे बादल,भिगोना भी,नहीं आता
कई सदमे ,रहे आसां, जहाँ रोना भी नहीं आता

रूठा रहता कई दिन से मेरे जज्बात का मासूम
मेरी जानिब इधर बिकने खिलौना भी नहीं आता

विरासत की जमीनो को, कहाँ रख पाते हैं उर्वर
सभी काट रहे फसलें, हमको बोना भी नही आता

जुलाहा ही , नसीब मेरे , लकीरे, यूँ, बुना बैठा
मेरे हिस्से तरीके से , बिछौना भी नहीं आता

कई दिन से, मेरी आदत, शुमार अभी , लगा होने
कभी घर लौट आते मगर , सोना भी नहीं आता

......सुशील यादव ....१४.९.१६ .
नवगीत ::इसीलिए तो ...
##
होंठ सिए हमने अनुबंधों में
जहर पिए खुद सौगंधों ने
इसीलिए तो
बस्ती सपनों की
रात बसाई
रह -रह उजड़ गई
रह -रह उजड़ गई ....
##
अंधियारे सा अभिशापित मन
उजियारे का क्या देखे दर्पण
इसीलिए तो
अनुकरण की
बात बनाई
रह -रह बिगड़ गई
रह -रह बिगड़ गई ....
##
दर्द का तब अहसास नहीं था
राहत -मलहम पास नहीं था
इसीलिए तो
बीच आपसी
गहरी खाई
रह -रह उभर गई
रह -रह उभर गई ....
##
मेहदी वाले हाथ ले अपने
लौट गए अनब्याहे सपने
इसीलिए तो
पथ यादों की
सुर शहनाई
रह -रह बिफर गई
रह -रह बिफर गई ....
सुशील यादव
११.९.१६

प्यासे को पानी ,,,,
प्यासे को पानी.भूखे को, निवाला देने की सोच
तुझमे है ताकत ,दिया तले उजाला देने की सोच

भ्रम का माया जाल बहुत , उलझाए रखता तुझको
सोई हुई जगा कलम ,कुछ अक्षर काला देने की सोच

गजनवी बनकर लूट रहे, जो चारों तरफ खजाने
आतंकी इन मंसूबों को, देश-निकाला देने की सोच

कंधे पर फिर कोई माझी, न पार उतारे लाशो को
नियम-कायदा मर्यादा मत, हील-हवाला देने की सोच

अच्छे दिन की तलाश जिसे, बुरे दिनों को याद करें
गेराज डाल अक्ल को सारे,ताला देने की सोच
सुशील यादव
११.९.१६
 है निजाम तेरा,
२२१२ २२१२ २२१२ १२१२
दरवेश के हर हुजरे से अब मेहमां हटाइए
जो लाश ले चलती गरीबी,दरमियाँ हटाइए

बार-ए-गिरेबा को कलफ न मिले जहाँ नसीब में
तहजीब की अब उस कमीज से गिरेबां हटाइए

ये है निजाम तेरा, सफीना सोच कर उतारना
चलती हवा दरिया से बे-मकसद तुफां हटाइए

उनको बिछा दो मखमली कालीन मगर साहेब
उम्मीद की बुनियाद हों काटे, वहाँ हटाइए

जाने कोई क्यों खटकता है आँख में दबा-दबा
अब हो सके मायूस नजरें अँखियाँ हटाइए
सुशील यादव
१.९.१६
दरवेश =saint
हुजरे=private chamber
बार-ए-गिरेबाँ-weight of coller ऑफ़ शर्ट
निजाम = व्यवस्था ,सफीना=नाव

अपनी सरकार .....

हाथो में दम-पतवार है साथी
माझी की कब दरकार है साथी

बस एक बिगुल से दौडे तुम चलना
सीमा की सुनो पुकार है साथी

छलनी-छलनी कश्मीर का सीना
घायल- मजहब, व्यवहार है साथी

है अपनी जमा पूँजी बस इतनी
साबुत सांझी-दीवार है साथी

उनसे मेरी अब निभेगी कैसे
मेरी-उनकी तकरार है साथी

हाशिये में बहुत आम हैं खबरें
सफा-सफा तो इश्तिहार है साथी

बैद- हकीम बैगा-गुनिया देखे
मुल्क अब तलक बीमार है साथी

देशद्रोह का इल्जाम है उनपर
मासूम कहीं गिरफ्तार है साथी

राम-राज लाने विदेश निकलती
अजीब अपनी सरकार है साथी
सुशील यादव
२५.६.१६

जिद की बात नहीं....
है कौन जिसे दर्द का एहसास नहीं होता
सब कुछ होते हुए भी,कुछ पास नहीं होता
$$$
चल देते हैं छोड़ , करीबी लोग अचानक
लुट जाने का मन को आभास नहीं होता
$$$
मै अपने तर्कों की दुनिया में हूँ तनहा
तेरी दखल यहाँ कोई , ख़ास नहीं होता
$$$
हर शाम बुझा रहता, ये दिल एहतियातन
जुगनू अच्छे लगते,जब उजास नहीं होता
$$$
समझा के रखता हूँ दिल-ए-नादाँ को तभी
जिद की बात नहीं, बहुत उदास नहीं होता
$$$
सुशील यादव

2122,2122,12
नसीहत थमा कर गया
दोस्ती का हक, यूँ अदा कर गया
मुझको मुझसे ही जुदा कर गया

कुछ दिनों से ,रूठ गया था, तभी
कश्तियों को सब डुबा कर गया

तैरना तब जानता भी कहा
हौसला हाथ से छुड़ा कर गया

घूंट भर सब खौफ के जहर पिए
वो मयकदे,डर उठा कर गया

तोड़ कर फूल, चमन के सभी
आँख पतझड़ को ,दिखा कर गया

उंगली जो थाम, चलता मेरे
वो नसीहत सा थमा कर गया

किस किनारे हो दो गज भर जमी
नाखुदा किसको बता कर गया

**** सुशील यादव ****
1,8,16
तू मेरे राह नहीं.......
जाने के साथ मेरे, पतझर चला जाएगा
खामोशी का आलम, मंजर चला जाएगा

नासमझी के और न, फेको पत्थर इधर-उधर
छुट के तेरे हाथ कभी गुहर चला जाएगा

माग अंगूठे की करते समय न सोचा होगा
एक गरीब का सरमाया , हुनर चला जाएगा

मेरे हक में ये कौन, गवाही देने आया
सुन के जमाने की बाते, मुकर चला जाएगा

रौनक महफिल की देख न ठहरा जाए हमसे
सदमो में ये दिल आप उठ कर चला जाएगा

शायद मै सीख लूँ, जीना तेरे बगैर सुशील
तू मेरे राह नहीं कि, मुड़कर चला जाएगा

सुशील यादव
२६.७.१६
हर निगाह चमक, हरेक होठ, हँसी ले के आओ
हो सके तो, कमजर्फो के लिए, जिंदगी ले के आओ

इस अँधेरे में दो कदम, न तुम चल सकोगे, न हम
धुधली सही ,समझौते की मगर , रोशनी ले के आओ

कुछ अपनी, हम चला सकें, कुछ दूर तुम चला लो
सोच है ,कागज़ की कश्ती है ,नदी ले के आओ
चाह के, ठीक से पढ़ नहीं पाते, खुदगर्जों का चेहरा
पेश्तर किसी नतीजे, हम आये , रोशनी लेके आओ

सिमट गए हैं, अपने-अपने दायरे, सब के नसीब
‘पारस’ की जाओ, कही ढूँढ के, ‘कनी’ ले के आओ

खुदा तेरे मयखाने, जाने कब से, प्यासा है ये ‘रिंद
’ किसी बोतल ,किसी कोने ‘बची’, ज़रा-सी ले के आओ
१२२२ १२२२
जहाँ भी जो भी होता है
न चाहें तो भी होता है

सियासत आलुओं अक्सर
बगावत गोभी होता है

तनाव रहे न शिकन कहीं
इंसा सफल तभी होता है

दर्द सब दिल से निकल गए
रहम ख़ास कभी होता है

मिराज में भटके तब जाना
तलब पाप सभी होता है

सुशील यादव
19.७.१६
२१२२ २१२२ २१२२ २२२

इतने गहरे घाव ....

खौफ रहजन का रखे हो ,दर खुला भी रखते हो
कोई घर में अजनबी , अपने सिवा भी रखते हो

जानता हूँ मै हकीकत सब , वफाओ की तेरी
याद के दश्त में भटकने का, सिला भी रखते हो

आइना किस काम का यूँ , लोग कहते हैं पागल
चेहरे में सब जहाँ के गम, मिला भी रखते हो

तुम उसी की सोचते , हैरान हुए जाते हरदम
वो तबाही सोचता, उस पे दुआ भी रखते हो

हाथ बंधे, पाँव बेडी डाल दी अगर किसी ने
बोल दो फूटें ज़रा, मुह में जुबा भी रखते हो

घाव इतने भी तहों तक , ना उतारा कर दिल में
सोच में अपनी जिसे, सालो हरा भी रखते हो

हो गया था जीतना तय,बस उसी दिन तुम्हारा
राम मुह में,जेब लेकिन , उस्तरा भी रखते हो

टूट जाते लोग चाहत को कंधे पर बैठाए
तुम इस जहाँ के नहीं जो हौसला भी रखते हो

सुशील यादव

हमर घर ले नहक के जाबे

कइसने मरे-बिहान हे गा
इही कोती दइहान हे गा

खेत-खार तोर सोन उगले
भाग में हमर गठान हे गा

एसो बादर जम के बरसय
फोकट पानी दुकान हे गा

कीचड़-काचड़, लदर- फदर हे
रसता बहुते असान हे गा

महंगाई के का रोवासी
भाजी-भात अथान हे गा

हमर गाव के हवे चिन्हारी
मनखे जियत मशान हे गा

हमर घर ले नहक के जाबे
सुग्घर बने रेंगान हे गा

सुशील यादव
१३.७.१६
२१२२ २१२२ २१२२ २
चेहरे क्यों हैं मलीन,.....
जिन्दगी को आदमी, आम की, नजर देखो
रख कभी सीने , वजन कोई , पत्थर देखो

डूबने लग जाए, स्वयं ही वजूद कभी
लहर उठती,रह किनारे, समुंदर देखो

आग नफरत की लगाकर, जो छिपा करते
उतरता 'खूनी' वहां कब , खंजर देखो

जो हमे बेख़ौफ़ मिलते, हर-कहीं हरदम
चेहरे क्यों हैं मलीन, आँखे भी अन्दर देखो

एक तमाशा सा, हुआ तेरे शह्र में कल भी
आज की, ताजी फिजा क्या है ,खबर देखो

@@@१८.१२.१५ ....सुशील यादव .


तुम बाग़ लगाओ, तितलियाँ आएँगी
उजड़े गाँव नई, बस्तियां आएँगी
जिन चेहरों सूखा, आँख में सन्नाटा
बादल बरसेंगे, बिजलियाँ आएँगी

दो चार कदम जो, चल भी नहीं पाते
हिम्मत की नई, बैसाखियाँ आएँगी

उम्मीद की बंसी, बस डाले रखना
किस्मत की सब, मछलियाँ आएँगी

सफर में अकेले, हो तो मालुम रहे
तेरे सामने भी, दुश्वारियां आएँगी

नाकामी अंदाज में, कुछ नये छुपाओ
अखबार छप के, सुर्खियाँ आएँगी
सुशील यादव

अपनी सरकार .....
हाथो में दम-पतवार है साथी
माझी की कब दरकार है साथी

बस एक बिगुल से दौडे तुम चलना
सीमा की सुनो पुकार है साथी

छलनी-छलनी कश्मीर का सीना
घायल- मजहब, व्यवहार है साथी

है अपनी जमा पूँजी बस इतनी
साबुत सांझी-दीवार है साथी

उनसे मेरी अब निभेगी कैसे
मेरी-उनकी तकरार है साथी

हाशिये में बहुत आम हैं खबरें
सफा-सफा तो इश्तिहार है साथी

बैद- हकीम बैगा-गुनिया देखे
मुल्क अब तलक बीमार है साथी

देशद्रोह का इल्जाम है उनपर
मासूम कहीं गिरफ्तार है साथी

राम-राज लाने विदेश निकलती
अजीब अपनी सरकार है साथी

सुशील यादव
२५.६.१६

मैं सपनों का ताना बाना

सुशील यादव

मैं सपनों का ताना बाना, यूँ अकेले बुना करता हूँ
मंदिर का करता सजदा, मस्जिद भी पूजा करता हूँ

मिलती फुरसत, मुझको जिस दिन, दुनिया के कोलाहल से
राम रहीम की बस्ती, अलगू जुम्मन ढूँढा करता हूँ

जब-जब बादल और धुएँ, बारूदी ख़ुशबू मिल जाती
उस दिन घर आँगन, छुप-छुप पहरों मैं रोया करता हूँ

मज़हब-धर्म के रखवाले, इतने गहरे उतर न पाते
जिस सुलह की गहराई से, मैं मोती साफ़ चुना करता हूँ

हम सब ले कर चलते, तर्कों के अपने-अपने मुखड़े
मेरी शक़्ल से तुम हो वाक़िफ़ किस दिन मैं छुपा करता हूँ

सहूलियत की खबर.....

तेरी उचाई देख के, कांपने लगे हम
अपना कद फिर से, नापने लगे हम

हम थे बेबस यही, हमको रहा मलाल
आइने को बेवजह, ढांपने लगे हम

बाजार है तो बिकेगा ,ईमान हो या वजूद
सहूलियत की खबर ,छापने लगे हम

दे कोई किसी को,मंजिल का क्यूँ पता
थोडा सा अलाव वही , तापने लगे हम

वो अच्छे दिनों की ,माला सा जपा करता
आसन्न खतरों को ,भांपने लगे हम
sushil yadav

२१२२ २१२२ २१२२
हम यूँ गुजरे, गए-बीते न होते
खुशबुओं तेरी कभी रीते न होते

क्या बताएं कट गये उदघाटनो में
काश टूटे पुल कटे फीते न होते
बेहिसाब उधेडते बखिया हमारी
अगर हम अपनी रिदा सीते न होते

लोग फांसी झूलते आये दिनों गर
दफन कर के कूबतें जीते न होते

बदल जाती सब जमाने की तस्वीरें
शान-शौक के आलम सुभीते न होते

रिन्द साकी की झलक के वास्ते हुए
वगरना बे इन्तिहा पीते न होते

खाल से अपनी पहन ली जूतियाँ अब
दौर ये वो है जहाँ कि फजीते न होते

सुशील यादव



_सुशील यादव

तप किस तपसी ने किया ,मल के राख भभूत
आत्मचिंतन सुई पकड़,ज्ञानी डाले सूत

देख जुलाहा हाथ की , तिरछी-खड़ी लकीर
ऊपर ने बुन क्या दिया,उलझी सी तकदीर

लोह ताप से भूलता ,अपनी खुद तासीर
खुद बिरादरी से पिटे,कभी न बोले पीर

मौन पीठ में लादकर ,चलता है ये कौन
जंगल सारा जल गया,बचा-खुचा सागौन
सुशील


ये ज़ख़्म मेरा
सुशील यादव
२२१२२ २२१२ २
ये ज़ख़्म मेरा, भरने लगा है
शहर इस नाम से, डरने लगा है

विष के प्याले, हाथों नहीं थे
'नस' ज़हर कैसे, उतरने लगा है

हाथ किस के आया, बीता जमाना
'पर' समय कौन, कुतरने लगा है

भूल रहने की, टूटी कवायद
रह-रह के अक़्स उभरने लगा है
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