Thursday 23 February 2017

मिडिल क्लास टाइप  ‘आचार संहिता’
सुबह –सुबह गनपत आया..... बधाई हो साहब जी.... बधाई ....|
उसके मौके-बेमौके  बधाई देने आने  का सिलसिला चलते रहता है |हर छोटी-मोटी बातों की बधाई पहुच जाता है और बधाई के नाम पर  चाय-नाश्ता हक से सूत लेता है |
मैंने पूछा किस बात की बधाई भाई.... ?इलेक्शन के रिजल्ट खुले तो हप्ते हो गए |
साहब जी दफ्तर में चर्चा थी ,आचार-संहिता हट गयो है |
बड़े बाबू मिठाई ले के प्रधान साहब को पहुचे थे |ठेकेदार लोग डब्बो पे डब्बा लिए बाटने आये थे|क्या खुशी का माहौल था मालुम .......?
दफ्तर में जो मुर्दनी छाई  हुई थी एकाएक जैसे काफूर हो गई साहेब |वो जो पिछले छह महीनों से लोकल और देश की पालिटिक्स के चलते  दफ्तर में ,लोगों का हर काम सरकार ने  ठप्प कर दिया था उस ‘बेन’ से छुटकारा मिला |
आचार-संहिता ने दफ्तर के मुह, नाक,कान में,जैसे  सेलो टेप लगा रखा था |वहा के लोगों को   कुछ देखने की, सुनने की, बोलने की मानो फुर्सत नहीं थी |एक रटा रटाया सा जवाब लोगों को  हाजिर कर देते  ,आचार-संहिता चालु है भई अभी कुछ नही हो सकता |
साहब जी आप तो अच्छे रहे ,आचार संहिता के पहले सस्पेंड हुए |आपका सस्पेंशन पीरियड छुट्टियों जैसे मजे में  बीता |कोई काम नहीं .....बस ...आराम ही आराम |अब अच्छे दिन में,फिर से बहाली , फिर पुँराना चार्ज |लगता है आप मुहूर्त देख कर अपना सस्पेंशन आर्डर निकलवाते हो साहब जी ...|पिछली बार भी जब सरकार बदली थी आपने अपने को सस्पेंड करवा लिया था |आफिस वाले सब कहते हैं ,किस्मत हो तो आप जैसी.... |
सब लाइन के  ‘एलाइन’ हो जाने के बाद  आप कमान सम्हालते हो |आपको बना –बनाया नया रेट मिल जाता है |नए लोगों के रंग-ढंग कम करने के तरीके ,बात-व्यवहार ,लेंन-देंन सब का अच्छा –खासा खुलासा हो जाता है |
मैंने कहा ,गनपत ,अब बस भी करो |फसवाओगे क्या..... ?
तुम जैसा सोचते हो ऐसा नहीं है गनपत |हम लोग मिडिल क्लास वाले हैं यहाँ तक धीरे –धीरे  साढ़े कदमो से पहुचे हैं |
हमारे घर में भी आचार-संहिता जब –तब लागू हो जाया करती थी |बाबूजी के पास एक पुरानी सायकल  थी ,54-55 में कभी नई खरीदी थी|मालुम तब कीमत थी एक सौ दस रुपये |पूरे महीने की कमाई, तब उतनी नही हुआ करती थी |आज उस पैसो की कीमत जानते हो कितनी होगी ?पूरे एक करोड .....?
गनपत को  एक करोड रूपये का  गणित अटपटा लगा |उसे समझाया ,... ये जो सामने बिल्डिंग देख रहे हो वहाँ 54-55 में एक खेत होता  था |बापु को अगला, एक सौ दस में बेच रहा था ,वे नहीं लिए |दफ्तर सायक्ल से जाने का शौक था वे सायकल खरीद लाये |जब वे नानी के घर अम्मा को लेके सायक्ल में जो गए तब उसके स्वागत  सत्कार में जो जश्न मना उसके किस्से सुनकर एक करोड का गम हल्का कर लेते हैं ,चलो उनके हिस्से में वही खुशी थी |
हाँ ,वे सायकल को पूरी  बरसात किसी को छूने  नहीं देते थे|वे एक-एक पुर्जे की साफ-सफाई हम भाई-बहनों से ज्यादा कर लिया करते थे |ये थी उनकी सायकल  के प्रति अघोषित आचार-संहिता|इसी आचार-संहिता को तुम्हारी भाभी अब  मेरे कार पर लागू किये बैठी है |कहती है, कीचड में –बरसात में कार चलाओ मत |दुबारा लेने से तो रहे ,जतन से चलेगी तो बरसों टिकेगी |अपनी  कार ‘चौमासा’... गेरेज में बिता देती है |
अब तो रिटायरमेंट नजदीक है ,हम क्लर्कों का क्या जश्न ....?
तुम तो खुद जानते हो ...बस ये होता है, दफ्तर में चाय-पानी मुफ्त मिल जाती  है |चना-चबेना लायक गुजाइश निकल आती है, जो शाक –भाजी का काम  निकाल देती है|हाँ ये जरूर है ,दीवाली- होली में फटाको,रंगो ,मिठाइयों पर खर्च करना नहीं पडता ,बेहिसाब मिल जाता है |
ये ई सी वाले, इतनी मेहरबानी जरूर करते हैं ,इन त्योहारों के आस-पास संहिता के डोरे नहीं डालते |        
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ. ग.)










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