Thursday 23 February 2017

दाहिने हाथ का जुल्म .....


बचपन से आज तक हिंदू  देवी-देवताओं के अनेक फोटो के दर्शन किए |
सीधा-सादा एक नहीं मिला |
दस हाथों वाली देवी ,हरेक हाथ में कुछ न कुछ ,कोई हाथ खाली नहीं |
तीन सर वाला त्रिदेव ,ब्रम्हा ,विष्णु महेश…….
पांच सर के पंचमुखी हनुमान………. ,
दस सिरों  वाला रावण ………|
कहीं मत्स्य ,कहीं गजराज  ,तो कहीं सिंह अवतार वाले  अनेको ‘पावरफुल’ प्रभु .....|
सब की  अपनी–अपनी  स्टाइलिस्ट सवारी ....मूषक से शेर तक ..... |
प्रभु की शक्ति के आगे हजारों हार्स –पावर वाले  भीमकाय राक्षस बौने |उनकी जादुई शक्ति के सामने प्रकृति ,आग , पानी और हवा, अपना रुख कभी भी, कैसे भी बदल लेने तैय्यार रहती  थी |
तब के ‘सहस्त्रब्बाहू’ की अलौकिक लीला के किस्सो को सुन कर, यूँ लगता है कि साऊथ-इंडियन फिल्मकारों ने ‘रौउडी’ टाईप फिल्मी संस्करण में ‘हीरो’ के रोल में उन्ही प्रभुओं को कापी कर लिया है |
फिल्मो का समाज पर जो बुरा प्रभाव पडना था वो इन्ही ‘राउडी-हीरो’ की बदौलत , आज के ‘बाहुबलियों’ के व्यवहार में स्पष्ट दिख जाता  है |
ये स्वनामधन्य पप्पू, मुन्ना,मिर्ची ,डफर, सलीम कुर्ला  मजहर सायन ,जैसे बाहूबली, बिना किसी क्लैप किए एक्शन को उतावले हुए ,सर्व-व्यापी तैयार होते हैं|
फर्क इतना कि ‘प्रभु’ संस्कार वाले होते हैं ,ये  भक्त के बुलाए जाने पर ,या अगर मर्जी हुई तो स्वयं कृपा बरसाने के लिए, तीज-त्योहारों में भक्त के बीच, आस्था वाले चेनल के माध्यम से घुस आते  हैं |
 मगर बाहुबली, बिना बुलाए केवल वहीं  पहुचते हैं जहाँ  उनको, उनका ‘हित’ दिखता है |बगैर  अपना  ‘हित’ देखे वे तिनका भी उठाने को तैय्यार नहीं होते |
किसी टेंडर के खुलने-खुलाने का दिन हो तो वे ‘बैंड-बाक्स ड्राईक्लीनर्स’ से धुले हुए झक साफ कपडे पहन कर मोटी सी सोने के चैन और हाथ में रजनीगन्धा डिब्बा लिए कतार में पहले मिल जाते हैं |इनके कपड़ों के मिजाज को देखकर कभी ये नहीं लगता कि ये धुल-कीचड  में लोटने वाले ‘दाग अच्छे हैं’  लोग होंगे|
इनके हाथों में ट्रांसपोर्ट-परमिट निकलवाने का जादुई करिश्मा  ,रोड, सड़क,नाली ठेका पाने का जन्म सिद्ध अधिकार वाला  हक या जंगल ,पानी, आग, हवा,बिजली,जैसे विभागों में दखल रखने –रखाने का  झकास   बंदोबस्त होता है|
इनका ‘दाहिना हाथ’ एक-बारगी सक्रिय हो जाता है |वो पूछता है भाई जी बताओ तो सही कहाँ  फोडना है ?
अगर किसी टेंडर के कालम  में एक्सपीरियंस की दरकार हुई, तो ये केवल इतना  पूछते हैं ,क्या ,कहाँ, कितने दिन, किस कंपनी का ?
वे ला कर हाजिर कर देते हैं |या तो उनके पास  ब्लेंक फार्म का जुगाड रहता है, जिसमे जैसा चाहे भर लें  या तुरन्त एक और दाहिना हाथ टाइप, बन्दा वहीं पहुच कर बस इतना कहता है भाई ने एक्सपीरियंस की लिए कहा है|
बिना सेकंडों देर हुए ,साफ सुथरे प्रिंटेड लेटर हेड में अधिकारी द्वारा ,सर्टिफिकेट हाजिर  |
बाहुबलियों के,अतिरिक्त‘दाहिना-हाथ-नुमा आदमी’,या आदमियों की फौज कह लो, कमांडो स्टाईल में फुर्तीला और सक्रिय होता  है |
उनके  ‘दाये-हाथ वाले लोग’ मरने-मारने में उस्ताद होते हैं| उनके पास रामपुरी से ए.के .५६ सब कुछ मौके के हिसाब से मिल जाते हैं |
वीभत्स चहरे वाले ये लोग जहाँ भी जाते हैं, माहौल में सन्नाटा पसर जाता है |ये कभी खाली हाथ वापस आने वालों में से नहीं होते |
जितना कहा गया है उतना तो वे करते ही हैं ,कही-कभी अपना विवेक लगा दिए, तो कुछ ज्यादा भी कर जाते हैं |
मसलन बॉस ने कहा कल शहर बंद करवाना है ,स्साले मुच्छड़ की बोलती बंद करनी है ,बहुत पिटपिटाए जा रहा है |दाहिने-हाथो ने, शहर तो बंद करवाया ही  ,दो-चार बस भी फूक दिए ,दो-तीन को टपका आए सो अलग |
सहस्त्रबाहू, शहर-बंद से वापस आए अपने  ‘दाहिने-हाथो’, के कंन्धों  पर हाथ रख कर मजाक से कहते हैं ‘अबे चमचो ,जितना कहा जाए उतना ही किया करो’!
अपने थानेदार को ऊपर जवाब देते नहीं बनता !
फिर जेब से ‘दुअन्नी’ उछाल के कहते हैं ,लो ऐश करो , माहौल गर्म है , दो-तीन हप्ते, ‘इते मति अइयो’ |

सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर,Zone 1 street 3 ,  दुर्ग (छ ग)’

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