भावना को समझो..... व्यंग
वे आदमी बुरे नहीं हैं |
जुबान फिसल जाती है |उनकी फिसली जुबान को, पटरी पर चढा दी जावे या उनके कहे के मर्म को समझ लिया जावे, तो कोई दिक्कत पेश नहीं आती |
अभी~अभी उनने कह दिया, जो डाक्टर काम नहीं करते उनके हाथ काट देनी चाहिए |
क्रोधित स्टेथेस्कोप ने काम बंद करने की धमकी दे डाली|
उन्होंने सफाई दी, हमने तो कहावतों. मुहावरों का इस्तेमाल किया था बस |
अब उनके जैसे विद्वान को सफाई देने की नौबत आ जाए, तो प्रशासन कौन नत्थू खैरे सम्हालेगा ?
बातों के सफाई अभियान में, पांच साल कब निकल जायेंगे, बेचारे को पता ही न चल पायेगा ?
बेचारा ठीक से अपने धूप~ बदली~ बरसात के लिए, इन्तिजाम भी न कर पायें रहेंगे ? उनकी तरफ से चलो हमी, माफी~साफी की औपचारिकताएं पूरी किये देते हैं ,भाई सा ,भैन जियो , भावनाओं को समझो .....?
ये भी मान के गम खा लो, की वे अभी देहात के हैं |ज़रा शहरी मैल जम जाए, तब किसी अच्छे डिटर्जेंट से चाहे तो जी भर, धो डालियेगा |
एक उलट बात और.....|
मुझे ऐसे समाचार पढने में खूब मजा आता है ....|
मै इन धमकी भरे समाचारों का अचार, “दो सौ साल पहले की मटकी में” डाल के कल्पना के खूब चटकारे लेता हूँ |
यदि सचमुच कोई सुलतान~ बादशाह अपनी रियासत में “....ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर....” वाला हुक्म सुनाये,चलाए तो क्या नजारा होगा ...?
~ओय खबीस का बच्चा ....तुम किधर की डाक्टरी पास किया है ....?
ढोर का इजेक्शन आदमी को दिए फिरेला है ....?
हमारे राज में ढोर बिना इंजेक्शन के बेमौत मर रहे हैं ,कुछ खबर तुसी है कि नइ....?आदमी की जान अलग लिए फिरता है ,यानी हमारे राज में एअक हाथ से दो दो वारदात ......|बहुत नाइंसाफी है.....
दरबान ! सिपाहियों से कहो ,इस जुर्म करने वाले डाक्टर को ले जाएँ |इनके हाथ यूँ काट दें , कि किसी दूसरे को, जुर्म करने का साहस न हो | इनके कटे हाथ को देख कर ...लोग हमारे न्याय को याद रखें |इस मनहूस को हमारी नज़रों से इसी दम ओझल करो.....
अगला मुजरिम पेश हो .....बुलंद आवाज दरबान की गूजती है
पेशकार द्वारा चार्ज पढ़ा जता है |हुजूरे आला ,मुजरिम पेशे से आपकी रियायत के एक कसबे की म्युनिस्पेलटी में डाक्टर का ओहदा रखता है|ये अपने सेनापति जी का साला है |उनकी ही सिफारिश पर आपने नजदीक के, खटीक गाव की म्युनिस्पेलटी में इन्हें नरेगा के तहत स्पेशल अपॉइंटमेंट दे के , दो इन्क्रीमेंट के साथ रखा है |हुजूर... मुजरिम की गुस्ताखी ये है कि इनने, बी पी के पेशेंट को ‘आयोडीन साल्ट’ नाम की दवाई लिख मारी | सुगर वालो को ‘पार्ले जी’,खीर पूड़ी भरपूर खा के हेल्थ बनाने का ये मशवरा दे डालते हैं |
हुजुर.... ! मरीजों के ‘टे’ बोलने की नौबत आ गई|वो तो अच्छा ये हुआ कि अपने हकीम साहब तालाब में दातुन करतेकरते इस मरीज की हरकत पर गौर फरमा लिए |सेम्प्टनदेख के वे ताड़ गए की हो न हो ये मुनेस्पेलटी हास्पिटल के मरीज हैं | वे सैकड़ों बिगड़े केस वहीं तालाब किनारे निपटा देते हैं हुजुर| वे ही इन मरीजों को बचा पाए वरना राम नाम सत्य है हो जाता ....मरीज की ,’लाई’ लुट जाती जनाब |
महामहिम से फरियाद है, इस ‘झोला छाप’ को सख्त से सख्त सजा दी जावे |अपने हकीम साहब को हुजुर जो इअनाम इअकर्म बख्शना चाहे वो अलग मर्जी ......
अपने राज में इस जुर्म की सजा, महामहिम ने हाथ काटने की मुकर्रर की है जनाबे आला .....
पेशकार को ध्यान से सुनाने बाद ,शहंशाह ,सेनापति को तलब करते हैं जो उनके साले हैं| |सेनापति जी .हम ये क्या सुन रहे हैं.....? आपके साले होनहार नहीं थे तो....आपको बताना चाहिए था न हमें ? हम कहीं और फिट कर देते ...|अब इस मुसीबत से कैसे निपटें ..? ..अगर सजा देते हैं तो मुसीबत ! नही देते तो जनता का विशास हमारे न्याय से उठ जाएगा ....|
सेनापति ने, तत्काल दरबारी को तलब किया|वो जो पहला केस अभी ~अभी निपटा है जिस पर हाथ काटने की सजा हुई है , उस पर तत्काल सजा मुल्तवी रखो कहना की ये जनाबे आला की आसंदी से फरमान है |हम यहाँ से अगला आदेश बिना विलम्ब के भिजवाते हैं |
सेनापति ने न्याय की पुस्तक मंगवाई |
सभासदों को इस विषय को गहराई से पढ़ , नई व्याख्या करके, सुझाव देने को कहा गया |
सभासदों ने एक स्वर में स्वीकार किया कि ‘हाथ काट दो’ का शाब्दिक अर्थ; पढ़े लिखे विद्वान डाक्टरों के सन्दर्भ में,ज्यो का त्यों लगाना न्यायोचित नहीं है|
इसे मुहावरे या कहावत के रूप में इस्तमाल हुआ समझा जावे |
इस किसम के आरोपी को ‘सांकेतिक फटकार’ की सजा काफी है |
अस्तु हमारी स्तुति ये है की आरोपी को फटकार लगा कर छोड़ दिया जाये |
सांकेतिक फटकार वाला ,ये ‘प्रयोग’, आप भी ,किसी भी समाचार पर प्रतिक्रिया स्वरूप करके, आए दिन के नीरस समाचार को रोचक बनाए रखने में कर सकते हैं |आप अपने रिटायरमेंट के ‘टाइम~पास’ वाली भावना को इससे जोड़ देखो मजा आयेगा ...? चलिए आगे जुड़ते हैं ....
आजकल मीडिया वालों को खोया~पाया या भूल सुधार के लिए एक ‘टाइम स्लाट’ अलग से फिक्स कर देना चाहिए |किसने कल क्या कहा ....? जो दबाव पड़ने पर, कैसे यूं टर्न वाली सफाई दिए फिर रहे हैं....... |
अपनी पुरानी भावना को, किन नये शब्दों की चाशनी में डुबो के, आपके गले उतारने की कोशिश में लगे हैं .....?
ये वाकया राजनीति के अलावा और कहीं देखने को नहीं मिलता |
कोई स्कूल टीचर, कभी विस्तार से नहीं समझाता , कल जो हमने न्यूटन के सिध्धांत बताये थे कि हर क्रिया की प्रतिक्रया होती है,सेब ऊपर से नीचे गिरता है ,ये विज्ञान में तो सही है |मगर राजनीति में कुछ कह नहीं सकते .....
वो चाह के भी इस अकाट्य सत्य को झुठला नहीं पाता|
उसे मालुम होता है कि राजनीतिज्ञ लोग आज के सच को कल झूट, कल के झूठ को आज सच कर डालते हैं|दोस्ती ~दुश्मनी का भी यहाँ कोई फिक्स रुल नहीं है |
उनके पास गुरुत्वाकर्षण की अलग थ्योरी, अलग ताकत लिए होती है|
जनता के हाथ रखे सेब को छीन के, वे अपनी सबसे उंची शाख पर रख दे सकते हैं |उसे हर पांच साल में इसी सेब के बूते फिर से वोट की राजनीती जो करनी है |उनका सेब कभी टपकता नहीं |
वे अपने ‘चुम्बक बल’ सहारे विरोधियों को खीच लेते हैं |सरकार कचरे में गिरे ‘अणुओ’ को धो पोछ के अपने काम के लायक बनाने में बड़े माहिर होते हैं |फायदे के लिए समझौते की भावना स्वत: पैदा हो जाती है |
इनसे पंगा ले के देखो,’बेजामिन के करेंट’ वाले गाव की सैर करा देंगे |
जनता इनकी मासूमियत से वाकिफ होते होते सालों लगा देती है | निरीह जनता की भावना को समझो , .....
बचपन से मेरी भावनाओं को किसी ने नहीं समझा |
मेरी शिक्षा का लेबल उतना ही रखा गया, जिससे क्लर्की मिल जाए |ट्यूशन पढने की इच्छा होती थी, घर वालों के .हाथ तंग होने ,पिछले महीने के बिजली बिल, जो सात या आठ रुपये होते थे, अदा नहीं कर पाने से अवगत कर दिया जाता |मुझे भी उन भावनाओं के साथ जुड़ते~जुड़ते दुनियादारी के हिसाब~ किताब समझ में आने लग गए थे | लिहाजा चुप किये रहता |
आज की नई पीढी की भावनाओं को समझते ~समझाते रीढ़ की हड्डियों में बेइंतिहा दर्द होता है |डाक्टरों के पास जाने से घबराते हैं ,क्यों बेकार किसी के हाथ को कटने ,कटाने या तोड़ने तुडाने की सजा दी जाए ....?
सुशील यादव
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