Tuesday, 20 August 2013

जड खोदने की कला


जंगल विभाग से उनका रिटायरमेंट क्या हुआ वे पडौसियो के लिए कष्ट दायक हो गए |कही भी चले आते हैं |तरह –तरह की खबर ,दुबे,चौबे,शर्मा ,द्वेवेदी सब के घरों का हाल उनसे मुह –ज़ुबानी पूछ लें |कहाँ  क्या चल रहा है?उन्हें एक-एक की खबर होती है |
उनको , चूहों से अगर बच गए हों तो,घर के , पूरे साल भर के अखबार की खबरों  को कुतरने में चंद दिन लगते हैं |
अखबार पढ़ने के बारे में वो कहते हैं कि जंगल के सर्विस में उनको स्टडी का मौक़ा नहीं मिला सो वे राजनैतिक –सामाजिक सरोकार से दूर थे |अब फुर्सत है सो अध्ययन –मनन में समय बिताने की सोच रहे हैं |
मैंने कहा ,फिर अखबार ही क्यों ?मनन –चिंतन के लिए साहित्य का भण्डार है ,पढते क्यों नहीं ?
वो बोले अब साहित्य-वगैरा पढ़ के कोई एक्जाम तो पास करना नहीं है |मोहल्ले –पडौस में ज्ञान बघारने के लिए रोज टी वी देख लो , कुछ अखबार बांच लो  काफी है |
मैंने मन में सोचा ,पांडे जी का तर्क अकाट्य है |हर आदमी इतना ही ज्ञान रखता है  इन दिनों|काम  चलना चाहिए |ज्यादा ज्ञानी हुए नही कि समाज  के लिए  मिस-फिट हो जाता है आदमी|
मैंने पांडे जी को छेड़ते हुए कहा ,चुनाव-उनाव क्यों नहीं लड़ लेते |अभी पार्षद बनने का ,फिर अगले साल एम् एल ए बनाने का खूब मौक़ा है |
उसे लगा कि मैंने उनको बुढापे की वैतरणी पार करने का नुस्खा दे दिया है |
वो तुरंत लपक लिए , ऐसे आदमी मुझे भले लगते हैं जो बिना किसी तर्क के मेरी बात मान लेते हैं , बोले ऐसा हो सकता है?
अपने को एम्.एल.ए तक तो जाना नहीं है |खर्चा बहुत होता है ,पूरा पेंशन निपट जाएगा तो खायेंगे-पहनेंगे   क्या ?
पांडे जी को जितना लाइटली मै लेता था उतने वो थे नहीं |जिस आदमी को पेंशन बचाने का शऊर हो, वो आर्थेक मामले में  भला कहाँ से किसी के कहने में आ सकता है ? किसी के चढाने को वे उसी हद तक लेते थे जितनी वे चढ़ सकें |बहरहाल उनने मेरी सलाह को ,बतौर टर्निग –प्वाइंट नोट कर लिया |वे चले गए |
अगले महीनों तक वे कई बार टकराए , कभी सब्जी –भाजी ले कर बाजार से लौटते हुए , कभी किराने का सामान लादे हुए |हाय –हेलो से ज्यादा बात नहीं हुई |एक दिन वे रेल -रिजवेशन की लाइन  में लगे थे ,मैंने पूछा ,पांडे जी कही घूमने जा रहे हैं क्या  ?
वो बोले , बोले क्या बस महीने भर की दास्तान सुनाने लगे | किस–किस नेता से मिले ,कितनी पार्टी का चक्कर लगाया |सक्रिय सदस्य बनने के लिए कई एक  पार्टी का मुआयना कर आए हैं |
अब अभी राजधानी जा रहे हैं |दो-तीन पार्टी   हेड से मिल देखते हैं ,देखे क्या बनता है ?
मैंने कहा , पांडे जी मैंने तो यूं ही मजाक में कह दिया था ,चुनाव-सुनाव के बारे में |आपने सीरियसली ले लिया |मुझे अपने कथन के साथ –साथ , पांडे जी में भविष्य का पार्षद भी दिख रहा था, उनकी जीवटता को देखते हुए |
उनका रिजर्वेशन का नम्बर आ गया वे टिकट ले लिए |दूसरी जगह जाने के लिए मेरा  टिकट वेटिंग का निकला सो मैंने अपना निर्णय बदल दिया |
वो ऑटो से आए थे मगर वापसी में मेरे स्कूटर में चिपक लिए |
रास्ते भर लोकल पालटिक्स की बातो से  ऊपर नहीं उठे|सब की बखिया उधेडते रहे |मेयर ने पानी की टंकी में किताना छेद किया |दीगर पार्षद क्या –क्या गुल खिला रहे हैं |विधायक रात  कहाँ सोने जाता  है |मुझे लगा महीने भर में पांडे जी ने थीसिस जितना आंकड़ा जमा कर लिया है |मन ही मन ,उनके खोजी चालूपन को दाद दिए बिना नहीं रह सका|
मैंने पूछा ये सब इतनी जल्दी कैसे जमा हो गया?बहुत मेहनत  की होगी आपने ?
वो मंजे हुए अंदाज में कहने लगे ,हाँ मेहनत तो होती है |जंगल में हम लोग खूब मेहनत किए हैं |हम लोग मिनिस्टर –अफसरान को शेर दिखने के लिए जो तरीका अपनाते रहे, वही यहाँ काम करता है |खबर को बाहर निकालने के लिए ‘मचान’ बाँध कर बैठो |शेर को कुछ भूखा रखो ,चारा –पानी का सही इंतजाम हो तो हांके में शेर आ जाता है |दफ्तर के छोटे –छोटेबाबू,  बाबूनुमा अफसर या दफ्तर के बेवडो को, अर्जी पकड़ा दो वे सब लेखा-जोखा आप ही आप समझा देते हैं |ध्यान से सुनो तो वे, आकडे देते वक्त साहब लोगो के ‘गुणगान’ यूँ करते हैं कि वो तो पाक साफ हैं बाकी सब उनको ही पहुचता है | 
मेरा स्कूटर कई बार, पांडे जी के बयान से दचके खाते-खाते बचा |मैंने मन ही मन सोचा पांडे ने कमाल का काम किया है |मैंने चलते में पूछ लिया ,पांडे जी ,लगता है ,जंगल मुहकमे में पेडों को जम के उखाड़ा है आपने  |
जमी हुई जडो को अच्छी तरह से उखाडने वाले पांडे जी के प्रति मेरी प्रजातंत्रीय-श्रधा जाने क्यों उंमड आई|
मेरे कटाक्ष पर वे ही.-ही कर हंस दिये|
मुझे हल्का सा ब्रेक लगाना पड़ा |घर भी करीब था वे उतर लिए |
मै पांडे जी के रूप में जाते हुए, भावी पार्षद को देख रहा था |उनमे  मुझे एक कर्मठ नेता की आगामी छवि  दिख रही थी|
शायद प्रजातन्त्र की  नीव रखने वालो ने, उसकी  इमारत की  खिडकी – दरवाजों में ,कभी दीमक या घुन लगने के बारे में  सोचा भी नहीं होगा?
बहरहाल , मुझे पांडे जी में कोई ओछापन नहीं दिख रहा था ,उस जैसे जुझारू आदमी को झोककर छोटी-मोटी परेशानियों से बाहर निकला जा सकता है
|मै अपने आकलन में अलग से जुट गया |
उंनके पार्षद बन जाने पर,मेरे घर के सामने सड़क के बीचो-बीच खड़े खम्भे को उखडवाने का, शायद मै उनको पहला काम सौपूं ? सुशील यादव न्यू आदर्श नगर दुर्ग


No comments:

Post a Comment