Tuesday, 20 August 2013

अजीब दास्ताँ है ये .....

अजीब दास्ताँ है ये ..... कहाँ से शुरू कहाँ खत्म ....? हम ‘टपोरियों’ के लिए ही ,संत कबीर ने शायद भविष्यवाणी करते हुए कहा था , “पानी केरा बुदबुदा ,अस माणूस की जात देखत ही छिप जाएगा ,ज्यों तारा परभात” हम लोग बरसाती बुलबुले हैं|सुबह सूरज निकलने तक टिमटिमाने वाले तारे हैं | हमारी कुछ दिनों तक अच्छी धाक रहती है | पकड़ बनाए रखते हैं, मगर पंगा लेने की बीमारी के चलते कहीं न कहीं से, एक दिन पंगु हो जाते हैं | हमारे अस्तित्व का अस्त होना अवश्यंभावी होता है| कहीं प्रशाशन, कहीं पुलिस, कहीं हमारे ही किस्म के हमसे बड़े दादे –परदादे आड़े आ जाते हैं | हमारा वीकेट गिरना तय रहता है |हम क्रीज में तब तक ही टिक पाते हैं जब तक ‘खुदा’ की बालिग़ हमारे बेट के बीचोबीच आते रहती है | हमारे, टांय- टांय फिस्स होने पर पब्लिक खुश होती है|मीडिया की नजर दिन भर हमारे चहरे से हटती नही |वो झूम –झूम के हमारे रिकार्ड दिखाता –बजाता है | हमारे पास ए.के.47 नही होता ,मगर रुतबे में हम देशी तमंचा में भी उतने ही असरदार होते हैं | किडनेपिंग ,रेप , सुपारी-ब्रांड मर्डर ,बलवा,हप्ता वसूली सभी जगह फिट हो जाते हैं|ग्राहकों का संतोष हमारा एक मात्र ध्येय रहता है |हमे आज नगद –कल उधार का बोर्ड टाँगना नही पडता| बस नगद ही नगद का धंधा रहता है | हम मर्जी के मालिक होते हैं |हमारा निर्णय तात्कालिक होता है |भीड़ में ,मेले में गए तो पाकिट मार ली |अकेली औरत को देखा तो चेन खिंच लिया |लड़की देखी तो सीटी मार ली| हम लोग रेकी मास्टर होते हैं ,जिस घर में चोरी करना होता है, वहाँ ठोक–बजा लेते हैं ,कब कौन उठाता है कौन बैठता है |दरवाजे किधर खुलते हैं कहाँ -बंद होते हैं |घर थाने से कितनी दूर है | आजकल हमें साइंस के चलते नए-नए तिकडमो से जूझना होता है |लोग, ए टी एम के भरोसे, घर में नगद नही रखते , अब चुरायें भी तो क्या ख़ाक ? इलेक्ट्रिक बेल–सी सी टी व्ही कैमरा ,मोबाइल फोन हमारे नए-नए हाई-टेक दुश्मन पैदा हो गए हैं | सब चलता है की तर्ज पर हम सब चलाए जा रहे हैं |आगे देखे....? हम कहे देते हैं,लोग हम चोर ,उच्चको,उठाईगिरी वालों और मास्टर माइंड टपोरियों को, साइंस के दबाव के चलते , पब्लिक ,मीडिया और नेताओं की अति के चलते, देखने को तरस जायेंगे | हमारा ‘कौम’ खतरे में है ,हम अस्त होने के कगार पर हैं | हमसे मिल कर काम करने वाले सभी मुहकमो के रेट हाई हो गए हैं | नेता हमें घास नहीं डालते ,वे पालतू तभी तक बनाए रखते हैं जब तक काम निकल नहीं जाता| पुलसिया मुखबिर हमारे खिलाप, हमारे पुलिस भाइयों को भडकाए रहते हैं ,देखो वो इतना बनाया आपके हिस्से क्या आया ? हम इस विश्वास पर ‘आक्सीजन-मास्क’ अपनी नाक पर धरे बैठे हैं कि , हमारा नया ‘आका’ इलेक्शन बाद शायद पैदा हो ? अभी तो हमें बचाने वाला ‘डान’ कहीं दुबक गया है | सुशील यादव वडोदरा 09426764552

No comments:

Post a Comment