Tuesday, 20 August 2013

मुझे भी तो मनाओ....

मुझे भी तो मनाओ....

मुझे रूठे या खपा हुए एक ज़माना लद गया |वो बहुत अच्छे दिन ठे जब हम रूठा करते थे और वो मनाने  का जिद ठान के बैठी होती थी|
कालिज नही जाते थे तो खबर पे खबर भिजवाए रहती थी |
खबरची भरी दोपहरी में या भीगते –भागते बारिश में आ-आ के जाने क्या –क्या बयान करता कि मन कभी या तो खबरची के हालत पे या उसके बया किए हालात पे तरस खा जाता ,और उसे पसीजने का सॉलिड बहाना मिल जाता |
अपने रूठने से अगर वो खपा हो जाती तो, स्तिथी ‘समझौते’ के लिए ‘मध्यस्थो’ की मुहताज हो जाती |
एक-दो अपनी तरफ से एक- दो उनकी तरफ से भिड पड़ते |
दोनों पक्षों के मध्य ,गिले –शिकवों की गिनती कराई जाती | तू ने ये नहीं किया ,वो नहीं किया |
मेरी क्या बताती है ,वो  अपनी कहे  मेरी एक बात कभी मानी ?कहा था क्लास छोड़ दो ,बैठ गई पीरियड अटेंड करने |एक पीरियड ‘गोल’ कर देने से कोई ‘मार्क्स’ नहीं घट जाता |
‘मध्यस्थ’,इन तू-तू,मै-मै के तोड़ निकाल लेते | ‘
युद्ध –विराम’ की घोषणा हो जाती |
बहुत अच्छे दिन थे |हंसते -हंसाते गुजर गए |
बचपन में रूठ कर ,जिद करके , अपनी बात मनवा लेने का ख्याल करके, अब बाप बनने के बाद पता चल पाया कि हम दो बच्चो की जिद से परेशान रहते है ,वे बच्चो की फौज को कैसे सम्हालते रहे होंगे ?
हमारे पडौस के मिश्रा जी को दब्बू –पति का ‘खिताब’ हर होली में हर कोई दे डालता है |वे काबिल-तौर पे हक़दार  भी हैं |पिछली होली के कपड़ों में होली मना लेते हैं |पत्नी को तिनका भर गुलाल ज्यादा  लगा दें तो उनकी भंव तन जाती है | आखे दिख गई तो हाथ में ली हुई कचौरी छोड़ देते हैं | वाजिब बात पर भी उनके रूठने का हक बनते कभी नहीं देखा |
उनको मिसाल देके ,पत्नी ताने जरूर देती है| देखो मिश्रा जी को देखो ,कैसे सर झुकाए आफिस से घर और घर से  आफिस आते –जाते हैं |एक आप हैं ,कोई अता-पता नहीं न रहता ?
मुझे पत्नी को हाबी होते देख ,खपा होने का भूत सवार हो जता है |
तुम लोगों के लिए जितना करो कम है |रोज-रोज दफ्तर में घिस-घिस के काम करो ,घडी भर सांस लेने का टाइम नही और यहाँ तुम्हारी बकवास |मुझसे उम्मीद न रखो कि मै ‘मिश्रा-जी’  हो जाऊ?
पत्नी इतनी सी बात पर काम रोको आंदोलन पर उतर कर ,बिस्तर में घुस जाती |मुझे मनाने का घडी –भर ख्याल नहीं आता |
उल्टे मुझे ‘मिश्रा-जी’ के रोल में पानए के बाद ही   अपनी गाडी, पटरी पर ला  खड़ा करती |
उनको  ‘रूठे पति को मनाने के हजार तरीके’ वाली किताब शुरू-शुरू में जब लाकर दी थी, तो उनने उसे पढ़ने की ये शर्त रखी, कि जब मै ‘रूठी पत्नी को मनाने के लाख तरीके’ वाली किताब ला कर दूंगा तो वह पढना शुरू करेगी |
मुझे आज तक वो  किताब मिली नहीं ,सो मेरे खपा हो के रूठने का हक मिल नहीं पाया |ऐसे रूठने का मकसद ही क्या जिसके मनाने वाले का आता-पता न हो |
मुझे उन रूठने वालो पर फक्र होता है जिसके लिए सरकार के मुहकमे बंदोबस्त में लग जाएँ |मंत्री-संतरी एयरपोर्ट में तैनात रहें |एक गिलास ज्यूस पिलाने के लिए मीडिया आठ-दस दिनों तक गुहार लगाती फिरे |
जूस के एक घूट भरते ही ऐसा लगे कि जनता की , महीनों की प्यास बुझ गई हो |जय-जयकार के नारों के बीच यूँ लगे कि किसी ‘जिद’ ने फतह पाई हो |
मुझे उन रूठने वालो पर भी फक्र होता है, जो खिचडी खा के कहते हैं ,बीमार हैं |
उडती ‘पतंग’ को और ढील देना गवारा नहीं समझते |
बिना मांजे के पतंग को उडाए रखने को बाध्य किए होते हैं |
‘चकरी’ लगभग इनके  हाथ में होने का गुमान पार्टी  को थोड़ा –थोड़ा होता है ,जिसकी वजह ,वो चिरौरी करते से लगते हैं |
“नीचे उतारो मेरे भइय्या तुम्हे मिठाई दूंगी ,
नए खिलौने ,माखन-मिश्री ,दूध मलाई दूंगी”
सुश्री सुभद्रा कुमारी चौहान की उक्त पंक्तियों की तर्ज पर रूठने वाले  ‘कन्हैय्या’ को उतारने के लिए अब  ‘चार्टेड-प्लेन’  की व्यवस्था है, वे मीडिया के मार्फत बात उन  तक पहुचाते हैं |क्या गजब का अंदाज है ?रूठे तो यूँ ...,खपा हों तो ऐसे.... |
हमे तो हमारी बारात में भी, “खाना है तो खाओ” के हाल पे छोड़ दिया गया था |
 काश जीवन में एक बार , हमे भी कोई यूं मनाता  ...?         
सुशील यादव
मोबाइल :०९४२६७६४५५२
२०२,शालिग्राम ,श्रिम- सृष्टी
सन फार्मा रोड ,अटलादरा
वडोदरा ३९००१२
८-६-१३


No comments:

Post a Comment