Tuesday, 20 August 2013

सम्भावना की खोज


वे ढूंढने में माहिर हैं ,खोजने में उस्ताद |
ढूढने और खोजने की प्रबल  प्रवित्ति के बल पर हम आज  कहाँ से कहाँ पहुच गए? आगे कहाँ पहुचेंगे कुछ कह नहीं सकते, मगर  हाँ ; कोलंबस अगर अमेरिका नहीं ढूंढता तो हम ओबामा और ओसामा नाम के प्राणियों  से परिचित कहाँ  हो पाते?
अखबारों की बिक्री कम हुआ करती |
हमारे  पडौसी मुल्क को, अमेरिका के बिना ,कर्जा कौन देता? उनकी गाडी खीचने वाला ,खुदा या उनकी नय्या पार लगाने  वाला नाखुदा जाने कौन होता ?
बात उनकी हो रही थी, जो, वाजिब –गैर  वाजिब, हर चीज को ढूढ़ के पैदा करके रख देते हैं |
वो आजकल अपने  खोजी नजरिए के कारण , अपनी पार्टी के थिंक-टेंक बने हुए हैं |
पार्टी को सत्ता-काबिज कराने के हजार नुस्खे हैं उसके पास |
उंनको संभावना तलाश करने  में चुटकी –भर का समय लगता है |
बड़े से बड़ा, नेता के निधन हो जाने पर उसके उठावने से पहले वे सब्स्टीट्युट ढूंढ के रख देते हैं |
मायूस होके यूं कहेंगे ;उनके  निधन से राष्ट्र ने एक सच्चा सपूत खो दिया है, जिसकी भरपाई मुश्किल है |हमें देश को एक नई उचाई पर ले जाना है ,आओ हम युवा नेतृत्व या /साफ-सुथरी छवि वाले किसी  दलित नेता को  उनके छोड़े हुए काम को आगे बढाने की जिम्मेदारी  डाल कर देश को नई दिशा देने की सोचे|वे, साफ दलित या युवा की तरफ इशारा कर के खिचड़ी पका चुके होते हैं |  
उनमें खासियत है; कि उनका आदमी लाख घोटाला कर आयें  वे उसे देश के हित  में सच्चा साबित कर  देते हैं |इतना ही नही, किसी विपक्षी-नेता  की साजिश करार देके, वे घोटालेबाज को हीरो साबित करने में एडी –चोटी एक कर दिए होते  हैं |
  वे योजनाओं का अक्षय –भण्डार लिए फिरते हैं | आदमी को काम बाटने में उनके मुकाबले कोई नहीं ठहरता |
कब कौन, पद यात्रा कर के वोट बैंक बढ़ाएगा ?
किसको मंदिर के मामले में कितना बोलना है ?
कौन जल के बटवारे ,हवा के प्रदूषण,किसान की जमीन ,मजदूर के पेट को नाप कर हंगामे दार हो सकता है वे अच्छी तरह से जानते हैं |
कौन, सत्ता-पक्ष के, किस नेता की मुखालफत, छीछा –लेदर का काम देखेगा ?कौन कब चुप रह के तमाशा देखेगा ये सब उनके एजेंडे का कमाल होता है |
वे हवा बनाए रखने के लिए ,दूसरी तमाम पार्टी के चुनावी घोषणा –पत्र पर पी.एच .डी. किए रहते हैं |
किसने वादा निभाया, कौन मुकरा? वे सभी को, जनता के सामने बे-लिबास करने में पारंगत हैं |
लेपटाप, टी.व्ही. देने वाले ,गरीब को एक रूपए में चावल ,पाच रु में भरपूर खाना ,स्कूली शिक्षा मुफ्त ,स्कूल में खाना ,किताब-कपडे सब मुफ्त  ,किस्सा-कोताह ये कि आप केवल बच्चे पैदा कर दो आगे सरकार देख लेगी |
उन्हें  इन्ही फार्मूलों को, ‘राजनीति की गीता’ के बतौर लेकर पढते -बढते देखा गया  हैं|
वे बी.पी.एल वालों को कम से कम चुनाव होते तक भूखा-नंगा किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकते |
उनका बस चले तो वे अपनी  चमडी के जूते बी.पी एल वालो के पाँव में डाल दें|
अपने एजेंडे में , सेक्युलर होने का दम भरना, वे उसी तरह जानते हैं जैसे एक बेजान हिन्दी –फ़िल्म की स्क्रिप्ट पर सलीम और  जावेद को बुला कर दमदार डायलाग डाल दिया जावे |माइनोरिटी के नाम पर   उनको लगता है ,दस-पांच सीट की गुन्जाइश कर दो ,भाषण में एक –दो पैरा  डाल दो वे खुश हो लेंगे |वोटो का अंबार लग जाएगा |इतना कर के , वे इस तरफ से चिंता-मुक्त से नजर आते हैं |
उनके बारे में कहा जाता है कि ,वे सपना कभी नही देखते |पार्टी –जन उनके बहकावे में, देखे हुए सपनों को आ-आ के बताते हैं |उन्हें लगता है सब प्रभु इच्छा के बाद उनकी मर्जी से ,उनके  लिए हो रहा है |वे मंद –मंद मुस्कुरा लेते हैं|
बेचैनी कभी ज्यादा हो जाती है तो वे रामलीला मैदान की तरफ बिना किसी को बताए चल देते हैं |पब्लिक के सामने शपथ ग्रहण करने की, इससे अच्छी जगह उंनको कोई नजर नही आती |

सुशील यादव

 एक वाजिब अंत की तरफ ....
       उसे पार्टी बनाने का शौक अचानक पैदा हुआ | हम लोग ये अंदाजा लगा नही पाए |रिटायरमेंट के बाद सोचते थे ,वे , थैला लेकर बाजार से घर ,घर से बाजार वाले आम आदमी हो  जाएंगे | अचानक उन्होंने धमाका किया |हम लोग समझाए ,बाबू जी ये आप को क्या हो गया  ? (सठिया गए हैं आप )  इतना आसान नहीं है नेतागिरी |
वे भडक गए |
हम लोगो ने कहा , आप  ढंग से बात भी कहाँ कर पाते हैं ? पिछली  बार शादी में गए थे , कितनी फजीहत हुई थी| आपने घराती-बराती किसी को नहीं छोड़ा, सब से अपनी बात मनवाने में लगे रहे |आजकल कौन सुनता है किसी की ?
 अपने  समधन को ठीक से जवाब भी नहीं दे पाए | किराने की दुकान , बस स्टेंड ,धोबी , नाई कहाँ हंगामा नहीं करते ?kanha 
 कौन बचा है  जिनसे आप का झगड़ा नहीं होता? सब से तू –तू ,मै –मै  किए रहते है |
 केवल मोहल्ले में जोड़ के भला बताओ आप कितने वोट बटोर पाएगे ? पार्षद का चुनाव भी तो आप जीत नही सकते ,  पार्टी बनाने चले   |
हमारी बातें उन्हें सुई की तरह चुभी  |
वो और भी  भडक गए |
झल्लाते हुए बोले , तुम लोग मेरा पीछा छोडो , मुझे जो करना है सो करना है | पार्टी तो बन के रहेगी |
यहाँ सब ऐरे – गैरे  पार्टी बना रहे हैं | शुक्ला को देखो पोस्टर- बेनर की बोलते रहता है , खोरबहरा-बिसाहू  की नई पार्टी बन गई , साहू  मजे में है , चार -चार  पार्षद  बिठा लिए देखते -देखते | आज सब अपने –अपने लोग जगह –जगह फिट किए जा रहे हैं ,अपनी टेक्सी चलवा रहे है | कल ट्रांसपोर्ट कम्पनी  के मालिक बने  मिलेगे | तुम लोग बस देखते रह जाओगे |
       हमारी तरफ से तर्क दिया गया ,पर बाबूजी सब के बैक ग्राउंड होते हैं
|या तो वे समाज सेवक होते हैं ,या समाज से सेवा लेने वाले होते हैं |
मोहल्ले –पडौस में दादागिरी किए होते हैं |नजूल की जमीन घेरने वाले दबंग होते हैं |अफसर –बाबू को धौस देने वाले टपोरी किस्म के लोग होते हैं |कोई डाक्टर –इंजिनीयर नेतागिरी के लिए कहाँ घूमते फिरते हैं |वे लोग कालिज में एक –एक क्लास आसानी से पास नहीं किए होते |कई किश्तों में ,ले-दे के ,पार किए रहते हैं |इतमिनान से रहने वाले ,हरेक कदम दुश्मन को जवाब देने के लिए उठाने वाले लोग राजनीति में फिट हो पाते हैं |इनके पास कट्टा -तलवार -चैन क्या नहीं होता ,आपके पास तो एक चाक़ू भी धार वाला नहीं है| फिर ?
 आप का क्या है ,छोटी –छोटी बात पे बहस –तर्क किए रहते हैं |ये सब कहाँ चलता है|यहाँ तो अच्छे को बुरा और कभी –कभी बुरे को अच्छा कहना पडता है |रीढ़ की हड्डी को जो जितना लचीला बना ले वही परफेक्ट है यहाँ |
समझदारों की ,सीधे –सादो की ,पढ़े –लिखों की यहाँ जरुरत ही नहीं है |
आप क्यों नाहक अपनी टांग फंसा रहे हैं|
बाबूजी , वाक्य के हर शब्द को पकड़ कर लटकने में माहिर हैं |
वे टांग पर लपक लिए |
कहने लगे –आज अगर कहीं  टांग नहीं फसायेंगे तो कल को दूसरे हम निकम्मो की बस्ती में आ घुसेंगे |
अंग्रेज भी ऐसे ही आए थे | इसी निकम्मेपन के चलते गोरे हमारे घरों तक घुस लिए |हम लोग सोते रहेंगे तो हमारा देश फिर से  सो जाएगा|
वे देश को जगाने के चक्कर में हम लोगो की नींद हराम करने में लग गए |
एकला-चलो के अनुयायी बाबूजी को किसी सपोर्ट की जरुरत नहीं पडी |वे अपने अभियान में जुटे रहे  |
उनका रिसर्च विंग, उनका ‘दिमाग’ खुरापात में लग गया |वे कागज़ कलम लेकर बैठ गए |
उन्होंने समाचार पत्रों को अवगत किया ,पिछले दिनों नगर में एक नई राजनैतिक पार्टी ‘धरती विकास पार्टी’ का गठन किया गया |जिसका उद्देश्य धरती को लादेन मुक्त ,नक्सल मुक्त ,आतंक मुक्त,भ्रस्टाचार मुक्त ,महंगाई मुक्त  करना है | ‘मुक्ति-धाम’ वाला पहला वक्तव्य समाचार-पत्रों में छप गया |
वे उत्साहि़त हुए |उनकी बयान-बाजी चलते रही | दो-चार लोग उनसे बतियाने लगे |वे छोटे छोटे भाषण भी करने लगे |तमासे की शकल में मजमा लगने  लगा |
बाबूजी सियासती ख्व्वाब में खोते चले गए |
हम लोग भी ,ये सोच कर कि उनको बिजी होने का मकसद मिल गया चुप से हो गए |
वे अखबार इस गंभीरता  से पढ़ने लगे मानो कल एक्जाम की तैयारी कर रहे हों|
वे राष्ट्रीय-अंतर-राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करने लगे |
यों तो वे पहले भी इन  पर बोलते थे ,मगर हम तव्वजो -वजन नहीं देते थे |
अब डाईनिग टेबल पर ,हम पर वे भारी पडने लगे |
बाबूजी ने बौखलाने पर लगाम लगाने की प्रेक्टिस करने लगे |अपने पेंशन की रकम अपनी पार्टी को समर्पित करने में वे व्यस्त हो गए  |
दफ्तर खोल लिया |
दूसरी पार्टी के बुलावे पर वे जाने लगे |
मुद्दों पर समर्थन देने की परंम्परा का उन्होंने निर्वाह भी बखूबी किया  , वे एक पार्टी के अनशन करने के प्रस्ताव पर राजी हो गए |
हम लोगो ने खूब समझाया ,देखिये , आप बी.पी. ,शुगर वाले हैं |आपको ये सब नहीं करना है|
मगर बी.पी.-शुगर उनके अनशन –जिद के आड़े आ नहीं पाया |वे बैठ गए |वे लगभग नेता बन गए थे  |
अनशन का पहला दिन उत्साह से  गुजर गया |दीगर पार्टी वालो  ने उन्हें उकसाया, बाबूजी , एक दिन और कर लो | बात बन जाएगी |वे मान गए |
पुलिस वाले भिन्नाए-बौखलाऐ बैठे थे  |वे एकाएक ,उठा-पटक में उतारु हो गए |डंडे चले |कार्यकर्ता भाग निकले |पुलिसिया अंदाज में  बाबूजी भी खाए ,  बंद भी कर दिए गए  |
वो तो हम लोगो की तत्परता थी , आनन् -फानन  जमानत करवा लिए |
अब ,आए दिन  बाबूजी पेशी में कचहरी –वकील से मिलते रहते हैं |करीब-करीब उनके दिमाग से भूत उतर सा गया है , अखबार आए पडा रहता है ,वे देखने –पढ़ने में जी नहीं लगा पाते |
मगर आज भी बाबूजी , देश की दुर्दशा पर अक्सर दुखी होते रहते हैं |
सुशील यादव 

मेरे हिस्से का (सर) दर्द
इस मायावी संसार में जो आया है वो अपना –अपना सर और अपना –अपना दर्द ले के आया है |कई लोग अपवाद के तौर पर पैदा हो जाते हैं |पैदा होते तो पूरे पुर्जे के साथ हैं मगर किसी- किसी का पुँर्जा, काम के बोझ से,या हैसियत से कहीं ज्यादा मिल जाने पर अनाप-शनाप काम करने लगता है |
मेरे एक साहब हुआ करते थे ,पता नही अब हैं या नहीं ,अगर कहीं जिन्दा  हैं तो भगवान से उनके लिए सदबुद्धि मांग कर उनके घर –परिवार का सरदर्द बढ़ाना नहीं चाहता |
अजब खब्ती किस्म के सरके हुए से थे |उनसे एक कागज पर दस्तखत कराना मानो एक जंग जीतने के बराबर था |अपने को अंगरेजी में  शेक्सपियर के बाद का संस्करण मानते थे |
अनुसंधान वाली किसी भी फाइल पर ,छापा मार कर आए अफसरों को वो अनाप-शनाप सवाल पूछते थे कि पहले ही लाख प्रिपेयर  हो के आए रहे हो ,बिखर जाते थे |सर झुकाए अफसरों को वो  , शर्लाक्स होम्स ,और जेम्स हेडली चेईज की तरह, बात की जड में, घुसने की हिदायत दे कर ,ऐसी झिडकी पिलाते थे कि दुबारा केस बुक करने के बारे में सोचे, | कभी तुरंत अपने ड्रोवर से एक कोरी फाइल निकाल कर, अफसर के खिलाप ,अफसर के सामने ,तहकीकात  में खामी गिनाते  खोल देते थे |अनुँसंधान दल की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती थी |ये दीगर बात थी कि उन्ही खामियों की आड में वे  ‘पार्टी’ का  शिकार कर लेते थे |
किसी की औकात नही थी कि, वो अपने तजुर्बे ,अपने बल-बूते पर कुछ काम कर लें,या ‘सर’ के अति पर , उपर फरियादी बनकर खड़े हो जाएँ |
बाद में वे.चार-छह दफ्तर के चाटुकार अफसर और  लेडी-स्टेनो से घिर कर यूँ हाँकते थे, देखा कैसे हडकाया?
सब खींसे निपोर कर हिन्हिनाते थे|
साहब के गुड-बुक्स में रहने का सबसे आसान सा तरीका होता है इन चाटुकारों की तरह हिनहिनाना |
तंग करने में वे माहिर इतने थे कि अगले को रुला के दम लें |आपके ब्रांच से टाइपिस्ट,कंप्यूटर-आपरेटर को हटा कर, आपको, पांच सालो का डाटा मांग लेना,ब्रीफ लिखे हो तो थीसिस मांग लेना , थीसिस लिख ले जाओ तो कहें, क्या समझते हो ? उपर वाला  कोई इतना पढ़ने के फुरसत में बैठा है |छोटा करो ,छोटा करो |
वे अपने गोपनीय ब्रांच को, शस्त्रागार समझने में कभी भूल नहीं किए |चार की जगह आठ लोग  बिठा रखे थे |छुट्टियों में बुला कर ,प्रचारित करते थे कि फलां-फलां की फाइल रंगी जा रही है|स्टाफ की नाक में दम कर रखा था | स्टेनगन की जद में कौन कब आ जाए कहा नहीं जा सकता था |   
ऐसो के खिलाप कौन उठे ?
स्टाफ, गंडे-ताबीज बंधवाता ,मिन्नत –मनौती माँगता |उसके ट्रांसफर हो जाने पर भगवान को प्रसाद बदता| आठ घंटे की सरकारी नौकरी के लिए चौबीसों घंटे का बोझ लिए फिरता |  दफ्तर टाइम पे पहुचता |बिना सी. एल. के कोई  गायब नहीं रहता |लेडी-स्टाफ को देख के सर झुका लेता |कोई राजनैतिक बहस नही होती थी |बाबू –अफसर, क्लाइन्ट का काम बिना किसी उम्मीद के निपटा रहे थे |क्रिकेट में इंडिया पिटे या पीट दे सब भावना शून्य से हो गर थे |वे ट्रांसफर एप्लीकेशंस लिख ले जाते मगर देने की हिम्मत न जुटा पाते |एक किस्म की इमरजेंसी लद गया था दफ्तर में |
माहौल से नाराज अफसरों का एक  विद्रोही दल ,आजादी की जंग वाले अभियान  की तरह छुपे-छुपे एकजुट होने लगे|वे एहतियात भी बरत रखते कि कोई भेदिया न घुस पाए नहीं तो लेने के देने पड जाए |
 शुरू-शुरू में एनानिमस कम्प्लेंट करके, एक-दूसरे को  तसल्ली देते रहे | ‘बोर्ड’ में माहौल बनाने का काम जारी था कि पता चला किसी दूसरी जगह के किसी बदनीयती के  लफड़े में साहब को सस्पेंड कर दिया है |
दफ्तर  का बहुत बड़ा ‘सर’अब स्वयं दर्द के हवाले हो गया जानकार ,दफ्तर में मिठाई बंट गई |
मेरे सर से भी रोज उठने वाला दर्द जाता रहा |
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सुशील यादव
एपार्टमेंट ३०७ ,फारले स्ट्रीट ८०५०
ओव्हरलेंड पार्क ,केन्सास ,अमेरिका






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