शुरू शुरू में जब इस कालोनी में रहने आया तो बहुत तकलीफ हुई
|सीसेन(शेरू) को भी नया माहौल अटपटा लगा |
अपने देहात में, जो ‘आजादी’ कुत्ते और आदमी को है, वो काबिले तारीफ है
|
कुत्तों को खम्बे हैं आदमी को झाड –झंखार ,खेत-मेड,तालाब, गढ्ढे हैं
|पूरी मस्ती से, जहाँ जो चाहे करो |
आदमी को,देहात में समान विचार-वाले
लोग, गली-गली मिलते रहते हैं |जय -जोहार और खेती –किसानी के अतिरिक्त विचारों का
आदान –प्रदान कम होता है |
गाँव के आदमी और कुत्ते में ,वैचारिक-खिचाव लगभग नही के बराबर होता है,
कारण कि अगर वे आदमी हैं तो बारिश होने, न
होने ,कम होने की चिंता से वे ग्रसित रहते हैं| अगर कुत्ते हैं तो पिछले बरस महाजन
के यहाँ शादी में खाए हुए दोने पत्तलों के चटकारे लेने में मशगूल रहते हैं |वे इसी
को बहस के मुद्दों को लंबे –लंबे खीचते
रहते हैं |अब भला इन बातों से, टकराव का
वायरस कहाँ तक पनपे ?और टकराव हो भी जाए
तो, वो तो बारिश है उसे एक ही के खेत में कब गिरना है ,वो अपनी मर्जी से ,अपने
हिसाब से ,अपने तरीके से भरपूर गिरेगा |जिसे जो चाहे करना हो कर ले |
गाव के शांत माहौल को ‘बाहरी-हवा’ से निपटने में दम फूल सा जाता है|
एक बाहिरी ‘हवा’ है , जो गाव के शांत माहौल को कभी –कभार बिगाड़ के रख देती है
|चुनाव आते ही गाव दो खेमो में बट जाता है |
’बाहरी-हवा’ ,ज्ञान का पाम्पलेट, जहां –जहाँ बाँट के चल देती है,लोग
मौसम को भूल जाते हैं |कुत्ते पोस्टरों में टाग उठाने की कोशिश करते हैं मगर उस तक
पहुच नहीं पाते |
सामान विचारों वाले देहात में खलल पैदा हो जाती है |
बाहरी हवा के कारनामे,गाँव के कुत्ते भी बखूबी समझते हैं|माहौल बिगडते देख ,वे
इतने जोर -जोर से भौकने लग जाते हैं कि पडौस के गाव भी झांकने आ जायें |
‘बाहरी-हवा’ ने गांव में एक दिन कुहराम मचा दिया ,सर –फुटौव्वल का माहौल बना दिया |
वे अपने नेता को ‘सेकुलर’बताने के चक्कर में हरेक कौम के लोग इक्कठा
करने लगे |
लठैत के सहारे उनके नेता सेकुलर हो गए |भाषण पर तालियाँ पिटी,टी.व्ही कवरेज मिला
,माहौल पर सेकुलर की हवा मानो छा सी गई |
देहातियों को बहस का नया शब्द
‘सेकुलर’ मिल गया |
वे आए दिन बहस करने लगे |
सेकुलर दिखाने के लिए ,आपस में टोपियां बदलने लगे |
वे टोपी बदलते-बदलते, कब सर के बाल नोचने लगे ,कब सर को धडाम से
वजनदार लोहे की टोपी पहनाने लगे ?
पता ही नहीं चला |
गाव में सामान-विचारों के
मुद्दे पर लोग बटने लगे,विचारों का पोस्टमार्टम होने लगा ,तर्क हाशिए पर जाने लगा
,कुतर्क वालो के पास भीड़ जुटाने लगी |बातो की इतनी छीछालेदर गाँव ने कभी देखी न थी |
कुत्ते हरेक को कुतर्की समझ ,दूर –दूर तक भौकते -पछियाने लगे |गाव अब
रहने लायक रह नहीं गया |
माहौल इतना बिगडते चला कि, मुझ जैसे समझदार लोग गाव छोड़ देने में
समझदारी देखने लगे |
सो गाँव से शहर के सभ्रांत कालोनी
में आ बसा हूँ |
कुत्ता साथ में लाना पड़ा,वहाँ किसके भरोसे छोड़ता ?
मगर सीसेन जब से आया है ,खुले में घूमने की उसकी आजादी छिन गई है |
उसके भौकने पर कालोनी की सभ्रान्तता को देखते हुए लगाम लगाए रखना पडता
है |वरना लोग हमें असभ्य –देहाती न समझें |
दिशा-मैदान के लिए उसे घर वालों का मुह ताकना पडता है |
हमारी पूरी कोशिश होती है कि उसे बुरा न लगे उअसका फील –गुड हिट न हो|
हमारी तरफ से ,घर के एक अशक्त को जो
सेवा दी जा सकती है, वही ‘सिसेन’(शेरू) इन दिनों, पा रहा है|बावजूद इसके
,वो बहुत दुखी है |
उसे इस नए माहौल में अपने सामान –विचार धारा वाले दोस्त की तलाश है
|
सुशील यादव
वडोदरा
No comments:
Post a Comment