Tuesday, 20 August 2013

उनकी पकड़

वे अपने फील्ड में अपनी ‘पकड़’ के लिए जाने जाते हैं |बड़े साहब हैं ,बहुत तजुर्बा रखते हैं | वे कहते हैं,तीस साल हमने घास नहीं खोदी है | एक-एक ब्रांच का नट-बोल्ट खोल-खोल के कसा है, तब कहीं जाकर, ये मुहकमा और यहाँ के जाहिल –गवार वर्कर, कुछ काबिल बन पाए हैं | ऐसे ही कुछ दावों के प्रेरक –प्रसंग से आप वाकिफ होना नहीं चाहेगे? ये राम सजीवन,जिला कचहरी में न्यायाधीश के पेशकार ,इनके सामने कई मुजरिम-गवाह आए –गए, वे सब को नाम-गाव से पहचान लेते हैं | तुम फला केस में सन अनठानबे में अपनी बहू के साथ आए थे,बेटा छूट गया था ,अब वो ठीक रस्ते पर है कि नहीं? राम-सजीवन को केस याद रहा या बहू..... ? वो कई लोगों को यूँ ही किस्से सुना-सुना के चमत्कृत कर देता है | इस चमत्कार का लोग उसे भरपूर अतिरिक्त भुगतान करते हैं| कहते हैं उसकी पकड़ है ,कुछ न कुछ कर सकता है | हम लोग कालिज के फस्ट इयर में देहाती-टाइप हुआ करते थे |महीने भर तक साइंस के पीरियड में,वो आता ,धासू इंग्लिस में लेक्चर देकर चला जाता | स्टूडेंट डरते | बाद में पता चला कि प्रोफेसर साहब के छुट्टी से न लौटने की वजह से लेब अटेंडेंट ही खाली पीरियड में बच्चो के ज्ञान-वर्धन के पवित्र काम में लगे हुए थे | उनके लौटने के बाद वे, लेब-अटेंडेंट वाली अपनी ओरिजनल हैसियत में लौट गए | वैसे वे प्रोफेसर से भी अच्छा पढाते थे इअसमे दो मत नहीं |सब्जेक्ट में उनकी जबरदस्त ‘पकड़’हुआ करती थी | मेरे पडौसी के पास अल्शिशियन कुत्ता है ,वे कुत्ते को ‘कुत्ता’ बोलना सही नही मानते , चिढ जाते हैं |भाई साहब डाग बोलिए न ?सुनने में अच्छा लगता है | वे कुत्ते, यानी कि डागी के खानपान ,आचार-विचार,रख-रखाव ,बात-व्यवहार पर ढूँढ-ढूढ के साहित्य का अध्ययन करते रहते |जिस किसी पत्रिका-अखबार में लेख छपा हो ,वे तुरंत खरीद लाते | मटन-चिकन ,सूप ,हड्डी और दूध के ‘डागी’ इंतजाम में सुबह से रात मानो मशगूल से रहते | वे इस डागी—प्रेम के चलते ,रिश्तेदारी में कहीं आने जाने में परहेज करते हैं |उनके घर चले जाओ, या वे कहीं बाहर टकरा जावे, तो सिवाय इस ‘कुत्ता-घसीटी’ प्रवचन के न वे कुछ सुनाना पसंद करते हैं न सुनना चाहते हैं | उनके ‘कुत्तागिरी’ पर धाराप्रवाह ‘पकड़’ के कारण लगता है कि उनका दाहिना हाथ बाए हाथ से ज्यादा लंबा होते जा रहा है ,कारण कि दिन-रात कुत्ते का बेल्ट खीचते रहते हैं | वे और उनका डागी एक दूसरे की भाषा बखूबी जानने लग गए हैं |वे सुबह –सुबह अखबार के हेडलाइन उससे शेयर करते मिल जायेंगे | अरे-अरे ,इतने सारे लोग मर गए ? अफसोस की इस घडी में कुत्ता एक वक्त का भोजन इनकार कर देता है |मालिक को अफसोस ये होता है कि बेकार ये खबर उस तक पहुचाई | इसे कहते हैं आपसी ‘पकड़’| हम लोग प्यार -मुहब्बत के फील्ड में बस झख-मारते रहे |जिस किसी से थोड़ी जान-पहचान हो जाती ,दो-चार महीने का उसी के साथ , टाइम-पास फिक्स हो जाता | लड़कियों से तरह –तरह की बातें होती,लडकियां जाने कब अपने मतलब की बात जान लेती, कि इस कड़के के पास बातों के अलावा कुछ नहीं है | वे अपना किनारा कर लेती| अपनी कभी इतनी ‘पकड़’ न लडकी पर और न उनके घर वालो पर बनी, कि बात सात–फेरों का जोड़ा पहन ले |अलबत्ता अम्मी-अब्बू की नजर जिस पर पहले से थी वही पल्ले बन्ध गई| इस पूरे घटनाक्रम में जो बात खटकती रही ,वो ये कि ‘पकड़’ बनाने के लिए ‘पैसा’जरूरी है | अच्छे कपडे,महंगे जूते,टिपटाप मोटर-सायकल ,बड़े रेस्तरां में आना-जाना,स्टेंडर्ड का लुक-(लुकाना), एकबारगी यही कुछ| पहले,-अब और आगे भी,अनंत काल तक, लड़कियों या लड़कियों के घरवालों पर यही असर करता मिलेगा | अब ‘घसियारे’, ‘पकड’ बनाने जाएँ तो जाएँ कहाँ ? मुझे कन्छेदी लाल पर, इन दिनों बहुत तरस आता है | ‘राजनीतिक-सुनामी’ सा उन पर बादल ,आसमान,समुद्र फट गया बेचारे कहीं के नहीं रहे |(‘कहीं के नहीं रहे’ का मतलब यहीं तक निकाली जावे, आगे धोबी के घर तरफ जाने की जरूरत नहीं|) पार्टी में उनकी अच्छी पकड़ थी |करीब-करीब पूरे पंजों में पार्टी को जकड़े हुए से थे | पार्टी अगला कदम रखने के पहले उनसे ‘फुकवा’ लेती थी| पार्टी का कहना था कि फूक-फूक के कदम रखने का राजनीतिक फ़ायदा दूरगामी-देरगामी होता है |वे धौकनी की तरह, पार्टी जहां कहती, फूकते नहीं थके | वे पार्टी के लिए चले भी खूब |कन्याकुमारी से काश्मीर एक कर दिया | (डिस्क्लेमर :याद रहे सोमनाथ से अयोध्या वाली बात दिमाग में कदापि न लावें) वामन की तरह ‘तीसरा-पग’कहाँ रखे का ,उनको विचार ही नहीं आया | उनने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनकी ‘पकड’ का काट पार्टी अंदर ही अंदर ढूंढ रखी है, जो उनका वर्षों का सब किया-धरा फेल कर देगी| इतना तो तय है, कि राजनैतिक-भूचाल में, बरसो के जमे ‘पाए’ ,कब उत्तराखंड के जल-प्रलय माफिक उखड जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता | सुशील यादव २०२,शालिग्राम ,श्रिम-सृष्टि अटलादरा ,वडोदरा 390012 मोबाइल :09426764552

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