Friday, 8 July 2011

इस संगदिल को ....

जिसे जहाँ होना चाहिए, वहाँ पर नहीं मिलता
तेरी आँखों में पहले सा समुन्दर नहीं मिलता



तमाम जंगल, तब्दील हो गए, बन के शहर
सांप की केचुली, कहीं, अजगर नहीं मिलता



अपने साये से, हकीकतन दूर था अँधेरे में,अब
वो उजाले में भी , बेहिचक, आकर नहीं मिलता



किसपे करूं यकीन ,तसल्ली किस बात पे मिले
मायूस मेरे दिल को , कोई चारागर नहीं मिलता  



बुत बना के रखता तुझे, दिल के किसी कोने में
इस संगदिल को ढूढे से कही , पत्थर नहीं मिलता



सुशील यादव

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