Tuesday 9 September 2014

हो सके तो

सुशील यादव हो सके तो .... 
हर निगाह चमक, हरेक होठ, हँसी ले के आओ 
हो सके तो, कमजर्फो के लिए, जिंदगी ले के आओ
 इस अँधेरे में दो कदम, न तुम चल सकोगे, न हम 
धुधली सही ,समझौते की मगर , रोशनी ले के आओ
 कुछ अपनी, हम चला सकें, कुछ दूर तुम चला लो
 सोच है ,कागज़ की कश्ती है ,नदी ले के आओ 
चाह के, ठीक से पढ़ नहीं पाते, खुदगर्जों का चेहरा
 पेश्तर किसी नतीजे, हम आये , रोशनी लेके आओ 
सिमट गए हैं, अपने-अपने दायरे, सब के नसीब
 ‘पारस’ की जाओ, कही ढूँढ के, ‘कनी’ ले के आओ
 खुदा तेरे मयखाने, जाने कब से, प्यासा है ये ‘रिंद
’ किसी बोतल ,किसी कोने ‘बची’, ज़रा-सी ले के आओ
 १५ जून १४

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