इसीलिए तो ,
होंट सिए हमने अनुबंधों में
जहर पिए खुद के सौगंधों ने
इसीलिए तो ,
बस्ती सपनो की रात बसाई,
रह –रह उजड गई
रह –रह उजड गई
***
अंधियारे सा अभिशापित मन
उजियारे का देखे कैसे दर्पण ,
इसीलिए तो ,
अनुकरण की बात बनाई
रह –रह बिगड़ गई
रह –रह बिगड़ गई
****
मेहंदी वाले हाथ ले अपने
लौट गए अनब्याहे सपने ,
इसीलिए तो ,
पथ यादो की सुर –शहनाई ,
रह –रह बिफर गई
रह –रह बिफर गई
***
सुशील यादव
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