MERI
JANKARI KA PAHLA ANNA
मेरी जानकारी का वो पहला ‘अन्ना’ ज्योतिषाचार्य
पन्डित रामनारायण त्रिवेदी थे | वे ब्राम्हण पारा ,जो उन दिनों शहर का सिविल लाइन जैसा रुतबा रखता था , वही रहते थे | खपरैल वाला ,लिपा-पुता ,साफ सुथरा सा मकान था |उनके मकान की खासियत थी |अजीब गहरे नीले रंग की दीवाल पर गेरू से लिखे पहले लाइन की
शुरूआत ही जबरदस्त थी , सब आने –जाने वालो की निगाह बरबस
चली जाती थी , किस्सा-कोताह यूँ कि ‘ कांग्रेस के नमक हराम , गद्दार ......., साठ के दशक में जब सभी कांग्रेस की तारीफ के कसीदे काढ़ते
रहते थे , तब उनका यू
चलैन्ज करता हुआ खुला इश्तेहार , बेखौफ ,बेलाग , बेधड़क बयान , लोगो के लिए अजूबा हुआ करता था ,वैसे तब हमारी समझ भी ज्यादा नही थी , बमुश्किल प्रायमरी में पढ़ते थे | उनका लिखा पूरा मजनून भी सिवाय उस सामने की लाइन के ख्याल
नहीं आ रहा |मगर पन्डित जी के चैलेंजदार तबीयत के चलते उन्हें
देखने की इच्छा रहती थी |कभी- कभार वो आराम कुर्सी में बैठे पंचांग मिलाते मिल जाते | पंडिताई से उनकी
जीविका कैसे चलती थी पता नहीं | लगता था , उनके भित्त-लिखित सरकार के
खिलाफ प्रवचन को पढ़ कर कोई भी अपना हाथ दिखा भविष्य जानने की इच्छा नहीं रखता आ
होगा |पूजा-पाठ ,शादी-ब्याह में जाते वो कभी दिखे नहीं ,या उनको बुलाने की किसी की हिम्मत भी नहीं होती रही होगी |
बहुत व्यस्तता के बाद , शहर की उस गली में जाना हुआ | सब बदला –बदला सा लगा |पुराना कोई मकान साबूत नहीं था , नई-नई बिल्डिंग बन गई थी | पन्डित जी के पूरे भित्त-आलेख को, सज्ञान पढ़ना चाहता था |उनके उन दिनों के मनोविज्ञान में घुसने की दबी हुई कोशिश सी
थी |वो घर खँडहर में तब्दील हुआ सामने था |बाहरी दीवाल गिर
चुकी थी |पन्डित जी के बारे में पता चला , उनको गुजरे हुए अरसा हो गया |मैंने उस मुहल्ले में रहने वाले परिचित से जानना चाहा |उसने बताया , यार वो सनकी था |लोग अलग –अलग बाते करते हैं |कोई कहता है , वो स्वतंत्रता संग्राम में जेल गया था , उसकी मुखबिरी करने वाला आजादी के बाद , नेतागिरी करके खूब कमाया |वही इनको कांग्रेस से निकलवाने में एडी-चोटी का जोर किए रहता था | कोई कहता है ,निकाल दिया तो कोई बताते हैं खुद निकल गए | कट्टर कांग्रसी थे , किसी दूसरी पार्टी
में नहीं गए | स्वार्थ के लिए अनशन नहीं किया |सिफारिश ले के नही पहुचे| बस मन की कुछ चुभन थी सो दीवाल पे लिख दिया |
मैं भारी मन से उस गिरी दीवाल की मिट्टी को देखते रह गया |
SUSHIL YADAV
7.9.12
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