जाने कहाँ गए वो दिन
मै
कोई दस –बारह साल का रहा होऊंगा,स्कूलके रास्ते वापस आते कचहरी चौक में एक
सांप वाला मजमा लगाए रहता था | तरह तरह के २०-२५ सांपो से भरे डिब्बे रखता
था वो | हम लोगो की छुट्टी का समय
उसे बखूबी याद रहता | दस –बारह बच्चो से उसका काम शुरू हो जाता |एक के बाद
एक डिब्बे खोलता ,सांप के साथ हरकते करता | हमारे लिए ये हरकतें अजीब हलचल
पैदा करने वाली बात होती | सांपो के बारे में उसकी जानकारी किसी
इन्सैक्लोपिडीया से कम नहीं लगती थी उन दिनों |उसकी जानकारी देने की रफ्तार मजमे में भीड़
बढ़ने के साथ-साथ बढते जाती | वो बाकायदा सिद्ध करने की कोशिश करता कि किस
मशक्कत के साथ उस सांप को पाया है |इससे ज्यादा जहरीला सांप किसी के पास नहीं
|वो एक सुंदर से बक्से की तरफ इशारा कर हरदम सस्पेंस बनाए रखता कि उसके
पास एक खतरनाक सांप है जो उड़ता है |काट दे तो कोई पानी न मांगे |अपने
दुश्मन की फोटो खीच के रखता है | ऐसे बदला लेता है कि दुश्मन का विकेट
देखते- देखते उखड़ जाए | मै बहुत उत्सुकता से हर रोज उसके सस्पेंस के अन्त
तक पहुचना चाहता ,मगर उसे बच्चो वाले भीड की जरूरत नही होती| वो कमर्शियल
होने लगता | उसकी जानकारी अब गाँव –देहात से मुक़दमे –सुनवाई में आए लोगों
की तरफ मुड चुकी होती |वो गंडा-ताबीज की बातें करने लगता |किस सांप से क्या
निकाल के कौन सी ताबीज बनाया है ,जो मुकदमें का रुख मोड़ सकता है ,पेट दर्द
,गठिया ,लकवा ,आधा-शीशी ,सर्दी-जुकाम से केंसर तक से निजात दिला सकता है
|हम तबभी बड़ी उम्मीद मे रहते कि
आखिर में वो पिटारा या डिब्बा जरूर खोलेगा जिसमे उड़ने वाला सांप बंद किए
रखा है | मजमेबाज, भीड़ को उकसाने के पहले हम बच्चो को भगा देता |कहता अब जो
कहना है उसे बच्चे न सुने वरना सांप से फोटो खिचवा देगा |हम मन मसोस कर
लौट जाते , तब भूख भी लग आती थी |सांप वाला अपना खेल जरी रखता , वो
मर्दानगी की दवा का दावा करता| तेल की नुमाइश करके बताता कि आदमी कितनी देर
तक ठहर सकता है |लोग ताबीज से तेल तक खरीद कर ले जाते |वे अपने मुक़दमे में अपनी जीत का सपना पालते | अपनी मर्दानगी तेल के जरिये सलामत रखते , हर मर्ज में, उसकी दवा खाते |उन दिनों वे सब लाइलाज बीमारी में भी खुश थे | जाने कहाँ गए वो दिन |
हाँ , आजकल मै जंतर –मंतर,रामलीला मैदान, इन दिनों टाइम पास करने चला जाता हूँ |
सुशील यादव