Sunday, 18 November 2012

चरित्र आस-पास के.....


.
जिसे लोग नरेंद्र महाराज के नाम से  जानते हैं ,वो हमारे लिए मात्र नरेंद्र या अरे –अबे शर्मा था |
साथ में पढने वालो के नाम, बिना अरे , अबे ,स्साले के कहो तो बहुत बुरा लगता है |
कभी-कभी ठीक –ठीक नाम से बुला दो तो लगत्ता है ,बन रहे हैं |
कई बार स्तिथी बदल भी जाती है |कई इतने हैसियत वाले हो जाते हैं कि लगता है, कम बात करे तो ही अच्छा है |
मेरे  मित्रों में से एक  जज , एक कालिज का  प्रिंसिपल , एक मंत्री , एक सांसद,एक पंडित बन बैठा है |मेरी हैसियत मात्र एक ठेकेदार तक की है |इंजिनियरिंग करने के बाद सोचा नौकरी क्या करना . अपना ही कुछ किया जावे ,सो ठेकेदारी शुरू कर दी |
कभी –कभार पुराने, हैसियत वाले दोस्तों से  मिलना हो जाए, तो वे मजे से कह देते हैं , क्या सुशील , कैसा है तू ?
मुझे लगता है जवाब दू , अच्छा हूँ स्साले , तू बता ,तू कैसा  है ? मगर मै मुश्किल से दुविधा में  सकुचाए हुए कह पाता हूँ , अच्छा हूँ  भाई ,आप कहो क्या चल रहा है ?
ये सब वो लोग हैं जो मेरे नोट्स लेकर ,मेरे बताए नुस्खो ,तरीको को आजमा-आजमा के आज हैसियत वाले हो गए |
इनकी ऊँची आवाज में अब वो दब्बूपन जाने कहाँ खो गया ,जिसको निकालने के लिए हमने इनको रेगिंग कैसे करना है , सिखाया था |
कालिज के वो अजीब से दिन थे |पिकनिक –पार्टी मेरे बिना या तो बनाती  न थी या इसके आयोजन की कोई सोचता भी न था |
लडकियां जो अब शादी -शुदा हो अपने –अपने ठिकाने लग गई ,उनको बीच में लाने का ,अब बनता नहीं , वरना कई किस्से इन साहबानो के साथ जुड़े थे |
इन-दिनों जब ये मुझसे मिलते हैं , सीधे –सीधे पूछने में उनको हिचकिचाहट सी महसूस होती है ,वो घुमा-फिरा के पूछते  , रेखा-राधिका  ,अगरवाल-सबरवाल के क्या हाल हैं ?
मै सब के बारे में बरी-बारी बता देता  |किसके दो बच्चे  हैं , किसका आदमी बैंक में, किसका बैंकाक में है |
बस उनके मतलब की जानकारी को दबा के कहता , आप जिस के चक्कर में थे ,उसका बहुत दिनों से कुछ पता नहीं चला |मै टच में हूँ ,बताउंगा |मै ज्यादा बात  करने से बच जाता |वो अपनी राह  निकल लेते  |
    एक बार जज साहब  से, किसी दोस्त की पार्टी में मुलाक़ात हो गई , दोस्तों-परिचितों के साथ घिरे गप-शप कर रहे थे , मुझे अनदेखा कर रहे हैं ऐसा मुझे लगा  |सीधे –सीधे आमना –सामना होने पर उसे कहना पडा , और सुशील कैसा है तू? ,मैंने कहा अच्छा हूँ मैंने भी  तात्कालिक पूछ लिया ,तुम कैसे हो ?
मुझसे ‘तुम’ सुनकर, भिन्नाए ,अच्छा हूँ , बोलते हुए ,  वो एक इज्जतदार आदमी की तरह, एक तरफ खिसक लिए.... |
    विकास देशमुख , अब विकास –योजना मंत्री हैं ,मेरे बेटे का इंटर-व्यू आया , घर वालो की जिद के चलते उनसे मिलना हुआ |
हम कई-कई रात कंबाइंड स्टडी में बिताते |कहीं रात  में चाय  पीने निकल जाते तो अक्सर उनकी जेब खाली रहती |
खैर , उनसे मिला | बा-हैसियत उनके स्पेशल मिलने  वालो में मेरा  नाम ,मेरे इस  बयान से  कि मै उनका ख़ास मित्र हूँ ,लिख लिया गया |
किसी ने बताया कि बिना एप्वाइन्टमेन्ट के उनसे मुलाकात कराने पर  मंत्री जी खफा होते हैं और  मना भी  कर रखा है |
यहाँ सब अपने को ख़ास ही बता कर घुसना चाहते हैं |
मुझे बुरा भी ख़ूब लगा |मैंने कहा , मै मोबाइल से बात किए लेता हूँ , बस उनको मोबाइल आन करने को कह दें आप लोगों को कोई परेशानी नहीं होगी |
उनके कार्यकर्ता नर्म हुए |मेरा बुलावा भी आ गया |अन्दर का माहौल मेरे लिए नया था ,कभी यूँ मिलना पडेगा सोचा न था | वो तपाक से मिले , मेरी झिझक को भापते हुए ,तात्कालिक दूसरो को बाहर भेज दिया |बोले , इत्मिनान से कहो ,आज इतने दिनों बाद कैसे आना हुआ ? यू क्यों नहीं करते, हम कल या परसों अपने फार्म –हाउस में मिले. साथ लंच लें |खैर अभी ,ज़रा जल्दी बताओ ,कैसे आना हुआ |उसकी व्यस्तता और मेरे संकोच ने ,बेटे के इंटरव्यू को बीच में लाना उचित नहीं जाना |मैंने कहा , लंच में मिलकर बात कर लेंगे |उसने हाथ मिलाया ,उसके लंच के नाम पर दो दिनों तक मै देर-देर से खाना खाया |बुलावा उधर से आया ही नहीं|
घर वालो को, बेटे के इंटरव्यू निकाल लेने पर ,मेरे बेटे की क़ाबलियत से ज्यादा, मेरे मंत्री के रिश्ते पर विश्वास होता है|
    कभी-कभी दोस्तों की बेदिली से , जब उब सा जाता हूँ तो नरेंद्र –निवास की तरफ रुख कर लेता हूँ |इत्मीनान से अकेले में बीते दिनों को याद कर हम दोनों  ख़ूब हंस –बोल लेते हैं |
हम लोग  किसी भी राज की बात बे-तकल्लुफ पूछ लिया करते हैं |हमारा एक दूसरे के प्रति , अबे-अरे के  संबोधन में अब तक कोई फर्क नहीं आया है|एक दिन मैंने पुछा ,अबे नरेंद्र,  बता तू पंडित कैसे हो गया ?
उसने कहा –यार क्या करता ग्रेजुएशन के बाद नौकरी के लिए भटका –घुमा ,चप्पल घिसे ,मगर काम नहीं बना |पिताजी के साथ पंडिताई में जाते –जाते काम के लायक कुछ सीख गया , उसी के भरोसे चल रहा है |
पंडित गिरी में सब अंदाज का होता है ,यजमान की सुविधा में मुहूर्त ,यजमान के रिश्तेदारों की सुविधा में सब नेग-नियम,हमलोग  तात्कालिक बना देते हैं और वही सुविधा देने वाला पंडित  सबसे अच्छा पंडित होता है|
पिताजी तो गुजर गए पर उनके गुरु मन्त्र से रोजी –रोटी अच्छे से चल रही है|बाहर  इज्जत ,मान सम्मान भी बहुत है|और चाहिए भी क्या ?
अचानक उसने कहा , बहुत दिन हो गए, यार  , एक-आध पेग लेगा क्या ,दरअसल ,बिना कम्पनी के  लेना जमता  नहीं |वो मेरे जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर ,बोतल उठा लाया | हम कालिज के दिनों में खो से गए |फिर एक-एक दोस्त खबर ली, उनको  जी भर के गालियाँ दी, जो चोचले बघारते आजकल बाहर फिरते हैं |
सुशील यादव,
केन्सास सिटी अमेरिका  
२६.१०१२

No comments:

Post a Comment