.
जिसे लोग नरेंद्र
महाराज के नाम से जानते हैं ,वो हमारे लिए
मात्र नरेंद्र या अरे –अबे शर्मा था |
साथ में पढने वालो
के नाम, बिना अरे
, अबे ,स्साले के कहो तो बहुत बुरा लगता है |
कभी-कभी ठीक –ठीक
नाम से बुला दो तो लगत्ता है ,बन रहे हैं |
कई बार स्तिथी बदल
भी जाती है |कई इतने हैसियत वाले हो जाते हैं कि लगता है, कम बात करे तो ही अच्छा
है |
मेरे मित्रों में से एक जज , एक कालिज का प्रिंसिपल , एक मंत्री , एक सांसद,एक पंडित बन
बैठा है |मेरी हैसियत मात्र एक ठेकेदार तक की है |इंजिनियरिंग करने के बाद सोचा
नौकरी क्या करना . अपना ही कुछ किया जावे ,सो ठेकेदारी शुरू कर दी |
कभी –कभार पुराने,
हैसियत वाले दोस्तों से मिलना हो जाए, तो
वे मजे से कह देते हैं , क्या सुशील , कैसा है तू ?
मुझे लगता है जवाब
दू , अच्छा हूँ स्साले , तू बता ,तू कैसा
है ? मगर मै मुश्किल से दुविधा में
सकुचाए हुए कह पाता हूँ , अच्छा हूँ
भाई ,आप कहो क्या चल रहा है ?
ये सब वो लोग हैं
जो मेरे नोट्स लेकर ,मेरे बताए नुस्खो ,तरीको को आजमा-आजमा के आज हैसियत वाले हो
गए |
इनकी ऊँची आवाज में
अब वो दब्बूपन जाने कहाँ खो गया ,जिसको निकालने के लिए हमने इनको रेगिंग कैसे करना
है , सिखाया था |
कालिज के वो अजीब
से दिन थे |पिकनिक –पार्टी मेरे बिना या तो बनाती
न थी या इसके आयोजन की कोई सोचता भी न था |
लडकियां जो अब शादी
-शुदा हो अपने –अपने ठिकाने लग गई ,उनको बीच में लाने का ,अब बनता नहीं , वरना कई
किस्से इन साहबानो के साथ जुड़े थे |
इन-दिनों जब ये
मुझसे मिलते हैं , सीधे –सीधे पूछने में उनको हिचकिचाहट सी महसूस होती है ,वो
घुमा-फिरा के पूछते , रेखा-राधिका ,अगरवाल-सबरवाल के क्या हाल हैं ?
मै सब के बारे में
बरी-बारी बता देता |किसके दो बच्चे हैं , किसका आदमी बैंक में, किसका बैंकाक में
है |
बस उनके मतलब की
जानकारी को दबा के कहता , आप जिस के चक्कर में थे ,उसका बहुत दिनों से कुछ पता
नहीं चला |मै टच में हूँ ,बताउंगा |मै ज्यादा बात करने से बच जाता |वो अपनी राह निकल लेते |
एक
बार जज साहब से, किसी दोस्त की पार्टी में
मुलाक़ात हो गई , दोस्तों-परिचितों के साथ घिरे गप-शप कर रहे थे , मुझे अनदेखा कर
रहे हैं ऐसा मुझे लगा |सीधे –सीधे आमना –सामना
होने पर उसे कहना पडा , और सुशील कैसा है तू? ,मैंने कहा अच्छा हूँ मैंने भी तात्कालिक पूछ लिया ,तुम कैसे हो ?
मुझसे ‘तुम’ सुनकर,
भिन्नाए ,अच्छा हूँ , बोलते हुए , वो एक
इज्जतदार आदमी की तरह, एक तरफ खिसक लिए.... |
विकास
देशमुख , अब विकास –योजना मंत्री हैं ,मेरे बेटे का इंटर-व्यू आया , घर वालो की
जिद के चलते उनसे मिलना हुआ |
हम कई-कई रात
कंबाइंड स्टडी में बिताते |कहीं रात में चाय
पीने निकल जाते तो अक्सर उनकी जेब खाली
रहती |
खैर , उनसे मिला |
बा-हैसियत उनके स्पेशल मिलने वालो में
मेरा नाम ,मेरे इस बयान से कि मै उनका ख़ास मित्र हूँ ,लिख लिया गया |
किसी ने बताया कि
बिना एप्वाइन्टमेन्ट के उनसे मुलाकात कराने पर मंत्री जी खफा होते हैं और मना भी कर रखा है |
यहाँ सब अपने को
ख़ास ही बता कर घुसना चाहते हैं |
मुझे बुरा भी ख़ूब
लगा |मैंने कहा , मै मोबाइल से बात किए लेता हूँ , बस उनको मोबाइल आन करने को कह
दें आप लोगों को कोई परेशानी नहीं होगी |
उनके कार्यकर्ता
नर्म हुए |मेरा बुलावा भी आ गया |अन्दर का माहौल मेरे लिए नया था ,कभी यूँ मिलना
पडेगा सोचा न था | वो तपाक से मिले , मेरी झिझक को भापते हुए ,तात्कालिक दूसरो को
बाहर भेज दिया |बोले , इत्मिनान से कहो ,आज इतने दिनों बाद कैसे आना हुआ ? यू
क्यों नहीं करते, हम कल या परसों अपने फार्म –हाउस में मिले. साथ लंच लें |खैर अभी
,ज़रा जल्दी बताओ ,कैसे आना हुआ |उसकी व्यस्तता और मेरे संकोच ने ,बेटे के इंटरव्यू
को बीच में लाना उचित नहीं जाना |मैंने कहा , लंच में मिलकर बात कर लेंगे |उसने
हाथ मिलाया ,उसके लंच के नाम पर दो दिनों तक मै देर-देर से खाना खाया |बुलावा उधर
से आया ही नहीं|
घर वालो को, बेटे
के इंटरव्यू निकाल लेने पर ,मेरे बेटे की क़ाबलियत से ज्यादा, मेरे मंत्री के
रिश्ते पर विश्वास होता है|
कभी-कभी
दोस्तों की बेदिली से , जब उब सा जाता हूँ तो नरेंद्र –निवास की तरफ रुख कर लेता
हूँ |इत्मीनान से अकेले में बीते दिनों को याद कर हम दोनों ख़ूब हंस –बोल लेते हैं |
हम लोग किसी भी राज की बात बे-तकल्लुफ पूछ लिया करते
हैं |हमारा एक दूसरे के प्रति , अबे-अरे के संबोधन में अब तक कोई फर्क नहीं आया है|एक दिन
मैंने पुछा ,अबे नरेंद्र, बता तू पंडित
कैसे हो गया ?
उसने कहा –यार क्या करता ग्रेजुएशन
के बाद नौकरी के लिए भटका –घुमा ,चप्पल घिसे ,मगर काम नहीं बना |पिताजी के साथ
पंडिताई में जाते –जाते काम के लायक कुछ सीख गया , उसी के भरोसे चल रहा है |
पंडित गिरी में सब
अंदाज का होता है ,यजमान की सुविधा में मुहूर्त ,यजमान के रिश्तेदारों की सुविधा
में सब नेग-नियम,हमलोग तात्कालिक बना देते
हैं और वही सुविधा देने वाला पंडित सबसे अच्छा
पंडित होता है|
पिताजी तो गुजर गए
पर उनके गुरु मन्त्र से रोजी –रोटी अच्छे से चल रही है|बाहर इज्जत ,मान सम्मान भी बहुत है|और चाहिए भी क्या
?
अचानक उसने कहा ,
बहुत दिन हो गए, यार , एक-आध पेग लेगा
क्या ,दरअसल ,बिना कम्पनी के लेना जमता नहीं |वो मेरे जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर ,बोतल
उठा लाया | हम कालिज के दिनों में खो से गए |फिर एक-एक दोस्त खबर ली, उनको जी भर के गालियाँ दी, जो चोचले बघारते आजकल बाहर
फिरते हैं |
सुशील यादव,
केन्सास सिटी
अमेरिका
२६.१०१२
No comments:
Post a Comment