उन दिनों ये शहर बेतरतीब हुआ करता था
मगर दिल के बहुत ,करीब हुआ करता था
यूं लगता था, तुझे छू के बस आई हो हवा
मेरे बियाबान का ये नसीब हुआ करता था
छीन कर मेरी परछाई, मुझसे बिछड़ने वाले
‘तमस’, तेरे वजूद का रकीब हुआ करता था
मेरे मागने से वो मुझको देता भी क्या
मेरा खुदा ,मेरी तरह, गरीब हुआ करता था
sushil yadav 291211
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