उन दिनों ये शहर बेतरतीब हुआ करता था
मगर दिल के बहुत ,करीब हुआ करता था
यूं लगता था, तुझे छू के बस आई हो हवा
मेरे बियाबान का ये नसीब हुआ करता था
छीन कर मेरी परछाई, मुझसे बिछड़ने वाले
‘तमस’, तेरे वजूद का रकीब हुआ करता था
मेरे मागने से वो मुझको देता भी क्या
मेरा खुदा ,मेरी तरह, गरीब हुआ करता था
sushil yadav 291211
Thursday, 29 December 2011
Wednesday, 28 December 2011
सीने में लिखा नाम
धुआँ-धुआँ है शहर में, हवा नही है
मै जो बीमार हूं ,मेरी दवा नहीं है
तलाश उस शख्श की, है अभी जारी
जिसके पावों छाले-छाले, जो थका नहीं है
कहाँ तक लाद कर हम ,बोझ को चलें
बनके श्रवण माँ –बाप को पूजा नहीं है
दंगो के शहर दहशत लिए फिरता हूँ मै
कोई हादसा करीब से बस छुआ नहीं है
लहरों से मिटी है , रेतो की इबारत
सीने में लिखा नाम तो मिटा नहीं है
Sushil Yadav,09426764552, Vadodara
मै जो बीमार हूं ,मेरी दवा नहीं है
तलाश उस शख्श की, है अभी जारी
जिसके पावों छाले-छाले, जो थका नहीं है
कहाँ तक लाद कर हम ,बोझ को चलें
बनके श्रवण माँ –बाप को पूजा नहीं है
दंगो के शहर दहशत लिए फिरता हूँ मै
कोई हादसा करीब से बस छुआ नहीं है
लहरों से मिटी है , रेतो की इबारत
सीने में लिखा नाम तो मिटा नहीं है
Sushil Yadav,09426764552, Vadodara
Subscribe to:
Posts (Atom)